अंबानी परिवार द्वारा अपने बेटे की शादी पर (कथित तौर पर) 5,000 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद एक खबर टाटा से आई। टाटा के वंशज 32 वर्षीय नेविल टाटा को कंपनी में एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। अडाणी घराने की कमान भी जल्द ही उनके दोनों बेटों के हाथों में होगी। ऐसे में उस कंपनी के बारे में जानना दिलचस्प होगा जो इन तमाम कंपनियों ने कहीं आगे हैं, मार्केट कैपिटलाइलेशन में, रेवेन्यू में, ब्रांड में। यह कंपनी है एपल।
एपल मार्केट कैपिटलाइलेशन में दुनिया की नंबर वन कंपनी है। 3 ट्रिलियन डॉलर यानी 250 ट्रिलियन रुपए का मार्केट कैपिटलाइलेशन है इसका। टाटा की तमाम कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइलेशन 33 ट्रिलियन रुपए, रिलायंस का 20 ट्रिलियन रुपए और अडाणी ग्रुप का केवल 3 ट्रिलियन रुपए है।
- एपल की स्थापना की थी स्टीव जॉब्स ने। यह सब जानते हैं। लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि आज दुनिया की नंबर वन कंपनी का कोई मालिक नहीं है। असल मालिक शेयरहोल्डर्स हैं, वाकई में शेयर होर्ल्डस, केवल कहने के लिए नहीं।
- चूंकि एक मालिक नहीं है, इसलिए कंपनी शादियों पर करोड़ों खर्च नहीं करती, यहां तक कि कंपनियों के बड़े-बड़े अधिकारी भी सामान्य तरीके से रहते हैं। सीईओ व फाउंडर स्टीव जॉब्स ताउम्र पेलो अल्टो के एक छोटे से घर में और फिर एक ड्यूप्लेक्स में रहे। जब आप उनकी जीवनी (वॉल्टर आइज़ैक्शन की ऑफिशियल बायोग्राफी) पढ़ते है तो यह जानकर आश्चर्य होता है कि उनके घर में लंबे समय तक एक सोफासेट तक नहीं था।
- स्टीव जॉब्स ने चंद डॉलर्स में शुरू की गई कंपनी को अरबों डॉलर तक पहुंचाया। लेकिन इसी कंपनी ने उन्हें बाहर निकाल दिया क्योंकि उसके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को लगता था कि जॉब्स कंपनी को नुकसान पहुंचा रहे थे। क्या हमारे यहां किसी कंपनी के संस्थापक को बाहर किया जा सकता है? एपल का यह संस्थापक दस साल तक बाहर रहा। फिर जब बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को लगा कि कंपनी जॉब्स के बगैर नेक्स्ट लेवल पर नहीं जा सकती तो उन्हें फिर से लेकर आए, सीईओ बनाया... और फिर तो एपल ने इतिहास रच दिया।
- अंबानी परिवार के बच्चे क्या करते हैं? किसी को अंदाजा लगाने की जरूरत भी नहीं है। मगर स्टीव जॉब्स के चार बच्चे हैं और एक भी कंपनी से सीधे कनेक्ट नहीं हैं (बेशक, स्टीव जॉब्स के पर्सनल शेयरों की वजहों से उनके पास भी अपने पिता की करोड़ों डॉलर की सम्पत्ति में बड़ी हिस्सेदारी है)। उनकी एक बेटी पत्रकार व लेखिका हैं, बेटे मेडिकल रिसर्च पर काम करते हैं, एक बेटी फैशन सेक्टर में एक्टिव हैं। किसी के पास भी अपने पिता की स्थापित कंपनी के किसी भी सेक्शन की कोई जिम्मेदारी नहीं है।
- स्टीव जॉब्स की कैंसर से मौत हुई थी। वे बच सकते थे, बशर्ते अगर वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते और लिवर प्रत्यारोपण के लिए आम लोगों की तरह अपनी बारी का इंतजार नहीं करते। उनके प्रभाव का आकलन केवल इस तथ्य से लगा सकते हैं कि अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और फिर बराक ओबामा से बात करने के लिए उन्हें अपॉइंटमेंट नहीं लेने पड़ते थे।
- ऐसे ढेरों किस्से स्टीव जॉब्स की ऑफिशियल बायोग्राफी में दिए गए हैं। इसके लेखक हैं वॉल्टर आइजैक्शन। इस लेखक के लेवल का अंदाजा लगाइए कि जब स्टीव जॉब्स ने उनसे कहा, 'मैं चाहता हूं कि आप मेरी जीवनी लिखें' तो आइजैक्शन ने इससे इनकार करते हुए कहा, 'अभी नहीं। शायद एक दशक के बाद देखते हैं, जब आप रिटायर हो जाएंगे।' फिर केवल इसलिए लिखी क्योंकि जॉब्स की पत्नी ने उनसे गुजारिश की कि अगर आप अभी नहीं लिख सकते तो फिर कभी नहीं लिख पाएंगे... हालांकि जॉब्स तो इसे कभी पढ़ भी नहीं पाए। उन्होंने अपने लेखक से वादा किया था कि वे प्रकाशन से पहले उसके भीतर झांकेंगे भी नहीं। वे प्रकाशित होने के बाद जरूर पढ़ेंगे। उन्होंने अपना पहला वादा पूरा किया, लेकिन दूसरा वादा नियति ने पूरा नहीं करने दिया। प्रिंट होने के 19 दिन पहले ही इनोवेशन जगत का यह सितारा कहीं दूर जा चुका था।
मुझे वॉल्टर आइजैक्शन की इस ऑफिशियल बायोग्राफी के माध्यम से स्टीव जॉब्स की जिंदगी के अनेक पहलुओं से हाल के महीनों में रूबरू होने का मौका मिला है।
दुर्भाग्य से इस अद्भुत शख्स की यह अद्भुत ऑफिशियल बायोग्राफी वर्षों तक हिंदी में नहीं आ पाई है। ...क्या इसे हिंदी में नहीं छपना चाहिए?