यहां आपको कॉन्टेंट मिलेगा कभी कटाक्ष के तौर पर तो कभी बगैर लाग-लपेट के दो टूक। वैसे यहां हरिशंकर परसाई, शरद जोशी जैसे कई नामी व्यंग्यकारों के क्लासिक व्यंग्य भी आप पढ़ सकते हैं।
रविवार, 24 मार्च 2024
शनिवार, 16 मार्च 2024
गब्बर, चुनाव और साम्बा की होशियारी...!
By Jayjeet Aklecha
गब्बर को गलतफहमी है कि 'होली कब है, कब है होली' जैसा कुछ कहने के बजाय 'चुनाव कब है, कब है चुनाव' कहने से उसे चुनाव का टिकट मिल जाएगा। टिकट दल बदलने से मिलता है, जुमले बदलने से नहीं। और उसे इस बात की और भी गलतफहमी है कि डकैत होना उसकी एडिशनल क्वालिफिकेशन है। डकैत की ड्रेस पहनने भर से टिकट मिल जाता तो इलेक्टोरल बॉन्ड की डकैती की जरूरत ही क्यों होती! सोचने की बात है...! गब्बर ने अपनी जात नहीं बताई... डकैत तो डकैत होता है। उसकी क्या जात और क्या पात? लो, ऐसी नैतिकता का ऐसा झंझट तो अपन वोटर लोग भी नहीं पालते और ये डकैत होकर पाले हुए हैं। शायद, इसीलिए नेताओं के बीहड़ों में इसके डकैतपने की कोई औकात नहीं है। तो टिकट कैसे मिलेगा, कैसे मिलेगा टिकट? भाईसाब, रामगढ़... मोबाइल में घुसे पड़े नल्ले साम्भा के मुंह से कुछ फूटा...। पहाड़ी की चोटी पर अब वह केवल नेटवर्क के मारे ही बैठता है। क्याssssss? रामगढ़ssssss। रामगढ़ का कनेक्शन बताइए और टिकट पाइएsssssssss। साम्भा भी उतना ही जोर से चिल्लाया। वाह, साम्भा के मुंह से पहली बार कोई कायदे की बात फूटी है। टीवी चैनलों पर न्यूज टाइप की चीजें देखकर आदमी ज्ञानी भी हो लेता है... मॉरल ऑफ द स्टोरी फ्रॉम द ग्रेट साम्बा...जिसके पास धेले का भी काम नहीं, वह न्यूज चैनलों पर एंटरटेनमेंट जरूर करें। बीच-बीच में गजब का ज्ञान भी मिल जाता है। चलते-चलते... कांग्रेस तो दो बोरी गेहूं के बदले ही टिकट देने को तैयार है, मगर साम्भा ने चेताया, भाई साब ले मत लेना, अभी तो आप जमानत पर बाहर है। वह भी जब्त हो जाएगी। एक तो कांग्रेस, ऊपर से ईडी का झमेला...। (देखो तो जरा साम्भा को, नीम और करेला की कहावत का इल्म भी आ गया... )
रविवार, 10 मार्च 2024
कांग्रेस की आत्मा तो अजर-अमर है! बस देह बदलकर भाजपा में प्रवेश कर रही है...!!
By Jayjeet Aklecha
नित दिन जब खबर आती है कि अमुक कांग्रेसी ने भाजपा ज्वॉइन कर ली है तो यह भाजपा मुक्त भारत की दिशा में एक और ठोस कदम होता है। क्या कांग्रेसियों ने साजिश रच रखी है भाजपा को खत्म करने की? वाकई, राजनीति में कांग्रेसियों का कोई मुकाबला नहीं! ऐसा जाल बिछाया कि कांग्रेस मुक्त भारत करते-करते भाजपाइयों ने अनजाने में देश को भाजपा मुक्त कर दिया।
मैं उस भविष्य की ओर देख रहा हूं, जब देश में केवल दो पार्टियां होंगी - भाजपा (ओ) और भाजपा (सी) यानी भाजपा (ओरिजिनल) और भाजपा (कांग्रेस)। कई लोगों को आशंका और उम्मीद है कि भविष्य में हमारा भारत महान चीन की तर्ज पर एक पार्टी सिस्टम पर जा सकता है और वह पार्टी होगी भाजपा (सी)। यकीन मानिए, इसमें भाजपा की केवल देह होगी, भीतर आत्मा तो कांग्रेस की ही होगी।
आजादी के बाद कांग्रेस ने जो संघर्ष किया है, उसे भाजपा कभी नहीं समझ सकती।। शरद जोशी जी द्वारा गिनाए गए नैतिक पतन के तमाम आदर्श उसे स्वयं अपने हाथों से गढ़ने पड़े। भाजपा किस्मतवाली रही कि उसे नैतिक पतन के ये गुण विरासत में मिल गए। न उसे आजादी के लिए संघर्ष करना पड़ा और न ऐसे उच्च आदर्शों के लिए। बस, उसे कांग्रेस को अपने भीतर समाने की जरूरत थी। बेशक, यह बेहद मुश्किल था। पर भाजपा को साधुवाद! उसने कांग्रेस के गुणों को अपनाने में 10 साल भी नहीं लगाए।
आज अटल जी जहां कहीं भी होंगे, क्या सोच रहे होंगे? दु:खी हो रहे होंगे या खुश हो रहे होंगे? मुझे लगता है कि वे यह सोच-सोचकर खुद को भाग्यशाली मान रहे होंगे कि वे 'द पार्टी विद अ डिफरंस' की ऐसी मौत अपनी आंखों से देखने से बच गए। आडवाणीजी एक बार फिर से अटलजी की किस्मत पर रश्क कर सकते हैं...!
समापन भी शरद जोशी की पंक्तियों से ही... दाएं, बाएं, मध्य, मध्य के मध्य, गरज यह कि कहीं भी किसी भी रूप में आपको कांग्रेस नजर आएगी। इस देश में जो भी होता है, अंततः कांग्रेस होता है। जनता पार्टी (आज पढ़ें भारतीय जनता पार्टी) भी अंततः कांग्रेस हो जाएगी।
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