मंगलवार, 29 अप्रैल 2025

एक कविता देश के शूरवीर एंकरों, नेताओं और सोशल मीडिया के बहादुरों के नाम!




- जयजीत


चीखता-चिल्लाता एंकर बोला,

मुट्ठियां ताने नेता बोला,

वीर रस का कवि भी गरजा,

सोशल मीडिया वीर भी बरसा।


सब बोले , हे सरकार,

अब तो युद्ध जरूरी है!  


इस मौके पर दे दिया मैंने भी अपना ऑफर

मैं सरकार तो नहीं, मगर पत्रकार हूं 

कम से कम इतना तो फर्ज निभा सकता हूं

आपको बॉर्डर तक छोड़कर आ सकता हूं


एंकर भड़क उठा, बोला हड़ककर,

गंभीर घड़ी में कर रहे हो मजाक लपककर!

अगर मैं चला गया जंग के मैदान, दे दी जान 

तो चीख-चीखकर शहीदों की कौन सुनाएगा दास्तान ...? हें...


नेता बोला, हंसते-हंसते,

इस साइड हो या उस साइड

फितरत में हम एक हैं

हम लड़ते नहीं, बस लड़वाते हैं,

कभी जंग, कभी धर्म के झंडे फहराते हैं

चल हट स्साले, हमें काम करने दें,

हथियार नहीं, भाषण चलाने दें


वीर रस का वो कवि, चेहरे पर था वीभत्सता का बोलबाला

मेरे इस ऑफर पर बड़ी मासूमियत से बोला,

भाई, रणभूमि नहीं, मंच मेरी धरती है,

शहादत नहीं, कविता मेरी शक्ति है।

शहीदों की चिताओं पर प्यारे गीत सजाऊंगा,

वीरों के नाम मुट्ठियां तानकर वीरगान सुनाऊंगा!


और अब आई सोशल मीडिया वीर की बारी

मैंने कहा- चल, करते हैं बॉर्डर तक की सवारी!

उसने पूछा- क्यों?

ओह हो...लगता है फिर हो गया है शॉर्ट टर्म मेमोरी का शिकार

भूल गया जंग वाली सारी तकरार

पता नहीं, चाइना ने ऐसा क्या बोला कि

चाइनीज मोबाइल से ही 

फिर से चाइना के खिलाफ करने लगा खेला 


तो मॉरल ऑफ द पोयम...?

बाकी सब तो निभा रहे अपनी जिम्मेदारी,

नेता, एंकर, कवि और एफबी-एक्स की फौज सारी।

बस बचे रह गए सैनिक असली रणवीर,

सब पूछ रहे, कब आएगी इनकी भी बारी?


आ गई गर बारी तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे

बजाएंगे खूब ताली और पीटेंगे जमकर थाली..

पक्का प्रॉमिस...!!!

--------------- 


रविवार, 20 अप्रैल 2025

दंगों का नियम : मरता आम आदमी है, उद्वेलित भी आम आदमी होता है...

 

(तो नेता क्या करता है? अपने बंगले में बैठकर अंगुर खाता है या पीता है, और क्या!!)

वैसे तो यह सवाल ही मूर्खतापूर्ण है कि भारत में साम्प्रदायिक दंगों के लिए कौन जिम्मेदार होते हैं? जवाब सबको मालूम है, फिर भी लिखता हूं - सियासी दलों के नेता...! (कोई शक? अगर है तो कृपया यहां तक पढ़ने के लिए धन्यवाद!)
दूसरा सवाल, जो थोड़ा कम मूर्खतापूर्ण है, और इसलिए मुझे एआई के कुछ चैटबॉक्स से पूछना पड़ा- क्या भारत में हाल के वर्षों में हुए दंगों में कोई नेता टाइप का आदमी मारा गया? जवाब मिला- ‘भारत में दंगों के संदर्भ में किसी प्रमुख सियासी नेता के मारे जाने की कोई जानकारी नहीं है।’ एक ने केवल गुजरात में एक नेता (एहसान जाफरी) का नाम दिया। बाकी एआई ने हाथ जोड़ लिए।
तीसरा सवाल, दूसरे से अधिक मूर्खतापूर्ण है - तो दंगों में कोई नेता वगैरह क्यों नहीं मारा जाता?
चौथा सवाल, तीसरे जितना ही मूर्खतापूर्ण, इस तरह के दंगों में क्या कभी किसी नेता वगैरह का घर जला है?
पांचवां सवाल, बताने की जरूरत नहीं कि कितना मूर्खतापूर्ण है, इन दंगों में कोई नेता वगैरह पलायन क्यों नहीं करता है?
और अंतिम सवाल, जो मूर्खतापूर्ण कतई नहीं है - हम, भारत के लोग, ये उपरोक्त सवाल पूछना कब शुरू करेंगे? याद रखिए, इसका जवाब किसी AI के पास नहीं है। इसलिए जरा अपनी फोकट की विचाराधाराओं को साइड में कीजिए, अपनी अंतरात्माओं को झिंझोड़िए और पूछना शुरू कीजिए...
अगर आपके सोशल मीडिया पर अच्छे-खासे फॉलोवर्स हैं तो सोशल मीडिया पर पूछिए, अगर आप पत्रकार हैं तो प्रेस कॉन्फ्रेन्स में पूछिए और अगर आप कुछ नहीं हैं तब खुद से पूछिए- यह भी पूछिए कि आखिर नेताओं के पीछे-पीछे 'भाई साहब' कहते-कहते हम कब तक चलते रहेंगे?
भागलपुर, नरौदा पाटिया, खरगोन (मेरा अपना शहर), संभल से लेकर मुर्शिदाबाद तक... आप अपने हिसाब से अपनी जगह जोड़ सकते हैं। मगर याद रखिए, जो भी लोग मरे हैं, चाहे वे हिंदू हों या मुस्लिम या सिख, उनमें कोई खास नेता शामिल नहीं है। शामिल हैं हमारे-आपके जैसे आम लोग।
तो तीन ही विकल्प हैं- नेता बन जाइए, बड़ा अच्छा विकल्प है। या मरने के लिए तैयार रहिए। या सवाल कीजिए। इस मुगालते में मत रहिए कि इनकी जगह मैं या मेरे बच्चे नहीं हो सकते... क्यों नहीं हो सकते?
(Disclaimer : तस्वीर में दिया गया नेता प्रतीकात्मक है। अगर कोई भी जीवित या मृत नेता उसके साथ अपना साम्य देखता है, तो इसके लिए वह स्वयं जिम्मेदार होगा! )

सोमवार, 14 अप्रैल 2025

हमें ऐसे ही स्टार्टअप मुबारक... AI, EV, Space का क्या करना...?

#abhinavarora #dhirendrakrishnashastriji #jayjeetaklecha

By Jayjeet

हाल ही में पीयूष गोयल ने भारतीय स्टार्टअप्स पर सवाल उठाए थे, चीनी स्टार्टअप्स की भूरि-भूरि तारीफ की थी। लेकिन वे भूल गए कि देश जैसा होता है, जैसी सरकारें होती हैं, जैसा राजनीतिक वातावरण होता है, स्टार्टअप्स भी वैसे ही होते हैं। अमेरिका और चीन भौतिकवादी देश हैं तो वहां AI और EV और Space जैसे स्टार्टप्स होंगे। हम विश्व गुरु हैं, अध्यात्म हमारे रौम-रौम में हैं तो हमारे स्टार्टअप्स जरा अलग होंगे... आध्यात्मिक टाइप के...
समझने के लिए साथ लगी तस्वीर देखिए। बायीं ओर एक बाल कथावाचक है। उसका स्टार्टअप हाल ही में शुरू हुआ है। प्रतिभासम्पन्न बालक है। उसके टैलेंट को नमन। दायीं ओर का स्टार्टअप अब 'यूनिकॉर्न' बन चुका है! यूनिकॉर्न मतलब? मूल परिभाषा के अनुसार जिस स्टार्टअप की वैल्यू एक अरब डॉलर को पार कर जाए। समझने के लिए समझ सकते हैं जो लाभ का सौदा बन जाए...
तो पीयूष जी, कृपया निराश ना हों... आप सियासत के जिस सेटअप के साथ काम करते हैं, वह भी ऐसे ही स्टार्टअप चाहता है... समझिए, धर्म के प्रति, जाति के प्रति आत्मगौरव सबसे बड़ी बात है। फिर बंगाल में वक्फ के नाम पर हो रही हिंसा हो या उप्र में किसी जातिवादी सेना का उग्र प्रदर्शन, हमें और आपको तो ऐसे ही स्टार्टअप्स का आनंद लेना चाहिए... ये स्टार्टअप्स रोजगार भले ना देते हों, लेकिन बेरोजगारी का एहसास भी नही करवाते। और क्या चाहिए?

रविवार, 6 अप्रैल 2025

एक बीमार इंसान की बॉडी शेमिंग करने वाले क्या ज्यादा बीमार नहीं?

 

body shaming, anant ambani, अनंत अंबानी, बॉडी शेमिंग, कुणाल कामरा, जयजीत अकलेचा

By Jayjeet Aklecha

आज हम कितने विचित्र विरोधाभासी दौर में जी रहे हैं। एक तरफ हम बेहद संवेदनशील हैं। नाजुक-सी भावनाएं। जरा सा किसी ने कुछ कहा नहीं कि चटक जाती हैं। वहीं दूसरी तरफ संवेदनाओं से विहीन। इसकी कई मिसालें तो हमें अपनी-अपनी अंतरात्माओं में ही मिल जाएंगी।

यहां संवेदनहीनता के जिस हालिया मामले का जिक्र कर रहा हूं, वह अनंत अंबानी का है। वो कुछ बीमारियों से ग्रस्त हैं। खबरों के मुताबिक, कुछ ऐसी गंभीर बीमारियां, जिनसे किसी भी सभ्य व विवेकशील इंसान को उनके प्रति संवेदना होनी चाहिए, भले ही वो भारत के सबसे धनकुबेर के पुत्र ही क्यों न हों।

हम अरसे से उनका मजाक उड़ते देख रहे हैं। स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने हाल ही में महाराष्ट्र के एक नेता का बिल्कुल उचित मजाक उड़ाया था। लेकिन जब वे अनंत जैसे बीमार व्यक्ति की बॉडी शेमिंग करते हैं तो ऐसे कॉमेडियन और उस भद्दी कॉमेडी पर हंसने वाले मानसिक बीमारों पर लज्जा आने लगती है।

ताजा मामला अपनी पदयात्रा के दौरान अनंत द्वारा कुछ चिकन को बचाने का है। ऐसी खबरें और इसकी तस्वीरें सामने आते ही कई लोग उन पर टूट पड़े। इनमें धुरंधर यूट्यूबर ध्रुव राठी भी हैं। उनका यह सवाल वाजिब है कि आखिर अनंत इससे कितने चिकन बचा लेंगे? लेकिन समस्या उनके पूछने के अंदाज से है। यह अंदाज बताता है कि मकसद सवाल उठाना नहीं, अनंत के इस प्रयास का मजाक उड़ाना है। और इससे यह भी पता चलता है कि बड़ी सेलेब्रिटी बनना और बड़ा दिलवाला बनना, दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। आपने नॉलेज तो अर्जित कर लिया, लेकिन विज्डम से दूर रहे। ज्ञानी होना आसान है, विवेकशील नहीं, क्योंकि इसके लिए ज्ञान के साथ 'शील' जरूरी है।

हो सकता है आपको मोदी पसंद न हो। और इसीलिए आपको उनके कथित दोस्त मुकेश अंबानी भी पसंद नहीं होंगे? ठीक है, भू-राजनीति का एल्गोरिदम आप इंसानी रिश्तों में भी ले लाइए कि दुश्मन का दोस्त दुश्मन! लेकिन इसके बावजूद किसी के बीमार बेटे का मजाक उड़ाने का हक कम से कम इंसानी सभ्यताओं में तो किसी ने किसी को नहीं दिया है... हां, अगर आप किसी एलियन सभ्यता में रह रहे हैं, तो अलग बात है... तब मुबारक हो ऐसी सभ्यता।

#anantambani Kunal Kamra Dhruv Rathee #jayjeetaklecha #जयजीत अकलेचा

 

गुरुवार, 3 अप्रैल 2025

यह डराने का डबल खेल है...! इस तरफ से भी, उस तरफ से भी...। डरना तो बनता है!!!

rahul with modi waqf board
By Jayjeet

हमारे यहां सत्ता पक्ष हो या विपक्ष, उन्हें तमाम ऐसे मसलों पर चर्चा करने में बड़ा आनंद आता है, जिनमें धर्म का जरा-सा भी एंगल हो.... वक्फ बोर्ड विधेयक पर सदन में सुचारू चर्चा होगी, इस बात की पूरी संभावना थी। और यही हुआ। 12 घंटे तक संसद इस मुद्दे पर चर्चा करती रही।
बेशक, यह भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है, लेकिन इस पर बेरोक-टोक चर्चा सिर्फ इसलिए नहीं हुई कि यह बेहद महत्वपूर्ण मुद्दा है। सुचारू रूप से चर्चा इसलिए हुई, क्योंकि इसमें सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को अपने-अपने नरेटिव्स को और भी मजबूती देने में मदद मिली... मानों मिलीभगत हो... तुम भी कहो, हम भी कहें... गोया कि जनता के लिए तो हर दिन 1 अप्रैल है...!
सत्ताधारी दल, और कमोबेश सरकार भी, जिसे मुस्लिमों के प्रति अपनी घृणा को छिपाना कभी नहीं आया, के लिए यह अपने कोर सनातनी मतदाताओं के सामने इस नरेटिव को ताकतवर बनाने का मौका था कि देखो, हम अब किस तरह से मुस्लिम समुदाय के गिरेबान में हाथ डाल सकते हैं। कानून के जरिए उनके धार्मिक स्थलों तक हमारी पहुंच होगी। इससे उसे अपने मतदाताओं के बीच अपनी विश्वसनीयता को बढ़ाने का मौका मिला है।
विपक्षियों के बीच 'एक अनार, सौ बीमार' जैसी स्थिति रही। हर किसी में मुस्लिम समुदाय का पैरोकार दिखने की होड़ नजर आई (नागपुर इस पर मंद-मंद मुस्करा भी रहा होगा!)। सदन में बिल को फाड़ने की औवेसी की तस्वीर तो इतनी ऐतिहासिक बन गई कि वह उनकी अगली एक-दो पीढ़ियों को भी वोट दिलाती रहेगी।
खासकर कांग्रेस की समस्या बड़ी विकट है। मुस्लिमों का मसला अब उससे न निगलते बनता है, न उगलते। कांग्रेस करीब 55 साल तक केंद्र की सत्ता में रही है, लेकिन उसने मुस्लिमों को मुख्य धारा से इतना काटकर रखा कि आज न वह उनके असल मुद्दों को समझने की स्थिति में है, न उन्हें समझाने की स्थिति में। राहुल अब भी उस रटे-रटाए मुआवरे को दोहराते नजर आए कि ‘यह बिल मुसलमानों की सम्पत्ति को हड़पने के लिए बनाया गया।'
दरअसल, वक्फ वाला पूरा इश्यू डराने का डबल खेल है। भाजपा एंड पार्टी ने वक्फ बोर्ड के नाम पर यह नरेटिव सेट किया कि बोर्ड किसी की भी संपत्ति हड़प सकता है (वैसे ही जैसे हिंदू महिलाओं के मंगलसूत्र लूट लिए जाएंगे!)। विपक्षी दलों ने भी काउंटर में डराने का खेल खेला कि इससे मुस्लिमों का सबकुछ छीन लिया जाएगा। फिर उनसे कोई नहीं पूछ रहा कि आपने सत्ता में रहते ऐसा कुछ दिया भी है, जिसे छिना जा सके? शिक्षा, नौकरी, कारोबार! कांग्रेस तो 55 साल सत्ता में रही।
पुनश्च... हिंदू मुसलमान से डर रहा है, मुसलमान हिंदू से.... मगर हमें डरना चाहिए AI/AGI से, जलवायु परिवर्तन से। ये ईश्वर की सत्ता को चुनौती दे रहे हैं। मगर चूंकि ये कमबख्त हमें डराते नहीं हैं, इसलिए संसद की चर्चाओं में भी नहीं आते।
(तस्वीर : एआई से जनरेट की हुई)