(तो नेता क्या करता है? अपने बंगले में बैठकर अंगुर खाता है या पीता है, और क्या!!)
By Jayjeet
दूसरा सवाल, जो थोड़ा कम मूर्खतापूर्ण है, और इसलिए मुझे एआई के कुछ चैटबॉक्स से पूछना पड़ा- क्या भारत में हाल के वर्षों में हुए दंगों में कोई नेता टाइप का आदमी मारा गया? जवाब मिला- ‘भारत में दंगों के संदर्भ में किसी प्रमुख सियासी नेता के मारे जाने की कोई जानकारी नहीं है।’ एक ने केवल गुजरात में एक नेता (एहसान जाफरी) का नाम दिया। बाकी एआई ने हाथ जोड़ लिए।
तीसरा सवाल, दूसरे से अधिक मूर्खतापूर्ण है - तो दंगों में कोई नेता वगैरह क्यों नहीं मारा जाता?
चौथा सवाल, तीसरे जितना ही मूर्खतापूर्ण, इस तरह के दंगों में क्या कभी किसी नेता वगैरह का घर जला है?
पांचवां सवाल, बताने की जरूरत नहीं कि कितना मूर्खतापूर्ण है, इन दंगों में कोई नेता वगैरह पलायन क्यों नहीं करता है?
और अंतिम सवाल, जो मूर्खतापूर्ण कतई नहीं है - हम, भारत के लोग, ये उपरोक्त सवाल पूछना कब शुरू करेंगे? याद रखिए, इसका जवाब किसी AI के पास नहीं है। इसलिए जरा अपनी फोकट की विचाराधाराओं को साइड में कीजिए, अपनी अंतरात्माओं को झिंझोड़िए और पूछना शुरू कीजिए...
अगर आपके सोशल मीडिया पर अच्छे-खासे फॉलोवर्स हैं तो सोशल मीडिया पर पूछिए, अगर आप पत्रकार हैं तो प्रेस कॉन्फ्रेन्स में पूछिए और अगर आप कुछ नहीं हैं तब खुद से पूछिए- यह भी पूछिए कि आखिर नेताओं के पीछे-पीछे 'भाई साहब' कहते-कहते हम कब तक चलते रहेंगे?
भागलपुर, नरौदा पाटिया, खरगोन (मेरा अपना शहर), संभल से लेकर मुर्शिदाबाद तक... आप अपने हिसाब से अपनी जगह जोड़ सकते हैं। मगर याद रखिए, जो भी लोग मरे हैं, चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम या सिख, उनमें कोई खास नेता शामिल नहीं है। शामिल हैं हमारे-आपके जैसे आम लोग।
तो तीन ही विकल्प हैं- नेता बन जाइए, बड़ा अच्छा विकल्प है। या मरने के लिए तैयार रहिए। या सवाल कीजिए। इस मुगालते में मत रहिए कि इनकी जगह मैं या मेरे बच्चे नहीं हो सकते... क्यों नहीं हो सकते?
(Disclaimer : तस्वीर में दिया गया नेता प्रतीकात्मक है। अगर कोई भी जीवित या मृत नेता उसके साथ अपना साम्य देखता है, तो इसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार होगा! )
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