By Jayjeet Aklecha/ जयजीत अकलेचा
इस समय हर शहर, हर कस्बे, हर जगह, हर कोने से एक ही बात उठ रही है- गर्मी बहुत है...।
नहीं जी। अभी भी इतनी नहीं है कि हम बारिश की चंद बूंदों के बाद भी इसे याद रख सके...
इतनी भी नहीं है कि कटते पेड़ों की खबरें हमें एंग्जाइटी की हद तक बेचैन कर सके...
इतनी भी नहीं है कि यह हमें हम धर्म, जाति के बजाय पर्यावरण के मुद्दे पर वोट देने को विवश कर सके...
इतनी भी नहीं कि यह नेता लोगों को हमें सुरक्षित पर्यावरण की गारंटी देने के लिए मजबूर कर सके...
तो देखिए, अब भी गर्मी इतनी कहां है?
हमारी-आपकी कॉलोनी में जो जगह बगीचे के लिए रखी गई थी, वहां धर्म के नाम पर कब्जा देखकर क्या हमें गुस्सा आता है?
नया मकान खरीदते हुए क्या हम अपने बिल्डर से यह पूछते हैं कि हरियाली के नाम पर सैकड़ों गैलन पानी पीने वाली कथित हरी घास और केवल ताड़ के पेड़ क्यों?
अगर हम किसान हैं तो कभी खुद से पूछते हैं कि अपने खेतों में दूर-दूर तक एक भी पेड़ क्यों नहीं? या कभी थे तो वे आज कहां हैं?
क्या बड़े-बड़े आर्किटैक्ट खुद से पूछते हैं कि ठंडे यूरोपीय देशों की नकल करने के फेर में वे यह कैसे भूल गए कि भारत जैसे गर्म देशों की इमारतों में इतने शीशों का क्या काम?
तो सूरज देवता, आपसे उम्मीद है कि आप गर्मी का प्रकोप जारी रखेंगे...।
44, 45, 46, ...! इसी से हम घबरा जाएंगे तो 50-55 को कैसे झेलेंगे? ये तो मैच से पहले की नेट प्रैक्टिस है, या कह सकते हैं कयामत की पूर्व संध्या!
आप तो अभ्यास करवाइए...! यह जरूरी है...!!!
और, इतनी भर गर्मी में भी मुझे एक गाना याद आ रहा है- डीजे को भी समझा दो प्यारे म्यूजिक गलती से रुक ना पाए, क्योंकि अभी तो पार्टी शुरू हुई है...!!!
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