शुक्रवार, 19 दिसंबर 2025

नदियों के सत्यानाश के लिए और 20 करोड़ लोग क्यों चाहिए?

By Jayjeet
दुनिया की 10 शीर्ष स्वच्छ नदियों में से सारी की सारी उन देशों में हैं, जहां नदियों की पूजा नहीं की जाती। भारत की कभी सर्वाधिक स्वच्छ नदी मानी जाने वाली उमंगोट भी अब इस सूची से बाहर हो चुकी है।
आज अचानक से नदियों का जिक्र इसलिए क्योंकि कल ही संघ के एक विद्वान नेता दत्तात्रेय होसबले ने बड़ी मासूमियत से पूछा था कि अगर मुस्लिम लोग नदी की पूजा करें तो क्या हर्ज है?
इन दिनों दूसरों के गिरेबान में झांकने का शौक कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। पूजा के नाम पर हम हिंदू लोग नदियों का कितना सत्यानाश कर रहे हैं, इसकी चिंता करने या इस पर कोई सकारात्मक विमर्श शुरू करने के बजाय हमें फिक्र इस बात की ज्यादा हो रही है कि विधर्मी लोग नदियों की पूजा क्यों नहीं कर रहे? यह उतना ही बड़ा पाखंड है, जितना कि भ्रष्टाचार में पगे लोग वंदे मातरम गाते हुए न गाने वालों को पाकिस्तान भेजने की धमकी देते हैं।
हाल ही में एक खबर आई थी कि केदरानाथ यात्रा के दौरान श्रद्धालु लोग अपने आराध्य स्थल पर इतना कचरा छोड़ आए कि उसे नीचे लाने में सरकार को करोड़ों खर्च करने होंगे। यह विडंबना नहीं कि हम उन्हीं चीजों का सत्यानाश करने पर तूले रहते हैं, जिनकी हम पूजा करते हैं? और ऊपर से हम चाहते हैं कि इस इकोसिस्टम में 10-20 करोड़ लोगों का भार और आ जाए? इसी संदर्भ में एक प्रसंग का उल्लेख समीचीन है। हमारे एक मित्र जापान गए थे। वहां एक मंदिर में बहुत ढूंढने पर उन्हें बड़ी मुश्किल से एक डस्टबिन मिला। पता चला कि जापानी तो अपना कचरा वापस साथ ले जाते हैं। हमारे जैसे भारतीयों के लिए ही शायद एक-आध डस्टबिन लगाया गया था। जापान भी आस्थावान देश है। लेकिन दो आस्थावान देशों के नागरिकों में भी कितना अंतर है? और क्यों है? लोहिया जी के शब्दों में, दुनिया में सर्वाधिक ढोंगी कोई कौम है तो वह भारतीय है।
होसबले यहीं नहीं रुके। (जैसा कि अखबारों में छपा है), उन्होंने कहा, 'मुस्लिमों को पर्यावरण संरक्षण के लिए नदियों, पेड़ों और सूर्य का सम्मान करने से कोई नुकसान नहीं होगा।'
मैं इससे सहमत हूं। लेकिन सम्मान करने की बात पहले अपने घर के लोगों से कहिए। हिंदुओं से कहिए कि पूजा के बाद अपना कचरा मां गंगा या मां नर्मदा के हवाले करने के बजाय साथ ले जाएं और अगर एक भी पेड़ कटे तो उसके लिए उतना ही हंगामा करने के लिए तैयार रहें, जितना की गौ-रक्षा के नाम पर करते हैं। आखिर देश में करीब एक बिलियन लोग हिंदू हैं। पर्यावरण और पेड़ों को बचाने के लिए इन्हें और 20 करोड़ों लोगों की क्या जरूरत? वैसे भी सनातनी परंपरा में तो मंदिरों से भी पहले पेड़ों की पूजा की जाती थी? तो अगर हम वाकई सनातनी हैं तो स्वयं अपने कर्तव्य को पूरा करें, फिर दूसरों को ज्ञान दें।
पुनश्च... हाल ही में दुनिया की सबसे स्वच्छ नदी टेम्स में पैर धोते एक युवक का वीडियो वायरल हुआ था। बताने की जरूरत नहीं कि वह भारतीय मूल का युवक था। लदंन प्रशासन ने युवक पर जुर्माना लगाकर भविष्य में ऐसा न करने के प्रति सख्ती से आगाह किया था। तो नदियों की पूजा ऐसे भी तो की जा सकती है?