By Jayjeet
हिंदी सटायर डेस्क। कोने में कई पौधे पड़े-पड़े मुस्करा रहे थे। हमने इंटरव्यू के लिए ऐसे ही एक पौधे से रिक्वेस्ट की। पहले तो बिजी होने का बहाना मारा, पर फिर राजी हो गया। पेश है बातचीत के खास अंश :
रिपोर्टर : बड़े मुस्कुरा रहे हों? कोई अच्छी वजह?
पौधा : आप लोगों के अच्छे दिन आए या न आए, हमारे तो आ गए महाराज। मानसून जो आ गया। अब हर जगह हमारी पूछ-परख बढ़ गई है। हमारे नाम पर तो कई कैम्पेन भी शुरू गए हैं। क्या नेता, क्या अफसर, सब हमारा ही नाम जप रहे हैं।
रिपोर्टर : कौन-सी प्रजाति के पौधे हैं आप?
पौधा : अरे यार, ये जाति-वाति का रोग तो हमारे यहां मत फैलाओ। हम किसी भी जाति के हो, धर्म एक है वातावरण को खुशगवार बनाना, न कि तनाव पैदा करना, जैसे धर्म के नाम पर तुम्हारे यहां होता है।
रिपोर्टर : चलिए, प्रजाति छोड़ते हैं। फल तो लगेंगे ना आपमें?
पौधा : फिर इंसानों टाइप की ओछी बात कर दी ना आपने। हम फलों की चिंता भी नहीं करते। आप ही लोग करते हों। देख लो ना, कैसे मप्र, राजस्थान में आपके नेता लोग ‘फल’ की इच्छा में इधर से उधर हो रहे हैं।
रिपोर्टर : अच्छा, इस समय तो आपको लोग खूब हाथों-हाथ ले रहे हैं।
पौधा (एटिट्यूड में) : ये तो है। पर कभी-कभी क्या होता है कि हमारे सामने इतने लोग आ जाते हैं कि जब अगले दिन अखबार में तस्वीर छपती है तो उसमें बस मैं ही नहीं होता। पीछे छिप जाता हूं।
रिपोर्टर : आप अपना भविष्य कैसे देखते हैं?
पौधा : वैसे तो हम वर्तमान में ही खुश रहने वाले सजीव हैं। पर अपने पुरखों के साथ जिस तरह से हादसे हुए, उनसे भविष्य को लेकर जरूर थोड़ा-थोड़ा डर भी लगता है।
रिपोर्टर : क्यों, पुरखों के साथ क्या हुआ?
पौधा : अब आप बनने की कोशिश तो मत कीजिए। आप लोग ही तो हो जिम्मेदार हों। रोप भर देते हों। फोटो-वोटो, सेल्फी-वेल्फी के बाद फिर भगवान भरोसे छोड़ देते हों। पनप भी गए तो आठ-दस साल बाद कभी सड़क के लिए, कभी मेट्रो के लिए तो कभी किसी भवन के लिए हमारी बलि ले लेते हों।
रिपोर्टर : तो हम इंसानों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
पौधा : यही कि भैया, हमारी चिंता भले मत करो। अपनी ही कर लो। इंसान तो बड़ा स्वार्थी है। तो अपना स्वार्थ समझकर ही कर लो। हम न रहेंगे, तो आप भी न रहोंगे, समझ लेना।
रिपोर्टर : बस आखिरी सवाल।
पौधा : अब भैया बस करो। उधर नेताजी और उनके छर्रे आ गए हैं। फोटोग्राफर इशारा कर रहा है। मैं चलता हूं। नमस्कार।
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