जयजीत अकलेचा/Jayjeet Aklecha
सरकारी फाइल को शुरू से ही कछुए से काॅम्पलैक्स रहा है। जब-तब उस पर कछुए का टैग लगता रहा है। तो एक दिन उसने ठान लिया कि कछुए को उसकी औकात बतानी ही होगी। उसने कछुए के साथ रेस लगाने का ऐलान कर दिया। और कछुए को तो देखिए, उसने भी हां कर दी। भोला-भंडारी। सोचा ही नहीं कि इज्जत तो उसी की दांव पर लगेगी। सरकारी फाइल का क्या!नियत समय पर रेस शुरू हुई। कछुआ तेजी से आगे बढ़ा। लेकिन सरकारी फाइल टस से मस नहीं हुई। दरअसल, उसने खरगोश और कछुए की कहानी सुन रखी थी। उसने सुना था कि खरगोश तेजी से आगे चला था। इसलिए हार गया। फाइल ने सरकारी निष्कर्ष निकाला- जो आगे चलेगा, वह हारेगा। इस बार कछुआ आगे चला है तो वह हारेगा ही। जबरदस्त काॅन्फिडेंस। और फिर इसी काॅन्फिडेंस में सरकारी फाइल किसी सरकारी दफतर में जाकर सो गई।
उधर, कछुआ तेजी से आगे बढ़ा जा रहा था। उसने भी अपने पुरखों से खरगोश और कछुए की कहानी सुन रखी थी। इस कहानी के आधार पर उसने निष्कर्ष निकाला- जिस रेस में भी कछुआ शामिल होगा, उसे कछुआ ही जीतेगा। फिर उसने सरकारी फाइलों की महानता के किस्से भी सुन रखे थे। इसी काॅन्फिडेंस में वह भी सो गया।
वर्षों बीत गए। दोनों अपने-अपने काॅन्फिडेंस में सोते रहे। फिर एक दिन अचानक सरकारी फाइल की नींद खुल गई। खुल क्या गई, उसे झिंझोड़कर जगाया गया था। वह पेंशन की फाइल थी। जिसका केस था, वे बड़े आदर्षवादी और आशावादी किस्म के इंसान थे। उन्हें उम्मीद थी कि कभी तो फाइल जागेगी और आगे बढ़ेगी। लेकिन जीते-जी उनकी यह तमन्ना पूरी नहीं हो पाई और वे पीछे छोड़ गए 85 साल की बुढ़िया, अपनी पत्नी। इस बीच, उनका पोता समझदार हो गया। नई पीढ़ी का बंदा है। प्रैक्टिकल है। उसे पता है कि फाइल को जगाना होता है, अपने आप नहीं जागती है और न ही आगे बढ़ती है। वजनदार ठोकर मारो तो जागती है। बड़ी उल्टी चीज है कमबख्त। पीठ पर जितना वजन होगा, उतनी तेजी से आगे बढ़ेगी।
तो पोता समझदार था, नया अफसर उससे भी ज्यादा समझदार था। अफसर ने फाइल को जोरदार लताड़ लगाई, ‘तुम यहां सोने आई हो? ऐसे तो काम हो लिया।’
‘लेकिन सर, पैर आगे ही नहीं बढ़ रहे।’ फाइल बोेली। फाइलें भी समझदार होती हैं। जो बात अफसर अपने मुंह से नहीं कह सकता, उसे फाइल कह देती है। चूंकि पोता बहुत ज्यादा ही समझदार है। इसलिए उसने फाइल के उपर वजन रखा। अब फाइल फर्राटे से आगे बढी।
और अब क्लाइमेक्स देखिए... रास्ते में उसे एक कछुआ मिला। उसे वह कछुआ याद आ गया। इस कछुए के नाक-नक्ष वैसे ही थे, जैसे उस कछुए के थे, लेकिन यह वह नहीं था। पता चला कि यह उस कछुए का पोता है व किसी और सरकारी फाइल के साथ रेस लगा रहा है।
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