ए. जयजीत
जैसे-जैसे विजयादशमी नज़दीक आती है, बड़े रावण की छोटे वाले से कोफ़्त बढ़ती जाती है। विजयादशमी के दिन तो वह फूटी आंख नहीं सुहाता। सोचता, यह जितनी जल्दी यहां से टले, उतना अच्छा। लाज़िमी भी है। मंच पर भाषण वो दे, समिति वालों को चंदा वो दे और सारा अटेंशन लूट ले जाए मैदान में खड़ा छटाक भर का रावण। कद बड़ा हुआ तो क्या हुआ, रावणत्व में तो छोटा ही है।
छोटे रावण ने कभी अपहरण कांड करके अपनी मतिहीनता का परिचय दिया था। अब
विजयादशमी की एक रात पहले ही छोटे वाले को निपटाने की प्लानिंग कर बड़ा रावण अपनी मतिहीनता
का परिचय दे रहा है।
बड़े रावण ने इस काम को सहयोगियों को सौंपने का जोख़िम नहीं लिया। आजकल
सहयोगियों का क्या भरोसा। कल विरोधियों के साथ मिलकर उसे सारे जहां में बदनाम कर दें।
बदनामी से ये अपने वाला बड़ा रावण नहीं डरता। एक से बढ़कर एक बदनामियां उसके खींसे में
हैं। लेकिन यह छोटी-सी बदनामी उसकी राजनीति पर दाग बन सकती है। वैसे तो दागों से भी
बड़े रावण का कोई दुराव नहीं। करप्शन से लेकर रैप टाइप के बड़े-बड़े दाग। लेकिन यह मामला
रिलेजियशली सेंसेटिव है। इसलिए किसी तरह का रिस्क लेना ठीक नहीं, यह सोचकर बड़ा रावण
विजयादशमी की एक रात पहले दशहरा मैदान में पसरी चुप्पी के बीच स्वयं ही मोर्चे पर जुट
गया। चुपचाप पेट्रोल की कैन हाथ में लिए सधे हुए कदमों से बीच मैदान में खड़े छोटे
रावण के पास पहुंच गया। कुंभकर्ण तो हमेशा ही तरह सो रहा था। उधर, इतने सालों से हर
साल मरते-मरते मेघनाथ भी किंकत्तर्व्यविमूढ़ हो चुका है। इसलिए वह भी 'कल मरना है तो
आज टेंशन क्यों लेना' टाइप की बातें सोचकर मजे से खर्राटे ले रहा था।
हमारे अपने इस बड़े रावण को वैसे भी कुंभकर्ण और मेघनाथ से कोई खास लेना-देना
नहीं था। उसे तो केवल छोटे रावण से ही इन्फीरियोरिटी कॉम्लेक्स रहा है। तो उसके निशाने
पर छोटा रावण ही था जो छोटा होने के बावजूद करीब 71 फीट ऊंचा था। छोटे रावण ने केवल
आंखें मूंद रखी थीं। उसकी आंखों में नींद कहां! बड़े रावण के कदमों की आहट सुनते ही
आंखें खोल लीं। नीचे छोटे कद के बड़े रावण को देखते ही बोल उठा- 'आओ गुरु, तुम्हारा
ही इंतज़ार कर रहा था।'
बड़ा रावण चौक गया। उसे छोटे रावण के बोलने से अचरज़ नहीं हुआ, पर अपनी
प्लानिंग का भांडाफोड़ होने का डर सताने लगा। बड़े रावण ने घबराकर पेट्रोल की कैन को
अपने सफेद कुर्ते के पीछे छिपाने की विफल कोशिश की।
'मुझे मारने की प्लानिंग, वह भी पेट्रोल से! इसे ही कहते हैं विनाश काले
विपरीत बुद्धि। मैं खुद एक बार इसका शिकार हो चुका हूं और उसी का ख़ामियाज़ा आज तक
भुगत रहा हूं। सोचो, मुझे समय से पहले मारने के मामले की अगर कल फोरेंसिक जांच हो जाती
तो तुम यूं ही फंस जाते। आखिर इन दिनों पेट्रोल कौन अफोर्ड कर सकता है? तुम जैसे गिने-चुने
लोग ही, जिनके पास ऑलरेडी कई-कई पेट्रोल पंप हैं।'
बड़े रावण ने चुपचाप पेट्रोल की कैन अपनी जिप्सी में रख दी। मन ही मन सोचा-
स्साला ऐसे ही ज्ञानी नहीं कहलाता है। और यह सोचकर छोटे रावण के प्रति उसका विषाद और
बढ़ गया। बड़ा रावण बखूबी जानता है कि वैसे तो उसने एक से एक नीच काम किए हैं, पर यह
धार्मिक आस्था का मामला है। खुलासा होते ही उसकी राजनीति ख़त्म समझो। कैन रखकर वापस
आने पर उसने अपनी सफाई देने की कोशिश की तो जबान लड़खड़ाने लगी। कोई कितना भी बेशर्म
हो, गलत काम पकड़ में आने पर शुरू में तो हकलाने का नैतिक साहस आ ही जाता है।
छोटा रावण बड़े रावण की चिंता समझ गया - 'मैं जानता हूं कि इतना नीच काम
तो तुमको ही शोभा देता है, फिर भी धर्म के मामले में तुमने यह गलती कैसे कर दी?'
इतना सुनते ही बड़ा रावण छोटे रावण के कदमों में गिर पड़ा - 'बताइए, मैं
आपकी क्या सेवा कर सकता हूं? बस, आज की इस घटना के बारे में किसी से कुछ मत कहना। पब्लिक
मेरे सौ गुनाह माफ़ कर सकती है, लेकिन धर्म के मामले में छोटी-सी गलती भी बर्दाश्त
नहीं करेगी। भाई साहब बचा लो। नहीं तो मेरी राजनीति डूब जाएगी।' बड़ा होकर भी छोटे को
कब भाई साहब कहना है, बड़े रावण इस मामले में ज्यादा ज्ञानी हैं।
'क्या कर सकते हो तुम?' छोटे रावण को थोड़ी दिल्लगी करने का मन हुआ। पूरी
रात बची थी। करता भी क्या तो सोचा कुछ टाइम पास ही कर लेते हैं।
'मैं आपके लिए सबकुछ कर सकता हूं। आपको अपने किसी रिश्तेदार के लिए कोई
एजेंसी-वेजेंसी चाहिए या किसी को दारू का ठेका दिलवाना हो तो बताइए।' बड़े रावण ने पहला
ऑफ़र पटका।
'मेरे दो प्रिय रिश्तेदार तो यहीं हैं। हमेशा की तरह ये भी कल मेरे साथ
ही जाएंगे।'
'फिर भी कोई भतीजा-भांजा। साला, बहनोई। अपन किसी को भी ओब्लाइज कर सकते
हैं। बस आप इशारा कीजिए।'
छोटा रावण चुप रहा। अंदर ही अंदर मंद-मंद अट्टहास करता रहा।
'या आप कहें तो आपकी यह रात सजा दूं? शराब-शबाब एक से बढ़कर एक। बताओ तो
सही।' बड़े रावण ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा। काफ़ी अनुभवी रहे हैं इस मामले में बड़े
रावणजी।
अब छोटा रावण बड़े रावण की इस मूर्खतापूर्ण बात पर क्या कहें, मन ही मन
अट्टहास करने के सिवाय। इधर छोटे रावण की चुप्पी अब बड़े रावण को भयभीत कर रही है।
स्साला पता नहीं क्या चाह रहा है? लगता है ऑफ़र बढ़ाने होंगे।
'कोई केस हटवाना हो? रैप से लेकर मर्डर तक, कोई भी केस। किसी के भी ख़िलाफ़।
अपनी सब सेटिंग है। या किसी शत्रु के ख़िलाफ़ सीबीआई की कोई रेड डलवानी हो?' उसने एक
और ऑफ़र पटका।
छोटा रावण अब भी चुप है। बड़े रावण की बेचैनी बढ़ती जा रही है। और निकट आकर
उसने फुसफुसाते हुए कहा - 'इन दिनों अपन ड्रग्स के धंधे में भी आ गए हैं। भतीजा संभालता
है सबकुछ। बहुत चोखा धंधा है। आप कहो तो 15 टका आपका।'
इधर छोटा रावण भी बेचैन हो रहा है। बड़ा रावण नीच है, यह तो उसे पहले से
ही मालूम था, पर इतना नीच निकलेगा, इसका ज्ञान उस जैसे ज्ञानी को भी आज ही हुआ। उसने
कुंभकर्ण और मेघनाथ पर नज़रें दौड़ाई। यहां मैदान में इतनी बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं,
पर दोनों को कोई फिक्र नहीं। खर्राटे लेकर मजे से सो रहे हैं स्साले। काश मेघू ये सब
सुन पाता। गुस्से का तो शुरू से तेज रहा है। तो बड़े रावण का दहन यहीं इसी समय हो जाता।
पर क्या करें, सोने से फुर्सत मिले तब तो!
इधर बड़े रावण की बेचैनी का तो पूछो ही मत। 'भाई साहब, आप चाहते क्या हो?
खुद ही बता दो।' छोटे रावण को चुप देखकर एक और ऑफ़र पटका- 'चलिए, आपको पर्सनल फेवर नहीं
चाहिए, कोई बात नहीं। इन दिनों आपके लंकावालों की चीन के साथ बड़ी पींगे बढ़ रही हैं।
कोई गुप्त कागजात, नक्शे-वक्शे उपलब्ध करवाना हो तो वह बता दीजिए। आपके लिए यह भी करने
की कोशिश कर सकता हूं।'
बड़ा रावण और क्या करता। बेचारा कितनी कोशिश करता। ऑफ़र पर ऑफ़र। ऐसे ही सुबह
हो गई।
पौ फटते ही जब नाइट ड्यूटी वाले गार्ड्स आंखें मलते हुए मैदान पर आए तो
अनहोनी की ख़बर तुरंत समिति वालों को दी गई। समिति वाले भी आए तो छोटा रावण मैदान पर
आड़ा पड़ा हुआ था। बड़ी अनहोनी घट चुकी थी।
पहले तो गार्ड्स को फटकारा - स्सालो, सोते रहते हों! रात को क्या हुआ,
तुम्हें नहीं पता तो किसको होगा? फिर उन्होंने प्रश्नवाचक निगाहों से मेघनाथ की ओर
देखा। पर स्वयं मेघनाथ के चेहरे पर ही प्रश्नवाचक नज़र आया- पिताश्री हमसे पहले ही
कैसे निकल लिए? उधर कुंभकर्ण तो अब भी सो रहा था।
बहुत कोशिश की, लेकिन समिति वाले छोटे रावण को खड़ा नहीं कर पाए। समिति
के अध्यक्ष जो संयोग से डॉक्टर भी थे, ने कहा, रात को शायद कोई तगड़ा आघात लगा हो। इसलिए
अटैक आ गया होगा।
सचिव ने कहा - कोई बात नहीं सर। हम नेताजी से रिक्वेस्ट कर लेंगे। वे आड़े
रावण का ही अंतिम संस्कार कर देंगे। इस मामले में बड़े नेक हैं।
अब यह हकीकत शायद ही किसी को पता चले कि छोटे रावण ने सुबह होते-होते अपनी
दिव्य शक्तियों के बल पर सुसाइड कर लिया था।
(ए. जयजीत संवाद की अपनी विशिष्ट शैली में लिखे गए तात्कालिक ख़बरी व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं। मूलत: पत्रकार जयजीत फिलहाल भोपाल स्थित एक प्रतिष्ठित मीडिया हाउस में कार्यरत हैं। प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मीडिया तीनों का उन्हें लंबा अनुभव रहा है।)