शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2025

हम नदियों को केवल पवित्र मानते हैं, मगर जरूरत उन्हें पवित्र रखने की है!

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By Jayjeet Aklecha

पता नहीं, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में ऐसे कौन-से वामपंथी अधिकारी बैठे हुए हैं, जिन्होंने पवित्र गंगा नदी के पानी को प्रदूषित बता दिया। खैर, महंत योगीजी ने उप्र विधानसभा में कह दिया कि गंगा का पानी इतना पवित्र है कि उसका आचमन भी किया जा सकता है तो हम मान सकते हैं कि हां, ऐसा ही होगा! उन्होंने इस रिपोर्ट को महाकुंभ को बदनाम करने की साजिश भी करार दिया (साजिश के इस आरोप का जवाब क्या केंद्र सरकार देगी?) वैसे अगर संगम के जिस आम एरिया में जहां आम लोग पवित्र स्नान वगैरह कर रहे हैं, वहां योगीजी अपनी पूरी कैबिनेट और वरिष्ठ अफसरों के साथ जाकर उस पानी का आचमन करके दिखाते तो यह बोर्ड के साजिशकर्ता अधिकारियों को मुंहतोड़ जवाब होता...!

 वैसे, योगीजी को ऐसा करने की जरूरत नहीं है। हालांकि उन्हें उस रिपोर्ट को खारिज करने की भी जरूरत नहीं थी। कोई भी समझदार आदमी इस सच को स्वीकार करता ही कि करोड़ों लोगों के पवित्र स्नान करने के बाद नदी तो क्या, विशालकाय समुद का पानी भी मानव मल-मूत्र के बैक्टीरिया से बच नहीं पाता। लेकिन शुतुरमुर्गी मानसिकता के चलते दिक्कत यह है कि हम समस्या को स्वीकारते नहीं और इसलिए समस्या सुलझती भी नहीं है। यही वजह है कि दुनिया की टॉप 10 या 15 शीर्ष स्वच्छ नदियों की सूची में हमारी कोई भी पवित्र नदी शामिल नहीं है (केवल मेघालय की छोटी-सी नदी डावकी नदी को छोड़कर। देखें तस्वीर)।


दिक्कत यह भी है कि हम नदियों को केवल पवित्र मानते हैं, उन्हें पवित्र रखने की कोशिश नहीं करते। अगर नदियों को पवित्र रखना हमारा मकसद होता तो महाकुंभ या ऐसे ही आयोजनों को लेकर हमारी सरकारों की रणनीति कुछ अलग होती। लेकिन भारत में ऐसी अलग नीति की उम्मीद नहीं कर सकते...इसलिए हमें ‘पूरब और पश्चिम’ के उस उस फिल्मी गीत को दोहराकर ही संतुष्ट रहना होगा कि ‘हम उस देश के वासी हैं, जहां नदियों को भी माता कहकर बुलाते हैं’ (फिर एक कड़वा विरोधाभास... महिलाओं के खिलाफ छोटे-बड़े अपराधों के मामले में भारत की स्थिति अनेक विकासशील देशों से बदतर है)

 तस्वीर : मेघालय की डावकी नदी। यह इसलिए भी इतनी स्वच्छ है, क्योंकि इसके पानी को ‘पवित्र’ नहीं माना जाता है।

#जयजीत अकलेचा

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