हिंदी सटायर, नई दिल्ली। दिल्ली में दंगाई बेकाबू हुए तो इस जांबाज रिपोर्टर ने भी हिम्मत दिखाई और पहुंच गया मैदान-ए-जंग में। और कोई नज़र न आया तो उस पत्थर को ही रोक लिया जो बस दंगाई के हाथ से छूटने ही वाला था…(देखिए फोटो में उसकी तस्वीर…)
पत्थर : अबे, मुझे रास्ते में रोक लिया। बड़ी हिम्मत दिखाई तुने। सिर फूट जाता तो…
रिपोर्टर : क्या करें, कभी-कभी पत्रकार को हिम्मती नजर आना पड़ता है।
पत्थर : वाह, क्या हाइपोथेटिकल बात कही है! बाय दे वे, रोका क्यों?
रिपोर्टर : आपसे कुछ बात करनी है। और कोई तो जवाब दे नहीं रहा..
पत्थर : इधर दिल्ली जल रही है, उधर तुझे इंटरव्यू की सूझ रही है? पूछो, क्या पूछना, पर जल्दी। मेरे कई साथी अपने टारगेट पर जा चुके हैं …
रिपोर्टर : आप किस कौम से है?
पत्थर : हम पत्थरों की कोई कौम नहीं होती। और ये वाहियात सवाल पूछने के लिए तुमने मुझे रोका?
रिपोर्टर : पर इंसानों की तो होती है, कोई हिंदू है तो कोई मुसलमान।
पत्थर : स्सालो, इसीलिए तो आपस में लड़ते-झगड़ते हों…और ख़बरदार जो इंसानों के साथ मेरी तुलना की..
रिपोर्टर : शांत शांत, आप मुझ गरीब पत्रकार पर तो न बरसो..
पत्थर : बात ही बरसने वाली कर रहे हो, स्साला इतना फ्रस्टेशन है.. बताओ कहां बरसें..
रिपोर्टर : बरसो उन नेताओं पर जो तुम्हें दंगाइयों के हाथों में थमा देते हैं…
पत्थर : भाई, ऐसा करना तो हमारे हाथ में नहीं है…
रिपोर्टर : तो फिर किनके हाथ में है?
पत्थर : वही जिनके हाथ में हम हैं…
रिपोर्टर : मतलब?
पत्थर : मतलब जो हाथ पत्थर फेंक रहे हैं, बस वे हाथ जरा घूम ही लें उन नेताओं की ओर, जिन्होंने थमाए हैं हम मासूम पत्थर.. इतिहास बदल जाएगा, पर कभी दंगे नहीं होंगे, लिख लेना…
रिपोर्टर : पर मेरे भाई, इन्हें इसके लिए समझाएगा कौन?
पत्थर : तुम पत्रकार, और कौन…क्या ये तुम्हारी रिस्पॉन्सिबिलिटी नहीं है?
रिपोर्टर : अच्छा, चलता हूं…
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