By Jayjeet
कोने में रखी काली थैलियों में पौधे पड़े-पड़े मुस्करा रहे थे। रिपोर्टर भी मुस्कुराया। शिकार मिल गया था। तुरंत इंटरव्यू के लिए एक पौधे से रिक्वेस्ट की। पहले तो बिजी होने का बहाना मारा, फिर राजी हो गया। पेश है बातचीत के खास अंश :
रिपोर्टर : बड़े मुस्कुरा रहे हों? कोई अच्छी वजह?
पौधा : आप लोगों के अच्छे दिन आए या न आए, हमारे तो आ गए महाराज। मानसून जो आ गया। अब हर जगह हमारी पूछ-परख बढ़ गई है। रोज अखबार में तस्वीर छपती है।
रिपोर्टर : अच्छा, इस समय तो आपको लोग खूब हाथों-हाथ ले रहे हैं।
पौधा : हां, बताया तो सही कि खूब अखबार में छप रहे हैं। पर कभी-कभी क्या होता है कि हमारे सामने इतने लोग आ जाते हैं कि जब अगले दिन अखबार में तस्वीर छपती है तो उसमें बस मैं ही नहीं होता।
रिपोर्टर : कौन-सी प्रजाति के हैं आप?
पौधा : ये जाति-वाति का रोग तो हमारे यहां मत फैलाओ। हम किसी भी जाति के हो, धर्म एक है वातावरण को खुशगवार बनाना, न कि तनाव पैदा करना, जैसे धर्म के नाम पर तुम्हारे यहां होता है।
रिपोर्टर : चलिए, प्रजाति-वजाति छोड़ते हैं। फल तो लगेंगे ना आपमें?
पौधा : फिर इंसानों टाइप की ओछी बात कर दी ना आपने। हम फलों की चिंता भी नहीं करते। आप ही लोग करते हों। देख लो ना, कैसे राजस्थान में आपके नेता लोग ‘फल’ की जुगाड़ में इधर से उधर हो रहे हैं।
रिपोर्टर : बस आखिरी सवाल।
पौधा : अब भैया बस करो। उधर नेताजी और उनके छर्रे आ गए हैं। फोटोग्राफर इशारा कर रहा है। मैं चलता हूं। नमस्कार
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