By Jayjeet
और तेज हवाओं के साथ झमाझम बारिश होने लगी। मानसून की पहली बारिश थी। बैग में छाता तो था, लेकिन बाइक पर उसे कैसे संभालता। तो रिपोर्टर ने भीगने से बचने के लिए सीधे उस यार्ड की शरण ली जहां गेहूं की बोरियां रखी हुई थीं। लेकिन वहां का सीन देखा तो माथा ठनक गया। गेहूं की एक नहीं, कई बोरियां पहली बारिश में भीगने का लुत्फ उठा रही थीं। छई छप्पा छई, छप्पाक छई... पर डांस कर रही थीं। न कोई लाज, न कोई शरम। रिपोर्टर का रिपोर्टतत्व जागृत हो उठा और अपना छाता तानकर सीधे पहुंच गया ऐसी ही एक बोरी के पास ...
रिपोर्टर : बोरीजी... बोरीजी ssss... ऐ बोरी...
बोरी : कौन भाई। आप कौन? क्यों चिल्ला रहे हों?
रिपोर्टर : ये आप बारिश में बिंदास भीग रही हैं। क्या आपको ना मालूम कि आपके भीतर बहुत ही कीमती दाना भरा हुआ है?
बोरी : अरे कहां ऐसी छोटी-मोटी बातों में लगे हों। पहली बारिश है। आप भी फेंकिए ना अपना छाता और मस्त भीगिए ना। (और फिर वह लग छई छप्पा छई, छप्पाक छई... )
रिपोर्टर : अरे नहीं, मैं तो आपको आपकी जिम्मेदारी का एहसास करवाने आया हूं।
बोरी : देखिए, जब मानसून की पहली बारिश होती है ना तो महीनों की सारी तपन दूर हो जाती है। मेरी सारी सहेलियां और कजीन सब भीगने का मजा ले रही हैं और आप हैं कि अपनी रिपोर्टरगीरी में इन शानदार पलों को खो रहे हों।
रिपोर्टर : सब भीग रही हैं, मतलब?
बोरी : हमारा वाट्सएप ग्रुप है। मप्र से लेकर राजस्थान, उप्र, पंजाब, हरियाणा, सब जगह की बोरियां इससे जुड़ी हैं। सब बोरियों ने पहली बारिश में भीगने की सेल्फियां पोस्ट की हैं। तो मैं क्यों यह मौका छोड़ू? अब आप आ ही गए तो मेरी बढ़िया-सी फोटो ही खींच दीजिए। ग्रुप में भी डाल दूंगी और स्टेटस पर भी।
रिपोर्टर (फोटो खींचने के बाद) : बहुत हो गया बोरीजी। मुझे आपके भीतर पड़े दाने की चिंता हो रही है। आप समझती क्यों नहीं?
बोरी : आप क्यों चिंता कर रहे हों? चिंता करने वाले दूसरे लोग हैं ना। अनाज भंडारण केंद्रों के कर्मचारी, मंडियों के अफसर सब हैं ना। कल आएंगे। आंकलन कर लेंगे कि कितना अनाज खराब हुआ, कितना सड़ा। अपने दस्तावेजों में सब दुरुस्त कर लेंगे। बेमतलब की चिंता छोड़िए और आप तो मेरे साथ एक सेल्फी लीजिए। किसी बोरी ने आज तक किसी रिपोर्टर के साथ सेल्फी ना खिंचवाई होगी। आज तो सबको जलाऊंगी...
रिपोर्टर : पर ये कौन अफसर हैं? मुझे जरा उनका नंबर दीजिए, अभी बात करता हूं।
बोरी : आप बहुत ही विघ्न संतोषी टाइप के आदमी मालूम पड़ते हों। लगता है, न आप कभी खुद खुश होते हो और न दूसरों को खुश देख सकते हों...
रिपोर्टर : अरे, मैं तो उनकी जिम्मेदारी याद दिलाना चाहता हूं, बस।
बोरी : अब आप भी बस कीजिए रिपोर्टर महोदय। बेचारे अफसर पहली बारिश में घर में बैठकर अपनी-अपनी बीवियों के हाथों पकोड़े खा रहे होंगे। आप क्यों छोटी-छोटी बातों पर उन्हें परेशान करना चाहते हैं। आप भी जाकर खाइए ना पकोड़े-सकोड़े... और इतना कहकर फिर लग गई ...छई छप्पा छई, छप्पाक छई...
(ए. जयजीत खबरी व्यंग्यकार हैं। अपने इंटरव्यू स्टाइल में लिखे व्यंग्यों के लिए चर्चित हैं।)
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