By Jayjeet Aklecha
पता नहीं क्यों, आज हम हर बात में खेल-तमाशे ढूंढ लेते हैं। अब लाखों-करोड़ों
लोगों को ग्रोक (Grok) में मजा आ रहा है। कई लोग इस गलतफहमी में हैं कि देखिए कैसे
ग्रोक ने मोदी और मोदीभक्तों की पोल खोल दी। हममें से किसी को इस बात का एहसास भी नहीं
है कि इस कथित पोल-पट्टी पर अमेरिका में मस्क बैठे-बैठे हंस रहे हैं। आज मोदी विरोधी
लोगों को आनंद आ रहा है, कल राहुल-गांधी परिवार के विरोधियों को आनंद आएगा।
दरअसल, ग्रोक वह चैटबॉट है जो सीखने की प्रोसेस में है। कोई भी एआई बॉट
रियल वर्ल्ड के डेटा से ही सीखता है। मस्क ने ट्विटर को खरीदा ही इसलिए था कि वे अपने
आने वाले एआई मॉडल को उसके जरिये सिखा सकें (मस्क के लिए ट्विटर को खरीदना वैसा ही
था, जैसे हम राह चलते कोई छोटी-मोटी चीज खरीद लेते हैं)। मस्क को ट्विटर की खरीदी से
पहले ही एहसास हो गया था कि किसी भी एआई बॉट को सिखाने के लिए ट्विटर से बड़ा सोर्स
कुछ और नहीं होगा। साल 2022 की शुरुआत में ही उन्होंने कह दिया था कि ट्विटर (अब
X) की हर दिन की 50 करोड़ मानव पोस्ट किसी भी एआई को सीखने के लिए एक बहुत बड़ा खजाना
है।
मेरा अनुमान है कि उनके एआई बॉट को ट्विटर (X) की सामान्य पोस्ट्स से जितना
सीखना था, सीख लिया। अब हो सकता है यह ग्रोक के लिए डायरेक्ट अग्रेसिव लर्निंग की प्रोसेस
का दौर हो। और इसके लिए क्या करना था? बस, बाजार में एक पॉलिटिकल ट्रेंड फेंकना था।
भारत में यह करना बहुत आसान है। यह दुनियाभर के समझदार लोगों को पता है। मस्क की कंपनी
ने शायद यही किया है। करोड़ों लोगों ने दो-चार दिन में ही बैठे-ठाले, फ्री में ग्रोक
को बहुत-सी बातें सिखा दी हैं। फिर हम सब मूर्ख फिर से एक कॉर्पोरेट घराने के टूल्स
बन गए।
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