कई पौधे पड़े-पड़े मुस्करा रहे थे। बड़ी ही बेसब्री से नेताजी का इंतजार कर
रहे थे। उन्हें प्रफुल्लित देखकर ऐसा लग रहा था मानो वे इंसानों को चिढ़ा रहे हों कि
आपके अच्छे दिन आए या ना आए, हमारे तो आ गए। पर उन्हीं में से एक पौधा कोने में मुंह
फुलाए दीवार के सहारे अधखड़ा था। उसे विश्व पर्यावरण दिवस से रत्तीभर भी फर्क नहीं पड़
रहा था। रिपोर्टर तो हमेशा ऐसे ही असंतुष्ट और बागियों की तलाश में रहते हैं। ब्रेकिंग
न्यूज तो आखिर उन्हीं से मिलती है। तो यह रिपोर्टर भी पहुंच गया उसी बागी पौधे के पास
और लगा कुरेदने ...
रिपोर्टर : नमस्कार, आज तो आपका दिन है। लेकिन आपके चेहरे पर इतनी मुर्दानगी
क्यों छा रही है भाई?
पौधा : मुझे तो उन पौधों पर तरस आ रहा है तो आज के दिन बड़े खुश हो रहे
हैं। देखो, नेताजी के इंतजार में कैसे खुशी से मरे जा रहे हैं।
रिपोर्टर : खुश तो आपको भी होना चाहिए। पर आप तो सचिन पायलट बन रहे हों।
पौधा : तो क्या हमें सिंधियागीरी मिल जाएगी, जो खुश हो जाएं?
रिपोर्टर : वाह, नहले पर दहला जड़ दिया। राजनीति का आपको इतना इल्म कैसे?
पौधा : आपके नेताओं से हमारे बाप-दादाओं का पुराना राब्ता रहा है।
रिपोर्टर : अरे, भला कैसे?
पौधा : आपके नेता लोग लकड़ी की जिन कुर्सियों पर बैठते हैं, वे आखिर हमारे
बाप-दादाओं के बलिदान का ही तो प्रतिफल है।
रिपोर्टर : अच्छा, इसीलिए आपके दिलो-दिमाग में नेताजी के प्रति इतनी नफरत
भरी है?
पौधा : और नहीं तो क्या! बड़े होकर नेताओं की कुर्सी की लकड़ी बनना ही तो
हमारी नियति है। नेताओं से बच गए तो किसी बड़े इंडस्ट्रीयल प्रोजेक्ट के लिए काट दिए
जाएंगे।
रिपोर्टर : लेकिन ये भी तो सोचो कि बड़े होने पर अगर किस्मत से जंगल मिल
गया तो फिर तो ऐश ही ऐश। मस्ती से कई पीढ़ियां बीत जाएगी आपकी।
पौधा : सब मन बहलाने वाली बात है। अपने पुरखों की आत्मकथाएं बांच रखी हैं
मैंने। उनमें वे कटने से पहले विस्तार से बता गए कि कैसे कभी कोयले के लिए, कभी सोने
या हीरों के लिए तो कभी बड़े-बड़े बांधों के लिए जंगल के जंगल साफ कर दिए गए।
रिपोर्टर : लेकिन आप मानवता के काम आ रहे हों, यह सौभाग्य कम ही लोगों
को मिलता है।
पौधा : ये अपना इमोशनली ब्लैकमेल वाला फंडा उन मूर्ख पौधों पर आजमाइए जो
नेताजी के हाथ से खुद को बर्बाद करने को तैयार बैठे हैं। मैं इंकलाबी खुद को सुखाकर
मर मिटूंगा, लेकिन तुम मनुष्यों के लिए कभी नहीं....
वह बागी पौधा अपनी बात पूरी भी नहीं कर पाया कि उससे पहले ही सायरन बजाती
गाड़ियां धमक पड़ीं। क्षण भर में ही फॉरेस्ट विभाग के कारकून के दो हाथों ने उस पौधे
पर मानो झपट्टा-सा मारा। पौधे ने शुरू में प्रतिरोध किया, लेकिन फिर अपनी नियति के
लिए निकल पड़ा। फोटोग्राफर्स भी दूर खड़े नेताजी की तरफ लपक पड़े...
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