मतलब आज ऑक्सीजन की कमी से कोई ना मरा, कल इंजेक्शन की कमी से कोई ना मरेगा... मतलब स्साला आदमी मरेगा कैसे? सरकार बताएगी?
By ए. जयजीत
'दद्दा, अब खुश हो जाओ और जिद छोड़ दो।' सीनियर देवदूत ने चित्रगुप्त के दफ्तर के बाहर पड़ी धरनाग्रस्त आत्मा से कहा।
'मैं तुम्हारी बात में ना आने वाला। तुम तीसरी बार फुसलाने आए हो, चित्रगुप्त के खास चमचे बनकर।'
'नहीं दद्दा, इस बार खबर सच्ची है। सरकार इतना भी झूठ नहीं बोलती है।'
'अब कौन-सा सच लेकर आ गए हो?'
'सरकार ने कहा है कि तुम्हारी मौत ऑक्सीजन की कमी से नहीं हुई है। मतलब सारा कन्फ्यूजन खत्म हो गया। अब कर्मों का हिसाब करवा लो। आप भी फ्री, हम भी फ्री।'
'मैं भी तो यही कह रहा था कि मेरी मौत हो ही नहीं सकती। धरती पर ऑक्सीजन तो फुल मात्रा में है। तो मौत कैसे हो सकती है?'
दद्दा की यह बात सुनते ही यह सीनियर देवदूत चकरा गया। आप भी चकरा गए ना। चकरा तो यह लेखक भी रहा है।
दरअसल, दद्दा बहुत शातिर है। पहले इस बात के बहाने वे चित्रगुप्त के दफ्तर में हिसाब करवाने से बचते रहे कि उनकी मौत की वजह स्पष्ट नहीं है। रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से उनकी मौत हुई या ऑक्सीजन न मिलने से, पहले यह साफ किया जाए। ऑक्सीजन या इंजेक्शन, इन दोनों में से किसी की जवाबदेही तय की जाए। इसके बाद ही वे अपने कर्मों के हिसाब-किताब के लिए चित्रगुप्त के सामने प्रस्तुत होंगे। हालांकि यमराज के दफ्तर से चली नोटशीट पर 'ऑक्सीजन की कमी' कारण स्पष्ट था, फिर भी दद्दा तो अड़ ही गए थे। देवदूतों ने उनके साथ जबरदस्ती की तो हाथ में घासलेट की बोतल और माचिस लेकर चित्रगुप्त के दफ्तर के बाहर ही धरने पर बैठ गए। लोकतंत्र तो ऊपर भी है। ऐसे ही भला जबरदस्ती थोड़ी की जा सकती है। और अब जब इस सीनियर देवदूत को लगा कि भारत सरकार के इस दावे से मामला सेटल हो गया और मौत की स्पष्ट वजह आ गई तो दद्दा ने नया दांव चल दिया। आइए, फिर सुनते हैं उनके तर्क-कुतर्क...
'दद्दा, अब ये लफड़ा मत कीजिए कि मौत ना हुई। मौत ना होती तो तुम यहां होते भला?' देवदूत ने सख्ती व मिमियानेपने के अजीब मिश्रण के साथ अपना तर्क दिया।
'क्यों तुम अपने उस छोकरे से, क्या नाम है, रम्मन देवदूत, उसी से पूछो। वही आया था मेरे पास। वह यही बोल के तो मुझे यहां लाया था कि ऑक्सीजन सिलैंडर में ऑक्सीजन खत्म हो गई तो तुमको लेने आया हूं। पूछो उससे, यही बोला था कि नहीं!'
'अब उससे क्या पूछें। वैसे भी वह संविदा पर है। लेकिन मौत तो तुम्हारी आनी ही थी। हो सकता है यमराज जी के ऑफिस से जो नोटशीट चली होगी, उसमें कारण गलत दर्ज हो गया हो- ऑक्सीजन की कमी से मौत। पर अब स्पष्ट हो गया है कि तुम्हारी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से हुई है। तुम यही तो चाहते थे कि जवाबदेही तय हो। तो अब रेमेडिसिवर इंजेक्शन पर जवाबदेही तय हो गई। बस खुश, अब चलो भी।'
लेकिन दद्दा के दिमाग में तो कुछ और ही खुराफात चल रही है। एक नया कुतर्क पटक दिया - 'क्यों जब नोटशीट पर कारण गलत दर्ज हो सकता है तो उसमें आदमी का नाम गलत दर्ज नहीं हो सकता? फिर देवदूत भी तुम्हारे संविदा वाले। तो उससे तो गलती हो ही सकती है। है कि नहीं!'
सीनियर देवदूत, जिसे कि 40 साल का अनुभव है, भी सकते में आ गया। स्साला आज तक यमराज के ऑफिस से चली एक भी नोटशीट गलत नहीं हुई। वह सोच में पड़ा हुआ है। उसे सोच में पड़ा देखकर दद्दा, जो ऑलरेडी शातिर है, ने एक और नया दांव चल दिया।
'मेरी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन न मिलने से हुई। यही कहना चाहते हो ना तुम?'
'हां, जब ऑक्सीजन की कमी से ना हुई तो रेमेडिसिवर इंजेक्शन की कमी से ही हुई होगी ना? हम यही मान लेते हैं।'
'अब, अगर कल को सरकार यह कह दे कि देश में एक भी मौत रेमेडिसिवर इंजेक्शन की कमी से ना हुई, तो? तब तुम क्या करोगे?'
देवदूत, जो लगातार सोच में है, फिर सोच में पड़ गया - स्साला, सरकार का क्या भरोसा। यह भी कह सकती है। फिर तो लफड़ा हो जाएगा। और यह बुड्डा शकल ही नहीं, अकल से भी हरामी है। दूसरी आत्माओं को ना भड़का दे।
'दद्दा, यहीं रुको। मैं पांच मिनट में आया।' इतना कहकर देवदूत चित्रगुप्त के दफ्तर में घुस गया। पांच मिनट चर्चा करने के बाद वह वापस लौटा और दद्दा के कान में धीरे से कहा। दद्दा खुशी से उछल पड़े। उनके कुतर्क कामयाब हो गए थे।
यमराज के दफ्तर से संशोधित नोटशीट जारी हो गई है- दद्दा की मौत किसी भी वजह से नहीं हुई है। इसलिए उन्हें समम्मान धरती पर पहुंचाने के प्रबंध किए जाएं।
संविदा वाले देवदूत को सस्पेंड कर दिया गया है। किसी पर तो गाज गिरनी ही है। आखिर लोकतंत्र तो वहां भी है।
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
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