By Jayjeet Aklecha
मनोज मुंतशिर को 'आदिपुरुष' में लिखे उनके डायलॉग्स के लिए शायद एक बार के लिए माफ भी किया जा सकता है, लेकिन अपनी सफाई में दिए गए इन बयानों के लिए क्या उन्हें माफ करना चाहिए?
यहां उन्होंने दो वर्गों के बीच फैली नफरत की आग को और फैलाने की विफल कोशिश की। शुक्र है लोग उनके भरमाने में नहीं आए।
2. भावनाओं को कैश करने की कोशिश : जब विरोध बढ़ा तो उनका बयान था - 'यह रामायण पर आधारित नहीं है।'
लेकिन मूवी के एक दिन पहले का उनका ट्वीट देखिए - 'श्री राम की सेना….आज बजरंग बली की सीट छोड़कर, पूरा थियेटर भर देना! जय श्री राम!' निश्चित तौर पर वे रामायण की लोकप्रियता के साये में हिंदुओं की भावनाओं को कैश करने की कोशिश कर रहे थे। तो वे कम से कम अपने स्टैंड पर ही टिके रहते।
3. नई पीढ़ी को दिग्गभ्रमित करने की कोशिश: और जब दोनों बयान काम नहीं आए तो उन्होंने कहा, 'मैंने आज की भाषा में डायलॉग्स लिखे हैं, ताकि नई पीढ़ी को समझ में आ सके।'
नई पीढ़ी आज भारतीय संस्कृति, हिंदू जीवन शैली, हिंदू मॉयथोलॉजी को समझने के लिए काफी तत्पर हैं। उसे सही भाषा में सही ज्ञान देने की जरूरत है। पर मनोज आज के बच्चों को क्या समझाना चाहते थे? यह कि हनुमान जी एक टपोरी जैसे थे? (क्योंकि फिल्म में उनकी भाषा से तो उन्हें जाने-अनजाने यही दिखाने की कोशिश की गई )। फिर समझ के मामले में उन्होंने आज की पीढ़ी को जरा अंडर एस्टीमेट नहीं कर लिया?
कुल मिलाकर आदिपुरुष ने वह सुनहरा मौका खो दिया, जिसके जरिए पूरे देश-दुनिया को श्रीराम के असल आदर्शेों के बारे में बताया जा सकता था। नई पीढ़ी को बताया जा सकता था कि हिंदू जीवन शैली वास्तव में है क्या। और इस अवसर को खोने के लिए केवल मुंतशिर ही नहीं, फिल्म निर्माण से जुड़े सभी लोग जिम्मेदार हैं।
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