शनिवार, 21 दिसंबर 2024

कौन हैं आम्बेडकरद्रोही? आइए, बाबा साहब की छलनी आत्मा से पूछते हैं…!

row on Dr. BR Ambedkar, आम्बेडकर, कांग्रेस आम्बेडकर, भाजपा आम्बेडकर, satire
By Jayjeet Aklecha

डॉ. आम्बेडकर के मसले पर ‘नूरा कुश्ती’ के साथ आखिर सदन की कार्यवाही स्थगित हो गई। उम्मीद है देश ने राहत की सांस ली होगी!
देश के दो प्रमुख राजनीतिक 'सम्प्रदायों' के बीच सबसे बड़ी प्रतिस्पर्धा यही थी कि स्वयं को आम्बेडकर का भक्त ठहराकर दूसरे पक्ष को आम्बेडकरद्रोही साबित किया जा सके...
कौन कितना आम्बेडकर द्रोही है, यह जानने के लिए ये चंद पंक्तियां पढ़ते हैं। लोकसभा के पूर्व महासचिव और जाने-माने संविधान विशेषज्ञ सुभाष सी. कश्यप से आज से तीन साल पहले 6 दिसंबर 2021 को आम्बेडर की पुण्यतिथि पर ये शब्द कहे थे: "अगर आज डॉ. बीआर आम्बेडकर जीवित होते तो यह देखकर उनकी आत्मा छलनी हो जाती कि आज भी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को आरक्षण की जरूरत है।’
आज 75 साल के बाद एक सियासी सम्प्रदाय जो करीब 50 साल सत्ता में रहा, संविधान बचाने के नाम पर ‘आरक्षण’ का सबसे बड़ा पैरोकार होने का दावा कर रहा है, करता आ रहा है।
दूसरा सियासी सम्प्रदाय बार-बार इस बात की गारंटी देते नहीं थकता कि इस देश से आरक्षण कभी खत्म नहीं होगा ("मोदी की गारंटी है कि एससी, एसटी, ओबीसी का आरक्षण खत्म नहीं होगा।" - नरेंद्र मोदी,अप्रैल 2024, टोंक-सवाईमाधोपुर की रैली में)। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आम्बेडकर ने आरक्षण के प्रावधान को रखते हुए स्पष्ट कहा था कि इसका विस्तार SC/ST समुदायों से परे नहीं होना चाहिए।
सुभाष कश्यप की अपनी युवावस्था के दौरान संसद की लाइब्रेरी में आम्बेडकर के साथ कई बार मुलाकातें और उनके साथ आरक्षण को लेकर चर्चाएं भी हुई थीं। साल 2021 के भाषण में कश्यप ने ऑम्बेडकर के हवाले से कहा था- “डॉ. आम्बेडकर ने एससी और एसटी के लिए आरक्षण के संदर्भ में कहा था कि 10 साल का समय बहुत कम है और इसे 40 साल होना चाहिए। लेकिन उसके बाद संसद को कानून द्वारा आरक्षण को बढ़ाने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। वे स्थायी रूप से आरक्षण के खिलाफ थे।” ऑम्बेडकर ने यह भी कहा था, “मैं नहीं चाहता कि वह प्रतीक भारतीय समाज में हमेशा के लिए बना रहे।” (द हिंदू, 6 दिसंबर 2021)
मेरा एक ही सवाल है : जो भी सियासी सम्प्रदाय एक-दूसरे पर आम्बेडकर के अपमान के लिए अंगुली उठा रहा है, वह बची हुई तीन उंगलियां भी देख लें। वे उनके स्वयं के गिरेबान की ओर आ रही हैं... 40 साल के बाद भी आरक्षण जारी है। क्यों जारी है? आम्बेडकर का अनुचर साबित करने से पहले उनकी आत्मा को इसका जवाब भी तो दे दीजिए!!
पर बड़ा सवाल यह भी है : पिछले लोकसभा चुनाव में जिन 66 करोड़ लोगों ने जिस भी सियासी सम्प्रदाय को वोट दिए, वे धर्म और जाति से परे हटकर उनसे महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, इनोवेशन की कमी जैसे मसलों पर सवाल पूछना कब शुरू करेंगे? सवाल केवल आरक्षण के हटाने या ना हटाने का नहीं है। सवाल यह है कि जिस आरक्षण की भूमिका देश के कुल वर्क फोर्स में डेढ़ फीसदी भी नहीं है, उसके नाम पर हम कब तक मूर्ख बनते और बनाए जाते रहेंगे?

(Jayjeet Aklecha, जयजीत अकलेचा, Dr. BR Ambedkar)

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2024

इलॉन मस्क - भविष्य के वास्तुकार : एक लीजेंड की ज़िंदगी का एनालिसिस


elon musk, risking it all, इलॉन मस्क पर किताबें, इलॉन मस्क हिंदी, जयजीत अकलेचा, इलॉन मस्क जयजीत अकलेचा, jayjeet aklecha translator, Vlismas, Michael

 * विश्वदीप नाग

अपनी उद्यमशीलता से जुड़े कीर्तिमानों और विवादास्पद बयानों के लिए अक्सर चर्चा में रहने वाले इलॉन मस्क दुनिया की सबसे चर्चित हस्तियों में गिने जाते हैं। उनके विराट और रहस्यमय व्यक्तित्व और उनकी जीवन यात्रा को समझना आसान नहीं है। टेस्ला और स्पेसएक्स जैसी अरबों डॉलर की कंपनियों के शिल्पकार के रूप में वे दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति बन गए हैं। 2022 में, उन्होंने ट्विटर को ख़रीदने की बोली के साथ दुनियाभर में सुर्खियाँ बटोरी थीं। दक्षिण अफ़्रीका की अपनी जड़ों से आगे जाकर मस्क ने अपने लिए काफ़ी नाम कमाया है।

दक्षिण अफ़्रीकी पत्रकार और लेखक माइकल व्लिसमस ने  'इलॉन मस्क: रिस्किंग इट ऑल' में कामयाबी की जीवंत किंवदंती बन चुके इस व्यक्तित्व की सच्ची कहानी का सिलसिलेवार वर्णन प्रस्तुत किया है। मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने 'इलॉन मस्क : भविष्य के वास्तुकार'  शीर्षक से इसका हिंदी अनुवाद प्रकाशित किया है।  गहन शोध के बाद लिखी गई यह आकर्षक किताब कई मिथकों को दूर करती है तथा मस्क के पिता से जुड़े विवाद के अन्य पक्षों को भी प्रस्तुत करती है।  
 
व्लिसमस अन्य जीवनीकारों से अलग
व्लिसमस उन अन्य जीवनीकारों से अलग हैं, जिन्होंने मस्क के पीछे छिपे विशाल व्यक्तित्व को समझने की कोशिश की है। व्लिसमस के बारे में ख़ास बात यह है कि मस्क और उन्होंने प्रिटोरिया में एक ही स्कूल में पढ़ाई की है। लिहाज़ा, व्लिसमस उस माहौल को अच्छी तरह से जानते हैं, जिसने मस्क की जीवन यात्रा और कामयाबी  को आकार दिया।

 यह जीवनी इसलिए इतनी समृद्ध है, क्योंकि इसमें  मस्क को व्यक्तिगत रूप से जानने वाले और दक्षिण अफ़्रीका में उनके प्रारंभिक वर्षों का हिस्सा रहे लोगों के प्रत्यक्ष अनुभवों को समाविष्ट किया गया है, जो इस सवाल का जवाब देने की कोशिश करती है:  मस्क वास्तव में हैं कौन?

दुर्लभ जानकारी
व्लिसमस ने अपने अनुभवों को मस्क के बचपन के दोस्तों, शिक्षकों और परिचितों के अनुभवों के साथ मिलाकर 1980 के दशक में दक्षिण अफ़्रीकी शिक्षा प्रणाली की तस्वीर पेश की है। यह एक ऐसी दुनिया थी, जिसमें समझौता न करने वाला अनुशासन, सामाजिक विभाजन, नस्लीय तनाव और हिंसक उत्पात शामिल थे।

यह जीवनी मस्क के बचपन के दिनों की खोज है, जैसा कि वास्तव में वहाँ मौजूद लोगों ने बताया।  व्लिसमस पाठकों को मस्क के शुरुआती वर्षों के बारे में दुर्लभ जानकारी प्रदान करते हैं, इससे पहले कि युवा मस्क आज के उद्योग जगत के विवादास्पद बादशाह  बन गए, जिसके लिए उन्होंने सब कुछ जोखिम में डाल दिया और अपनी तक़दीर ख़ुद लिख दी।

जीवनी यह पड़ताल करती है कि मंगल ग्रह पर बसने की भव्य योजनाओं की बात करने वाले इस नवाचारी धन्नासेठ की दृष्टि के केंद्र में क्या है? वे जोखिम से इतना बेखौफ़ क्यों हैं? अजीबोगरीब प्रिटोरिया स्कूली लड़के के रूप में  कॉमिक्स और विज्ञान कथाएँ पसंद थीं, लेकिन उनके शुरुआती साल और पारिवारिक पृष्ठभूमि उनकी शानदार महत्वाकांक्षाओं को आकार देने में किस प्रकार महत्वपूर्ण थे ? मस्क के विकास बारे में लेखक नई अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं, जिसमें पिता के साथ उनके परेशान रिश्ते भी शामिल हैं।

विलक्षण हस्ती का बख़ूबी चित्रण
यह कृति मस्क के दक्षिण अफ़्रीकी बचपन से लेकर 17 साल की उम्र में कैनेडा और फिर अमेरिका जाने तक, उनके उल्लेखनीय जीवन का पता लगाते हुए एक ऐसे व्यक्ति की कहानी है,  जो मानवता में आशावाद को बनाए रखने और ‘सितारों के बीच’ मनुष्यों के लिए भविष्य खोजने की दिशा में प्रेरित है। इसमें उनकी व्यावसायिक उपलब्धियों के साथ-साथ, उनके निजी जीवन के भी अनेक क़िस्से हैं, चाहे वह मॉडल और गायकों के साथ उनके संबंध हों, या बच्चों के दिलचस्प नाम। मस्क बहुत ही विलक्षण व्यक्ति हैं, यह जीवनी इसे बख़ूबी चित्रित करती है।

शानदार अनुवाद
अँग्रेज़ी में लिखी गई मूल कृति के हिंदी संस्करण की ख़ासियत इसका शानदार अनुवाद है, जो वरिष्ठ पत्रकार जयजीत अकलेचा ने किया है। वे शाब्दिक अनुवाद से बचे हैं और उन्होंने इसकी सुबोधगम्यता को क़ायम रखा  है। इसकी वजह से जीवनी का हिंदी अनुवाद बेहद पठनीय हो गया है।    

( समीक्षक वरिष्ठ पत्रकार हैं , संपर्क  - 62607 74189)


(#elonmusk, #risking_it_all, #MichaelVlismasइलॉन मस्क पर किताबें, इलॉन मस्क हिंदी,  #jayjeet aklecha) 


रविवार, 24 नवंबर 2024

ब्राजील की Bolsa Família योजना : हर ‘रेवड़ी’ खराब नहीं होती, बशर्ते…

 

Ladli_behna_yojana  #ladakibahin, #BolsaFamília, रेवड़ी

By Jayjeet Aklecha

पहले मप्र और अब महाराष्ट्र तथा झारखंड के चुनाव नतीजों से साफ हो गया है कि महिलाओं को नकद भुगतान जैसी योजनाएं (जिन्हें हम प्यार से ‘रेवड़ियां’ भी कहते हैं) पॉलिटिकली गेम चेंजर साबित हो रही हैं। अब जिन-जिन राज्यों में ऐसे चुनाव होंगे, वहां इस तरह की योजनाएं आनी तय हैं।
कई लोग इन योजनाओं को ‘अच्छी राजनीति' मगर ‘खराब अर्थनीति' भी कहते हैं। दरअसल, इन योजनाओं का राजनीति से प्रेरित होना ही इसका सबसे खराब पहलू है, अन्यथा ये कैश ट्रांसफर स्कीम्स पॉलिटिकली ही नहीं, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से भी गेम चेंजर हो सकती हैं।
माझी लाडकी बहीण, मईया (और साथ ही मप्र की लाड़ली बहना) योजनाओं की पृष्ठभूमि में ब्राजील की उस योजना की चर्चा करना लाजिमी है, जिसने इस विकासशील देश की सोशल-इकोनॉमिक तस्वीर को बदलने में अहम भूमिका निभाई है। यह योजना बताती है कि भले ही स्कीम में नकद पैसा दिया जा रहा हो, लेकिन अगर उसे लागू करने वाले लीडर्स की नीयत अच्छी है, नजरिया व्यापक है और मकसद (कमोबेश) पवित्र है तो इन पर खर्च किया गया पैसा व्यर्थ नहीं जाता है। दुर्भाग्य से, हमारे यहां के लीडर्स की नीयत में इतनी खोट है कि सैद्धांतिक तौर पर बेहतर नजर आने वाली योजनाएं भी अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पातीं।
बोल्सा फैमीलिया (Bolsa Família) योजना ब्राजील की ऐसी ही एक योजना है, जो पिछले करीब 20 साल से चल रही है। इस पर विश्व बैंक, इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन, आईएमएफ जैसे तमाम कुख्यात-विख्यात संगठनों ने स्टडीज की हैं और तारीफ भी। और अब तो वित्तीय मदद भी दे रहे हैं। बातें कुछ पाइंट्स में ताकि समझने में आसानी हो...
- इस योजना को अक्टूबर 2003 में ब्राजील के तत्कालीन राष्ट्रपति लुइज लूला दा सिल्वा ने शुरू किया था। इसमें एक सीमा से कम आय अर्जित करने वाले परिवारों को नकद सहायता दी जाती है, जो उस परिवार की महिला प्रमुख के खाते में जाती है, बिल्कुल हमारे यहां की योजनाओं की तरह।
- मगर एक अंतर है। वहां इसे एजुकेशन और टीकाकरण से जोड़ा गया है। सहायता उसी परिवार को दी जाती है, जिस परिवार के बच्चों की स्कूल में उपस्थिति कम से कम 85 फीसदी हो। साथ ही टीकाकरण भी अनिवार्य है (ये शुरुआती शर्तें थीं। अब समय के साथ कुछ बदलाव हुए हैं।)
- इस पर खर्च कितना होता है? 2023 में इसका बजट 29 अरब डॉलर यानी भारतीय मुद्रा में हर साल 2,450 अरब रुपए था। टैक्स भरने का दम भरने वाले कई लोगों की सांसें तो यह आंकड़ा सुनकर ही फूल जाएंगी।
- इसमें प्रति परिवार प्रति माह 35 डॉलर (करीब 3,000 रुपए भारतीय मुद्रा में ) दिए जाते हैं। इसका फायदा 1.3 करोड़ परिवारों (लगभग 5 करोड़ लोगों) को हुआ।
- तो इससे क्या बदला? सबसे महत्वपूर्ण यही जानना है। इसको लेकर विश्व बैंक ने एक विस्तृत स्टडी की थी। ऐसी योजनाओं पर होने वाले खर्च को लेकर चिंता जताने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण आंकड़ा है : खर्च किए गए प्रत्येक एक डॉलर पर स्थानीय अर्थव्यवस्था में 1.78 डॉलर जनरेट हुए। इसके अलावा सामाजिक पहलू : 3.6 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से बाहर आए। बच्चों की स्कूल में उपस्थिति 8% बढ़ी, जिससे बाल श्रम में कमी आई और बाल मृत्यु दर में 20% की गिरावट हुई।
तो सबक क्या हैं? पहला, हमारे लीडर्स को हर स्कीम को केवल राजनीतिक चश्मे से देखने की आदत छोड़नी होगी। दूसरा, कैश ट्रांसफर वाली हर स्कीम खराब ही होती हो, ऐसा बिल्कुल नहीं है, बशर्ते उसे सुविचारित व सुव्यवस्थित ढंग से लागू किया जाए, वोट के अलावा भी उसका कोई मकसद हो। बेशक, ऐसी योजनाओं का ऊपरी तौर पर राज्य के खजाने पर असर दिखता है, मगर दूसरे अनेक प्रभाव उसे संतुलित कर देते हैं।
और फाइनली, इसका परोक्ष फायदा उन्हें भी होता है, जो कथित तौर पर ‘हमारे टैक्स के पैसे' का रोना-धोना करने से थकते नहीं हैं। उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि उनके टैक्स की बड़ी धनराशि तो करप्शन की भेंट चढ़ जाती है, जिस पर शायद ही कभी आंसू बहाए जाते हों।

#ladli_behna_yojana  #ladakibahin #BolsaFamília #JayjeetAklecha. #जयजीतअकलेचा


शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

चिंदी चिंतन... करप्शन पर बंटेंगे, तो मिटेंगे...!

goutam-adani, indictment-us-court-bribery-fraud case, jayjeet, गौतम अडाणी , adani with modi rahul gandhi


By Jayjeet Aklecha/ जयजीत अकलेचा

हमारे राजनीतिक दल नूरा-कुश्ती खेलने में माहिर हैं। एक ने धर्म को पकड़ रखा है तो दूसरे ने जाति को...। हम यानी मासूम रियाया उनके हथियार बनकर ही खुश हैं।
अब गौतम अडाणी का मामला आया है तो यह कांग्रेस और भाजपा में बंट गया है... कोशिश यही है कि यह किसी तरह राजनीति की भेंट चढ़ जाए...। भ्रष्टाचार का इशू ही ना रहे... बस अडाणी ही अडाणी रहे। एक तरफ राहुल बाबा अडाणी के नाम पर हमलावर रहें... और विरोधियों को राहुल पर हमले के मुद्दे तो मिल ही जाते हैं। तो बस अडाणी वर्सेस राहुल वर्सेस मोदी वर्सेस कांग्रेस वर्सेस भाजपा वर्सेस (बीच बीच में केजरीवाल) वर्सेस फलाना वर्सेस ढिकाना... हमारे तमाम नेताओं को यही पसंद है, और हमें तो और भी ज्यादा पसंद हैं।
पर जरा एक चिंदी चिंतन कर लेते हैं...
आरोप है कि अफसरों को 2,200 करोड़ रुपए रिश्वत में दिए गए। क्यों? ताकि वे महंगी बिजली खरीद सकें। किस पैसे से? हमारे पैसे से!
अगर रिश्वत में ही इतना पैसा दिया गया है (हालांकि आरोप है) तो महंगी बिजली खरीदने में कितने अरब वारे-न्यारे हुए होंगे या भविष्य में होंगे? सोचिए! पर हमें कुछ फर्क पड़ता है? नहीं जी। हमें तो बस चिंता रहती है, बंटेंगे तो कट ना जाएं और संविधान लूटकर कोई हमें आरक्षण से विहीन ना कर दें....।
हां, बीच-बीच में हमें फ्रीबीज की चिंता जरूर होती है। कितने हजार करोड़ रुपए उन पर खर्च हो रहे हैं...। ये भी हमारे नेताओं की एक अलग तरह की बदमाशी है..!!! (शायद कई सहमत ना होंगे, मगर करप्शन वाली से बेहतर है...!)
पुनश्च... भ्रष्टाचार पर बंटेंगे तो मिटना तय है, एक ना एक दिन...! और शायद, हमने ठान लिया है...!!!

गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

‘AI के लिए कोई मौत नहीं लिखी होगी। यह हमेशा ज़िंदा रहेगी, और फिर हमारे सिर पर होगा एक अमर तानाशाह...’

 

dangers of ai , #Elon_Musk # जयजीत_अकलेचा # Jayjeet_Aklecha #AI # GeoffreyHinton, elon musk on AI, Elon Musk - Risking It All, इलॉन मस्क और एआई

By जयजीत अकलेचा (Jayjeet Aklecha)

 मशीन लर्निंग के आविष्कारक यानी AI के गॉडफादर कहे जाने वाले जैफ्री . हिंटन को भौतिकी के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार देने का एलान किया गया है। विडंबना यह है कि जैफ्री . हिंटन को AI के आविष्कार पर उतना ही अफसोस रहा है, जितना कि अल्फ्रेड नोबेल को डायनाइट के आविष्कार पर रहा, जितना कि शायद ओपेनहाइमर को जापान पर परमाणु बम गिराने के बाद के वर्षों में हुआ। हालांकि यह भी सच है कि अगर अल्फ्रेड नोबेल डायनामाइट का आविष्कार नहीं करते तो कोई और करता। ओपेनहाइमर परमाणु बम ना बनाते तो कोई और बनाता। इसी तरह हिंटन अगर मशीन लर्निंग का आविष्कार नहीं करते तो कोई और करता।ईश्वरबहुत हाशियार है। उसने मनुष्य नामक प्राणी को जन्मते ही उसके दिमाग मेंविनाशका बटन दे दिया, ताकि सृजन और विनाश का प्राकृतिक सिलसिला बरकरार रहे।


इलॉन मस्क अपने रुतबे वाले उन चंद लोगों में शुमार हैं, जो AI को लेकर लगातार चिंता जताते आए हैं। ऐसे में मशीन लर्निंग के लिए नोबेल पुरस्कार के एलान पर मुझे मस्क याद रहे हैं और याद रहा है कुछ अरसा पहले उनके द्वारा किया गया एक ट्वीट। मस्क ने उसमें कहा था कि इंसानों को उत्तर कोरिया के बजाय AI के बारे में अधिक चिंतित होना चाहिए। मसलन, परमाणु हथियारों के बजाय AI, क्योंकि उनकी नजर में AI परमाणु हथियारों से भी कहीं अधिक घातक है।

वैसे मस्क की नज़र में AI अपने आप में कोई बड़ा ख़तरा नहीं है, वैसे ही जैसे परमाणु ऊर्जा भी अपने आप में घातक नहीं है। ख़तरा तो वह AI है, जिसे अनियंत्रित और बग़ैर नियम-कायदों के खुल्ला छोड़ दिया गया है। उन्होंने इस परिदृश्य को एक तानाशाह के शासन से भी बदतर बताया है: ‘अगर कोई तानाशाह बहुत दुष्ट है, तब भी एक एक दिन उसका मरना तय होता है। लेकिन AI के लिए कोई मौत लिखी नहीं होगी। यह हमेशा ज़िंदा रहेगी, और फिर हमारे सिर पर एक ऐसा अमर तानाशाह होगा, जिससे हम कभी बच नहीं सकेंगे।' (माइकल व्लिसमस की बायोग्राफी ‘Elon Musk - Risking It All’)

सवाल यह है कि क्या कोई सरकार इसको लेकर फिक्रमंद है? माफ करना मैं भारत की बात नहीं कर रहा। यहां तो हम अभी तक जाति और धर्म से ऊपर नहीं उठ पाए हैं। तो यहां हम AI के विनाशकारी तूफान के गुजरने के बाद इसकी बात करेंगे, गर फुर्सत मिली। मैं अमेरिका सहित उन चंद विकसित देशों की बात कर रहा हूं, जो विज्ञान के क्षेत्र में कथित तौर पर काफी प्रगति कर चुके हैं। और दुर्भाग्य से किसी भी सरकार के एजेंडे में AI के नियंत्रण को लेकर कोई रोड मैप नहीं है।

अगर मस्क जैसा शख्स कह रहा है कि मनुष्य के अस्तित्व के सामने यह सबसे बड़ा संकट है, और सबसे गंभीर संकट भी, तो इसे पूरी मानव जाति को गंभीरता से लेना चाहिए। और उनके हालिया बयान के मद्देनजर यहां फिर भारत का जिक्र करना चाहूंगा। उन्होंने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था, ‘अगर आप नौकरी करना चाहते हैं तो कीजिए, लेकिन केवल शौक के लिए। नहीं तो काम तो AI और रोबोट कर ही लेंगे।भारत जैसे विकासशील देशों में जहां बेरोजगारी एक भयावह समस्या है, हम इस बढ़ते खतरे को हल्के में नहीं ले सकते और ही यह कहकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकते है कि जो बंदा अपडेटेड रहेगा, वही टिकेगा। कैसे? AI से अपडेटेड भला कौन हो सकेगा? तो टिकेगी तो केवल एआई!

और नोबेल अवार्ड की घोषणा के तुरंत बाद स्वयं हिंटन ने क्या कहा, वह भी जान लेते हैं: "We need to worry about bad consequences (of AI).’

और अवार्ड मिलने के तुरंत बाद अपने पहले इंटरव्यू में जब इंसानी अस्तित्व के खतरे को लेकर वे AI के प्रति आगाह करते हैं तो उनके गंभीर चेहरे के पीछे नोबेल पुरस्कार मिलने की खुशी से ज्यादा एक दर्द को महसूस कर सकते हैं।

 

#Elon_Musk # #जयजीत_अकलेचा #Jayjeet_Aklecha #AI #GeoffreyHinton