शनिवार, 16 मार्च 2024

गब्बर, चुनाव और साम्बा की होशियारी...!

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( Disclaimer: होली पर गब्बर घिस-घिसकर बहुत घिसा-पिटा हो गया है, मगर फिर भी ऐसे घिसे-पिटे सब्जेक्ट वैसे ही चलते रहते हैं, जैसे घिसे-पिटे नेता...। तो इसे पढ़कर वैसे ही भूल जाइए, जैसे हम इलेक्टोरल बॉन्ड के महाघोटाले को भूल जाएंगे...)
  

By Jayjeet Aklecha

गब्बर को गलतफहमी है कि 'होली कब है, कब है होली' जैसा कुछ कहने के बजाय 'चुनाव कब है, कब है चुनाव' कहने से उसे चुनाव का टिकट मिल जाएगा। टिकट दल बदलने से मिलता है, जुमले बदलने से नहीं। और उसे इस बात की और भी गलतफहमी है कि डकैत होना उसकी एडिशनल क्वालिफिकेशन है। डकैत की ड्रेस पहनने भर से टिकट मिल जाता तो इलेक्टोरल बॉन्ड की डकैती की जरूरत ही क्यों होती! सोचने की बात है...! गब्बर ने अपनी जात नहीं बताई... डकैत तो डकैत होता है। उसकी क्या जात और क्या पात? लो, ऐसी नैतिकता का ऐसा झंझट तो अपन वोटर लोग भी नहीं पालते और ये डकैत होकर पाले हुए हैं। शायद, इसीलिए नेताओं के बीहड़ों में इसके डकैतपने की कोई औकात नहीं है। तो टिकट कैसे मिलेगा, कैसे मिलेगा टिकट? भाईसाब, रामगढ़... मोबाइल में घुसे पड़े नल्ले साम्भा के मुंह से कुछ फूटा...। पहाड़ी की चोटी पर अब वह केवल नेटवर्क के मारे ही बैठता है। क्याssssss? रामगढ़ssssss। रामगढ़ का कनेक्शन बताइए और टिकट पाइएsssssssss। साम्भा भी उतना ही जोर से चिल्लाया। वाह, साम्भा के मुंह से पहली बार कोई कायदे की बात फूटी है। टीवी चैनलों पर न्यूज टाइप की चीजें देखकर आदमी ज्ञानी भी हो लेता है... मॉरल ऑफ द स्टोरी फ्रॉम द ग्रेट साम्बा...जिसके पास धेले का भी काम नहीं, वह न्यूज चैनलों पर एंटरटेनमेंट जरूर करें। बीच-बीच में गजब का ज्ञान भी मिल जाता है। चलते-चलते... कांग्रेस तो दो बोरी गेहूं के बदले ही टिकट देने को तैयार है, मगर साम्भा ने चेताया, भाई साब ले मत लेना, अभी तो आप जमानत पर बाहर है। वह भी जब्त हो जाएगी। एक तो कांग्रेस, ऊपर से ईडी का झमेला...। (देखो तो जरा साम्भा को, नीम और करेला की कहावत का इल्म भी आ गया... )

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रविवार, 10 मार्च 2024

कांग्रेस की आत्मा तो अजर-अमर है! बस देह बदलकर भाजपा में प्रवेश कर रही है...!!

 

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By Jayjeet Aklecha

 शुरुआत मशहूर व्यंग्यकार शरद जोशी जी की इन पंक्तियों से... कांग्रेस अमर है, वह मर नहीं सकती। उसके दोष बने रहेंगे और गुण लौट-लौट कर आएंगे। जब तक पक्षपात, दोमुंहापन, पूर्वग्रह, ढोंग, दिखावा, सस्ती आकांक्षा और लालच कायम है, इस देश से कांग्रेस को कोई समाप्त नहीं कर सकता। कांग्रेस कायम रहेगी।


नित दिन जब खबर आती है कि अमुक कांग्रेसी ने भाजपा ज्वॉइन कर ली है तो यह भाजपा मुक्त भारत की दिशा में एक और ठोस कदम होता है। क्या कांग्रेसियों ने साजिश रच रखी है भाजपा को खत्म करने की? वाकई, राजनीति में कांग्रेसियों का कोई मुकाबला नहीं! ऐसा जाल बिछाया कि कांग्रेस मुक्त भारत करते-करते भाजपाइयों ने अनजाने में देश को भाजपा मुक्त कर दिया।

मैं उस भविष्य की ओर देख रहा हूं, जब देश में केवल दो पार्टियां होंगी - भाजपा () और भाजपा (सी) यानी भाजपा (ओरिजिनल) और भाजपा (कांग्रेस) कई लोगों को आशंका और उम्मीद है कि भविष्य में हमारा भारत महान चीन की तर्ज पर एक पार्टी सिस्टम पर जा सकता है और वह पार्टी होगी भाजपा (सी) यकीन मानिए, इसमें भाजपा की केवल देह होगी, भीतर आत्मा तो कांग्रेस की ही होगी।
 

आजादी के बाद कांग्रेस ने जो संघर्ष किया है, उसे भाजपा कभी नहीं समझ सकती।। शरद जोशी जी द्वारा गिनाए गए नैतिक पतन के तमाम आदर्श उसे स्वयं अपने हाथों से गढ़ने पड़े। भाजपा किस्मतवाली रही कि उसे नैतिक पतन के ये गुण विरासत में मिल गए। उसे आजादी के लिए संघर्ष करना पड़ा और ऐसे उच्च आदर्शों के लिए। बस, उसे कांग्रेस को अपने भीतर समाने की जरूरत थी। बेशक, यह बेहद मुश्किल था। पर भाजपा को साधुवाद! उसने कांग्रेस के गुणों को अपनाने में 10 साल भी नहीं लगाए।

आज अटल जी जहां कहीं भी होंगे, क्या सोच रहे होंगे? दु:खी हो रहे होंगे या खुश हो रहे होंगे? मुझे लगता है कि वे यह सोच-सोचकर खुद को भाग्यशाली मान रहे होंगे कि वे ' पार्टी विद डिफरंस' की ऐसी मौत अपनी आंखों से देखने से बच गए। आडवाणीजी एक बार फिर से अटलजी की किस्मत पर रश्क कर सकते हैं...!

समापन भी शरद जोशी की पंक्तियों से ही... दाएं, बाएं, मध्य, मध्य के मध्य, गरज यह कि कहीं भी किसी भी रूप में आपको कांग्रेस नजर आएगी। इस देश में जो भी होता है, अंततः कांग्रेस होता है। जनता पार्टी (आज पढ़ें भारतीय जनता पार्टी) भी अंततः कांग्रेस हो जाएगी।

 (Disclaimer : विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

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गुरुवार, 29 फ़रवरी 2024

News Satire : भाजपा को नेस्तनाबूद करने के लिए राहुल का आखिरी मास्टरस्ट्रोक!

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By Jayjeet

राहुल गांधी ने अपनी पार्टी कांग्रेस को बचाने के लिए मास्टर स्ट्रोक चलने की तैयारी कर ली है। यह ऐसा मास्टर स्ट्रोक है जिससे ‘भाजपा मुक्त भारत' की स्थिति बन सकती है। इससे भाजपा की सांसें फूल गई हैं। 

राहुल के एक क़रीबी सूत्र के अनुसार अगले कुछ दिनों में राहुलजी ज़बरदस्ती भाजपा में शामिल होंगे। वे उसके पक्ष में जगह-जगह जाकर जमकर प्रचार भी करेंगे।

राहुल के इस मास्टर स्ट्रोक के पीछे आख़िर गणित क्या है? इसको लेकर एक सूत्र ने बताया कि मोदी कांग्रेस मुक्त भारत की बड़ी-बड़ी बातें करते आए हैं। मोदी के इस घमंड को चूर-चूर करने के लिए ही राहुलजी यह मास्टर स्ट्रोक चलेंगे।

राहुल के इस मास्टर प्लान की जानकारी लीक होते ही बचे-खुचे कांग्रेसियों में ख़ुशी की लहर दौड़ गई है। कांग्रेस के एक सीनियर लीडर ने अपनी ख़ुशी छिपाते हुए कहा, "गांधी परिवार अपने बलिदान के लिए जाना जाता है। इंदिराजी से लेकर राजीवजी तक ने देश के लिए अपनी जान कुर्बान कर दी। अब राहुलजी कांग्रेस को बचाने के लिए पार्टी छोड़कर जाएंगे। इससे बड़ा बलिदान और क्या होगा? हम कांग्रेसी इसे हमेशा याद रखेंगे।'

हालांकि राहुल के भाजपा में शामिल होने की ख़बरों से भाजपा में दहशत का माहौल है। पार्टी के प्रवक्ता सांबित पात्रा ने रूंधे हुए गले से कहा, "अगर ये ख़बरें सच हैं तो दुर्भाग्यपूर्ण है। हमें नहीं पता था कि कांग्रेसी इतना नीचे गिर जाएंगे।' 

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(Disclaimer: यह केवल एक व्यंग्य बतौर लिखा गया है।)


रविवार, 25 फ़रवरी 2024

ग्लोबल ब्रांड्स तो बेकार की चीज हैं!



apple park
By Jayjeet Aklecha 

मेरा एक मित्र हाल ही में अमेरिका के कैलिफोर्निया से लौटा है। वही स्टेट, जिसने दुनिया को अनेक टेक्नोलॉजिकल इनोवेशन दिए हैं। भ्रमण के दौरान उसके गाइड ने वो चीजें दिखाईं, जो मित्र के लिए अचरज का विषय थीं। मित्र को उसने वहां के आलीशाल चर्च नहीं दिखाए, बल्कि दिखाया वह रेस्तरां जहां से दुनिया में पहली बार कोई ई-मेल भेजा गया था। उसे दिखाए गए वे गैरेज जहां से एपल और माइक्रोसॉफ्ट जैसे ग्लोबल ब्रांड्स निकले। गूगल का वह हेडक्वार्टर भी दिखाया, जहां काम करना आज भारत सहित दुनिया के अधिकांश युवाओं के लिए किसी सपने से कम नहीं है। और भी बहुत कुछ। ये सब अमेरिकियों के लिए तीर्थस्थल जैसे हैं, जिन पर वे गर्व करते हैं...।

आइए, भारत लौटते हैं। यहां हम क्या दिखाते हैं? वह चट्टान जहां किसी पांडव पुत्र ने तपस्या की थी! वह तालाब जहां हमारे किसी देवता ने स्नान किया था! वह पेड़ जहां किसी संत ने घनघोर तपस्या की थी! बेशक, ये हमारी सांस्कृतिक विरासतें हैं, जिन पर हमें गर्व होना चाहिए। लेकिन कितना? और कब तक? और फिर कब तक हम केवल इन्हीं विरासतों पर गर्व करते रहेंगे? 

हां, हम गर्व के नए स्थल पैदा कर रहे हैं। करोड़ों रुपए से धार्मिक परिसरों का निर्माण कर रहे हैं। इसमें बुराई कुछ नहीं। अच्छा ही है। सुव्यवस्थित होने चाहिए सभी बड़े धर्मस्थल। पर इनके साथ ही क्या आने वाले दशकों में देश गूगल या एपल या माइक्रोसाफ्ट परिसर जैसे किसी परिसर की उम्मीद कर सकता है, जहां काम करना दूसरे देशों के युवाओं का भी सपना बन सके और हमारे युवा विदेश भागने के बजाय यहीं पर काम करने में गर्व महसूस कर सकें? यह फिलहाल तो असंभव के विरुद्ध इसलिए है, क्योंकि अभी तो हमारा देश एक अदद 'अपना मोबाइल' तक के लिए तरस रहा है। एपल-सैमसंग तो छोड़िए। हमारे पास अपना 'रेडमी' तक नहीं है!

हम फाइव ट्रिलियन इकोनॉमी की बात करते हैं। मुश्किल नहीं है, पर दिक्कत एप्रोच की है। हमारे माननीय प्रधानमंत्री जी ने पिछले 10 दिन में तीन बार देश को विकास के उच्च पायदान पर ले जाने की बात कही है। पर कहां से की है? ये बातें उन्होंने धार्मिक या सांस्कृतिक कार्यक्रमों में कही है। यह हमारी एप्रोच में विरोधाभास का एक और उदाहरण है। (मैंने उन्हें इसरो के अलावा किसी अन्य वैज्ञानिक या रिसर्च संस्थान में जाते बहुत कम देखा है। अगर आपने देखा तो मुझे करेक्ट कीजिएगा। वैसे जाएं भी तो कहां? ऐसी जगहें हैं भी? समस्या यह भी है…!)
 
अगले कुछ दशकों में हमारे पास दुनिया के धर्मप्रेमियों को दिखाने के लिए ढेर सारे शानदार भव्य धर्म परिसर होंगे, कई दिव्य लोक होंगे। लेकिन आशंका है कि तब भी हमारे पास न गूगल जैसा कुछ होगा, न एपल जैसा कुछ होगा। तब भी हमारे पास न ऑक्सफोड होगा, न स्टैनफोर्ड होगा, न कोई कैम्ब्रिज होगा। 

और हां, क्या इसके लिए हम सिर्फ सरकार को ही जिम्मेदार ठहराएं? पार्टियों को ही दोष दें? मैंने पहले भी लिखा है कि सरकारें और पार्टियां वही देंगी तो हम चाहेंगे। हमें मंदिर-मस्जिद चाहिए, वे हमें मंदिर-मस्जिद देंगे। हमें कुछ और चाहिए, तो वे कुछ और देंगे। फिलहाल तो हम सब धर्ममय होकर खुश हैं तो वे हमें धर्म की खुराक ही दे रहे हैं। चलिए, इसी में खुश रहते हैं। लगे हाथ यह भी जान लेना मुनासिब होगा कि हमारा इतना धर्ममय होना हमें पुण्यात्माओं में नहीं बदल रहा है। व्यक्तिगत शूचिता में हम कहीं पीछे हैं। ट्रांसपेंरेसी इंटरनेशनल के अनुसार हम भ्रष्टाचार के मामले में 93वें स्थान पर है। 

पुनश्च... ऊपर लिखा सब भूल जाइए। कम से कम यही सुनिश्चित कर लिया जाएं कि हमारे वे धार्मिक-सांस्कृतिक स्थल जिन पर हमें बहुत गर्व हैं, टूरिज्म के ग्लोबल सेंटर बन जाएं तो हमारी इकोनॉमी एपल और माइकोसॉफ्ट की कम्बाइंड वैल्यू (2.84+3.06 =5.90 ट्रिलियन डॉलर) के आजू-बाजू पहुंच सकती है। 

(तस्वीर : यह एपल का क्यूपर्टिनो, कैलिफोर्निया स्थित हेडक्वार्टर है। पूरा सोलर एनर्जी से संचालित है। बीच में ढेर सारे पेड़-पौधे। पेड़-पौधों की पूजा हम करते हैं, सार-संभाल वे करते हैं…!)

#जयजीत अकलेचा

शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2024

होली कब है, कब है होली : ऐसे ही 7 डायलॉग्स से सीखें गब्बर के मैनेजमेंट फंडे ............ ( Holi kab he )



By Jayjeet

ह्यूमर डेस्क। गब्बर सिंह केवल डाकू नहीं थे, बल्कि मैनेजमेंट के गुरु भी थे। वो तो केवल हम लोगों के दिमाग में मैनेजमेंट की बातें ठूंसने के लिए, हमें इंस्पायर करने के लिए उन्हें बंदूक उठानी पड़ी। 'होली कब है, कब है होली' (Holi kab he, kab he holi) जैसे उनके डायलॉग्स के जरिए सीखते हैं Guru Gabbar से मैनेजमेंट के कुछ फंडे ... 

1.होली कब है, कब है होली….
गुरु गब्बर अक्सर यह डायलॉग क्यों बोलते हैं? हमें यह सिखाने के लिए कि हमेशा भविष्य की प्लानिंग करके रखो। जो-जो इवेंट्स आने वाले हैं, उन्हें हमेशा दिमाग में रखो। साथ ही अपने लक्ष्य को ओझल मत होने दो। इसलिए बार-बार दिमाग को उंगली करते रहो, जैसे होली कब है, कब है होली… ।

2. जो डर गया, समझो मर गया…
गुरु गब्बर इसके जरिए यह कहना चाहते हैं कि आप चाहे कोई भी काम करो, आपको जिंदगी में रिस्क तो लेनी होगी। अगर आप रिस्क लेने में डर गए तो समझो आपके सपने भी उसी समय से मर गए।

3. यहां से पचास-पचास कोस दूर जब रात को बच्चा रोता है…
अपने इस बेहद इंस्पायरिंग डायलॉग के जरिए गुरु गब्बर दो बातें कहना चाहते हैं- एक, अपने ब्रांड/इमेज को इतना मजबूत बनाओ कि सब पर उसका प्रभाव हमेशा बना रहे। दूसरी, आपका अपना जो ब्रांड है, उस पर प्राउड करो, उसकी इज्जत करो। आप नहीं करोगे तो दूसरा भी नहीं करेगा।

4. अरे ओ साम्बा, कितना इनाम रखे है सरकार हम पर…
इसमें भी गुरु गब्बर खुद के ब्रांड को प्रमोट करने का ही ज्ञान दे रहे हैं। उनका कहना है कि बार-बार अपनी ब्रांडिंग करना आज के कॉम्पिटिशन के जमाने में बहुत महत्वपूर्ण है। नहीं करोगे तो कहीं के नहीं रहोगे।

5. कितने आदमी थे …
गुरु गब्बर कहना चाहते हैं कि अगर आपको अपने प्रतिस्पर्धी से आगे निकलना है तो पहले उसकी टीम और उसकी ताकत का आंकलन करना जरूरी है। इसीलिए वे बार-बार पूछते थे, कितने आदमी थे…

6. ले, अब गोली खा…
यहां गुरु गब्बर की प्रैक्टिकल सोच सामने आती है। वे यह कहना चाहते हैं कि कई बार ऑर्गनाइजेशन के हित में सख्त निर्णय भी लेने पड़ते हैं। यहां इमोशन वाला व्यक्ति फेल हो जाएगा। वैसे भी बीमार व्यक्ति को तो कड़वी गोली ही खिलाई जाती है।

7. छह गोली और आदमी तीन… बहुत नाइंसाफी है यह…
इसके पीछे गुरु गब्बर का सीधा-सा फंडा है – अगर आप लीडर की भूमिका में हैं तो अपने मातहतों को यह विश्वास दिलाते रहो कि आप केवल सही चीज में ही नहीं, नाइंसाफ टाइप की चीज में भी अपनी टीम के साथ है।

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