HindiSatire.... दो टूक
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शुक्रवार, 19 दिसंबर 2025
नदियों के सत्यानाश के लिए और 20 करोड़ लोग क्यों चाहिए?
मंगलवार, 29 जुलाई 2025
चंदन चाचा के बाड़े में, नाग पंचमी की कविता (Nag panchami classic kavita )
नागपंचमी (Nag panchami) से संबंधित कविता चंदन चाचा के बाड़े में ...( chandan chacha ke bade me)। इसे मप्र के जबलपुर के कवि नर्मदा प्रसाद खरे ने लिखा था। इसे सबसे पहले 1960 के दशक में कक्षा 4 की बाल भारती में शामिल किया गया था। हालांकि कुछ सोर्स इसके कवि सुधीर त्यागी बताते हैें।
नर्मदा प्रसाद खरे/सुधीर त्यागी
सूरज के आते भोर हुआ
लाठी लेझिम का शोर हुआ
यह नागपंचमी झम्मक-झम
यह ढोल-ढमाका ढम्मक-ढम
मल्लों की जब टोली निकली।
यह चर्चा फैली गली-गली
दंगल हो रहा अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में।।
सुन समाचार दुनिया धाई,
थी रेलपेल आवाजाई।
यह पहलवान अम्बाले का,
यह पहलवान पटियाले का।
ये दोनों दूर विदेशों में,
लड़ आए हैं परदेशों में।
देखो ये ठठ के ठठ धाए
अटपट चलते उद्भट आए
थी भारी भीड़ अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में।।
वे गौर सलोने रंग लिये,
अरमान विजय का संग लिये।
कुछ हंसते से मुसकाते से,
मूछों पर ताव जमाते से।
जब मांसपेशियां बल खातीं,
तन पर मछलियां उछल आतीं।
थी भारी भीड़ अखाड़े में,
चंदन चाचा के बाड़े में॥
यह कुश्ती एक अजब रंग की,
यह कुश्ती एक गजब ढंग की।
देखो देखो ये मचा शोर,
ये उठा पटक ये लगा जोर।
यह दांव लगाया जब डट कर,
वह साफ बचा तिरछा कट कर।
जब यहां लगी टंगड़ी अंटी,
बज गई वहां घन-घन घंटी।
भगदड़ सी मची अखाड़े में,
चंदन चाचा के बाड़े में॥
वे भरी भुजाएं, भरे वक्ष
वे दांव-पेंच में कुशल-दक्ष
जब मांसपेशियां बल खातीं
तन पर मछलियां उछल जातीं
कुछ हंसते-से मुसकाते-से
मस्ती का मान घटाते-से
मूंछों पर ताव जमाते-से
अलबेले भाव जगाते-से
वे गौर, सलोने रंग लिये
अरमान विजय का संग लिये
दो उतरे मल्ल अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में।।
तालें ठोकीं, हुंकार उठी
अजगर जैसी फुंकार उठी
लिपटे भुज से भुज अचल-अटल
दो बबर शेर जुट गए सबल
बजता ज्यों ढोल-ढमाका था
भिड़ता बांके से बांका था
यों बल से बल था टकराता
था लगता दांव, उखड़ जाता
जब मारा कलाजंघ कस कर
सब दंग कि वह निकला बच कर
बगली उसने मारी डट कर
वह साफ बचा तिरछा कट कर
दंगल हो रहा अखाड़े में
चंदन चाचा के बाड़े में।।
# nag-panchami-kavita # नागपंचमी की कविता #चंदन चाचा के बाड़े में
रविवार, 29 जून 2025
(Indian Shubhnshu Shukla in ISS) क्या कभी अंतरिक्ष भारत के लिए 'न्यू नॉर्मल' बन सकेगा?
By Jayjeet
रविवार, 25 मई 2025
कराची बेकरी V/S बॉम्बे बेकरी...!
By Jayjeet
गुरुवार, 22 मई 2025
(Sweet name changed, PAK word removed ) मैसूर पाक नाम बदलने से खुश, मगर उठाया 'चीनी' का उठाया सवाल!
By A Jayjeet
Photo : कतिपय
कारणों से मैसूर श्री ने अपनी खिंचवाने मना कर दिया। इसलिए उनकी जगह स्वर्ण भस्म श्री
की तस्वीर दी जा रही है। वे एलीट वर्ग की राष्ट्रवादी विचारधारा से ताल्लुक रखती है।
शनिवार, 17 मई 2025
शीर्ष अदालत में केविएट दायर करेगी गटर... क्यों? जानिए उसी की जुबानी...
By Jayjeet
गुरुवार, 15 मई 2025
शुक्र है, इस्तीफा ना दिया। नहीं तो, नेता कसम, नेता लोगों पर से भरोसा ही उठ जाता!!!
सोमवार, 12 मई 2025
‘मेड इन इंडिया’ नहीं, ‘मेड बाय इंडिया’ की दरकार
By A. Jayjeet
पहलगाम के क्रूर आतंकी हमले के बाद हमारी सेना ने जिस तरह पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के ठिकानों को नेस्तनाबूद किया, उस पर प्रत्येक भारतीय गर्व कर सकता है और कर भी रहा है। लेकिन जिस वक्त हर हिंदुस्तानी पाकिस्तान को समूल नष्ट किए जाने के जज्बे से लबरेज था, उसी समय दोनों मुल्कों ने सीजफायर का एलान कर दिया। समग्र मानवीय चिंताओं के मद्देनजर युद्ध कभी भी बेहतर विकल्प नहीं हो सकते। इसलिए बड़े हल्कों में राहत की सांस भी ली गई और इसका स्वागत भी किया गया।
सीजफायर के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने श्रेय लेने में तनिक भी देरी नहीं की। यहां तक कि उन्होंने यह भी दावा किया कि दोनों देशों के साथ व्यापार बंद करने की धमकी देकर उन्होंने उन्हें युद्धविराम के लिए राजी किया। इसका लाजिमी तौर पर भारत सरकार ने तुरंत खंडन भी किया।
हमें मानना चाहिए कि ट्रम्प का यह दावा पूरी तरह से गलत ही होगा। लेकिन इसके बावजूद हमें कम से कम एक यह चिंता तो जरूर होनी चाहिए- अमेरिका आज भी भारत और पाकिस्तान दोनों को एक तराजू पर तौलता है। बीच संघर्ष के दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पाकिस्तान को एक अरब डॉलर का लोन स्वीकृत कर देता है और हम लाचारी से इस कड़वे घूंट को पी जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं।
यह तथ्य इस बात की ओर स्पष्ट इशारा करता है कि हम भले ही दुनिया का सबसे बड़ा बाजार होने और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक होने के लाख दावे कर लें, लेकिन ये दावे हमें एक देश के तौर पर वे सम्मान नहीं दिलाते, जिसकी हर भारतीय आकांक्षा करता है। आखिर ऐसा क्यों?
इसका एक सिरा राष्ट्र के नाम दिए गए प्रधानमंत्री के उसी सम्बोधन से खींचा जा सकता है, जिसमें उन्होंने बड़े ‘गर्व’ के साथ ‘मेड इन इंडिया’ की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि आज भारत ‘मेड इन इंडिया’ हथियारों से लड़ाई रहा है। ऑपरेशन सिंदूर से दो दिन पहले प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम में इसी तरह ‘गर्व’ के भाव के साथ यह भी कहा था कि आज भारत (‘मेड इन’ स्मार्टफोन की बदौलत) स्मार्टफोन का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है।
‘मेड इन इंडिया’ बड़ी आकर्षक शब्दावली है, जो कई लोगों को गर्व से भर देती है। लेकिन अब देश को ‘मेड इन इंडिया’ से आगे निकलकर ‘मेड बाय इंडिया’ की ओर बढ़ने की दरकार है। अगर युद्धक सामग्री की बात करें तो चाहे रफाल हो या एस-400 (जिसे हमने बड़ा सुंदर नाम दे दिया- 'सुदर्शन') या ब्रम्होस, इनमें से अधिकांश हमारे इनोवेट किए हुए नहीं हैं। या तो वे बाहर से खरीदे गए हैं (जैसे रफाल) या फिर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत भारत में बनाए गए हैं (जैसे सुदर्शन और ब्रह्मोस)। बेशक, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की दूरदर्शी सोच के चलते आज भारत के पास अनेक स्वदेशी मिसाइलें हैं, लेकिन हम सब जानते हैं कि वे पर्याप्त नहीं हैं। बात केवल हथियारों तक सीमित नहीं है। न्यू एज इनोवेशन में हम कहां है? हमारे पास अपना एआई या अपना ऑपरेटिंग सिस्टम तो छोड़िए, स्वयं का एक स्मार्टफोन तक नहीं है।
‘मेड इन इंडिया’ के लिए हमारा असेंबल कंट्री बनना पर्याप्त होता है, जो हम बन चुके हैं। लेकिन ‘मेड बाय इंडिया’ के लिए हमें इनोवेटर कंट्री बनना होगा। हमारे पास टैलेंट की कमी नहीं है, लेकिन टैलेंट और इनावेशन के बीच में फैला हुआ है ‘ब्यूरोक्रेटिक टेरोरिज्म' यानी करप्शन और असंगत टैक्स रिजीम। यह हमारी इनोवशन स्प्रिट को एक तरह से खत्म कर देता है।
हमें समझना होगा कि आज के दौर में दुनिया में असल सम्मान उस देश को मिलता है, जो इनोवेट करता है। असल रुतबा भी उसी का होता है। ट्रम्प ने हमें युद्धविराम के लिए एक रात में समझा दिया। क्या रूस को समझा पाए? या चीन ट्रम्प की धमकियों से डर गया? अब तो टैरिफ मसलों पर अमेरिका चीन के साथ वार्ता करने जा रहा है।
इसलिए सीमा पार के टेरोिरज्म के साथ-साथ हमें अपनी सीमाओं के भीतर के इस ‘ब्यूरोक्रेटिक टेरोरिज्म' से भी निपटना होगा। तभी हम असल में एक इनोवेशन कंट्री बन सकेंगे। और तब कोई ट्रम्प हमें युद्धविराम के लिए मनाने या धमकाने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। हो सकता है, तब हमें शायद युद्ध की भी जरूरत न पड़े।
भारतीयों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से कौन लड़ेगा? (और ये भारतीय 'देशभक्त' की श्रेणी में आते हैं, 'गद्दार' की नहीं!)
मंगलवार, 29 अप्रैल 2025
एक कविता देश के शूरवीर एंकरों, नेताओं और सोशल मीडिया के बहादुरों के नाम!
- जयजीत
चीखता-चिल्लाता एंकर बोला,
मुट्ठियां ताने नेता बोला,
वीर रस का कवि भी गरजा,
सोशल मीडिया वीर भी बरसा।
सब बोले , हे सरकार,
अब तो युद्ध जरूरी है!
इस मौके पर दे दिया मैंने भी अपना ऑफर
मैं सरकार तो नहीं, मगर पत्रकार हूं
कम से कम इतना तो फर्ज निभा सकता हूं
आपको बॉर्डर तक छोड़कर आ सकता हूं
एंकर भड़क उठा, बोला हड़ककर,
गंभीर घड़ी में कर रहे हो मजाक लपककर!
अगर मैं चला गया जंग के मैदान, दे दी जान
तो चीख-चीखकर शहीदों की कौन सुनाएगा दास्तान ...? हें...
नेता बोला, हंसते-हंसते,
इस साइड हो या उस साइड
फितरत में हम एक हैं
हम लड़ते नहीं, बस लड़वाते हैं,
कभी जंग, कभी धर्म के झंडे फहराते हैं
चल हट स्साले, हमें काम करने दें,
हथियार नहीं, भाषण चलाने दें
वीर रस का वो कवि, चेहरे पर था वीभत्सता का बोलबाला
मेरे इस ऑफर पर बड़ी मासूमियत से बोला,
भाई, रणभूमि नहीं, मंच मेरी धरती है,
शहादत नहीं, कविता मेरी शक्ति है।
शहीदों की चिताओं पर प्यारे गीत सजाऊंगा,
वीरों के नाम मुट्ठियां तानकर वीरगान सुनाऊंगा!
और अब आई सोशल मीडिया वीर की बारी
मैंने कहा- चल, करते हैं बॉर्डर तक की सवारी!
उसने पूछा- क्यों?
ओह हो...लगता है फिर हो गया है शॉर्ट टर्म मेमोरी का शिकार
भूल गया जंग वाली सारी तकरार
पता नहीं, चाइना ने ऐसा क्या बोला कि
चाइनीज मोबाइल से ही
फिर से चाइना के खिलाफ करने लगा खेला
तो मॉरल ऑफ द पोयम...?
बाकी सब तो निभा रहे अपनी जिम्मेदारी,
नेता, एंकर, कवि और एफबी-एक्स की फौज सारी।
बस बचे रह गए सैनिक असली रणवीर,
सब पूछ रहे, कब आएगी इनकी भी बारी?
आ गई गर बारी तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे
बजाएंगे खूब ताली और पीटेंगे जमकर थाली..
पक्का प्रॉमिस...!!!
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रविवार, 20 अप्रैल 2025
दंगों का नियम : मरता आम आदमी है, उद्वेलित भी आम आदमी होता है...
(तो नेता क्या करता है? अपने बंगले में बैठकर अंगुर खाता है या पीता है, और क्या!!)
सोमवार, 14 अप्रैल 2025
हमें ऐसे ही स्टार्टअप मुबारक... AI, EV, Space का क्या करना...?
By Jayjeet

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