गुरुवार, 10 अक्टूबर 2024

‘AI के लिए कोई मौत नहीं लिखी होगी। यह हमेशा ज़िंदा रहेगी, और फिर हमारे सिर पर होगा एक अमर तानाशाह...’

 

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By जयजीत अकलेचा (Jayjeet Aklecha)

 मशीन लर्निंग के आविष्कारक यानी AI के गॉडफादर कहे जाने वाले जैफ्री . हिंटन को भौतिकी के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार देने का एलान किया गया है। विडंबना यह है कि जैफ्री . हिंटन को AI के आविष्कार पर उतना ही अफसोस रहा है, जितना कि अल्फ्रेड नोबेल को डायनाइट के आविष्कार पर रहा, जितना कि शायद ओपेनहाइमर को जापान पर परमाणु बम गिराने के बाद के वर्षों में हुआ। हालांकि यह भी सच है कि अगर अल्फ्रेड नोबेल डायनामाइट का आविष्कार नहीं करते तो कोई और करता। ओपेनहाइमर परमाणु बम ना बनाते तो कोई और बनाता। इसी तरह हिंटन अगर मशीन लर्निंग का आविष्कार नहीं करते तो कोई और करता।ईश्वरबहुत हाशियार है। उसने मनुष्य नामक प्राणी को जन्मते ही उसके दिमाग मेंविनाशका बटन दे दिया, ताकि सृजन और विनाश का प्राकृतिक सिलसिला बरकरार रहे।


इलॉन मस्क अपने रुतबे वाले उन चंद लोगों में शुमार हैं, जो AI को लेकर लगातार चिंता जताते आए हैं। ऐसे में मशीन लर्निंग के लिए नोबेल पुरस्कार के एलान पर मुझे मस्क याद रहे हैं और याद रहा है कुछ अरसा पहले उनके द्वारा किया गया एक ट्वीट। मस्क ने उसमें कहा था कि इंसानों को उत्तर कोरिया के बजाय AI के बारे में अधिक चिंतित होना चाहिए। मसलन, परमाणु हथियारों के बजाय AI, क्योंकि उनकी नजर में AI परमाणु हथियारों से भी कहीं अधिक घातक है।

वैसे मस्क की नज़र में AI अपने आप में कोई बड़ा ख़तरा नहीं है, वैसे ही जैसे परमाणु ऊर्जा भी अपने आप में घातक नहीं है। ख़तरा तो वह AI है, जिसे अनियंत्रित और बग़ैर नियम-कायदों के खुल्ला छोड़ दिया गया है। उन्होंने इस परिदृश्य को एक तानाशाह के शासन से भी बदतर बताया है: ‘अगर कोई तानाशाह बहुत दुष्ट है, तब भी एक एक दिन उसका मरना तय होता है। लेकिन AI के लिए कोई मौत लिखी नहीं होगी। यह हमेशा ज़िंदा रहेगी, और फिर हमारे सिर पर एक ऐसा अमर तानाशाह होगा, जिससे हम कभी बच नहीं सकेंगे।' (माइकल व्लिसमस की बायोग्राफी ‘Elon Musk - Risking It All’)

सवाल यह है कि क्या कोई सरकार इसको लेकर फिक्रमंद है? माफ करना मैं भारत की बात नहीं कर रहा। यहां तो हम अभी तक जाति और धर्म से ऊपर नहीं उठ पाए हैं। तो यहां हम AI के विनाशकारी तूफान के गुजरने के बाद इसकी बात करेंगे, गर फुर्सत मिली। मैं अमेरिका सहित उन चंद विकसित देशों की बात कर रहा हूं, जो विज्ञान के क्षेत्र में कथित तौर पर काफी प्रगति कर चुके हैं। और दुर्भाग्य से किसी भी सरकार के एजेंडे में AI के नियंत्रण को लेकर कोई रोड मैप नहीं है।

अगर मस्क जैसा शख्स कह रहा है कि मनुष्य के अस्तित्व के सामने यह सबसे बड़ा संकट है, और सबसे गंभीर संकट भी, तो इसे पूरी मानव जाति को गंभीरता से लेना चाहिए। और उनके हालिया बयान के मद्देनजर यहां फिर भारत का जिक्र करना चाहूंगा। उन्होंने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था, ‘अगर आप नौकरी करना चाहते हैं तो कीजिए, लेकिन केवल शौक के लिए। नहीं तो काम तो AI और रोबोट कर ही लेंगे।भारत जैसे विकासशील देशों में जहां बेरोजगारी एक भयावह समस्या है, हम इस बढ़ते खतरे को हल्के में नहीं ले सकते और ही यह कहकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकते है कि जो बंदा अपडेटेड रहेगा, वही टिकेगा। कैसे? AI से अपडेटेड भला कौन हो सकेगा? तो टिकेगी तो केवल एआई!

और नोबेल अवार्ड की घोषणा के तुरंत बाद स्वयं हिंटन ने क्या कहा, वह भी जान लेते हैं: "We need to worry about bad consequences (of AI).’

और अवार्ड मिलने के तुरंत बाद अपने पहले इंटरव्यू में जब इंसानी अस्तित्व के खतरे को लेकर वे AI के प्रति आगाह करते हैं तो उनके गंभीर चेहरे के पीछे नोबेल पुरस्कार मिलने की खुशी से ज्यादा एक दर्द को महसूस कर सकते हैं।

 

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शनिवार, 21 सितंबर 2024

आखिर अच्छी जीवनियां पढ़नी क्यों जरूरी? बच्चों के लिए भी, और उनसे भी ज्यादा, उनके पैरेंट्स के लिए भी!

 

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By Jayjeet Aklecha (जयजीत अकलेचा)
एक विश्व स्तरीय इनोवेटिव कंपनी कैसे बनती है? उसके बनने की प्रोसेस क्या होती है? उस देश या काल की परिस्थितियां क्या होती हैं? ऐसा कौन-सा जुनून होता है, जो ऐसी कंपनियों के निर्माण की बुनियाद बनता है? यह जानने-समझने के लिए कम से कम एक शख्स को पढ़ना बेहद जरूरी है और वह है स्टीव जॉब्स। इन पर सैकड़ों किताबें लिखी गई हैं, लेकिन उनके असल व्यक्तित्व को, उनकी कमजोरियों और जबरदस्त खूबियों के साथ समझने के लिए पढ़नी होगी वॉल्टर आइज़ैक्सन लिखित ऑफिशियल बायोग्राफी ‘स्टीव जॉब्स।’
हमने-आपने देखा है कि पैरेंट्स अपने बच्चों को बहुत कुछ देते हैं, अच्छा मोबाइल, अच्छी बाइक, ब्रांडेड जूते, डिजाइनर कपड़े… लेकिन अधिकांश लोग अपने बच्चों को महान शख्सियतों की बायोग्राफी नहीं देते (शायद थोड़ी महंगी होती हैं!)। अगर देते भी हैं तो वे आत्ममुग्ध कथाएं जिनमें नायक को केवल एक ‘भगवान’ के तौर पर प्रस्तुत किया जाता है। सच तो यह है कि हर महान शख्स में भी कई कमजोरियां होती हैं। मगर उन कमजोरियों के साथ वह कैसे आगे बढ़ता है, कहां उठता है, कहां सीखता है, ऐसी जीवनियां लाइफ चेंजिंग हो सकती हैं। बेंजामिन फ्रेंकलिन, अब्राहम लिंकन, एपीजे अब्दुल कलाम, आइंस्टीन और इलॉन मस्क जैसी शख्सियतों की ओरिजिनल बायोग्राफी इन श्रेणियों में आती हैं। और बेशक, स्टीव जॉब्स की बायोग्राफी भी…।
मैंने स्टीव जॉब्स को टुकड़ों-टुकड़ों में थोड़ा बहुत पहले भी पढ़ रखा था, मगर जब मंजुल पब्लिशिंग हाउस के बैनर तले वॉल्टर आइज़ैक्सन लिखित उनकी ऑफिशियल बायोग्राफी को हिंदी में रूपांतरित करने का कार्य शुरू किया तो उन्हें बहुत विस्तार से जानने-समझने का मौका मिला। सैकड़ों इंटरव्यूज, जिनमें जॉब्स के भी करीब 40 साक्षात्कार शामिल हैं, के आधार पर लिखी यह बायोग्राफी उस तरफ ले जाती है, जहां पता चलता है कि आखिर जॉब्स जैसे आंत्रप्रेन्योर्स के मायने क्या हैं।
610 पन्नों की इस जीवनी में जॉब्स के पूरे व्यक्तित्व को समेटना संभव नहीं था और इसलिए शायद बहुत कुछ छूटा हुआ-सा प्रतीत होता है। मैंने भी डेढ़ साल पहले यह अनुवाद कार्य हाथ में लिया था और इसलिए जब इसे फिर से पढ़ता हूं तो लगता है कि बहुत कुछ और बेहतर हो सकता था।
फिर से दूसरे पैराग्राफ की तरफ लौटता हूं। आपके बच्चे जिस भी भाषा में सहज हों, उस भाषा में उन्हें अच्छी जीवनियां पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करें। इनमें जॉब्स की ऑफिशियल बायोग्राफी भी एक हो सकती है … और हिंदी समझने वाले पैरेंट्स पढ़ें यह हिंदी वाली बायोग्राफी और इसी तरह की अन्य जीवनियां। क्योंकि जीवनियां पढ़े जाने की दरकार बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिताओं को भी है, बल्कि ज्यादा है। ये जीवनियां बताएंगी कि बच्चे को वही करने दें, जिसमें वो सबसे अच्छा कर सकता है। अच्छे पैकेज की चिंता आप करें, मगर उसे ना होने दें…तब शायद हम देख सकेंगे अपने इस देश में भी स्टीव जॉब्स, इलॉन मस्क, लैरी पेज…!

गुरुवार, 29 अगस्त 2024

अंबानी अपने बच्चों की शादियों पर अरबों खर्च कर सकते हैं... मगर स्टीव जॉब्स के बच्चे अपने पिता की कंपनी से भी बाहर...!


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By जयजीत अकलेचा
अंबानी परिवार द्वारा अपने बेटे की शादी पर (कथित तौर पर) 5,000 करोड़ रुपए खर्च करने के बाद एक खबर टाटा से आई। टाटा के वंशज 32 वर्षीय नेविल टाटा को कंपनी में एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी गई है। अडाणी घराने की कमान भी जल्द ही उनके दोनों बेटों के हाथों में होगी। ऐसे में उस कंपनी के बारे में जानना दिलचस्प होगा जो इन तमाम कंपनियों ने कहीं आगे हैं, मार्केट कैपिटलाइलेशन में, रेवेन्यू में, ब्रांड में। यह कंपनी है एपल।
एपल मार्केट कैपिटलाइलेशन में दुनिया की नंबर वन कंपनी है। 3 ट्रिलियन डॉलर यानी 250 ट्रिलियन रुपए का मार्केट कैपिटलाइलेशन है इसका। टाटा की तमाम कंपनियों का मार्केट कैपिटलाइलेशन 33 ट्रिलियन रुपए, रिलायंस का 20 ट्रिलियन रुपए और अडाणी ग्रुप का केवल 3 ट्रिलियन रुपए है।
- एपल की स्थापना की थी स्टीव जॉब्स ने। यह सब जानते हैं। लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि आज दुनिया की नंबर वन कंपनी का कोई मालिक नहीं है। असल मालिक शेयरहोल्डर्स हैं, वाकई में शेयर होर्ल्डस, केवल कहने के लिए नहीं।
- चूंकि एक मालिक नहीं है, इसलिए कंपनी शादियों पर करोड़ों खर्च नहीं करती, यहां तक कि कंपनियों के बड़े-बड़े अधिकारी भी सामान्य तरीके से रहते हैं। सीईओ व फाउंडर स्टीव जॉब्स ताउम्र पेलो अल्टो के एक छोटे से घर में और फिर एक ड्यूप्लेक्स में रहे। जब आप उनकी जीवनी (वॉल्टर आइज़ैक्शन की ऑफिशियल बायोग्राफी) पढ़ते है तो यह जानकर आश्चर्य होता है कि उनके घर में लंबे समय तक एक सोफासेट तक नहीं था।
- स्टीव जॉब्स ने चंद डॉलर्स में शुरू की गई कंपनी को अरबों डॉलर तक पहुंचाया। लेकिन इसी कंपनी ने उन्हें बाहर निकाल दिया क्योंकि उसके बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को लगता था कि जॉब्स कंपनी को नुकसान पहुंचा रहे थे। क्या हमारे यहां किसी कंपनी के संस्थापक को बाहर किया जा सकता है? एपल का यह संस्थापक दस साल तक बाहर रहा। फिर जब बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स को लगा कि कंपनी जॉब्स के बगैर नेक्स्ट लेवल पर नहीं जा सकती तो उन्हें फिर से लेकर आए, सीईओ बनाया... और फिर तो एपल ने इतिहास रच दिया।
- अंबानी परिवार के बच्चे क्या करते हैं? किसी को अंदाजा लगाने की जरूरत भी नहीं है। मगर स्टीव जॉब्स के चार बच्चे हैं और एक भी कंपनी से सीधे कनेक्ट नहीं हैं (बेशक, स्टीव जॉब्स के पर्सनल शेयरों की वजहों से उनके पास भी अपने पिता की करोड़ों डॉलर की सम्पत्ति में बड़ी हिस्सेदारी है)। उनकी एक बेटी पत्रकार व लेखिका हैं, बेटे मेडिकल रिसर्च पर काम करते हैं, एक बेटी फैशन सेक्टर में एक्टिव हैं। किसी के पास भी अपने पिता की स्थापित कंपनी के किसी भी सेक्शन की कोई जिम्मेदारी नहीं है।
- स्टीव जॉब्स की कैंसर से मौत हुई थी। वे बच सकते थे, बशर्ते अगर वे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते और लिवर प्रत्यारोपण के लिए आम लोगों की तरह अपनी बारी का इंतजार नहीं करते। उनके प्रभाव का आकलन केवल इस तथ्य से लगा सकते हैं कि अमेरिका के राष्ट्रपति बिल क्लिंटन और फिर बराक ओबामा से बात करने के लिए उन्हें अपॉइंटमेंट नहीं लेने पड़ते थे।
- ऐसे ढेरों किस्से स्टीव जॉब्स की ऑफिशियल बायोग्राफी में दिए गए हैं। इसके लेखक हैं वॉल्टर आइजैक्शन। इस लेखक के लेवल का अंदाजा लगाइए कि जब स्टीव जॉब्स ने उनसे कहा, 'मैं चाहता हूं कि आप मेरी जीवनी लिखें' तो आइजैक्शन ने इससे इनकार करते हुए कहा, 'अभी नहीं। शायद एक दशक के बाद देखते हैं, जब आप रिटायर हो जाएंगे।' फिर केवल इसलिए लिखी क्योंकि जॉब्स की पत्नी ने उनसे गुजारिश की कि अगर आप अभी नहीं लिख सकते तो फिर कभी नहीं लिख पाएंगे... हालांकि जॉब्स तो इसे कभी पढ़ भी नहीं पाए। उन्होंने अपने लेखक से वादा किया था कि वे प्रकाशन से पहले उसके भीतर झांकेंगे भी नहीं। वे प्रकाशित होने के बाद जरूर पढ़ेंगे। उन्होंने अपना पहला वादा पूरा किया, लेकिन दूसरा वादा नियति ने पूरा नहीं करने दिया। प्रिंट होने के 19 दिन पहले ही इनोवेशन जगत का यह सितारा कहीं दूर जा चुका था।
मुझे वॉल्टर आइजैक्शन की इस ऑफिशियल बायोग्राफी के माध्यम से स्टीव जॉब्स की जिंदगी के अनेक पहलुओं से हाल के महीनों में रूबरू होने का मौका मिला है।
दुर्भाग्य से इस अद्भुत शख्स की यह अद्भुत ऑफिशियल बायोग्राफी वर्षों तक हिंदी में नहीं आ पाई है। ...क्या इसे हिंदी में नहीं छपना चाहिए?

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रविवार, 28 जुलाई 2024

इन सड़कों में ही हमारा ‘कल’ छिपा है, इस इनोवेशन के लिए सैल्यूट...!

 

By Jayjeet

इन दिनों हम सबमें इतनी नकारात्मकता भर गई है कि कई असल इनोवेशन भी हमारी नुक्ताचीनी से बच नहीं पाते हैं। हम कुछ न कुछ खामियां ढूंढ़ते रहते हैं। अब इस सड़क को या इसी तरह की और भी सड़कों को देखिए। जबसे बारिश का सीजन आया है, मेरे कान यह सुनते-सुनते पक गए हैं कि देखो, कैसे पहली ही बारिश में सड़क गड्ढों में बदल गई। लेकिन सच तो यह है कि ये असल में एक इनोवेशन है, दूरदर्शिता की अनुपम मिसाल। इसमें ही हमारा कल, हमारा सुखद भविष्य छिपा है।
थोड़ा पीछे चलते हैं। कुछ माह पहले ही हम सब लोग गर्मी से त्राहिमाम कर रहे थे। जमीन के भीतर घटते भू-जल स्तर पर चिंता जताई जा रही थी। स्वाभाविक भी था। हर जगह कांक्रीटीकरण होने से भला पानी जमीन के भीतर जा भी कैसे सकता था?
लेकिन धन्य हो हमारे देश के इंजीनियर-अफसर-ठेकेदार। उन्होंने इस चिंता को समझा और इस तरह वे एक अनूठा कॉन्सेप्ट लेकर आए। इस कॉन्सेप्ट के अनुसार ठंड से लेकर गर्मी तक सड़कें केवल सड़क का काम करेंगी और बारिश होते ही ग्राउंड वॉटर रिचार्जेबल रोड्स में तब्दील हो जाएंगी।
कोशिश यही है कि बारिश की एक भी बूंद बर्बाद ना हो और इसलिए इन सड़कों के निर्माण के दौरान ही एक खास तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। तकनीक यह है कि बारिश की पहली बूंदों का स्पर्श होते ही इनमें लगे सेंसर काम करने लगें और वे सड़क को तुरंत गड्ढों में तब्दील कर दें। ऐसी सड़कें पूरे बारिश के महीने में इसी तरह पानी से भरी रहेंगी और जमीन के भीतर पानी की आपूर्ति करती रहेंगी। इस तरह ये हमारा कल सुरक्षित करने का काम करेंगी।
सवाल यह है कि बारिश के बाद क्या होगा? इसकी भी एक स्व-चालित प्रक्रिया है। नया टेंडर पास होगा और फिर ऐसी सड़कें बनाई जाएंगी जो गर्मी तक सड़क जैसा आभास देंगी। ये बारिश होने तक सड़क की तरह काम करती नजर आएंगी, और बारिश की पहली ही बूंदों से हमारे भविष्य को सुरक्षित करने में जुट जाएंगी।
तो जब भी आपको सड़क पर पानी से भरा कोई बड़ा गड्‌ढा नजर आए तो वर्तमान पर दुख जताने के बजाय यह सोचें कि हमारा-आपका भविष्य कितना सुरक्षित है....
ऐसे क्रिएटिव काम करने वालों को सैल्यूट! आप भी कीजिए!!
#monsoon2024 #potholes # जयजीत अकलेचा
(तस्वीर प्रतीकात्मक है, जो हर शहर की अपनी जैसी हर सड़क का प्रतिनिधित्व करती है।)

बुधवार, 5 जून 2024

मोदी ने ‘अटलजी’ बनने का मौका गंवा दिया …?

 

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हारकर भी जीत गए थे अटलजी, ये जीतकर भी हार गए...!!!

By Jayjeet Aklecha
वह 13 मई 2004 की वैसे ही तपती दोपहरी थी। 12 बजते-बजते चौदहवीं लोकसभा चुनावों के नतीजों का एक मोटा-मोटा रुझान सामने आ चुका था। अटल बिहारी वाजपेयी चुनाव हारने जा रहे थे। ‘इंडिया शाइनिंग’ का नारा जमीन पर चित्त पड़ा था।
आज 4 जून 2024 की दोपहर भी इससे जुदा नहीं थी। उतनी ही गर्मी थी, सियासी भी और मौसमी भी। तो क्या इन चुनावों के नतीजों ने भी उसी परिदृश्य को दोहराया है? भाजपा के समर्थकों (जिनका अब भक्तों के तौर पर रूपांतरण हो चुका है) में जिस तरह से मातम पसरा हुआ है, उससे तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है।
लेकिन नहीं। हो सकता है मातम उतना ही हो, मगर परिदृश्य बिल्कुल अलग है। अटलजी ने वह चुनाव ‘इंडिया शाइनिंग' के स्लोगन पर लड़ा था। हां, वही स्लोगन जिसका कई लोग आज भी मजाक उड़ाते हैं। लेकिन जरा अटलजी के इस स्लोगन का मोदी के ‘इंडिया ग्लूमिंग' वाले टोन के साथ तुलना कीजिए। एक पल में आपको वो नारा बेहद खूबसूरत नजर आने लगेगा। मुझे तो आता है। सबसे बड़ा अंतर ही यही है कि जहां अटलजी सकारात्मक मुद्दों पर चुनाव हारे, वहीं मोदी एंड टीम ने पूरे चुनाव को नकारात्मक मु्द्दों से इतना भर दिया कि उनकी इस लगभग जीत को भी ‘हार’ की तरह ट्रीट किया जा रहा है! घुसैठिए, मंगलसूत्र और न जाने क्या-क्या... नैराश्य से मचा हुआ। हममें से ऐसा कौन है, जो बीते दो माह के इस चुनाव प्रचार को याद भी रखना चाहेगा?
और एक और अंतर… अटलजी ने सत्ता गंवा दी। प्रधानमंत्री नहीं रहे। उस सदमे से वे कभी उबर भी नहीं पाए, मगर विनम्रता और असहमति का भी सम्मान करने की भावना जैसे कई उदात्त गुणों की वजह से इतिहास ने उन्हें एक ‘स्टेट्समैन' के तौर पर याद किया। आज भी करता है और हमेशा करता रहेगा।
मोदी ने जीतकर भी यह मौका गंवा दिया है। अगर वे 370 सीटें भी जीत जाते, या 400 भी या 543 भी, तब भी इतिहास उन्हें ‘स्टेट्समैन' का दर्जा कभी नहीं देता। न कभी देगा। साल 2019 की शुरुआत तक मोदी में भी एक ‘स्टेट्समैन' बनने की प्रबल संभावनाएं थीं। मगर दुर्भाग्य से, उन्होंने प्रयास किया एक ‘कल्ट लीडर’ बनने का। तो वे इतिहास में भी इसी रूप में याद रखे जाएंगे: भक्तों के एक चमत्कारी नेता के तौर पर, राजनेता के तौर पर कदापि नहीं। मोदी जीतकर भी हार गए...। 24*7 काम करने वाले एक परिश्रमी नेता का ऐसा पराभव दु:खद भी है।
पुनश्च… मेरा एक मित्र अभी-अभी कह रहा था कि देश दु:खी है… मोदीजी ने राम मंदिर बनवाया, कश्मीर से धारा 370 हटाई, दुनिया में देश का मान बढ़ाया, जीडीपी की ग्रोथ बढ़ाई, फिर भी लोगों ने उन्हें हरा दिया…
मेरा सवाल - मोदी एंड टीम ने एग्रेसिवली होकर क्या इन मुद्दों पर वोट भी मांगे थे? और जब नहीं मांगे, तो फिर देश को मलाल क्यों?