(और हां, मनोज मुंतशिर भी यह समझें कि जो बोओगे, वही तो काटोगे!)
By Jayjeet
लेकिन कुछ लोगों ने विरोध का जो तरीका अपनाया गया, अब उस पर विचार करने का वक्त आ गया है। क्या उसे हम मर्यादित मानेंगे? जैसा कि मुंतशिर ने कल एक ट्वीट में बताया, कई लोगों ने उनकी मां और परिवार की महिला सदस्यों के खिलाफ भारी अभद्र शब्दों का इस्तेमाल किया है। कौन-सा धर्म किसी मां के खिलाफ अमर्यादित होने की अनुमति देता है? और क्या यह बताने की जरूरत होनी चाहिए कि मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने रावण के खिलाफ जो लड़ाई लड़ी थी, उसके केंद्र में नारी प्रतिष्ठा की रक्षा करना ही मुख्य था?
एक क्षत्रिय संगठन के अध्यक्ष ने कहा, 'फिल्म आदिपुरुष के डायरेक्टर को ढूंढो और मारो।' क्या यह मर्यादा पुरुषोत्तम के क्षत्रिय आदर्शों के अनुरूप है? रामायण कहती है- वास्तविक क्षत्रिय वह है, जो अपने दुश्मन का भी सम्मान करता है।
और कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता तो इस पूरे मामले में अचानक से राजनीति को ले आए- 'हमारे राजीव जी के समय की रामायण तो ऐसी थी और मोदीजी के समय की रामायण ऐसी..' वैचारिक विरोध में भी ऐसी मूढ़ बातें?
और ये तमाम अमर्यादित आचरण किए गए उस एक महान किरदार के नाम पर जिसे हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम के नाम से जानते और पूजते हैं।
हां, मनोज मुंतशिर जैसों को भी अब समझ में आना चाहिए कि भस्मासुर की कहानियां उन्हीं को सबक देने के लिए लिखी गई हैं। 'जैसा बोओगे, वैसा ही काटोगे', मुहावरा भी शायद उन्हीं के लिए बनाया गया है। राष्ट्रवाद और सनातन के नाम पर उन्होंने भी कोई कम प्रपंच नहीं किए। याद रखना होगा कि चीजें धीरे-धीरे बिगड़ती हैं। उन्हें पाकिस्तान याद आना चाहिए। वहां अतिवादी अंतत: उन्हीं के लिए मुसीबत बन गए, जिन्होंने उन्हें पाला-पोसा था।
मनोज यह भूल गए कि वे लेखक हैं, लेकिन उन्होंने लेखकीय धर्म नहीं निभाया। उनके जैसे लोग यह धर्म निभाते तो धर्म के नाम पर देश आज इस तरह अराजकता के मोड़ पर नहीं पहुंचता।
बस, अगला डर यही है कि दुनिया का सबसे उदार धर्म, जिसने मर्यादा पुरुषोत्तम राम जैसे ऐसे महानायक दिए जो शत्रुओं को भी शत्रु नहीं मानते हैं, जिनकी रामराज्य की परिकल्पना में हिरण और शेर एक घाट पर पानी पीते हैं, कहीं उस चौराहे पर ना पहुंच जाए जहां कथित ईश निंदा का मतलब होता है खुलेआम मौत।
और हां, इस तस्वीर के मर्म को समझना बेहद जरूरी है। असहमति का मतलब उसकी प्रतिष्ठा का अपमान करना नहीं है। इसे समझ गए तो देश 'अधर्मयुद्ध' के पागलपन से बाहर आ जाएगा।
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