बुधवार, 26 मार्च 2014

भाईजी संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ हैं ...

Satire on those politicians who want to get involved in politics in their 80s or 90s. 
जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha

 

 

भाईजी 90 साल के हो चुके हैं। दांत अब नहीं रहे, लेकिन हाईकमान की बैठकों में जाते हैं तो नकली दांत लगाकर जाना पड़ता है। खीसें निपोरने में वही काम आते हैं। चूंकि समस्या बड़ी गंभीर है और वक्त हंसने का नहीं है, इसलिए अभी दांत काॅर्नर टेबल पर रखे गुलदस्ते के पीछे पड़े सुस्ता रहे हैं।

वैसे तो भाईजी ने नौ दषक में सब कुछ देख लिया। इसलिए माया से मोह रहा नहीं। लेकिन इच्छा थी कि जब देष ने उन्हें इतनी सेवा का मौका दिया तो आखिरी बार एक और सेवा का मौका दे दें, तो गंगा नहा लें। लेकिन पार्टीवालों ने उन्हें सरेआम धोखा दे दिया। बुजुर्गांें की कोई इज्जत ही नहीं रही। पार्टी हाईकमान को कम से कम देष की भावनाओं की तो कद्र करनी थी। लेकिन नहीं, बोल दिया, दद्दा आराम करो। अरे कभी आराम किया दद्दा ने! गंगा मैया की कसम, हमेषा सेवा में लगे रहे। कभी इस एयरपोर्ट तो कभी उस एयरपोर्ट। कभी पार्टी के काम से तो कभी प्राॅपर्टी के काम से, कहां-कहां नहीं गए!
तो भाईजी पार्टी का टिकट नहीं मिलने से तन्ना रहे हैं। अब आवाज तो मुंह से निकलती नहीं, लेकिन चेहरे के हाव-भाव बता रहे हैं कि वे मन ही मन पार्टी हाईकमान की कितनी ऐसी की तैसी कर रहे हैं। तभी उनके किसी खास चमचे ने सलाह दी, ‘दद्दा, आप तो निर्दलीय चुनाव लड़ लो। पूरी पार्टी आपने खड़ी की है। अपने एरिया के पार्टीवाले तो आपके साथ हैं ही।’ भाईजी को अब दिखता कम है। इसी का फायदा उठाकर कुछ चमचे वहां से खिसक लिए। भैया रिस्क कौन ले! कौन चमचा हाईकमान का जासूस निकल आए, क्या भरोसा। भाईजी बुढ़ा गए हैं, तो क्या हुआ, अभी हमारा तो पूरा बुढ़ापा बाकी है।

इस बीच, दिल्ली से फोन आ गया। पता चला कि हाईकमान उन्हें कहीं एडजस्ट करने की कोषिष कर रहा है। अब भाईजी को सुनाई कम देता है। मषीन ने भी हार मान ली हैं, इसलिए उनके खास चमचे ने ही फोन रिसीव किया। फोन कटते ही इषारों ही इषारों में बताया, ‘दद्दा बधाई हो, पार्टी ने कहा है कि सत्ता में आने के बाद आपको फलाने राज्य के राजभवन की सेवा में लगा दिया जाएगा।’ भाईजी के तन्नाए चेहरे की झुर्रियां नाच उठीं। अब समझ में आया कि पार्टी उन्हें आराम करने को क्यों कह रही थी। इस बीच, भाईजी के निर्दलीय चुनाव लड़ने की आषंका समाप्त होते ही वे चमचे लौट आए हैं, जो खिसक लिए थे। वे अब नारे लगा रहे हैं, भाईजी संघर्ष करो, हम तुम्हारे साथ है। भाईजी का संघर्ष जारी है, व्हील चेहर पर चढ़ने का संघर्ष। वे अब बेडरूम में जा रहे हैं। भाईजी के सोने का समय हो गया है। देष सेवा में लगने से पहले थोड़ा एनर्जेटिक हो जाए!
ग्राफिक: गौतम चक्रवर्ती

2 टिप्‍पणियां:

  1. जयजीत भाई, बहुत ही बढि़या लिख रहे हो, बढि़या मंच मिला है। अच्‍छा लग रहा है आपको पढ़ना। मेरी शुभकामनाऍं तुम्‍हारे साथ हैं। बधाई।

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  2. बहुत बढि़या जयजीत भाई। कलम को और भी साधने की आवश्‍यकता है।

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