हरिशंकर परसाई/ Harishankar Parsai
उनका सबकुछ पवित्र है। जाति में बाजे बजाकर शादी हुई। पत्नी ने सात जन्मों में किसी दूसरे पुरुष को नहीं देखा। उन्होंने अपने लड़के-लड़की की शादी मंडप में की। लड़की के लिए दहेज दिया और लड़के के लिए लिया। एक लड़की खुद पसंद की और लड़के की पत्नी बना दिया।
फुरसत में रहते हैं। दूसरों की कलंक चर्चा में समय काटते हैं। जो समय फिर भी बच जाता है उसमें मूंछ के सफेद बाल उखाड़ते हैं और बर्तन बेचने वाली की राह देखते हैं। अभी उस दिन दांत खोदते आए और कलंक चर्चा का चूर्ण फांकना शुरू कर दिया, 'आपने सुना, अमुक साहब की लड़की अमुक लड़के के साथ भाग गई और दोनों ने शादी कर ली। कैसा बुरा जमाना आ गया है।' मैं जानता हूं कि वे बुरा जमाना आने से दुखी नहीं, सुखी हैं। जितना बुरा जमाना आएगा, वे उतने ही सुखी होंगे। तब वे यह महसूस करेंगे कि इतने बुरे जमाने में भी हम अच्छे हैं। वे कहने लगे, 'और जानते हैं लड़का-लड़की अलग जाति के हैं?' मैंने पूछा, 'मनुष्य जाति के तो हैं ना?' वे बोले, 'हां, उसमें क्या शक है?'
ये घटनाएं बढ़ रही हैं। दो तरह की चिट्ठियां पेटेंट हो गई हैं। उनके मजमून ये हैं। जिन्हें भागकर शादी करना है वे और जिन्हें नहीं करना है, वे भी इनका उपयोग कर सकते हैं।
चिट्ठी नं. 1
पूज्य पिताजी,
मैंने यहां रमेश से शादी कर ली है। हम अच्छे हैं। आप चिंता मत करिए। आशा है आप और अम्मा मुझे माफ कर देंगे।
आपकी बेटी
सुनीता।
चिट्ठी नं. 2
प्रिय रमेश,
मैं अपने माता-पिता के विरुद्ध नहीं जा सकती। तुम मुझे माफ कर देना। तुम जरूर शादी कर लेना और सुखी रहना। तुम दुखी रहोगे तो मुझे जीवन में सुख नहीं मिलेगा। ह्रदय से तो मैं तुम्हारी हूं। (4-5 साल बाद आओगे तो पप्पू से कहूंगी - बेटा, मामाजी को नमस्ते करो।)
तुम्हारी
विनीता।
इसके बाद एक मजेदार क्रम चालू होता है। मां-बाप कहते हैं, वह हमारे लिए मर चुकी है। अब हम उसका मुंह नहीं देखेंगे। फिर कुछ महीने बाद मैं उनके यहां जाता हूं तो वही लड़की चाय लेकर आती है। मैं उनसे पूछता हूं, 'यह तो आपके लिए मर चुकी थी। 'वे जवाब देेते हैं, 'आखिर लड़की ही तो है।' और मैं सोचता रह जाता हूं कि जो आखिर में लड़की है वह शुरू में लड़की क्यों नहीं थी?
एक लड़की दूसरी जाति के लड़के से शादी करना चाहती थी। लड़का अच्छा कमाता था लेकिन लड़की के माता-पिता ने शादी अपनी ही जाति के लड़के से कर दी जो कम तो कमाता ही था, पत्नी को पीटता भी था। एक दिन मैंने उन सज्जन से कहा, 'सुना है वह लड़की को पीटता है।' वे जवाब देते भी तो क्या देते, सिवा इसके कि संतोष है कि जातिवाले से पिट रही है।
इस सबको देखते हुए आगे चलकर युवक-युवती के मिलने पर प्रेम का दृश्य ऐसा होगा -
युवक - क्या आप ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण हैं तो किस प्रकार के ब्राह्मण हैं?
युवती - क्यों, क्या बात है?
युवक - कुछ नहीं! जरा आपसे प्रेम करने का इरादा है।
युवती - मैं तो खत्री हूं।
युवक - तो फिर मेरा आपसे प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि मैं ब्राह्मण हूं।
उनका सबकुछ पवित्र है। जाति में बाजे बजाकर शादी हुई। पत्नी ने सात जन्मों में किसी दूसरे पुरुष को नहीं देखा। उन्होंने अपने लड़के-लड़की की शादी मंडप में की। लड़की के लिए दहेज दिया और लड़के के लिए लिया। एक लड़की खुद पसंद की और लड़के की पत्नी बना दिया।
फुरसत में रहते हैं। दूसरों की कलंक चर्चा में समय काटते हैं। जो समय फिर भी बच जाता है उसमें मूंछ के सफेद बाल उखाड़ते हैं और बर्तन बेचने वाली की राह देखते हैं। अभी उस दिन दांत खोदते आए और कलंक चर्चा का चूर्ण फांकना शुरू कर दिया, 'आपने सुना, अमुक साहब की लड़की अमुक लड़के के साथ भाग गई और दोनों ने शादी कर ली। कैसा बुरा जमाना आ गया है।' मैं जानता हूं कि वे बुरा जमाना आने से दुखी नहीं, सुखी हैं। जितना बुरा जमाना आएगा, वे उतने ही सुखी होंगे। तब वे यह महसूस करेंगे कि इतने बुरे जमाने में भी हम अच्छे हैं। वे कहने लगे, 'और जानते हैं लड़का-लड़की अलग जाति के हैं?' मैंने पूछा, 'मनुष्य जाति के तो हैं ना?' वे बोले, 'हां, उसमें क्या शक है?'
ये घटनाएं बढ़ रही हैं। दो तरह की चिट्ठियां पेटेंट हो गई हैं। उनके मजमून ये हैं। जिन्हें भागकर शादी करना है वे और जिन्हें नहीं करना है, वे भी इनका उपयोग कर सकते हैं।
चिट्ठी नं. 1
पूज्य पिताजी,
मैंने यहां रमेश से शादी कर ली है। हम अच्छे हैं। आप चिंता मत करिए। आशा है आप और अम्मा मुझे माफ कर देंगे।
आपकी बेटी
सुनीता।
चिट्ठी नं. 2
प्रिय रमेश,
मैं अपने माता-पिता के विरुद्ध नहीं जा सकती। तुम मुझे माफ कर देना। तुम जरूर शादी कर लेना और सुखी रहना। तुम दुखी रहोगे तो मुझे जीवन में सुख नहीं मिलेगा। ह्रदय से तो मैं तुम्हारी हूं। (4-5 साल बाद आओगे तो पप्पू से कहूंगी - बेटा, मामाजी को नमस्ते करो।)
तुम्हारी
विनीता।
इसके बाद एक मजेदार क्रम चालू होता है। मां-बाप कहते हैं, वह हमारे लिए मर चुकी है। अब हम उसका मुंह नहीं देखेंगे। फिर कुछ महीने बाद मैं उनके यहां जाता हूं तो वही लड़की चाय लेकर आती है। मैं उनसे पूछता हूं, 'यह तो आपके लिए मर चुकी थी। 'वे जवाब देेते हैं, 'आखिर लड़की ही तो है।' और मैं सोचता रह जाता हूं कि जो आखिर में लड़की है वह शुरू में लड़की क्यों नहीं थी?
एक लड़की दूसरी जाति के लड़के से शादी करना चाहती थी। लड़का अच्छा कमाता था लेकिन लड़की के माता-पिता ने शादी अपनी ही जाति के लड़के से कर दी जो कम तो कमाता ही था, पत्नी को पीटता भी था। एक दिन मैंने उन सज्जन से कहा, 'सुना है वह लड़की को पीटता है।' वे जवाब देते भी तो क्या देते, सिवा इसके कि संतोष है कि जातिवाले से पिट रही है।
इस सबको देखते हुए आगे चलकर युवक-युवती के मिलने पर प्रेम का दृश्य ऐसा होगा -
युवक - क्या आप ब्राह्मण हैं और ब्राह्मण हैं तो किस प्रकार के ब्राह्मण हैं?
युवती - क्यों, क्या बात है?
युवक - कुछ नहीं! जरा आपसे प्रेम करने का इरादा है।
युवती - मैं तो खत्री हूं।
युवक - तो फिर मेरा आपसे प्रेम नहीं हो सकता, क्योंकि मैं ब्राह्मण हूं।
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