By A Jayjeet
Photo : कतिपय
कारणों से मैसूर श्री ने अपनी खिंचवाने मना कर दिया। इसलिए उनकी जगह स्वर्ण भस्म श्री
की तस्वीर दी जा रही है। वे एलीट वर्ग की राष्ट्रवादी विचारधारा से ताल्लुक रखती है।
यहां आपको कॉन्टेंट मिलेगा कभी कटाक्ष के तौर पर तो कभी बगैर लाग-लपेट के दो टूक। वैसे यहां हरिशंकर परसाई, शरद जोशी जैसे कई नामी व्यंग्यकारों के क्लासिक व्यंग्य भी आप पढ़ सकते हैं।
By A Jayjeet
Photo : कतिपय
कारणों से मैसूर श्री ने अपनी खिंचवाने मना कर दिया। इसलिए उनकी जगह स्वर्ण भस्म श्री
की तस्वीर दी जा रही है। वे एलीट वर्ग की राष्ट्रवादी विचारधारा से ताल्लुक रखती है।
By Jayjeet Aklecha/ जयजीत अकलेचा
राहुल गांधी ने अपनी पार्टी कांग्रेस को बचाने के लिए मास्टर स्ट्रोक चलने की तैयारी कर ली है। यह ऐसा मास्टर स्ट्रोक है जिससे ‘भाजपा मुक्त भारत' की स्थिति बन सकती है। इससे भाजपा की सांसें फूल गई हैं।
राहुल के एक क़रीबी सूत्र के अनुसार अगले कुछ दिनों में राहुलजी ज़बरदस्ती भाजपा में शामिल होंगे। वे उसके पक्ष में जगह-जगह जाकर जमकर प्रचार भी करेंगे।
राहुल के इस मास्टर स्ट्रोक के पीछे आख़िर गणित क्या है? इसको लेकर एक सूत्र ने बताया कि मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बड़ी-बड़ी बातें करते आए हैं। मोदी के इस घमंड को चूर-चूर करने के लिए ही राहुलजी यह मास्टर स्ट्रोक चलेंगे।
राहुल के इस मास्टर प्लान की जानकारी लीक होते ही बचे-खुचे कांग्रेसियों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है। कांग्रेस के एक सीनियर लीडर ने अपनी ख़ुशी छिपाते हुए कहा, "गांधी परिवार अपने बलिदान के लिए जाना जाता है। इंदिराजी से लेकर राजीवजी तक ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। अब राहुलजी कांग्रेस को बचाने के लिए पार्टी छोड़कर जाएंगे। इससे बड़ा बलिदान और क्या होगा? हम कांग्रेसी इसे हमेशा याद रखेंगे।'
हालांकि राहुल के भाजपा में शामिल होने की ख़बरों से भाजपा में दहशत का माहौल है। पार्टी के प्रवक्ता सांबित पात्रा ने रूंधे हुए गले से कहा, "अगर ये ख़बरें सच हैं तो दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें नहीं पता था कि कांग्रेसी इतना नीचे गिर जाएंगे।'
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(Disclaimer: यह केवल एक व्यंग्य बतौर लिखा गया है।)
By jayjeet
हिंदी सटायर डेस्क। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सीधी के गेस्टहाउस में मच्छरों द्वारा काटने की जैसे ही खबर आईं, रिपोर्टर कुछ नया करने के जुनून से भर उठा। वह जुट गया उस सौभाग्यशाली मच्छर की तलाश में... कुछ ही घंटों के भीतर उसे गेस्टहाउस के पास मच्छरों का मजमा लगाए एक मच्छर मिला। कुछ समझदार मच्छरों से पूछताछ करने पर पता चला कि दो दिन पहले तक यह ठीक था। लेकिन पिछले दो दिन से यह भाषण पर भाषण पेले जा रहा है। सभी मच्छरानियों को माताएं-बहनें कह रहा है। छोटी-छोटी मच्छरियों से कह रहा है कि जब तक तुम्हारा मच्छर मामा है, तुम्हें चिंता करने की जरूरत नहीं है....रिपोर्टर की तलाश पूरी हो गई थी। उसे वह मिल गया था, जिसने शिवराज सिंह को काटा था। अपाइंटमेंट मिलते ही तुरंत शुरू हुआ यह इंटरव्यू। दुनिया का पहला इंटरव्यू किसी मच्छर के साथ...
रिपोर्टर : मच्छर महोदय, एक विशिष्ट हस्ती के साथ आप रूबरू हुए। उनके साथ कैसा अनुभव रहा?
मच्छर : मेरी पूरी जिंदगी ही बदल गई। एक दिव्य अनुभूति हुई है। आप देख ही रहे हैं, कैसा रूपान्तरण हो गया है मेरा। मेरे मुंह से भाषण पर भाषण फूट रहे हैं।
रिपोर्टर : आप आम आदमी को भी काटते हैं और आपने एक नेता को भी काटा। दोनों में क्या अंतर महसूस हुआ?
मच्छर : देखिए, एक आम आदमी को काटना बड़ा आसान होता है। उसकी चमड़ी तो चमड़ी जैसी होती ही नहीं। बिल्कुल झिल्ली सी। ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। डंक टच करते ही वह चमड़ी को पार कर जाता है। लेकिन नेताओं के साथ बड़ी मुश्किल होती है। बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। कई बार हमारे डंक तक टूट जाते हैं। जो नेता का खून पीकर आता है, उसका हमारे यहां बड़ा सम्मान भी होता है। उसे नेता डंकमणि की उपाधि तक दी जाती है।
रिपोर्टर : खून-खून में भी कुछ फर्क होता है?
मच्छर : बिल्कुल। क्वालिटी में अंतर होता है। आम आदमी का खून क्या होता है। बिल्कुल पानी होता है। कुछ भी न्यूट्रिशियस उसमें नहीं होता। और अगर वह आम आदमी और भी टुच्चा-सा हुआ, आई मीन गरीब-गुरबा तो फिर तो कई बार हमारी जान पर बन आती है। गंदा पानी और स्प्रिट मिली कच्ची दारू पीने और रुखी-सूखी दो-चार रोटियां खाने वाले के खून में भला होगा भी क्या! ऐसा दूषित खून पीकर तो कई बार हमारे मच्छर लोग बीमार पड़ गए। हमने तो गर्भवती मच्छरानियों, बूढ़े-बुजुर्गों को झुग्गियों या छोटी बस्तियों में न जाने की हिदायत तक दे रखी है।
रिपोर्टर : पर नेताओं के खून में ऐसा क्या होता है जिसके आप बड़े मुरीद होते हैं?
मच्छर : देखिए, जैसा मैंने पहले बताया कि नेताओं का खून तो हम बड़ी मुश्किल से पी पाते हैं। हां, सरकारी अफसरों की चमड़ी अपेक्षाकृत थोड़ी पतली होती है। तो उनका खून हमारे लिए मुफीद रहता है। अच्छा तरी वाला खून होता है। शुद्ध घी, ऑर्गनिक सब्जियों और ड्राय-फूट्स के फ्लेवर होते हैं। तो हम सब उन्हीं का खून पीने को लालायित रहते हैं। कई बार तो हमारे यहां अफसरों का खून पीने को लेकर डंक तक चल गए, वो आपके यहां क्या कहते हैं, तलवारें चलना, वही समझ लो...
रिपोर्टर : पर अफसरों का खून भी इतनी आसानी से मिल जाता है?
मच्छर : वही तो कह रहा हूं कि एक अनार सौ बीमार जैसी स्थिति है। जैसे आम जनता का कैबिन में बंद अफसर से मिलना इतना आसान नहीं रहता , वैसे ही रात को मच्छरदानियों में बंद अफसरों का खून मिलना आसान नहीं रहता। .... अच्छा अब मैं चलता है। मुझे अगला भाषण देने पड़ोस की बस्ती में जाना है....
रिपोर्टर : बस आखिरी सवाल, इतनी चाक-चौबंद व्यवस्था के बीच आखिर आप एक मुख्यमंत्री के कक्ष में कैसे पहुंच गए?
मच्छर : जैसे हर सिस्टम में छेद होते हैं, वैसे ही हर मुख्यमंत्री के कक्ष में कुछ ऐसे छिद्र होते हैं जहां से हम पहुंच जाते हैं। बस पहुंचने वाला चाहिए... अच्छा नमस्कार।
(Disclaimer : यह केवल राजनीतिक कटाक्ष है, किसी की व्यक्तिगत मानहानि का प्रयास नहीं।)
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मेरा रिजाेल्यूशन : अगले साल से मैं रोज बादाम खाऊंगा, ताकि अपना रिजाेल्यूशन याद रहे। |
Humour Desk, दिल्ली/भोपाल। अब जबकि नए साल को आने में एक माह से भी कम का वक्त बचा है, लोगों ने पिछली बार लिए अपने-अपने रिजोल्यूशन्स की तलाश तेज कर दी है। कई लोग तो रोज मुट्ठी भर-भरके बादाम खा रहे हैं ताकि उन्हें यह याद आ सके कि साल 2020 की शुरुआत में उन्होंने क्या रिजोल्यूशन लिया था।
इस संबंध में हमारी टीम ने कुछ लागों से बात की। भोपाल के युवक राजेश सा रा रा रा ने इस बारे में पूछने पर बताया, “सर, था तो बहुत अच्छा, एकदम यूनिक-सा, पर अभी याद नहीं आ रहा। लेकिन इस बार मैं अपने फोन में सेव कर लूंगा ताकि अगले साल कोई पूछे तो बता तो सकूं।”
इसी तरह एक कॉलेज कन्या ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “मैंने वजन कम करने का रिजोल्यूशन लिया था। पर एक्चुअली हुआ क्या कि फ्रेंड लोग कहने लगे कि इत्ता अच्छा रिजोल्यूशन लिया है तो एक पार्टी तो बनती है। ऑब्वयसली, पार्टी तो बनती थी। तो फिर मैंने दो दिन बाद उसे OLX पर बेच दिया। जो पैसे मिले, उससे ही शानदार पिज्जा पार्टी थ्रो कर दी।’ फिर आनन-फानन में समोसा मुंह में भरते हुए उसने कहा, “इस बार मैं कुछ ऐसा डिफरंट टाइप का रिजोल्यूशन लूंगी कि लोग देखते रह जाएंगे, देखना, रियली!”
क्यों भूल जाते हैं रिजोल्यूशन?
इस बारे में साइकोलॉजिस्ट डॉ. सुरेश शर्मा का कहना है कि नए साल पर 99 फीसदी लोग रिजोल्यूशन लेते ही लेते हैं। इसमें कोई कॉम्प्रोमाइज नहीं करते। हां, लेकिन इनमें से केवल एक फीसदी ही लोग ऐसे होते हैं जो ईमानदारी के साथ कन्फेस करते हैं कि वे इस साल भी अपना रिजोल्यूशन पूरा नहीं कर पाए। ऐसे लोग फिर उसे अगले साल के लिए कैरी फारवर्ड कर देते हैं। बाकी के बचे 99 फीसदी को तो याद ही नहीं रहता कि उन्होंने रिजोल्यूशन क्या लिया था।
इसलिए डॉ. सुरेश ने लोगों को सलाह दी कि रिजोल्यूशन लेना ही काफी नहीं है। उसे डायरी में लिखकर रखना ज्यादा जरूरी है, ताकि हमें 364 दिन बाद फिर नए रिजोल्यूशन को ढूंढने की मगजमारी नहीं करनी पड़े। उन्होंने कहा, “मैं ऐसा ही करता हूं। अभी डायरी देखकर बता सकता हूं कि मैंने इस साल क्या रिजोल्यूशन लिया था।’
(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है। इसका मकसद केवल स्वस्थ मनोरंजन और सिस्टम पर कटाक्ष करना है, किसी की मानहानि करना नहीं।)
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Humour Desk. मेलबर्न। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट काउंसिल (ICC) ने अब तक किसी भी ODI की एक पारी में 500 रन नहीं बनने पर चिंता जताई है। इसने गेंदबाजों की चालाकी और धूर्तता को खत्म करने के लिए अब मशीनों से बॉलिंग करवाने का निर्णय लिया है। यह निर्णय रविवार को सिडनी में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बल्लेबाजों के शर्मनाक प्रदर्शन की वजह से लिया गया है। इस मैच में दोनों टीमों के बल्लेबाज मिलकर 100 ओवर में महज 727 रन ही बना पाए।
ICC के एक सूत्र ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया, “इतने सारे नियमों में बदलाव करने और सपाट पिचें बनाने के बावजूद टीमें एक पारी में 500 रन भी नहीं बना पा रहीं। यहां तक कि सिडनी की सपाट पिचों पर भी बल्लेबाज फेल हो रहे हैं। यह बेहद अफसोसजनक हैं और बल्लेबाजों के निकम्मेपन को दर्शाता है।”
ICC के इस सूत्र ने कहा, “क्रिकेट में रोमांच बना रहे, इसके लिए गेंदबाजों की धूर्तता और चालाकी को खत्म करने का वक्त आ गया है। अब भी देखा गया है कि कई बार कोई-कोई गेंदबाज नैतिकता को ताक पर रखकर ऐसी बॉल फेंक देता है कि बेचारा बल्लेबाज मात खा जाता है। इस विसंगति को दूर करने के लिए अब हम तकनीक का सहारा लेने जा रहे हैं। इसके लिए अब आगे से हर वन डे मैच में गेंदबाजी केवल बॉलिंग मशीनों से होंगी। मशीनों में ऐसी सेटिंग की जाएगी कि न तो बॉल स्विंग हो और न ही स्पिन। सीधी-सपाट बॉल आएगी तो बल्लेबाजों को खेलने में आसानी होगी।”
यह पूछे जाने पर कि ऐसा करना क्या गेंदबाजों के साथ अन्याय नहीं होगा? उन्होंने प्रश्नकर्ता की नादानी पर हंसते हुए कहा, “जब किसी भी टीम में गेंदबाज ही नहीं होंगे ताे उनके साथ अन्याय कहां से होगा!”
(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है।)
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चीन जाने की तैयारी करते हुए रॉबर्ट वाड्रा। |
इस तरह से केवल पानी में उतरने को भी स्नान माना जाएगा।
By Jayjeet
नई दिल्ली। एक और हिंदुत्ववादी कदम उठाते हुए मोदी सरकार ने एक अध्यादेश जारी किया है जिसके तहत उन हिंदुओं को भी पूरा पुण्य उपलब्ध करवाया जाएगा जो ठंड के चलते मकर संक्रांति की अलसुबह स्नान करने में खुद को असमर्थ पाएंगे। हालांकि विपक्ष ने इसे सीएए की तरह ही धार्मिक भेदभाव वाला अध्यादेश करार दिया है।
यह फैसला यहां मंगलवार को मकर संक्रांति से एक दिन पहले बुलाई गई कैबिनेट की एक विशेष बैठक में लिया गया। फैसले के बारे में जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया कि देश की बड़ी आबादी ठंड के कारण सप्ताह में तीन से चार दिन में एक बार ही नहा रही है। लेकिन मकर-संक्रांति पर मिलने वाले स्नान संबंधी पुण्य के मद्देनजर अधिकांश लोग धर्मसंकट में हैं कि नहाएं कि न नहाएं। लोगों को इसी धर्मसंकट से बाहर निकालने के लिए सरकार ने यह फैसला किया है। इसके लिए कैबिनेट ने हिंदू आचरण संहिता में संक्रांति के स्नान लाभ संबंधी अध्याय में आवश्यक संशोधन के लिए अध्यादेश लाने को मंजूरी दे दी है। इससे न नहाने वाले देश के करोड़ों हिंदुओं को फायदा होगा। यह अध्यादेश बुधवार की सुबह संक्रांति के दिन से देशभर में लागू हो जाएगा।
राहुल ने देशवासियों से किया जमकर नहाने का आह्वान :
विपक्ष ने सरकार के इस अध्यादेश को धार्मिक विभाजन बढ़ाने वाला कदम करार दिया है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अधीररंजन ने कहा कि इस अध्यादेश से फिर साबित हो गया कि सरकार केवल हिंदुओं का ही ध्यान रख रही है। अगर सरकार की मंशा नेक होती तो वह मुस्लिमों को भी जुम्मे की नमाज के दिन स्नान वगैरह से छूट देने का इसमें प्रावधान करती। इस बीच, राहुल गांधी ने इस अध्यादेश के विरोध स्वरूप देशवासियों से जमकर नहाने का आह्वान किया है। आम लोगों को नहाने के लिए प्रेरित करने के वास्ते उन्होंने रणदीप सुरजेवाला, मनीष तिवारी, अधीररंजन चौधरी सहित कांग्रेस के सात नेताओं को सुबह ब्रह्म मुहुर्त में स्नान करने के निर्देश दिए। हालांकि उन्होंने पत्रकारों के इस सवाल का कोई सीधा जवाब नहीं दिया कि क्या विरोध स्वरूप वे भी नहाएंगे? राहुल ने मुस्कुराते हुए इतना ही कहा- “मैं कल ही नहाया हूं और आज भी फ्रेश ही नजर आ रहा हूं।”
अमित शाह की सफाई :
इस अध्यादेश पर अमित शाह ने मुस्कराते हुए इस तरह से सफाई दी, ‘मैं कहना चाहूंगा कि यह अध्यादेश स्नान नहीं करने से संबंधित है। यह किसी भी धर्म के व्यक्ति को नहाने के लिए मजबूर नहीं करता है, भले ही वह हिंदू हो या मुसलमान।’
(Disclaimer : इसका मकसद मकर संक्रांति के बहाने केवल राजनीतिक कटाक्ष करना है। धार्मिक भावनाओं का पूरा ख्याल रखा गया है… )
# makar-sankranti-snan
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Water leakage Mission. |
इतनी जमाखोरी अच्छी बात नहीं! |
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यात्रा का सबसे सुरक्षित साधन। |