By Jayjeet
जैसे ही लॉकडाउन में थोड़ी राहत मिली, यह रिपोर्टर फिर निकल पड़ा अपने काम पर। काम मतलब उलटे सीधे इंटरव्यू के फेर में। इस समय आदमी के लिए सबसे ज्यादा जरूरी चीज क्या है? रोटी.. हां रोटी। इसी तलाश में लाखों लोग अपने गांव छोड़कर शहरों के नरक में गए थे और अब इसी के चक्कर में अपने गांव लौट रहे हैं। तो रिपोर्टर भी तलाशने लगा रोटी। कुछ दुकानों पर उसे डबलरोटी तो नजर आई, लेकिन रोटी नहीं। काफी देर तक इधर-उधर घूमने के बाद आखिर उसे इंटरव्यू के लिए रोटी नसीब हो ही गई। सड़क के किनारे पड़ी हुई थी, बिल्कुल सूखी हुई। शायद किसी दुर्भाग्यशाली लेकिन आत्मस्वाभिमानी गरीब के हाथों से गिर गई होगी और फिर उसने उसे उठाना उचित न समझा होगा।
‘नमस्कार रोटी जी। क्या मैं आपसे बात कर सकता हूं?’ रिपोर्टर सोशल डिस्टेंसिंग के साथ बोला।
रोटी ने अपनी बंद आंख खोली, धूल साफ करते हुए अंगड़ाई ली और उठ खड़ी हुई : जी, बोलिए।
मैं इस देश का जनप्रिय रिपोर्टर। बस आपका इंटरव्यू लेना था।
रोटी : तो क्या अब रिपोर्टर भी नेता हो गया, जनप्रिय रिपोर्टर? खैर, पूछिए, पर जरा जल्दी पूछिएगा।
रिपोर्टर : सबसे पहले तो यही पूछना है कि आप गरीब की रोटी है या अमीर की?
रोटी: आपका पहला सवाल ही बकवास है। रोटी तो रोटी होती है, न अमीर की न गरीब की। उसका तो एक ही काम होता है खाने वाले का पेट भरना। हां, गरीब की रोटी सूखी हो सकती है, लेकिन उसके लिए तो वही मालपुआ होती है ना!
रिपोर्टर : इन दिनों आप बड़ी डिमांड में है?
रोटी : यह भी गलत सवाल। मेरी डिमांड कब नहीं रहती? गरीबों की बस्तियों में तो मेरी हर समय मांग रहती है। लोग जीते भी मेरे लिए हैं और मरते भी मेरे लिए। देखा ना अभी, मेरे खातिर कितने लोग सैकड़ों किमी पैदल ही चल पड़े हैं।
रिपोर्टर : तो कहने का मतलब है गरीब के हाथ में आपको ज्यादा सम्मान मिलता है, अमीर के हाथ में कम?
रोटी : जब आपने अपनी तारीफ में कहा था कि आप जनप्रिय रिपोर्टर हैं, तभी मैं आपकी औकात समझ गई थी कि आप नेता जैसी तुच्छ हरकत तो करेंगे ही। नेताओं जैसी भेदभाव बढ़ाने वाली बात कर रहे हैं आप। हां, अमीर-गरीब के बीच भारी खाई है,लेकिन पेट की भूख तो अंतत: मुझसे ही मिटती है, भले ही अमीर की थाली में सौ पकवान ही क्यों न हों?
रिपोर्टर : जब आपको कोई खाता है तो कैसा लगता है?
रोटी : आप क्या पहले न्यूज एंकर भी रह चुके हैं जो ऐसे बेमतलब के सवाल पूछ रहे हैं? भाई, ईश्वर ने मुझे पैदा ही इसलिए पैदा किया है कि दूसरों की खुशी के लिए मैं खुद को मिटा दूं। ऐसा करके मैं अपने कर्त्तव्य का ही तो पालन करती हूं।
रिपोर्टर : अरे वाह, क्या नेक विचार हैं। अगर सभी इंसान भी आपकी तरह सोचने लगे तो शायद कोई भूखा न सोएं… अभी तो आपका यह विचार और भी प्रासंगिक हो गया है, सबका पेट भर सकता है।
रोटी : चलिए… अब दूर हट जाइए। बहुत देर से वह कुत्ता बड़ी लालसा के साथ अपनी जीभ लटकाए आपके हटने का इंतजार कर रहा है। अभी तो बेचारे जानवरों के सामने भी पेट भरने का संकट पैदा हो गया है। और हां, आपके सवाल बड़े कमजोर थे। अगली बार किसी से इंटरव्यू करने जाए तो तैयारी करके जाइएगा, जनप्रिय रिपोर्टर!!!
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