दो दिन पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में कहा कि वे ऐसी सौर ऊर्जा योजना लॉन्च करने जा रहे हैं, जिससे आने वाले वर्षों में सभी लोगों के बिजली के बिल जीरो हो जाएंगे।
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इसे उसी तरह का एक और जुमला भर मान लिया जाएं, जैसे कि किसानों की आय दोगुनी करने, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने, देश को मैन्युफैक्चरिंग हब बनाकर लाखों नौकरियां सृजित करने जैसे वादे भी महज जुमले ही रहे!
बेशक, प्रधानमंत्री की ताजी घोषणा को भी जुमला माना जा सकता है। लेकिन इसकी और अन्य तमाम जुमलों की हम घोर निंदा करें, उससे पहले जरा कांग्रेस के वादों पर भी एक नजर दौड़ा लेते हैं, खासकर मप्र चुनावों के संदर्भ में- सरकार बनने पर किसानों का कर्ज माफ, 100 यूनिट तक बिजली मुफ्त, तीन लाख नई सरकारी नौकरियां, पुरानी पेंशन की बहाली...
कांग्रेस देश की सबसे पुरानी पार्टी है। इस प्राचीनता पर अनेक कांग्रेसी अक्सर गर्व भी करते हैं। होना भी चाहिए। लेकिन पुरानी का मतलब क्या पुरातनपंथी होना भी है? शायद कांग्रेस यही मानती है और खासकर बीते कुछ सालों में तो कांग्रेस ने स्वयं को यही साबित करने के लिए जी जान लगा दी है। भारत दुनिया का सर्वाधिक युवा देश है, लेकिन विकसित देश बनने की करोड़ों युवाओं की आकांक्षाओं लिए आपके पास यंग और इनोवेटिव आइडियाज नहीं हैं। घिसे-पिटे और थके हुए आइडियाज लेकर आप चुनाव जीतने उतरते हैं और उतरे हैं (दुर्भाग्य से ओल्ड पेंशन योजना, मुफ्त बिजली जैसे आइडियाज ने आपको कुछ राज्यों में चुनाव जितवा भी दिए)।
दुनिया के तमाम विकसित देशों की इकोनॉमिक प्लानिंग पर नजर डालेंगे तो पाएंगे कि वे सतत पेंशन और सरकारी नौकरियों पर खर्च से मुक्ति पाने की दिशा में आगे बढ़े हैं। वे पेंशन से इनकार नहीं करते, लेकिन इसकी गारंटी के लिए उनके पास इनोवेटिव आइडियाज हैं (जैसे हमारे यहां एनपीएस है और जिसकी खामियों को दूर कर इसे बेहतर किया जा सकता है, बनिस्बत ओल्ड पेंशन के)। इन विकसित देशों ने निजी क्षेत्र की प्रोडक्टिविटी पर ज्यादा विश्वास किया है, जबकि सप्ताह भर पहले एक कांग्रेसी नेता जोर-शोर से निजीकरण के खिलाफ गला फाड़ रहे थे। निजीकरण के विरोध में नारे लगाने का काम तो अब ‘प्रागैतिहासिक' ट्रेड यूनियन लीडर्स तक छोड़ चुके हैं। लेकिन दुर्भाग्य से कई कांग्रेसी नेता अब भी मोहनजोदड़ो युग में जी रहे हैं, इसके बावजूद कि देश में ग्लोबलाइजेशन और प्रकारांतर में निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने का काम उन्हीं के एक बेहद शांत नेता (और जिन्हें कम से कम मैं चमत्कारी भी मानता हूं) की पॉलिसी का नतीजा था। उस पर गर्व करने और उसे आगे बढ़ाने के बजाय वे प्रतिगामी बनकर पूरे देश और उसकी इकोनॉमी को पीछे धकेलने पर उतारू हो रहे हैं।
बेशक, यहां भाजपा को कोई क्लीन चिट नहीं दी जा रही। अन्य तमाम दलों की तरह यह भी रेवड़ियां बांटने और इकोनॉमी का सत्यानाश करने में में पीछे नहीं है, लेकिन उसने आयुष्मान योजना, मुफ्त अनाज योजना और लाड़ली बहना जैसी स्कीमें शुरू कीं जो कल्याणकारी होने के साथ-साथ अंतत: मेडिकल इकोनॉमी, एग्री इकोनॉमी और (लाड़ली बहनाओं का सारा पैसा बाजार में आने की संभावनाओं के मद्देनजर) बाजार को प्रोत्साहन देने वाली है।
पुनश्च... कांग्रेस का एक वादा दो रुपए किलो की दर पर गोबर खरीदने का भी है। इस गोबर आइडिया के बजाय वह केवल इतना वादा भी कर देती कि हर किसान परिवार को एक भैंस मुफ्त दी जाएगी तो शायद इसी से तस्वीर बदल जाती, ग्रामीण अंचलों की भी और कांग्रेस की भी... आज कांग्रेसी इस जमीनी हकीकत से भी बावस्ता नहीं हैं कि दो रुपए किलो में तो स्वयं किसान भी गोबर खरीदने को तैयार हो जाएंगे, बशर्ते गोबर उपलब्ध तो हो...!!!