बुधवार, 5 जून 2024

मोदी ने ‘अटलजी’ बनने का मौका गंवा दिया …?

 

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हारकर भी जीत गए थे अटलजी, ये जीतकर भी हार गए...!!!

By Jayjeet Aklecha
वह 13 मई 2004 की वैसे ही तपती दोपहरी थी। 12 बजते-बजते चौदहवीं लोकसभा चुनावों के नतीजों का एक मोटा-मोटा रुझान सामने आ चुका था। अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव हारने जा रहे थे। ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा जमीन पर चित्त पड़ा था।
आज 4 जून 2024 की दोपहर भी इससे जुदा नहीं थी। उतनी ही गर्मी थी, सियासी भी और मौसमी भी। तो क्या इन चुनावों के नतीजों ने भी उसी परिदृश्य को दोहराया है? भाजपा के समर्थकों (जिनका अब भक्तों के तौर पर रूपांतरण हो चुका है) में जिस तरह से मातम पसरा हुआ है, उससे तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है।
लेकिन नहीं। हो सकता है मातम उतना ही हो, मगर परिदृश्य बिल्कुल अलग है। अटलजी ने वह चुनाव ‘इंडिया शाइनिंग' के स्लोगन पर लड़ा था। हां, वही स्लोगन जिसका कई लोग आज भी मजाक उड़ाते हैं। लेकिन जरा अटलजी के इस स्लोगन का मोदी के ‘इंडिया ग्लूमिंग' वाले टोन के साथ तुलना कीजिए। एक पल में आपको वो नारा बेहद खूबसूरत नजर आने लगेगा। मुझे तो आता है। सबसे बड़ा अंतर ही यही है कि जहां अटलजी सकारात्मक मुद्दों पर चुनाव हारे, वहीं मोदी एंड टीम ने पूरे चुनाव को नकारात्मक मु्द्दों से इतना भर दिया कि उनकी इस लगभग जीत को भी ‘हार’ की तरह ट्रीट किया जा रहा है! घुसैठिए, मंगलसूत्र और न जाने क्या-क्या... नैराश्य से मचा हुआ। हममें से ऐसा कौन है, जो बीते दो माह के इस चुनाव प्रचार को याद भी रखना चाहेगा?
और एक और अंतर… अटलजी ने सत्ता गंवा दी। प्रधानमंत्री नहीं रहे। उस सदमे से वे कभी उबर भी नहीं पाए, मगर विनम्रता और असहमति का भी सम्मान करने की भावना जैसे कई उदात्त गुणों की वजह से इतिहास ने उन्हें एक ‘स्टेट्समैन' के तौर पर याद किया। आज भी करता है और हमेशा करता रहेगा।
मोदी ने जीतकर भी यह मौका गंवा दिया है। अगर वे 370 सीटें भी जीत जाते, या 400 भी या 543 भी, तब भी इतिहास उन्हें ‘स्टेट्समैन' का दर्जा कभी नहीं देता। न कभी देगा। साल 2019 की शुरुआत तक मोदी में भी एक ‘स्टेट्समैन' बनने की प्रबल संभावनाएं थीं। मगर दुर्भाग्य से, उन्होंने प्रयास किया एक ‘कल्ट लीडर’ बनने का। तो वे इतिहास में भी इसी रूप में याद रखे जाएंगे: भक्तों के एक चमत्कारी नेता के तौर पर, राजनेता के तौर पर कदापि नहीं। मोदी जीतकर भी हार गए...। 24*7 काम करने वाले एक परिश्रमी नेता का ऐसा पराभव दु:खद भी है।
पुनश्च… मेरा एक मित्र अभी-अभी कह रहा था कि देश दु:खी है… मोदीजी ने राम मंदिर बनवाया, कश्मीर से धारा 370 हटाई, दुनिया में देश का मान बढ़ाया, जीडीपी की ग्रोथ बढ़ाई, फिर भी लोगों ने उन्हें हरा दिया…
मेरा सवाल - मोदी एंड टीम ने एग्रेसिवली होकर क्या इन मुद्दों पर वोट भी मांगे थे? और जब नहीं मांगे, तो फिर देश को मलाल क्यों?