(क्योंकि हमने सरकार से हर बार मंदिर और मस्जिद ही मांगे, अस्पताल नहीं...)
By Jayjeet
इन दिनों हर सुबह जब मैं अखबार देखता हूं तो बार-बार खुद से ही पूछता हूं - हमारे यहां अच्छे हॉस्पिटल क्यों नहीं हैं? अस्पतालों में अच्छी व्यवस्थाएं क्यों नहीं हैं? क्यों लोगों को ऑक्सीजन नहीं मिल रही? क्यों जरूरी इंजेक्शन नहीं मिल रहे? और हर व्यक्ति यही सोच रहा है। खुद से यही पूछ रहा है। आपसी बातचीत में भी हम एक-दूसरे से यही पूछ रहे हैं। जाहिर है मेरी उंगली सरकार की तरफ ही उठ रही है। आप सब की भी।
पर सरकार को इससे फर्क पड़ता है? बिल्कुल भी नहीं। क्योंकि वह उस एक अंगुली को नहीं देखती, जो उसकी तरफ उठती है। वह तो उन चार उंगलियों को देखकर खुशी में मस्त होती है जो मेरी ओर, हमारी ओर उठ रही हैं।
सरकार ने वह सब तो दिया, जो हमने मांगा। हमने मांगा मंदिर, वह दे दिया। हमने मांगी एक भूतपूर्व मस्जिद के टूटे हुए ढांचे की भरपाई। उसके लिए जमीन दे दी। और सरकार देती भी कैसे नहीं? सालों हमने एक से दूसरी अदालतों तक लड़ाई लड़ी, अपने मंदिर के लिए, अपनी मस्जिद के लिए। सड़कों पर भी लड़े। खूब लड़े। किसी ने केसरिया खून बहाया तो किसी ने हरा। तो सरकार किसी के भी बाप की होती, उसे तो मंदिर और मस्जिद देना ही था।
क्या हम एक अदद अस्पताल के लिए लड़े? क्या हमने अस्पताल के लिए खून बहाया? क्या कभी अपने किसी नेता को अस्पताल के नाम पर हराया या जिताया? तो फिर आज सरकार से शिकायत क्यों? उसने मंदिर दे दिया, मस्जिद के लिए जमीन दे दी।
एक और मंदिर का मामला अदालत में पहुंच ही गया है। वहां भी हम लड़ेंगे, अपने मंदिर के लिए, अपनी मस्जिद के लिए। सालों बाद सरकार हमें कुछ न कुछ दे ही देगी। पर हां, सदियों बाद भी हमें अस्पताल नहीं मिलेंगे, क्योंकि वे हमें चाहिए ही नहीं।
अब अगर सरकार हमें भगवान भरोसे छोड़ रही है, तो प्लीज शिकायत तो मत कीजिए। मैंने भी शिकायत करना छोड़ दिया है। क्योंकि मैं और आप अलग थोड़े ही हैं।
और यह तब तक होता रहेगा, जब तक हम अपने मंदिरों और मस्जिदों से यह न कह सकेंगे, माफ कीजिएगा मंदिर-मस्जिद। हमें अस्पताल भी चाहिए। और मुझे नहीं लगता किसी मंदिर या मस्जिद को इसमें कोई आपत्ति होगी।
# temple with mosque
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