डीएमके के दो नेताओं द्वारा सनातन धर्म पर दिए गए बयानों से सबसे ज्यादा आनंद किस राजनीतिक दल को आ रहा होगा? बताने की जरूरत नहीं। वही जो सनातन धर्म का सबसे बड़ा पैरोकार होने का दावा करता है। यह राजनीति की विडंबना भी है और मजबूरी भी।
पिछले कुछ सालों से धर्म राजनीति की मुख्यधारा में आ गया है। नेताओं के लिए अब धर्म का इस्तेमाल करना, धर्म की पैरोकारी करना या किसी धर्म विशेष को गालियां देना आम हो गया है तो इसकी वजह भी बहुत स्पष्ट है। धर्म पर अपनी सुविधा से बात करना नेताओं के लिए बड़ा आसान हो जाता है। सत्ता में रहते हुए आपने क्या किया, इसके लिए कोई आंकड़े नहीं देने हैं। आप क्या नहीं कर पाए, इसको लेकर कोई सफाई नहीं देनी है। धर्म आपको अपने तमाम सियासी पापों को धोने का एक दरिया उपलब्ध करवा देता है।
डीएमके के दो नेताओं के बयानों पर आते हैं। तमिलनाडु की राजनीति से गैर वाकिफ लोगों को यह गलतफहमी हो सकती है कि सनातन धर्म के खिलाफ ये बयानबाजी आकस्मिक और नासमझी में की गई बयानबाजी है। लेकिन हकीकत तो यह है कि ये बयान उन नेताओं ने बहुत ही सोच-विचारकर और जानबूझकर तय रणनीति के तहत दिए हैं। तमिलनाडु की जमीन उस पेरियारवाद की प्रवर्तक रही है, जिसने हिंदू धर्म की जातिवादी व्यवस्था की सबसे ज्यादा और सबसे प्रभावी मुखालफत की है, इतनी प्रभावी कि आज वह वहां की राजनीति की मजबूत बुनियाद है। वहां की दोनों प्रमुख पार्टियां डीएमके और एआईडीएमके दोनों पेरियार के 'सेल्फ रिस्पेक्ट मूवमेंट' से ही निकली हैं। ऐसे में वहां तो दोनों के बीच पेरियार की विचारधारा के अनुरूप रिएक्ट करने की होड़ लगी रहती है। जो इस होड़ में आगे रहता है, वही सियासी बाजी भी मारता है।
हिंदू धर्म को 'सनातन धर्म' के रूप में इस्तेमाल करने के ताजे 'फैशन' से वहां के नेताओं, खासकर डीएमके जैसे कट्टर पेरियारवादी राजनीति करने वालों के लिए और भी आसान हो गया है। हिंदू शब्द में अनेक सुधारवादी अंतरधाराएं रही हैं, जो उन्हें कई बार फ्रीहैंड रिएक्शन से रोक देती है। लेकिन 'सनातन' उन्हें उस कथित 'मनुवाद' के करीब लगता है, जिसका विरोध उनकी राजनीति को उर्वर बनाते आया है। इसलिए डीएमके के दोनों नेताओं ने अपनी टिप्पणियों में बहुत ही शिद्दत के साथ 'सनातन' शब्द का इस्तेमाल किया है, 'हिंदू' शब्द का नहीं।
तो मानकर चलिए, अगर भाजपा ने 350 सीटों के लक्ष्य के लिए सनातन धर्म की पैरोकारी को अपनी राजनीति का आधार बनाया है तो डीएमके व उनके गठबंधन की नजर तमिलनाडु में लोकसभा की सभी 39 सीटों पर है और इसके लिए सनातन धर्म के खिलाफ बयानबाजी उनका ताजा हथियार है। यकीन मानिए, यह 'सनातन धर्म' पर हमले की केवल शुरुआत भर है और भाजपा के लिए 2024 के अभी से जश्न मनाने की शुरुआत भी। क्योंकि चुनाव जीतने के लिए धर्म ने आखिर सभी को जवाबदेह मुक्त एक आसान तरीका थमा दिया है।
लेकिन चलते-चलते एक सवाल राहुल गांधी से भी... 'नफरत' को लेकर राहुल गांधी का स्टैंड मुझे पसंद है। लेकिन नई परिस्थितियों में क्या वे यह स्पष्ट करेंगे कि भाजपावादियों की नफरत खराब और उनके गठबंधन के एक सहयोगी द्वारा फैलाई जा रही नफरत अच्छी!! यह भला कैसे?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
Thanks for your comment