लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार-प्रसार शुरू हो गया है। हर पार्टी अपने-अपने पक्ष में तर्क-वितर्क-कुतर्क दे रही है। कुछ दिनों पहले नोटा (NOTA) को लेकर चर्चा हो रही थी। चर्चा के दौरान एक का तर्क था कि नोटा मतलब एक वोट की बर्बादी। बिल्कुल, सहमत! यह भी अपने वोट को बर्बाद करने के कई तरीकों में से एक तरीका है। पर नोटा के कई फायदे भी हैं...
पहला, NOTA को वोट देने से आप भविष्य में अपने साथ होने वाले किसी भी 'विश्वासघात' की फीलिंग से बच जाते हैं।
दूसरा, NOTA माने एक निर्जीव चीज। तो उससे कभी भी मोहभंग जैसा आपको फील नहीं होगा।
और तीसरी सबसे बड़ी बात, आप एक आत्मग्लानि से बच जाते हैं। आप वोट देने के चाहें लाख आधार ढूंढ लो- राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, धर्मनिरपेक्षता, अपनी कौम, अपनी जाति, अपने वाला... फलाना-ढिकाना। मगर अंदर ही अंदर यह भी जानते हैं कि आपने वोट तो महाभ्रष्टाचारी या महासाम्प्रदायिक या महाजातिवादी या महावंशवादी या जमीनों के महामाफिया या शराब के महामाफिया या महागुंडे या इकोनॉमी के महासत्यानाशी या इसी तरह की महान विशेषताओं वाले गुणी व्यक्ति को दिया है...।
और अब सीरियस बात... लोकतंत्र में प्रतीकों का बड़ा महत्व है। जिस युग में भी 25 फीसदी वोट NOTA को मिलने लगेंगे, बस उस युग से प्रदेश, देश और जनहित में पॉलिसियों के बदलने की युगांतकारी शुरुआत होगी...।
लोकतंत्र में वोट सबसे बड़ी ताकत है और शुक्रिया लोकतंत्र कि उसने NOTA के रूप में इससे भी बड़ी ताकत थमाई है। बस, उन अच्छे दिनों का इंतजार है, जब यह ताकत तमाम महागुणी नेताओं के चेहरों पर तमाचे के रूप में अपनी छाप छोड़ने लगेगी।
तब तक सारे महागुणी नेता हम मतदाताओं को Take It For Granted ले सकते हैं। मतलब हम वोटर्स को महामूर्ख मान सकते हैं, बना सकते हैं...
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