When the craze of AAP was on the rise.
जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha
देवलोक में अफरा-तफरी का आलम है। किसी को समझ में नहीं आ रहा कि अचानक नारदजी को क्या हो गया है। उन्होंने सिर पर फूलों का गजरा छोड़कर एक अजीब-सी टोपी पहन ली है। तंबूरे के स्थान पर झाडू हाथ में ले ली है। इसकी खबर जब देवलोक के सफाई डिपार्टमेंट के मुखिया को लगी तो वे भागे-भागे नारदजी के पास पहुंचे, ‘महाराज, क्या कमी रह गई? आपने झाडू क्यों उठा ली है? मैं सफाई करवा देता हूं।’ वे प्रभु के सबसे करीबी नारदजी को आखिर नाराज कैसे देख सकते थे!
‘अरविंदम अरविंदम’... मुंह से ये बोल फूटते ही सफाई डिपार्टमेंट के मुखिया चैके। नारायण-नारायण के स्थान पर ये क्या बक रहे हैं! वे मन ही मन बुदबुदाए। उन्हें अचरज में देखकर नारदजी ही बोले- ‘बहुत हो गया। अब सिस्टम सुधारने का वक्त आ गया है। मैं पूरे सिस्टम को अपनी झाडू से साफ कर दूंगा।’ और फिर अरविंदम-अरविंदम कहकर हाथ मंे झाडू घूमाएं नारदजी वहां से चले गए।
उधर, देवलोक में अब तक पूरा माजरा साफ हो चुका था। धरती पर आनन-फानन में भेजे गए देवदूतों का एक प्रतिनिधिमंडल वहां से लौट चुका था और देवताओं की कोर कमेटी के सामने पाॅवर पाइंट प्रेजेंटेषन भी दे चुका था। सबके चेहरों पर चिंता साफ थी। हालांकि कुछ ने कहा कि नारदजी की हैसियत ही क्या है? हमें इसकी चिंता नहीं करनी चाहिए। लेकिन एक बुजुर्ग-से देवता ने समझाया कि हमें इसे हलके में नहीं लेना चाहिए। आज उन्होंने झाडू उठाई। अगर कल वे रोजाना तीन लीटर मुफ्त सोमरस की मांग कर दंेगे तो दिक्कत में पड़ जाएंगे। सबसे ज्यादा टैक्स इसी से मिलता है। और यह ऐसी मांग है कि उन्हें इस पर भरपूर समर्थन भी मिल जाएगा।
उधर, इंद्र को अपना आसन भी डोलता नजर आ रहा है। उन्होंने तमाम अप्सराओं को ‘फाॅर टाइम बीइंग’ महल से निकलने का आदेष दे दिया है। अब वे दरबार लगाने लगे हैं, रात को सड़कों पर हाल जानने निकलने लगे हैं। रोजाना दो चार कर्मचारी सस्पेंड भी हो रहे हैं। वहीं, इंद्र के कुछ विरोधी दबी जुबान में कह रहे हैं, देखते हैं यह प्रहसन कब तक चलता है।
उधर नारदजी के साथ कुछ आम टाइप के देवता जुड़ने लगे हैं। पूछने पर ये आम देवता कहते- ‘जस्ट फाॅर ए चंेज।’ अब चेंज की यह सद्भावना उनकी अपनी निजी लाइफ को लेकर है या सिस्टम को लेकर, प्रभु ही जानें!
ग्राफिक: गौतम चक्रवर्ती
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