By Jayjeet
बेशक, छोटी-छोटी उपलब्धियों पर हमें खुश होना चाहिए, गर्व करना चाहिए। लेकिन जब मामला देश का हो तो गर्व के साथ-साथ हमें चिंतन भी करना चाहिए।
हम कितने सफल हैं या हम कितने पीछे हैं, इसका कोई तो पैमाना होना चाहिए। हमें चीन को इस पैमाने के तौर पर सामने रखना चाहिए, क्योंकि वह हमारा स्वाभाविक प्रतिद्वंद्वी भी है। अमेरिका से तुलना बेमानी होगी।
चीन के साथ भी तुलना करते समय हमें उसके क्षेत्रफल और वहां की अपेक्षाकृत स्थाई सरकारों के परिदृश्य को ध्यान में रखना होगा। इसलिए उसकी तुलना में हर क्षेत्र में भारत की तीन से पांच गुना तक की कमी को जायज मानना चाहिए। तो भारत के 2 अंतरिक्ष यात्रियों की तुलना में चीन के 8 से 10 अंतरिक्ष यात्रियों का आंकड़ा होता तो मान सकते थे कि हम पीछे कतई नहीं हैं।
लेकिन जब हम अंतरिक्ष में चीन के मिशनों को एक्सप्लोर करते हैं तो पता चलता है कि हम जमीन पर है और चीन आसमान में। वैसे तो चीन के कितने ही स्पेस मिशन हैं, लेकिन हम केवल अंतरिक्ष यात्रियों की ही बात कर लें, तब भी यह अंतर हमसे कहता है कि असल इतिहास रचने के लिए हमें लंबा सफर तय करना बाकी है।
चीन ने अपने मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन की शुरुआत 2003 में की थी। इस लिहाज से तो वह भारत से पिछड़ा हुआ ही माना जाएगा! भारत के राकेश शर्मा तो 1984 में ही अंतरिक्ष की तफरीह कर आए थे, मगर रूसी अंतरिक्ष मिशन के साथ। अब शुभांशु शुक्ला पूरे 41 साल बाद अंतरिक्ष में गए हैं, अमेरिकी मिशन के साथ।
इस दौरान चीन ने क्या किया? उसने अपने स्वदेशी मिशन ‘शेनझोउ' पर काम किया। बीते 22 साल में ही वह 26 अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में भेज चुका है। सारे के सारे उसके स्वदेशी अंतरिक्ष यान ‘शेनझोउ' से गए हैं।
हमें ज्यादातर खबरें इंटरनेशनल अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की ही पढ़ने को मिलती हैं। शुभांशु भी वहीं गए हैं। लेकिन चीन का अपना अंतरिक्ष स्टेशन हैं - तियांगोंग स्पेस स्टेशन। ISS की तरह यह भी अंतरिक्ष में एक स्थाई स्टेशन है। उसके सारे यात्री वहीं जाते हैं, वहीं रहते हैं और वहीं प्रयोग करते हैं। वहां जाना अब चीन का ‘ओल्ड नॉर्मल' बन चुका है।
41 साल के सफर की यह पूरी कहानी देश को शर्मिंदा करने के लिए नहीं है। देश कभी शर्मिंदा नहीं होता। मगर हमारे महान देश के कर्णधारों को इस पर विचार करने के लिए काफी होनी चाहिए, जो अब भी धर्म और जाति को लेकर देश को हलाकान किए रहते हैं।
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