बुधवार, 5 फ़रवरी 2025

आठवें वेतन आयोग और टैक्स रिबेट से तो पैसा बाजार में आएगा, लेकिन गरीबों को मदद सिस्टम पर बोझ!

By Jayjeet

समाज में विषमता केवल पैसे से पैदा नहीं होती। सोच से भी होती है। बीते दिनों दो बड़ी घटनाएं प्रकाश में आईं- एक, सरकार द्वारा आठवें वेतन आयोग के गठन की घोषणा और दूसरी, 12 लाख रुपए तक की आय पर इनकम टैक्स में रिबेट का बजटीय एलान। बेशक, ये दोनों फैसले बहुप्रतीक्षित थे और इससे बड़े वर्ग को राहत मिलेगी। इन दोनों घटनाओं का सरकारी बाशिंदों की तरफ से, समाज के एक बड़े तबके की तरफ से और मीडिया की तरफ से भी यह कहकर अभिनंदन किया गया कि इनसे बड़ी धनराशि बाजार में आएगी और इकोनॉमी को गति मिलेगी। बेशक, काफी हद तक ऐसा होगा।
लेकिन एक बड़ा सवाल - अगर उक्त फैसले इकोनॉमी को गति देने वाले साबित होंगे तो फिर देश के विशालकाय गरीब तबके, खासकर गरीब वर्ग की महिलाओं को मिलने वाली वाली राशि बोझ कैसे हो सकती है? आज यह सवाल केवल इसलिए क्योंकि समाज के बड़े वर्ग की ओर इसे बोझ के रूप में प्रचारित किया जाता रहा है, और इसमें वह भी शामिल है, जिसे उक्त फैसलों से लाभ मिलने वाले हैं। यह उन्हीं लोगों से सवाल है कि अगर वो पैसा बाजार में आकर इकोनॉमी को बढ़ाएगा तो कि क्या गरीबों को दिया जाने वाला पैसा उनकी तिजोरियों में जमा हो रहा है या वह ब्लैक इकोनॉमी में जा रहा है?
सबसे आपत्तिजनक शब्द ‘रेवड़ी' है। क्योंकि अगर ये रेवड़ी है तो साल में 150 दिन छुटि्टयां लेने वाले सरकारी कर्मचारियों के वेतन और पेंशन की बड़ी राशि को क्या कहा जाएगा? (साल भर पहले एक अखबार द्वारा करवाए गए एक सर्वे में इसी वर्ग ने गरीबों को मिलने वाली कथित रेवड़ियों पर सबसे ज्यादा आपत्ति जताई थी)। इसलिए सबसे पहले तो ‘रेवड़ी’ शब्द से मुक्ति पाने की जरूरत है, क्योंकि न वो रेवड़ी है और न ये रेवड़ी है। इसी तरह एक व्यापक स्टडी की भी जरूरत है कि गरीबों को सरकारी मदद के बाद से आर्थिक और सामाजिक तौर पर क्या बदला। कुछ बदला भी या नहीं? हालांकि जिस देश में 15 साल से जनगणना तक ना हुई हो और फिर भी देश को या देशवासियों को कोई फर्क नहीं पड़ रहा हो, वहां इस तरह के असर को जानने के लिए भी कोई ललक होगी, इसकी संभावना कम ही होगी।
पुनश्च... ब्राजील में पिछले 20 साल से एक योजना चल रही है ‘बोल्सा फैमीलिया' योजना। इसमें भी महिलाओं को प्रतिमाह कुछ राशि नकद दी जाती है। इस पर विश्व बैंक की स्टडी कहती है कि इस योजना के तहत खर्च किए गए प्रत्येक एक डॉलर पर स्थानीय अर्थव्यवस्था में 1.78 डॉलर जनरेट हुए। जाहिर है, इकोनॉमी में जनरेट हुई असेट का फायदा तमाम लोगों को मिला होगा!!! बता दें, वहां न तो यह योजना (कमोबेश) राजनीति से प्रेरित है और न ही इसे ‘रेवड़ी’ माना जाता है।

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