रविवार, 24 नवंबर 2024

ब्राजील की Bolsa Família योजना : हर ‘रेवड़ी’ खराब नहीं होती, बशर्ते…

 

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By Jayjeet Aklecha

पहले मप्र और अब महाराष्ट्र तथा झारखंड के चुनाव नतीजों से साफ हो गया है कि महिलाओं को नकद भुगतान जैसी योजनाएं (जिन्हें हम प्यार से ‘रेवड़ियां’ भी कहते हैं) पॉलिटिकली गेम चेंजर साबित हो रही हैं। अब जिन-जिन राज्यों में ऐसे चुनाव होंगे, वहां इस तरह की योजनाएं आनी तय हैं।

कई लोग इन योजनाओं को ‘अच्छी राजनीति' मगर ‘खराब अर्थनीति' भी कहते हैं। दरअसल, इन योजनाओं का राजनीति से प्रेरित होना ही इसका सबसे खराब पहलू है, अन्यथा ये कैश ट्रांसफर स्कीम्स पॉलिटिकली ही नहीं, सामाजिक, शैक्षणिक और आर्थिक रूप से भी गेम चेंजर हो सकती हैं।

माझी लाडकी बहीण, मईया (और साथ ही मप्र की लाड़ली बहना) योजनाओं की पृष्ठभूमि में ब्राजील की उस योजना की चर्चा करना लाजिमी है, जिसने इस विकासशील देश की सोशल-इकोनॉमिक तस्वीर को बदलने में अहम भूमिका निभाई है। यह योजना बताती है कि भले ही स्कीम में नकद पैसा दिया जा रहा हो, लेकिन अगर उसे लागू करने वाले लीडर्स की नीयत अच्छी है, नजरिया व्यापक है और मकसद (कमोबेश) पवित्र है तो इन पर खर्च किया गया पैसा व्यर्थ नहीं जाता है। दुर्भाग्य से, हमारे यहां के लीडर्स की नीयत में इतनी खोट है कि सैद्धांतिक तौर पर बेहतर नजर आने वाली योजनाएं भी अपने मकसद में कामयाब नहीं हो पातीं।  

बोल्सा फैमीलिया (Bolsa Família) योजना ब्राजील की ऐसी ही एक योजना है, जो पिछले करीब 20 साल से चल रही है। इस पर विश्व बैंक, इंटरनेशनल लेबर ऑर्गनाइजेशन, आईएमएफ जैसे तमाम कुख्यात-विख्यात संगठनों ने स्टडीज की हैं और तारीफ भी। और अब तो वित्तीय मदद भी दे रहे हैं। बातें कुछ पाइंट्स में ताकि समझने में आसानी हो...

- इस योजना को अक्टूबर 2003 में ब्राजील के तत्कालीन (और मौजूदा भी) राष्ट्रपति लुइज लूला दा सिल्वा ने शुरू किया था। इसमें एक सीमा से कम आय अर्जित करने वाले परिवारों को नकद सहायता दी जाती है, जो उस परिवार की महिला प्रमुख के खाते में जाती है, बिल्कुल हमारे यहां की योजनाओं की तरह।

- मगर एक अंतर है। वहां इसे एजुकेशन और टीकाकरण से जोड़ा गया है। सहायता उसी परिवार को दी जाती है, जिस परिवार के बच्चों की स्कूल में उपस्थिति कम से कम 85 फीसदी हो। साथ ही टीकाकरण भी अनिवार्य है (ये शुरुआती शर्तें थीं। अब समय के साथ कुछ बदलाव हुए हैं।)

- इस पर खर्च कितना होता है? 2023 में इसका बजट 29 अरब डॉलर यानी भारतीय मुद्रा में हर साल 2,450 अरब रुपए। टैक्स भरने का दम भरने वाले कई लोगों की सांसें तो यह आंकड़ा सुनकर ही फूल जाएंगी। 

- इसमें प्रति परिवार करीब 8,700 रुपए (600 ब्राजीलियन रियल) दिए जाते हैं (इसका वास्तविक मूल्य भारत में करीब 4 हजार रुपए के आसपास हो सकता है)। इसका फायदा 1.3 करोड़ परिवारों (लगभग 5 करोड़ लोगों) को हुआ।

- तो इससे क्या बदला? सबसे महत्वपूर्ण यही जानना है। इसको लेकर विश्व बैंक ने एक विस्तृत स्टडी की थी। ऐसी योजनाओं पर होने वाले खर्च को लेकर चिंता जताने वालों के लिए एक महत्वपूर्ण आंकड़ा है - खर्च किए गए प्रत्येक एक डॉलर पर स्थानीय अर्थव्यवस्था में 1.78 डॉलर जनरेट हुए। इसके अलावा सामाजिक पहलू : 3.6 करोड़ लोग गरीबी की रेखा से बाहर आए। बच्चों की स्कूल में उपस्थिति 8% बढ़ी, जिससे बाल श्रम में कमी आई और बाल मृत्यु दर में 20% की कमी हुई।

तो इसके सबक क्या हैं? पहला, हमारे लीडर्स को हर स्कीम को केवल राजनीतिक चश्मे से देखने की आदत छोड़नी होगी। दूसरा, कैश ट्रांसफर वाली हर स्कीम खराब ही होती हो, ऐसा बिल्कुल नहीं है, बशर्ते उसे सुविचारित व सुव्यवस्थित ढंग से लागू किया जाए, वोट के अलावा भी उसका कोई मकसद हो। बेशक, ऐसी योजनाओं का ऊपरी तौर पर राज्य के खजाने पर असर दिखता है, मगर दूसरे अनेक प्रभाव उसे संतुलित कर देते हैं।

और फाइनली, इसका परोक्ष फायदा उन्हें भी होता है, जो कथित तौर पर ‘हमारे टैक्स के पैसे' का रोना-धोना करने से थकते नहीं हैं। उन्हें यह भी पता होना चाहिए कि उनके टैक्स की बड़ी धनराशि तो करप्शन की भेंट चढ़ जाती है, जिस पर शायद ही कभी आंसू बहाए जाते हों।  

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शुक्रवार, 22 नवंबर 2024

चिंदी चिंतन... करप्शन पर बंटेंगे, तो मिटेंगे...!

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By Jayjeet Aklecha/ जयजीत अकलेचा

हमारे राजनीतिक दल नूरा-कुश्ती खेलने में माहिर हैं। एक ने धर्म को पकड़ रखा है तो दूसरे ने जाति को...। हम यानी मासूम रियाया उनके हथियार बनकर ही खुश हैं।
अब गौतम अडाणी का मामला आया है तो यह कांग्रेस और भाजपा में बंट गया है... कोशिश यही है कि यह किसी तरह राजनीति की भेंट चढ़ जाए...। भ्रष्टाचार का इशू ही ना रहे... बस अडाणी ही अडाणी रहे। एक तरफ राहुल बाबा अडाणी के नाम पर हमलावर रहें... और विरोधियों को राहुल पर हमले के मुद्दे तो मिल ही जाते हैं। तो बस अडाणी वर्सेस राहुल वर्सेस मोदी वर्सेस कांग्रेस वर्सेस भाजपा वर्सेस (बीच बीच में केजरीवाल) वर्सेस फलाना वर्सेस ढिकाना... हमारे तमाम नेताओं को यही पसंद है, और हमें तो और भी ज्यादा पसंद हैं।
पर जरा एक चिंदी चिंतन कर लेते हैं...
आरोप है कि अफसरों को 2,200 करोड़ रुपए रिश्वत में दिए गए। क्यों? ताकि वे महंगी बिजली खरीद सकें। किस पैसे से? हमारे पैसे से!
अगर रिश्वत में ही इतना पैसा दिया गया है (हालांकि आरोप है) तो महंगी बिजली खरीदने में कितने अरब वारे-न्यारे हुए होंगे या भविष्य में होंगे? सोचिए! पर हमें कुछ फर्क पड़ता है? नहीं जी। हमें तो बस चिंता रहती है, बंटेंगे तो कट ना जाएं और संविधान लूटकर कोई हमें आरक्षण से विहीन ना कर दें....।
हां, बीच-बीच में हमें फ्रीबीज की चिंता जरूर होती है। कितने हजार करोड़ रुपए उन पर खर्च हो रहे हैं...। ये भी हमारे नेताओं की एक अलग तरह की बदमाशी है..!!! (शायद कई सहमत ना होंगे, मगर करप्शन वाली से बेहतर है...!)
पुनश्च... भ्रष्टाचार पर बंटेंगे तो मिटना तय है, एक ना एक दिन...! और शायद, हमने ठान लिया है...!!!

गुरुवार, 10 अक्तूबर 2024

‘AI के लिए कोई मौत नहीं लिखी होगी। यह हमेशा ज़िंदा रहेगी, और फिर हमारे सिर पर होगा एक अमर तानाशाह...’

 

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By जयजीत अकलेचा (Jayjeet Aklecha)

 मशीन लर्निंग के आविष्कारक यानी AI के गॉडफादर कहे जाने वाले जैफ्री . हिंटन को भौतिकी के क्षेत्र का नोबेल पुरस्कार देने का एलान किया गया है। विडंबना यह है कि जैफ्री . हिंटन को AI के आविष्कार पर उतना ही अफसोस रहा है, जितना कि अल्फ्रेड नोबेल को डायनाइट के आविष्कार पर रहा, जितना कि शायद ओपेनहाइमर को जापान पर परमाणु बम गिराने के बाद के वर्षों में हुआ। हालांकि यह भी सच है कि अगर अल्फ्रेड नोबेल डायनामाइट का आविष्कार नहीं करते तो कोई और करता। ओपेनहाइमर परमाणु बम ना बनाते तो कोई और बनाता। इसी तरह हिंटन अगर मशीन लर्निंग का आविष्कार नहीं करते तो कोई और करता।ईश्वरबहुत हाशियार है। उसने मनुष्य नामक प्राणी को जन्मते ही उसके दिमाग मेंविनाशका बटन दे दिया, ताकि सृजन और विनाश का प्राकृतिक सिलसिला बरकरार रहे।


इलॉन मस्क अपने रुतबे वाले उन चंद लोगों में शुमार हैं, जो AI को लेकर लगातार चिंता जताते आए हैं। ऐसे में मशीन लर्निंग के लिए नोबेल पुरस्कार के एलान पर मुझे मस्क याद रहे हैं और याद रहा है कुछ अरसा पहले उनके द्वारा किया गया एक ट्वीट। मस्क ने उसमें कहा था कि इंसानों को उत्तर कोरिया के बजाय AI के बारे में अधिक चिंतित होना चाहिए। मसलन, परमाणु हथियारों के बजाय AI, क्योंकि उनकी नजर में AI परमाणु हथियारों से भी कहीं अधिक घातक है।

वैसे मस्क की नज़र में AI अपने आप में कोई बड़ा ख़तरा नहीं है, वैसे ही जैसे परमाणु ऊर्जा भी अपने आप में घातक नहीं है। ख़तरा तो वह AI है, जिसे अनियंत्रित और बग़ैर नियम-कायदों के खुल्ला छोड़ दिया गया है। उन्होंने इस परिदृश्य को एक तानाशाह के शासन से भी बदतर बताया है: ‘अगर कोई तानाशाह बहुत दुष्ट है, तब भी एक एक दिन उसका मरना तय होता है। लेकिन AI के लिए कोई मौत लिखी नहीं होगी। यह हमेशा ज़िंदा रहेगी, और फिर हमारे सिर पर एक ऐसा अमर तानाशाह होगा, जिससे हम कभी बच नहीं सकेंगे।' (माइकल व्लिसमस की बायोग्राफी ‘Elon Musk - Risking It All’)

सवाल यह है कि क्या कोई सरकार इसको लेकर फिक्रमंद है? माफ करना मैं भारत की बात नहीं कर रहा। यहां तो हम अभी तक जाति और धर्म से ऊपर नहीं उठ पाए हैं। तो यहां हम AI के विनाशकारी तूफान के गुजरने के बाद इसकी बात करेंगे, गर फुर्सत मिली। मैं अमेरिका सहित उन चंद विकसित देशों की बात कर रहा हूं, जो विज्ञान के क्षेत्र में कथित तौर पर काफी प्रगति कर चुके हैं। और दुर्भाग्य से किसी भी सरकार के एजेंडे में AI के नियंत्रण को लेकर कोई रोड मैप नहीं है।

अगर मस्क जैसा शख्स कह रहा है कि मनुष्य के अस्तित्व के सामने यह सबसे बड़ा संकट है, और सबसे गंभीर संकट भी, तो इसे पूरी मानव जाति को गंभीरता से लेना चाहिए। और उनके हालिया बयान के मद्देनजर यहां फिर भारत का जिक्र करना चाहूंगा। उन्होंने हाल ही में एक कार्यक्रम में कहा था, ‘अगर आप नौकरी करना चाहते हैं तो कीजिए, लेकिन केवल शौक के लिए। नहीं तो काम तो AI और रोबोट कर ही लेंगे।भारत जैसे विकासशील देशों में जहां बेरोजगारी एक भयावह समस्या है, हम इस बढ़ते खतरे को हल्के में नहीं ले सकते और ही यह कहकर हाथ पर हाथ धरे बैठे रह सकते है कि जो बंदा अपडेटेड रहेगा, वही टिकेगा। कैसे? AI से अपडेटेड भला कौन हो सकेगा? तो टिकेगी तो केवल एआई!

और नोबेल अवार्ड की घोषणा के तुरंत बाद स्वयं हिंटन ने क्या कहा, वह भी जान लेते हैं: "We need to worry about bad consequences (of AI).’

और अवार्ड मिलने के तुरंत बाद अपने पहले इंटरव्यू में जब इंसानी अस्तित्व के खतरे को लेकर वे AI के प्रति आगाह करते हैं तो उनके गंभीर चेहरे के पीछे नोबेल पुरस्कार मिलने की खुशी से ज्यादा एक दर्द को महसूस कर सकते हैं।

 

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