गणतंत्र दिवस के मायने अक्सर पूछे जाते हैं और हम सब फर्जी टाइप के जवाब देते हैं। गणतंत्र दिवस (republic-day) का हमारी जिंदगी में क्या मतलब है, इसका असली खुलासा तो 8 साल के एक बच्चे की डायरी से होता है। इस डायरी के कुछ पन्ने humourworld.com के हाथ लगे हैं। पेश है इसका सार :
प्रिय डायरी,
26 जनवरी को हमारे घर में खूब खुशी का माहौल होता है। पापा एक दिन पहले ही मम्मी से कह देते हैं, रेखा, कल छुट्टी है, जरा देर तक सोऊंगा।
इस बार भी पापा 9 बजे उठे हैं। नाश्ते के लिए बाहर से कचौरी-समोसे लाए। आते समय मेरे लिए प्लास्टिक की पन्नी वाले चार-पांच तिरंगा झंडे भी ले आए। कहा – जा तेरी साइकिल पर लगा लेना। अभी एक लगाना। गिर जाए तो फिर दूसरा लगा लेना। मम्मी ने कहा – ये क्यों लाकर देते रहते हो। सब कचरा करता रहेगा। पापा ने कहा- अरे, आज गणतंत्र दिवस है। बच्चों को हमारे तिरंगे के मायने पता होने चाहिए।
फिर जब मेरा झंडा गिर गया तो कहा- चिंटू, नीचे की चीज नहीं उठाना। नीचे बहुत गंदगी रहती है। दूसरा लगा लें, चार-पांच इसीलिए तो लाया हूं।
मम्मी ने खाना खाते-खाते पापा से कहा, – सुनो जी, आज कोई सेल चल रही है। 50 परसेंट तक डिस्काउंट मिल रहा है। मैंने कहा – मम्मी, रिपब्लिक डे सेल है। कोई ऐसी-वैसी सेल नहीं। पापा ने हंसकर कहा- देखा रिपब्लिक डे के बारे में तुमसे ज्यादा जानकारी तो अपने चिंटू को है।
हम सेल में जाने को तैयार हो रहे हैं। पापा बाहर के मौसम को देखकर कहते हैं- कमबख्त ये रिपब्लिक डे को भी रविवार को ही मरना था। एक दिन की छुट्टी मारी गई। सोमवार को आता तो तीन दिन की लगातार छुट्टी हो जाती। कहीं हो आते।
मम्मी ने कहा- तो ले लो। कल-परसो ले लो। ऑफिस के काम का क्या? होता रहेगा। नहीं भी होगा तो क्या फर्क पड़ेगा। पापा ने हामी में सिर हिला दिया।
तो अब तीन दिन हमारे साथ रहेंगे। … पिछली 15 अगस्त को भी तो ऐसा ही हुआ था।
(Disclaimer : यह खबर कपोल-कल्पित है। इसका मकसद केवल स्वस्थ मनोरंजन और सिस्टम पर कटाक्ष करना है, किसी की मानहानि करना नहीं।)
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