कुछ अरसा पहले अपने अखबार के लिए स्टार्टअप्स पर एक स्टोरी करते समय भारत के बड़े स्टार्टअप प्रमोटरों में से एक के. गणेश से बात हो रही थी। भारत में इतना टैलेंट होने के बावजूद हम इनोवशन क्यों नहीं कर पाते हैं, इसको लेकर उन्होंने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही थी। उसका सार यह था कि भारतीय आंत्रप्रेन्योर और इनोवेटर जिस सबसे बड़ी समस्या से जूझ रहे हैं, वह है करप्शन और असंगत टैक्स रिजीम। उन्होंने इस विसंगति को ' ब्यूरोक्रेटिक टेरोरिज्म' नाम दिया था।
यह बात आज इसलिए प्रासंगिक है, क्योंकि बीते सप्ताह भर में टेरोरिज्म के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ हुए टकराव के दौरान दो शब्द सबसे ज्यादा सुनने को मिले हैं- रफाल और एस-400 (जिसे हमने बड़ा सुंदर नाम दे दिया- 'सुदर्शन')। बेशक, हमारी सेना की जांबाजी पर कोई शक नहीं है, लेकिन वह जिन हथियारों से लड़ रही है और लड़ती है, उनमें अधिकांश हमारे इनोवेट किए हुए नहीं हैं। या तो वे बाहर से खरीदे गए हैं (जैसे रफाल) या फिर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत भारत में बनाए गए हैं (जैसे सुदर्शन और ब्रह्मोस)।
हम अक्सर इस बात पर इठलाते हैं कि हमारे पास एक बड़ा बाजार है और इसलिए कोई भी देश इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता। हां, बिल्कुल, कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता और इसीलिए तो अमेरिका ने भीषणता की ओर बढ़ते युद्ध को रुकवाने की कोशिश की ताकि बाजार को ठेस ना पहुंचे। लेकिन कड़वी हकीकत हमें स्वीकारनी चाहिए। दुनिया में असल इज्जत इनोवेटर कंट्री की होती है। असल रुतबा भी इसी का होता है। ट्रम्प ने हमें युद्धविराम के लिए एक रात में समझा दिया। क्या रूस को समझा पाए? क्योंकि रूस बाजार नहीं है, इनोवेटर है। उसका अपना रुतबा है। क्या चीन ट्रम्प की धमकियों से डर गया? नहीं, वह ट्रम्प की एक धमकी का जवाब दो धमकियों से देता है, क्योंकि चीन बड़ा बाजार होने के साथ-साथ इनोवेटर भी है। यदि आज पाकिस्तान का मुकाबला चीन या रूस से होता तो क्या ट्रम्प इस तरह से सरपंच बनते?
तो एक बड़ी जरूरत क्या है? बाजार बनने की या इनोवेटर बनने की? बेशक, इनोवेटर बनने की, लेकिन इसके लिए हमें पाकिस्तान प्रायोजित 'टेरोरिज्म' के साथ-साथ भारतीयों द्वारा प्रायोजित करप्शन और टैक्स टेरोरिज्म के आतंकवाद से भी लड़ना होगा।
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से लड़ने की राह में अमेरिका और चीन आड़े आ जाते हैं। पर भारतीयों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से लड़ने में क्या बाधा है? कम से कम उससे तो लड़िए।
तो अगली बार जब आप वोट देने घर से निकलें तो अपने उम्मीदवारों या उनके आकाओं से यह भी जरूर पूछिएगा कि आपके पास हमारे देशज आतंकवाद से लड़ने का कोई प्लान है या नहीं? नहीं तो बस फिर समय-समय पर सोशल मीडिया पर 'जय हिंद' लिखते रहिए और सीजफायरों पर खीजते रहिए।
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