By Jayjeet
बात बहुत पुरानी है। बात जितनी पुरानी होती है, उतनी ही भरोसेमंद भी होती है। तो यह भरोसेमंद भी है। किसी जमाने में छह अंधे हुआ करते थे। अंधे तो उस जमाने में और भी बहुत थे, लेकिन एक हाथी ने उन अंधों को अंधत्व के इतिहास में अमर बना दिया। अमर होने का फायदा यह होता है कि आप किसी भी बात को उसकी अमरता पर लाकर खत्म कर सकते हैं। यह बात नेहरू-गांधी के अनुयायियों से बेहतर भला और कौन जान सकता है? तो इन छह अंधों की बात भी हाथी की ऐतिहासिक व्याख्या पर आकर खत्म हो गई। बात भले खत्म हो गई हो, लेकिन अंधत्व की वह परम्परा खत्म नहीं हुई। वैसे यहां कोई राजनीति न ढूंढें, हम वाकई अंधों की ही बात कर रहे हैं। तो बगैर ब्रेक के बढ़ाते है वही बात, अंधों की बात।
तो हुआ यूं कि उन छह अंधों के छह आधुनिक
वंशज हाल ही में किसी वेबिनार में मिल गए। चूंकि वे अपने पूर्वजों की अमर परम्परा को
जीवित रखने के लिए ही अवतरित हुए थे, ऐसा उन्हीं का मानना था। तो उन्होंने दो काम किए।
एक, वे अंधे बने रहे और दूसरा, उन्होंने भी हाथी की व्याख्या करने के अपने पुरखों के
पुनीत काम को ही आगे बढ़ाने का फैसला किया। पुरखों का काम आगे बढ़ाने का सबसे बड़ा फायदा
यह होता है कि कुछ नया नहीं करना पड़ता है। नुकसान केवल पुरखों का नाम डूबने के खतरे
के रूप में होता है। पर चूंकि पुरखे जा चुके होते हैं। तो यह खतरा अक्सर लोग और यहां
तक कि पॉलिटिकल पार्टियां भी उठा लेती हैं।
तो जैसा कि पहले बताया, ये छह अंधे एक
वेबिनार में मिले। नए जमाने के नए अंधे। तो हाथी को जंगल में खोजने की मशक्कत करने
के बजाय उन्होंने उसे गूगल पर ही खोजने का निर्णय लिया। गूगल का फायदा यह भी होता है
कि वह गलत खोजों को भी करेक्ट कर देता है। जैसे इन छह अंधों द्वारा "Elephent'
लिखकर सर्च करने पर भी गूगल ने स्पेलिंग ठीक कर ढेरों हाथी सामने पटक दिए। छोटे-बड़े,
आड़े-टेढ़े, पस्त और मदमस्त। उन्होंने बहुमत से एक मदमस्त हाथी चुन लिया। हालांकि उन्होंने
वही हाथी क्यों चुना, इस बारे में उन्हें कुछ पता नहीं था। बस चुनना था तो चुन लिया।
लेकिन खुशी तो उनके चेहरे पर ऐसी थी मानो सरकार चुन ली। दिखावा तो एेसा कि क्या समझ-बूझकर
हाथी चुना। चूंकि वे वोर्टस भी थे तो उन्हें ऐसा हाथी चुनने में अपने मतदान का अनुभव
काम आया।
खैर हाथी का चुना जाना ज्यादा महत्वपूर्ण
था। उन्होंने जो हाथी चुना था, वह शायद उनके चुने जाने से पहले ही मदमस्त था। वह सत्ता
का हाथी था जो इन दिनों ट्विटर, वाट्सऐप के पीछे-पीछे गूगल के बाड़े में भी आ धमका था
और इसीलिए उन अंधों को वह गूगल पर ही चरते हुए मिल गया। सत्ता का वर्चुअल हाथी उनके
सामने तो था, लेकिन उसे न देख पाना उनकी परंपरागत मजबूरी थी।
खैर, अंधों ने वर्चुअल हाथी की वर्चुअल
व्याख्या शुरू की, क्योंकि हमने भी तो बात उस व्याख्या के लिए ही शुरू की थी।
पहला अंधा वर्चुअल हाथी के पेट पर अपने
कम्प्यूटर माउस का कर्जर रखते ही बोला। अरे यह तो दीवार है। वोटों के लिए हिंदुओं-मुस्लिमों
के बीच खींची हुई दीवार।
अब दूसरे अंधे ने अपने माउस का कर्जर हाथी
के मुंह की तरफ मोढ़ा। सूंड पर पहुंचते ही बोला, - नहीं जी, यह दीवार नहीं, यह तो सांप
है। विष वमन करने वाला सांप, धर्म के नाम पर तो कभी पाकिस्तान के नाम पर।
तीसरे अंधे के माउस का कर्जर हाथी की पूंछ
के पास पहुंचा। उसे महसूस करके बोला, - यह
रस्सी है, ऐसी रस्सी जो सत्ता में ऊपर चढ़ने के भी
काम आए और विरोधियों का गला कसने के भी।
अब चौथे की बारी थी। चौथे अंधे ने हाथी
के कानों को छूआ तो बोला, अबे, यह तो सूपड़ा है। जो काम का न हो, उसे झटक देता है। 75
साल के बूढ़ों को साफ करने में यह ज्यादा काम आया।
पांचवें अंधे के माउस का कर्जर हाथी के
पैर के पास पहुंचा तो ऐसा उत्साह से भर गया मानो हाथी का रहस्य उसी ने ढूंढ़ लिया हो।
वह चिल्लाने ही वाला था कि यकायक चुप हो गया। बाकी के अंधे 'क्या क्या' करते ही रह
गए, पर वह न बोला तो न बोला। शायद वह अकल से अंधा न था।
छठे ने अब ज्यादा इंतजार करना ठीक न समझा।
वह अपने आप को ज्यादा बुद्धिमान तो नहीं, लेकन दूसरों को मूर्ख जरूर समझता था। उसने
सोचा, बहुत बकवास हो गई। सब घिसी-पिटी बात कर रहे हैं। मैं देखता हूं। उसने हाथी के
दांतों तक अपने माउस का कर्जर पहुंचाया और धीरे से बोला, ‘अरे मूर्खों, यह तो बांसुरी
है, बांसुरी। यह वही बांसुरी है, जो कभी नीरो बजाया करता था।’
पांचवें को छोड़कर बाकी सभी अंधों ने चिल्लाकर
कहा, अरे हां, कुछ दिन पहले यही बांसुरी तो हमने सुनी थी। क्या सुंदर धुन थी। अब वे
आंखों से अंधे थे, कानों से बहरे थोड़े ही थे। तो वह सुंदर धुन तो सबने सुनी ही थी,
पांचवें वाले ने भी।
अब फिर से पुराने जमाने की कहानी में लौटते हैं। पूर्वजों द्वारा हाथी की व्याख्या में तो वह हाथी कन्फ्यूज हो गया था। लेकिन सत्ता के इस मदमस्त हाथी को कोई कन्फ्यूजन नहीं है। नतीजा : एक अंधे को छोड़कर बाकी सभी धारा 124 के तहत जेल में चक्की पीस रहे हैं। पांचवें अंधे ने हाथी की इमेज को दुरुस्त करने के लिए उसका सोशल मीडिया अकाउंट संभाल लिया है।
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
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