By Jayjeet
यहां दी गई तस्वीर को याद रखिए, इसकी बात सबसे अंत में... सबसे पहले एक भूली-बिसरी कहानी की बात...
आज अचानक 'भेड़िया आया भेड़िया आया' की कहानी याद आ गई। हमारे यहां इन दिनों धर्मांतरण का परिदृश्य भी कुछ-कुछ इसी तरह का नजर आ रहा है। घास पर जरा-सी आहट नहीं हुई कि जोर-शोर से 'भेड़िया आया' का शोर उच्चारित होने लगता है और लोग हाथों में डंडे लिए धमक पड़ते हैं। कहानी वाले उसे लड़के का वह शोर केवल मन बहलाव का साधन था, लेकिन आज का यह शोर डराता है। विडंबना यह कि दोनों समुदायों को। हां, डराने से वोट मिलते हैं, लेकिन डरने-डराने के इस खेल से अलग से यह सवाल पूछा जा सकता है कि अगर 9-10 साल के भगवा शासनकाल के बाद भी देश का बहुसंख्यक समुदाय डर रहा है तो क्या उसे अपने प्रिय हिंदू हृदय सम्राटों से हाथ जोड़कर घर बैठने की विनती नहीं करनी चाहिए?
खैर, ताजा मामला मप्र के एक स्कूल का है। भारत की दो पवित्र नदियों गंगा-जमुना के नाम पर स्कूल का नाम है। संयोग से स्कूल के संचालक मुस्लिम हैं। हां, स्कूलों को स्कार्फ जैसी ड्रेस को ड्रेस कोड बनाने से बचना चाहिए, लेकिन इसके बावजूद केवल इस आधार पर इस स्कूल पर धर्मांतरण का आरोप लगाना फिर उसी भेड़िया आया की कहानी को दोहराना है। अल्लामा इकबाल को पसंद न करने और उन्हें खारिज करने की ढेरों वाजिब वजहें हो सकती हैं और हैं भी, इसके बावजूद राष्ट्रगान के साथ उनकी नज्म को पढ़वाने के आधार पर स्कूल को 'धर्मांतरण का केंद्र' बताना 'भेड़िया आया' का दूसरा शोर है।
'भेड़िया आया' का यह शोर ईसाई मिशनरीज स्कूलों व कॉलेजों को लेकर भी बीच-बीच में उठाया जाता रहा है। लेकिन आप चाहे ईसाइयों से लाख नफरत कर लें, इस सच को खारिज नहीं कर सकते कि देश में लाखों होशियार बच्चे इन्हीं मिशनरीज स्कूलों-कॉलेजों की देन हैं। अपेक्षाकृत सस्ती और बेहतर शिक्षा की गारंटी प्रदान करने वाली इन मिशनरीज स्कूलों के बरक्स ऐसी ही स्कूलें हमारे यहां के बहुसंख्यक समुदायों ने शुरू की हों, बहुत ज्यादा नजर नहीं आती हैं। विडंबनापूर्ण हकीकत यह भी है कि हिंदू हृदय सम्राटों के अनेक कट्टर समर्थकों के बच्चे भी इन मिशनरी स्कूलों में पढ़ रहे हैं या पढ़-लिखकर कई अच्छी जगहों पर काम कर रहे हैं।
बेशक, आर्थिक मोर्चे पर कुछ अच्छी खबरें सुकून दे रही हैं, लेकिन 'भेड़िया आया भेड़िया आया' का शोर इस सुकून को भंग करने का काम रहा है। मुझे यकीन है कि सरकारों में अब भी कुछ समझदार लोग बैठे हैं। बेहतर होगा कि वे जरा इन आवाजों को काबू में करें, ताकि असली और नकली भेड़ियों को पहचाना जा सके और अनावश्यक डर के माहौल को थोड़ा शांत किया जा सके।
और अब यहां दी गई तस्वीर की बात... जब मुझे इस तरह की लड़कियां धूप से बचने की कवायद करती नजर आती हैं तो मन में सूरज देवता के लिए संवेदनाएं और आशंकाएं भर जाती हैं... कहीं उन पर भी धर्मांतरण की साजिश में शामिल होने का आरोप ना लग जाएं... क्योंकि चेहरे पर किसी भी स्कार्फ को हिजाब बताए जाने का फैशन है इन दिनों...।
और आगे जाकर स्कार्फ पहनने की ये स्वतंत्रता भी छिन ली जाए तो कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए। धार्मिक पागलपन महिलाओं की आजादी को कुलचने के साथ ही आगे बढ़ता है... कहीं जबरदस्ती हिजाब पहनाकर तो कहीं जबरदस्ती स्कार्फ हटवा कर…!
(Disclaimer : तस्वीर केवल प्रतीकात्मक है जो गूगल से ली गई है।)
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