By Jayjeet Aklecha/ जयजीत अकलेचा
हमारे राजनीतिक दल नूरा-कुश्ती खेलने में माहिर हैं। एक ने धर्म को पकड़ रखा है तो दूसरे ने जाति को...। हम यानी मासूम रियाया उनके हथियार बनकर ही खुश हैं।
अब गौतम अडाणी का मामला आया है तो यह कांग्रेस और भाजपा में बंट गया है... कोशिश यही है कि यह किसी तरह राजनीति की भेंट चढ़ जाए...। भ्रष्टाचार का इशू ही ना रहे... बस अडाणी ही अडाणी रहे। एक तरफ राहुल बाबा अडाणी के नाम पर हमलावर रहें... और विरोधियों को राहुल पर हमले के मुद्दे तो मिल ही जाते हैं। तो बस अडाणी वर्सेस राहुल वर्सेस मोदी वर्सेस कांग्रेस वर्सेस भाजपा वर्सेस (बीच बीच में केजरीवाल) वर्सेस फलाना वर्सेस ढिकाना... हमारे तमाम नेताओं को यही पसंद है, और हमें तो और भी ज्यादा पसंद हैं।
पर जरा एक चिंदी चिंतन कर लेते हैं...
आरोप है कि अफसरों को 2,200 करोड़ रुपए रिश्वत में दिए गए। क्यों? ताकि वे महंगी बिजली खरीद सकें। किस पैसे से? हमारे पैसे से!
अगर रिश्वत में ही इतना पैसा दिया गया है (हालांकि आरोप है) तो महंगी बिजली खरीदने में कितने अरब वारे-न्यारे हुए होंगे या भविष्य में होंगे? सोचिए! पर हमें कुछ फर्क पड़ता है? नहीं जी। हमें तो बस चिंता रहती है, बंटेंगे तो कट ना जाएं और संविधान लूटकर कोई हमें आरक्षण से विहीन ना कर दें....।
हां, बीच-बीच में हमें फ्रीबीज की चिंता जरूर होती है। कितने हजार करोड़ रुपए उन पर खर्च हो रहे हैं...। ये भी हमारे नेताओं की एक अलग तरह की बदमाशी है..!!! (शायद कई सहमत ना होंगे, मगर करप्शन वाली से बेहतर है...!)
पुनश्च... भ्रष्टाचार पर बंटेंगे तो मिटना तय है, एक ना एक दिन...! और शायद, हमने ठान लिया है...!!!
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