डॉ. आम्बेडकर के मसले पर ‘नूरा कुश्ती’ के साथ आखिर सदन की कार्यवाही स्थगित हो गई। उम्मीद है देश ने राहत की सांस ली होगी!
कौन कितना आम्बेडकर द्रोही है, यह जानने के लिए ये चंद पंक्तियां पढ़ते हैं। लोकसभा के पूर्व महासचिव और जाने-माने संविधान विशेषज्ञ सुभाष सी. कश्यप से आज से तीन साल पहले 6 दिसंबर 2021 को आम्बेडर की पुण्यतिथि पर ये शब्द कहे थे: "अगर आज डॉ. बीआर आम्बेडकर जीवित होते तो यह देखकर उनकी आत्मा छलनी हो जाती कि आज भी अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों को आरक्षण की जरूरत है।’
आज 75 साल के बाद एक सियासी सम्प्रदाय जो करीब 50 साल सत्ता में रहा, संविधान बचाने के नाम पर ‘आरक्षण’ का सबसे बड़ा पैरोकार होने का दावा कर रहा है, करता आ रहा है।
दूसरा सियासी सम्प्रदाय बार-बार इस बात की गारंटी देते नहीं थकता कि इस देश से आरक्षण कभी खत्म नहीं होगा ("मोदी की गारंटी है कि एससी, एसटी, ओबीसी का आरक्षण खत्म नहीं होगा।" - नरेंद्र मोदी,अप्रैल 2024, टोंक-सवाईमाधोपुर की रैली में)। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आम्बेडकर ने आरक्षण के प्रावधान को रखते हुए स्पष्ट कहा था कि इसका विस्तार SC/ST समुदायों से परे नहीं होना चाहिए।
सुभाष कश्यप की अपनी युवावस्था के दौरान संसद की लाइब्रेरी में आम्बेडकर के साथ कई बार मुलाकातें और उनके साथ आरक्षण को लेकर चर्चाएं भी हुई थीं। साल 2021 के भाषण में कश्यप ने ऑम्बेडकर के हवाले से कहा था- “डॉ. आम्बेडकर ने एससी और एसटी के लिए आरक्षण के संदर्भ में कहा था कि 10 साल का समय बहुत कम है और इसे 40 साल होना चाहिए। लेकिन उसके बाद संसद को कानून द्वारा आरक्षण को बढ़ाने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिए। वे स्थायी रूप से आरक्षण के खिलाफ थे।” ऑम्बेडकर ने यह भी कहा था, “मैं नहीं चाहता कि वह प्रतीक भारतीय समाज में हमेशा के लिए बना रहे।” (द हिंदू, 6 दिसंबर 2021)
मेरा एक ही सवाल है : जो भी सियासी सम्प्रदाय एक-दूसरे पर आम्बेडकर के अपमान के लिए अंगुली उठा रहा है, वह बची हुई तीन उंगलियां भी देख लें। वे उनके स्वयं के गिरेबान की ओर आ रही हैं... 40 साल के बाद भी आरक्षण जारी है। क्यों जारी है? आम्बेडकर का अनुचर साबित करने से पहले उनकी आत्मा को इसका जवाब भी तो दे दीजिए!!
पर बड़ा सवाल यह भी है : पिछले लोकसभा चुनाव में जिन 66 करोड़ लोगों ने जिस भी सियासी सम्प्रदाय को वोट दिए, वे धर्म और जाति से परे हटकर उनसे महंगाई, बेरोजगारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण, इनोवेशन की कमी जैसे मसलों पर सवाल पूछना कब शुरू करेंगे? सवाल केवल आरक्षण के हटाने या ना हटाने का नहीं है। सवाल यह है कि जिस आरक्षण की भूमिका देश के कुल वर्क फोर्स में डेढ़ फीसदी भी नहीं है, उसके नाम पर हम कब तक मूर्ख बनते और बनाए जाते रहेंगे?
(Jayjeet Aklecha, जयजीत अकलेचा, Dr. BR Ambedkar)
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