By ए. जयजीत
मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बहुत संवेदनशील हैं, हां वाकई...! गत सप्ताह जैसे ही सुंदरलाल बहुगुणा के निधन की खबर आई, उन्होंने तत्काल ट्विटर पर उनके प्रति संवेदना व्यक्त की। दूसरे नेता भी पीछे ना रहे। सब ट्विटाने लगे। वाह, क्या पल थे! प्रकृति का एक संरक्षक विदा हुआ और ट्विटर संवेदनाओं से कलरव (tweets) करने लगा। लेकिन यहां मप्र के मुख्यमंत्री का कलरव ज्यादा मायने रखता है। क्यों? क्योंकि इन्हीं के मप्र में, माफ कीजिएगा, हम सबके मप्र के एक इलाके में हमें फिर से एक सुंदरलाल बहुगुणा की जरूरत महसूस हो रही, कहीं शिद्दत से... यह क्षेत्र है मप्र के छतरपुर जिले का बक्सवाहा।
बक्सवाहा के जंगल की जमीन बहुत ही बहुमूल्य है। अब और भी बहुमूल्य हो गई है। उसके नीचे छिपे हैं हीरे, अनगिनत। हीरे बहुमूल्य होते हैं। मगर इतने भी नहीं कि इन हीरों को पाने के लिए उन पेड़ों को नष्ट कर दिया जाए, उस पर्यावरण को भ्रष्ट कर दिया जाए, जो अनमोल है। आज से दो साल पहले तत्कालीन कमलनाथ सरकार ने एक निजी कंपनी को बक्सवाहा के जंगलों की हीरा भंडार वाली 62 हेक्टेयर जमीन को 50 साल के लिए लीज पर दे दिया था। अब कंपनी ने कुछ सौ हेक्टेयर जंगल और मांगा है, ताकि वह वहां भी खदानों से निकले मलबे को डंप कर सके। किसी जंगल की वर्जिन भूमि को माइनिंग के लिए लीज पर देने का मतलब जानते हैं? यह उतना ही भयावह हो सकता है, जितना कि किसी निहत्थी निर्भया का हवसियों के हाथों में पड़ जाना। जंगलों में हीरों या खनिज का 'खनन' इसी 'हवस' का पर्यायवाची है।
तो इतना पढ़ने और लिखने के बाद सवाल अब भी रहा अनुत्तरित का अनुत्तरित। करना क्या है? अब से करीब सप्ताह भर बाद विश्व पर्यावरण दिवस है। हमेशा की तरह हम सब इस दिवस की औपचारिकता निभाने के लिए तैयार बैठे हैं। बीते दिनों ऑक्सीजन की मारामारी के बीच हम सबको पेड़ों के साथ ऑक्सीजन को नत्थी दिखाने का भी अच्छा मौका मिल गया है। तो तमाम नेता भी इस दिन एक पौधा तो जरूर रोपेंगे। उम्मीद है जब मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक पौधा रोपेंगे तो उस पौधे के बड़े-बुजुर्ग भी उन्हें जरूर याद आएंगे जो बक्सवाहा के जंगलों में अपने संभावित कत्लेआम इंतजार कर रहे हैं। इन बड़े-बुजुर्गों की संख्या करीब सवा दो लाख आंकी गई है। आखिर शिवराज सिंह मप्र के कई बुजुर्गों को तीरथ करवाकर 'बेटे' का स्वतमगा हासिल कर चुके हैं। इतिहास उन्हें एक और तमगा हासिल करने मौका दे रहा है। फिर विश्व पर्यावरण दिवस का मौका भी सामने है। सुंदरलाल बहुगुणा को याद करने वाला उनका ट्वीट भी ट्विटर के आर्काइव में अब तक जिंदा है...
उम्मीद को एक मौका तो देना चाहिए...हालांकि कड़वी राजनीतिक और वित्तीय हकीकत और तथाकथित विकास का रटा-रटाया फॉर्मूला इस उम्मीद पर भारी नजर आ रहा है...
(लेखक पत्रकार और खबरी व्यंग्यकार हैं।)
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