रविवार, 25 मई 2025

कराची बेकरी V/S बॉम्बे बेकरी...!

By Jayjeet

जैसे भारत के हैदराबाद में कराची बेकरी है, वैसे ही पाकिस्तान के हैदराबाद में बॉम्बे बेकरी है। इसको लेकर हाल ही में पाकिस्तान के सबसे बड़े अखबार डॉन ने लिखा, "जहां भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पार्टी भाजपा के कुछ कार्यकर्ताओं ने हिंदुस्तान के हैदराबाद स्थित कराची बेकरी में तोड़-फोड़ की, वहीं (पाकिस्तानी) हैदराबाद स्थित बॉम्बे बेकरी में हमेशा की तरह उससे मोहब्बत करने वालों की भीड़ उमड़ी रही।"
करीब 114 साल पुरानी इस बॉम्बे बेकरी का स्वामित्व एक हिंदू थड्‌डानी परिवार के पास है। इसी अखबार की रिपोर्ट में कुछ लोगों को उद्धृत करते हुए कहा गया- 'बॉम्बे बेकरी हमारे पाकिस्तान की शान है और हमें इस पर गर्व है। कोई इसे हाथ भी नहीं लगा सकता...।' (और किसी ने हाथ लगाया भी नहीं)।
यह पाकिस्तान का अखबार है और इसलिए आप इसकी इस रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज करने को स्वतंत्र हैं। लेकिन यहां यह भी बता दूं कि इस अखबार ने हालिया टकराव को लेकर अपनी सरकार को उसी तरह आड़े हाथ लिया है, जैसे भारत में कुछ 'गद्दार' टाइप के पत्रकार और स्वतंत्र लेखक सरकार से सवाल पूछने की हिमाकत कर रहे हैं।
इस खबर को मैं केवल उस परिप्रेक्ष्य में रखने की कोशिश कर रहा हूं, जिसमें जयपुर और इंदौर में कुछ मिठाई वालों ने हमारी मिठाइयों की सांस्कृतिक पहचान को ही बदलने की नापाक कोशिश की है। मैसूर पाक, खोपरा पाक के नाम से 'पाक' शब्द हटाने जैसी हास्यास्पद हरकतें की गईं और कतिपय मूर्खों ने इसका समर्थन किया है।
एक तथ्य और जान लेते हैं। पाकिस्तान के कोट राधा किशन शहर में अमृतसर स्वीट्स है। इसी तरह कराची में दिल्ली स्वीट्स और इस्लामाबाद में अंबाला बेकर्स के नाम से मिठाई की दुकानें हैं। ये तमाम दुकानें आज भी अपना बिजनेस कर रही हैं और यहां किसी तरह की तोड़फाड़ नहीं की गई है। बेशक, वहां भी योगियों की कमी नहीं हैं, बल्कि ज्यादा ही होंगे, लेकिन ' कोट राधा किशन' जैसा नाम आज भी बरकरार है और यह चौंकाता भी है।
दिक्कत यह है कि हमने देशभक्ति और गद्दारी के बड़े आसान से मानक बना लिए हैं। किसी भी नाम से 'पाक' हटा दो, आप देशभक्त बन जाएंगे!!! क्या देशभक्ति के लिए कुछ थोड़े कठिन मानक नहीं रखे जाने चाहिए? ऐसा ही गद्दारी के साथ भी हो। 'कराची बेकरी' का समर्थन करने वाला क्या गद्दार हो जाएगा?
(तस्वीर : Dawn अखबार से...)

गुरुवार, 22 मई 2025

(Sweet name changed, PAK word removed ) मैसूर पाक नाम बदलने से खुश, मगर उठाया 'चीनी' का उठाया सवाल!

 

Sweet name changed, PAK word removed, मैसूर पाक, मैसूर श्री,
By A Jayjeet

जैसे ही खबर मिली कि मैसूर पाक से 'पाक' हटा दिया गया है, रिपोर्टर तुरंत पहुंच गया उससे क्विक इंटरव्यू लेने....
रिपोर्टर: कैसा लग रहा है आपके नाम में से 'पाक' जैसे 'नापाक' को हटाने से? अब आप 'मैसूर श्री' हो गई है।
मैसूर श्री: इस समय तो मैं अच्छा ही कहूंगी। अभी कुछ भी बुरा कहने का वक्त नहीं है, समझें!
(रिपोर्टर ने भी यह सुनकर राहत की सांस ली। बुरा कहती, तब भी रिपोर्ट कैसे करता!)
रिपोर्टर: ऐसा ना लग रहा कि अब जब आपके चाहने वाले आपको खाएंगे तो उनमें देशभक्ति का एक नया जज्बा, मतलब की देशभक्ति की नई भावना पैदा हो जाएगी?
मैसूर श्री: हां, पर शायद आधी-अधूरी।
रिपोर्टर: हें... क्या मतलब?
मैसूर श्री: मतलब यह कि इसमें 'चीनी' तो अभी भी है। उसका क्या करेंगे? (हालांकि उसने तुरंत ही यह स्पष्ट कर दिया था कि ये सवाल नहीं है, सिर्फ एक जिज्ञासा है।)
इतने में पास में बैठा मोती पाक (परिवर्तित नाम- मोती श्री) बोल उठा- इसका तो बड़ा सिंपल सॉल्यूशन है। सरकार को बस एक यही तो आदेश जारी करना है कि 'चीनी' को हर स्थिति में 'शक्कर' ही कहा जाएगा। चीनी को 'चीनी' कहना राष्ट्रविरोधी कृत्य माना जाएगा।
तो इस आम सहमति के बाद रिपोर्टर भी खुशी-खुशी वापस लौट गया।
हालांकि ऑफ द रिकॉर्ड बता दें कि उसी वक्त खोपरा श्री ने यह सवाल उठाने की कोशिश की थी कि देश में आधी से ज्यादा चीजें 'चीनी' हैं, उनका क्या करेंगे? लेकिन तमाम राष्ट्रवादी मिठाइयों ने ऐसे देशद्रोही सवाल पर उसका मुंह बंद कर दिया!!

Photo : कतिपय कारणों से मैसूर श्री ने अपनी खिंचवाने मना कर दिया। इसलिए उनकी जगह स्वर्ण भस्म श्री की तस्वीर दी जा रही है। वे एलीट वर्ग की राष्ट्रवादी विचारधारा से ताल्लुक रखती है।

 

 

शनिवार, 17 मई 2025

शीर्ष अदालत में केविएट दायर करेगी गटर... क्यों? जानिए उसी की जुबानी...

By Jayjeet

एक अदालत द्वारा फलाने मंत्री महोदय की भाषा को 'गटरछाप' बताने से गटर आहत हैं। पत्रकार ने गटर से सीधी बात की...
- पता चला कि आप आहत हैं? क्यों?
- आप जानते ही हैं कि हाई कोर्ट ने फलाना मंत्री के दिल, दिमाग, जुबान वगैरह-वगैरह की तुलना मुझसे की है। एक गैरतमंद गटर यह तुलना कैसे बर्दाश्त कर सकती है। आप करते?
- आपको भी तीन दिन हो गए? अब तक चुप क्यों रही?
- ठीक सवाल है। भले ही कुछ लोग अपने आप को कोर्ट से ऊपर मानते हो, लेकिन मेरे मन में माननीय कोर्ट के प्रति पूरा सम्मान है। मैं कड़वां घूंट पीकर बैठ गई कि चलो, मेरे ही बहाने मालिक लोग अपने शागिर्द के खिलाफ कुछ कार्रवाई कर लेंगे। तो मैं यह बेइज्जती भी बर्दाश्त कर लेती। आखिर सेना और महिलाओं के सम्मान के आगे इस बेइज्जती का कोई मोल नहीं है।
- आगे क्या करने का इरादा है?
- जैसे वह फलाना मंत्री शीर्ष अदालत में गया है, वैसे ही मैं भी शीर्ष अदालत में जा रही हूं। मैं वहां केविएट दाखिल करके सुप्रीम कोर्ट से आग्रह करुंगी कि किसी भी आलतू-फालतू मंत्री-संत्री या नेता वगैरह की तुलना मुझसे करने से पहले मेरा भी पक्ष सुना जाए। हर अदालत के लिए ऐसे निर्देश जारी करने का अनुरोध किया जाएगा। आखिर समाज में मेरी भी कोई प्रतिष्ठा है। मैं बगैर शपथ लिए अपने दायित्व निभाती हूं।

गुरुवार, 15 मई 2025

शुक्र है, इस्तीफा ना दिया। नहीं तो, नेता कसम, नेता लोगों पर से भरोसा ही उठ जाता!!!

By Jayjeet

आज सुबह जब अखबारों में पढ़ा कि मंत्री जी अभी इस्तीफा नहीं देंगे, उनके इस्तीफे पर सहमति नहीं बन सकी तो दिल को बड़ा सुकून मिला। कल दिनभर धुकधुकी लगी रही थी कि कहीं इस्तीफा ना दे दे या उनके आका लोग भावनाओं में बहकर बर्खास्त ना कर दे। अगर ऐसा हो जाता तो, नेता कसम, नेता लोगों पर से भरोसा ही उठ जाता।
फिर ये भी तो देखिए कि वे कितने दुखी हो लिए हैं। हर चैनल पर आ-आकर दुखी हो रहे हैं। शर्मिंदा हो रहे हैं। दुखी और शर्मिंदा होने का अगले 7 जनम का कोटा एडवांस में ही पूरा कर लिया है।
फिर, हर चैनल पर आकर कहना- वह तो मेरी बहन हैं। एक विधर्मी महिला को अपनी बहन बताना, वह भी बार-बार बताना, बताओ, अपनी आत्मा को कितना दुखी करके वे ये सब कह रहे होंगे। कितना कष्ट झेलना पड़ रहा होगा एक बेचारी मासूम आत्मा को। और हम हैं कि इस्तीफे पर अड़े हुए हैं। लानत है हम पर!!!
पुनश्च… इन्हीं मंत्री महोदय को जून 2014 में सांप ने डंस लिया था (खबर की लिंक कमेंट बॉक्स में देखें)। इसके अनर्थ आप अपने-अपने तरीके से निकालते रहिए। लेकिन खबरदार, जहर-वहर टाइप की कोई चलताऊ बात की। जिसने डंसा था, वह सांप करीब एक साल तक जिंदा रहा। बताया जाता है कि उसकी मौत उसके ही जहर से हुई है। (हालांकि इसकी पुष्टि नहीं हो सकी!)

सोमवार, 12 मई 2025

‘मेड इन इंडिया’ नहीं, ‘मेड बाय इंडिया’ की दरकार


By A. Jayjeet

पहलगाम के क्रूर आतंकी हमले के बाद हमारी सेना ने जिस तरह पाकिस्तान स्थित आतंकवादियों के ठिकानों को नेस्तनाबूद किया, उस पर प्रत्येक भारतीय गर्व कर सकता है और कर भी रहा है। लेकिन जिस वक्त हर हिंदुस्तानी पाकिस्तान को समूल नष्ट किए जाने के जज्बे से लबरेज था, उसी समय दोनों मुल्कों ने सीजफायर का एलान कर दिया। समग्र मानवीय चिंताओं के मद्देनजर युद्ध कभी भी बेहतर विकल्प नहीं हो सकते। इसलिए बड़े हल्कों में राहत की सांस भी ली गई और इसका स्वागत भी किया गया।

सीजफायर के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने श्रेय लेने में तनिक भी देरी नहीं की। यहां तक कि उन्होंने यह भी दावा किया कि दोनों देशों के साथ व्यापार बंद करने की धमकी देकर उन्होंने उन्हें युद्धविराम के लिए राजी किया। इसका लाजिमी तौर पर भारत सरकार ने तुरंत खंडन भी किया। 

हमें मानना चाहिए कि ट्रम्प का यह दावा पूरी तरह से गलत ही होगा। लेकिन इसके बावजूद हमें कम से कम एक यह चिंता तो जरूर होनी चाहिए- अमेरिका आज भी भारत और पाकिस्तान दोनों को एक तराजू पर तौलता है। बीच संघर्ष के दौरान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) पाकिस्तान को एक अरब डॉलर का लोन स्वीकृत कर देता है और हम लाचारी से इस कड़वे घूंट को पी जाने के लिए मजबूर हो जाते हैं। 

यह तथ्य इस बात की ओर स्पष्ट इशारा करता है कि हम भले ही दुनिया का सबसे बड़ा बाजार होने और बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में एक होने के लाख दावे कर लें, लेकिन ये दावे हमें एक देश के तौर पर वे सम्मान नहीं दिलाते, जिसकी हर भारतीय आकांक्षा करता है। आखिर ऐसा क्यों? 

इसका एक सिरा राष्ट्र के नाम दिए गए प्रधानमंत्री के उसी सम्बोधन से खींचा जा सकता है, जिसमें उन्होंने बड़े ‘गर्व’ के साथ ‘मेड इन इंडिया’ की बात कही थी। उन्होंने कहा था कि आज भारत ‘मेड इन इंडिया’ हथियारों से लड़ाई रहा है। ऑपरेशन सिंदूर से दो दिन पहले प्रधानमंत्री ने एक कार्यक्रम में इसी तरह ‘गर्व’ के भाव के साथ यह भी कहा था कि आज भारत (‘मेड इन’ स्मार्टफोन की बदौलत) स्मार्टफोन का दूसरा सबसे बड़ा निर्यातक बन गया है। 

‘मेड इन इंडिया’ बड़ी आकर्षक शब्दावली है, जो कई लोगों को गर्व से भर देती है। लेकिन अब देश को ‘मेड इन इंडिया’ से आगे निकलकर ‘मेड बाय इंडिया’ की ओर बढ़ने की दरकार है। अगर युद्धक सामग्री की बात करें तो चाहे रफाल हो या एस-400 (जिसे हमने बड़ा सुंदर नाम दे दिया- 'सुदर्शन') या ब्रम्होस, इनमें से अधिकांश हमारे इनोवेट किए हुए नहीं हैं। या तो वे बाहर से खरीदे गए हैं (जैसे रफाल) या फिर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत भारत में बनाए गए हैं (जैसे सुदर्शन और ब्रह्मोस)। बेशक, डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की दूरदर्शी सोच के चलते आज भारत के पास अनेक स्वदेशी मिसाइलें हैं, लेकिन हम सब जानते हैं कि वे पर्याप्त नहीं हैं। बात केवल हथियारों तक सीमित नहीं है। न्यू एज इनोवेशन में हम कहां है? हमारे पास अपना एआई या अपना ऑपरेटिंग सिस्टम तो छोड़िए, स्वयं का एक स्मार्टफोन तक नहीं है।   

‘मेड इन इंडिया’ के लिए हमारा असेंबल कंट्री बनना पर्याप्त होता है, जो हम बन चुके हैं। लेकिन ‘मेड बाय इंडिया’ के लिए हमें इनोवेटर कंट्री बनना होगा। हमारे पास टैलेंट की कमी नहीं है, लेकिन टैलेंट और इनावेशन के बीच में फैला हुआ है ‘ब्यूरोक्रेटिक टेरोरिज्म' यानी करप्शन और असंगत टैक्स रिजीम। यह हमारी इनोवशन स्प्रिट को एक तरह से खत्म कर देता है। 

 हमें समझना होगा कि आज के दौर में दुनिया में असल सम्मान उस देश को मिलता है, जो इनोवेट करता है। असल रुतबा भी उसी का होता है। ट्रम्प ने हमें युद्धविराम के लिए एक रात में समझा दिया। क्या रूस को समझा पाए? या चीन ट्रम्प की धमकियों से डर गया? अब तो टैरिफ मसलों पर अमेरिका चीन के साथ वार्ता करने जा रहा है। 

इसलिए सीमा पार के टेरोिरज्म के साथ-साथ हमें अपनी सीमाओं के भीतर के इस ‘ब्यूरोक्रेटिक टेरोरिज्म' से भी निपटना होगा। तभी हम असल में एक इनोवेशन कंट्री बन सकेंगे। और तब कोई ट्रम्प हमें युद्धविराम के लिए मनाने या धमकाने की हिम्मत नहीं कर पाएगा। हो सकता है, तब हमें शायद युद्ध की भी जरूरत न पड़े। 


भारतीयों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से कौन लड़ेगा? (और ये भारतीय 'देशभक्त' की श्रेणी में आते हैं, 'गद्दार' की नहीं!)


By Jayjeet
कुछ अरसा पहले अपने अखबार के लिए स्टार्टअप्स पर एक स्टोरी करते समय भारत के बड़े स्टार्टअप प्रमोटरों में से एक के. गणेश से बात हो रही थी। भारत में इतना टैलेंट होने के बावजूद हम इनोवशन क्यों नहीं कर पाते हैं, इसको लेकर उन्होंने एक बहुत महत्वपूर्ण बात कही थी। उसका सार यह था कि भारतीय आंत्रप्रेन्योर और इनोवेटर जिस सबसे बड़ी समस्या से जूझ रहे हैं, वह है करप्शन और असंगत टैक्स रिजीम। उन्होंने इस विसंगति को ' ब्यूरोक्रेटिक टेरोरिज्म' नाम दिया था।
यह बात आज इसलिए प्रासंगिक है, क्योंकि बीते सप्ताह भर में टेरोरिज्म के मुद्दे पर पाकिस्तान के साथ हुए टकराव के दौरान दो शब्द सबसे ज्यादा सुनने को मिले हैं- रफाल और एस-400 (जिसे हमने बड़ा सुंदर नाम दे दिया- 'सुदर्शन')। बेशक, हमारी सेना की जांबाजी पर कोई शक नहीं है, लेकिन वह जिन हथियारों से लड़ रही है और लड़ती है, उनमें अधिकांश हमारे इनोवेट किए हुए नहीं हैं। या तो वे बाहर से खरीदे गए हैं (जैसे रफाल) या फिर टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के तहत भारत में बनाए गए हैं (जैसे सुदर्शन और ब्रह्मोस)।
हम अक्सर इस बात पर इठलाते हैं कि हमारे पास एक बड़ा बाजार है और इसलिए कोई भी देश इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता। हां, बिल्कुल, कोई नजरअंदाज नहीं कर सकता और इसीलिए तो अमेरिका ने भीषणता की ओर बढ़ते युद्ध को रुकवाने की कोशिश की ताकि बाजार को ठेस ना पहुंचे। लेकिन कड़वी हकीकत हमें स्वीकारनी चाहिए। दुनिया में असल इज्जत इनोवेटर कंट्री की होती है। असल रुतबा भी इसी का होता है। ट्रम्प ने हमें युद्धविराम के लिए एक रात में समझा दिया। क्या रूस को समझा पाए? क्योंकि रूस बाजार नहीं है, इनोवेटर है। उसका अपना रुतबा है। क्या चीन ट्रम्प की धमकियों से डर गया? नहीं, वह ट्रम्प की एक धमकी का जवाब दो धमकियों से देता है, क्योंकि चीन बड़ा बाजार होने के साथ-साथ इनोवेटर भी है। यदि आज पाकिस्तान का मुकाबला चीन या रूस से होता तो क्या ट्रम्प इस तरह से सरपंच बनते?
तो एक बड़ी जरूरत क्या है? बाजार बनने की या इनोवेटर बनने की? बेशक, इनोवेटर बनने की, लेकिन इसके लिए हमें पाकिस्तान प्रायोजित 'टेरोरिज्म' के साथ-साथ भारतीयों द्वारा प्रायोजित करप्शन और टैक्स टेरोरिज्म के आतंकवाद से भी लड़ना होगा।
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से लड़ने की राह में अमेरिका और चीन आड़े आ जाते हैं। पर भारतीयों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद से लड़ने में क्या बाधा है? कम से कम उससे तो लड़िए।
तो अगली बार जब आप वोट देने घर से निकलें तो अपने उम्मीदवारों या उनके आकाओं से यह भी जरूर पूछिएगा कि आपके पास हमारे देशज आतंकवाद से लड़ने का कोई प्लान है या नहीं? नहीं तो बस फिर समय-समय पर सोशल मीडिया पर 'जय हिंद' लिखते रहिए और सीजफायरों पर खीजते रहिए।