By Jayjeet
दो जासूस, दोनों के दोनों प्रगतिशील किस्म के। देश-दुनिया की समस्याओं पर घंटों चर्चा करके चर्चा के कन्क्लूजन को अपनी तशरीफ वाली जगह पर छोड़कर जाने वाले। दोनों एक कॉफ़ी हाउस में मिले। वैसे तो दोनों अक्सर इसी कॉफ़ी हाउस में मिलते रहते हैं, लेकिन आज का मिलना ज्यादा क्रांतिकारी है। अब ये जासूस कौन हैं, क्या हैं, इसका खुलासा ना ही करें तो बेहतर है। देखो ना, पेगासस नाम के किसी जासूस का खुलासा होने से कितनी दिक्कतें आ गईं। विपक्ष को हंगामा करने को मजबूर होना पड़ा। कांग्रेस कहां पंजाब में अपने दो सरदारों के बीच सीजफायर करवाने के बाद थोड़ा आराम फरमा रही थी कि उसे फिर जागना पड़ा। और बेचारी सरकार। कब तक छोटे-छोटे हंगामों को राष्ट्र को बदनाम करने की साजिशें घोषित करती रहेगी। उसकी भी तो कोई डिग्नेटी है कि नहीं। कई बड़े-बड़े पत्रकार, नेता, बिल्डर, वकील, तमाम तरह के माफिया इस बात से अलग चिंतित हैं कि उनका नाम सूची में क्यों नहीं है! तो एक खुलासे से कितनी उथल-पुथल मच गई। इसलिए हम भी इन दोनों जासूसों के नाम नहीं बता रहे। हां, एक को करमचंद जासूस टाइप का मान लीजिए और दूसरे को जग्गा जासूस टाइप का। वैसे भी जासूस तो विशेषण है, संज्ञा का क्या काम। काले रंग का कोट, बड़ी-सी हेट, काला चश्मा, हाथ में मैग्नीफाइंग ग्लास वगैरह-वगैरह कि आदमी दूर से ही पहचान जाए कि देखो जासूस आ रहा है। दूर हट जाओ। पता नहीं, कब जासूसी कर ले।
तो जैसा कि बताया, ये दो जासूस एक कॉफ़ी हाउस में मिले। इसी कॉफ़ी हाउस में
दोनों का उधार खाता पता नहीं कब से चला आ रहा है। कई मैनेजर बदल गए, पर खाता अजर-अमर
है। कॉफ़ी हाउस में मुंह लगने वाले हर कप को मालूम है कि इन दिनों ये भयंकर फोकटे हैं।
इन दिनों क्या, कई दिनों से ही ये फोकटे हैं। कई बार कोट से बदबू भी आती है। जब किसी
के पास ज्यादा पैसे ना हों तो ड्रायक्लीन पर खर्च अय्याशी ही माना जाना चाहिए। तो ये
जासूस अक्सर इस तरह की अय्याशी से बचते हैं। वैसे इन दोनों जासूसों ने अपने बारे में
यह किंवदंती फैला रखी है कि जब ये वाकई जासूसी करते थे, तो उनके पास जूली या किटी टाइप
की सुंदर-सी सेक्रेटरी भी हुआ करती थीं, एक नहीं, कई कई। देखी तो किसी ने नहीं, पर
अब जासूसों से मुंह कौन लगे। कपों की तो मजबूरी है। बाकी बचते हैं।
खैर, मुद्दे पर आते हैं। तो आइए, इन दो प्रगतिशील जासूसों की जासूसी भरी
बातें भी सुन लेते हैं। आज तो चर्चा का एक ही विषय है - पेगासस।
"और बताओ, क्या जमाना आ गया?' पहले ने शुरुआत वैसे ही की, जैसी कि
अक्सर की जाती है।
"सही कह रहे हो। पर ये पेगासस है कौन?' दूसरा तुरंत ही मूल मुद्दे
पर आ गया, क्योंकि आज तो फालतू बातों के लिए इन दोनों के पास बिल्कुल भी वक्त नहीं
है।
"कोई जासूस है स्साला। फ्री में हर ऐरे-गैरे की जासूसी करता फिरता
रहता है।' पहले ने थोड़ा ज्ञानी होने के दंभ के साथ कहा।
"बताओ, ऐसे ही जासूसों के कारण हमारी कोई इज्जत नहीं रही।' दूसरे
ने यह बात इतनी संजीदगी से कही मानों उनकी कभी इज्जत रही होगी।
"और एक-दो की नहीं, पूरी दुनिया की जासूसी करने का ठेका उठा लिया
है इस पेगासस ने।' पहले ने जताया कि मामला वाकई गंभीर है।
"हां, रोज ही लिस्ट पे लिस्ट आ रही है, मानों चुनाव में खड़े होने
वाले उम्मीदवारों की सूचियां निकल रही हों।' दूसरे ने गंभीरता की हवा निकाल दी।
दोनों जोर से हंसते हैं। फिर अचानक अपने-अपने होठों पर उंगली रखकर शांत
रहने का इशारा करते हैं। लोगों को लगना नहीं चाहिए कि दो जासूस मूर्खतापूर्ण टाइप की
बातें कर रहे हैं, जो हंसी की वजह बन रही है। भले ही बातें करें, पर लगे नहीं। इसलिए
दोनों फिर धीमी आवाज में चर्चा शुरू देते हैं...
"यह भी क्या जासूसी हुई? अब आप नेताओं की जासूसी करवा रहे हों? नेताओं
की जासूसी करता है क्या कोई?' पहला फिर गंभीर हो गया।
"हां, मतलब नेताओं के नीचे से आप क्या निकाल लोगे? कोई बड़ा राज निकाल
लोगे? और जासूसी करके बताओंगे क्या? इतने करोड़ रुपए स्विस बैंक में, इतने करोड़ घर में,
इतने करोड़ की बेनामी संपत्ति, इतने लोगों को ठिकाने लगाने के लिए ये पलानिंग, वो पलानिंग।
जो चीज सबको मालूम है, वो आप बताओगे। ये क्या जासूसी हुई भला।' दूसरे ने पहले की गंभीरता
में गंभीरता के साथ पूरा साथ दिया।
"बताओ, क्या जमाना आ गया।' पहला फिर जमाने को दोष देने लगा।
"पर ये जासूसी करवा कौन रहा है?' दूसरा अब पॉलिटिकल एंगल ढूंढने की
जासूसी में लग गया है।
"कोई भी करवाए, हमें क्या मतलब?' पहले के भीतर का प्रगतिशील जासूस
अब आम मध्यमवर्गीय औकात में बदलने की तैयारी करने लगा है। कप की कॉफ़ी खत्म जो होने
लगी है।
दूसरा भी तुरंत सहमत हो गया। उसकी भी कॉफ़ी खत्म हो रही है। वह इस बात
पर सहमत है कि हमें ऐसे फालतू के मामलों में ज्यादा चिंता करने की जरूरत नहीं। चिंता
या तो सरकार करे जिसे हर उस मामले में देश की चिंता रहती ही है जिस मामले में उस पर
सवाल उठाए जाते हैं। या फिर विपक्ष करे, जो अब इस भयंकर चिंता में मरा जा रहा है कि
मामले को जिंदा रखने के लिए कुछ दिन और एक्टिव रहना होगा। संसद सत्र अलग शुरू हो गया
है। रोज हंगामा खड़ा करना होगा। कैसे होगा यह सब!
खैर, दोनों की कॉफ़ी खत्म हो गई है। तो चर्चा भी खत्म। तशरीफ को झाड़कर दोनों
उठ खड़े हुए। कॉफ़ी हाउस अब राहत की सांस ले रहा है।
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
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