- जयजीत
चीखता-चिल्लाता एंकर बोला,
मुट्ठियां ताने नेता बोला,
वीर रस का कवि भी गरजा,
सोशल मीडिया वीर भी बरसा।
सब बोले , हे सरकार,
अब तो युद्ध जरूरी है!
इस मौके पर दे दिया मैंने भी अपना ऑफर
मैं सरकार तो नहीं, मगर पत्रकार हूं
कम से कम इतना तो फर्ज निभा सकता हूं
आपको बॉर्डर तक छोड़कर आ सकता हूं
एंकर भड़क उठा, बोला हड़ककर,
गंभीर घड़ी में कर रहे हो मजाक लपककर!
अगर मैं चला गया जंग के मैदान, दे दी जान
तो चीख-चीखकर शहीदों की कौन सुनाएगा दास्तान ...? हें...
नेता बोला, हंसते-हंसते,
इस साइड हो या उस साइड
फितरत में हम एक हैं
हम लड़ते नहीं, बस लड़वाते हैं,
कभी जंग, कभी धर्म के झंडे फहराते हैं
चल हट स्साले, हमें काम करने दें,
हथियार नहीं, भाषण चलाने दें
वीर रस का वो कवि, चेहरे पर था वीभत्सता का बोलबाला
मेरे इस ऑफर पर बड़ी मासूमियत से बोला,
भाई, रणभूमि नहीं, मंच मेरी धरती है,
शहादत नहीं, कविता मेरी शक्ति है।
शहीदों की चिताओं पर प्यारे गीत सजाऊंगा,
वीरों के नाम मुट्ठियां तानकर वीरगान सुनाऊंगा!
और अब आई सोशल मीडिया वीर की बारी
मैंने कहा- चल, करते हैं बॉर्डर तक की सवारी!
उसने पूछा- क्यों?
ओह हो...लगता है फिर हो गया है शॉर्ट टर्म मेमोरी का शिकार
भूल गया जंग वाली सारी तकरार
पता नहीं, चाइना ने ऐसा क्या बोला कि
चाइनीज मोबाइल से ही
फिर से चाइना के खिलाफ करने लगा खेला
तो मॉरल ऑफ द पोयम...?
बाकी सब तो निभा रहे अपनी जिम्मेदारी,
नेता, एंकर, कवि और एफबी-एक्स की फौज सारी।
बस बचे रह गए सैनिक असली रणवीर,
सब पूछ रहे, कब आएगी इनकी भी बारी?
आ गई गर बारी तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे
बजाएंगे खूब ताली और पीटेंगे जमकर थाली..
पक्का प्रॉमिस...!!!
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