By Jayjeet Aklecha
अभी कुछ दिन पहले ही मेरे एक मित्र को कलेक्टर की पोस्टिंग मिली है। वह उन दुर्लभ ईमानदार अफसरों में से एक है, जिसने हमेशा फील्ड पोस्टिंग को अवॉइड किया, ताकि भ्रष्ट सिस्टम का डायरेक्ट हिस्सा बनने से बच सके। लेकिन अब जब कलेक्टर बना तो उसे जानने-समझने वाले हम तमाम मित्रों के दिमाग में बस यही एक सवाल था- वह वहां कब तक सवाईव कर पाएगा?
जब भी UPSC का रिजल्ट घोषित होता है, तब मेरे दिमाग में सबसे पहला सवाल यही उठता है- ये हमारे देश की सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं हैं। कड़ी मेहनत से इस मुकाम तक पहुंची हैं। मगर अब ये करेंगी क्या? जब आज सुबह की चाय पर अपनी पत्नी के साथ यूपीएससी रिजल्ट की सुर्खियां पढ़ रहा था और यही सवाल आया तो पत्नी का बेहद मासूमियत भरा जवाब था- करप्शन करेंगी, और क्या? यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है, मगर आम धारणा यही है कि देश के ब्राइटेस्ट टैलेंट का बड़ा हिस्सा एक भ्रष्ट सिस्टम का हिस्सा बन जाएगा और कुछ चुनिंदा दुर्लभ टाइप के अफसर अपने सर्वाइवल के लिए नए संघर्ष में जुट जाएंगे।
बेशक, मेहनत में भरपूर ईमानदारी बरतने वाले, कई महीनों, बल्कि वर्षों अपनी रातों की नींद खराब करने वाली देश की इन चमकदार प्रतिभाओं के दिमाग में शुरू में यह कतई नहीं रहता होगा कि मैं भ्रष्ट बनकर खूब पैसे कमाऊंगा। आप जब इनके शुरुआती इंटरव्यू पढ़ते हैं तो भले ही उनकी ये बातें हास्यास्पद लगती होंगी कि 'मैं देश और लोगों की सेवा करने के लिए इस क्षेत्र में आया हूं।' लेकिन हमें इससे इनकार नहीं करना चाहिए कि जवाब देने वाले के दिमाग में समाज-देश के लिए कुछ बेहतर कर गुजरने के सपने तो होते ही होंगे। इस परीक्षा की तैयारी करते समय उसने जिस गांधी को, जिस सुभाषचंद्र को, जिस लिंकन को, जिस मंडेला को पढ़ा होता है, वे सब हस्तियां शुरू में तो उसे आलोड़ित करती ही होंगी। लेकिन देश-समाज के लिए कर गुजरने वाले सपने आखिर कुछ ही वर्षों में विलोपित क्यों हो जाते हैं?
इसका एक श्रेष्ठ जवाब जापान और पूर्वी एशियाई देशों में प्रचलित एक कहावत में ढूंढा जा सकता है- 'अगर आपको भावी पीढ़ियों के भविष्य सुरक्षित करना है, तो पहली पीढ़ी को अपना सर्वस्व देना होगा।' लेकिन हमारे देश में क्या ऐसा हुआ? आजादी मिलते ही पहली पीढ़ी ने अंग्रेज अफसरशाही के उसी सिस्टम को हूबहू स्वीकार कर लिया, जिसमें अफसर जनता के प्रति जवाबदेह बनने के बजाय अपने से ऊपर वालों के प्रति समर्पित थे। किसी देश को गुलाम बनाए रखने के लिए एक सिस्टम की यह अनिवार्य शर्त भी थी। लेकिन आजाद देश में यह सिस्टम? यही सिस्टम हमने बनाए रखा और आज भी बना हुआ है, और भी मजबूती से।
हमारे प्रधान सेवक इन दिनों देशभर में घूम-घूमकर भ्रष्टाचार उन्मूलन का दम भर रहे हैं। लेकिन एक सवाल उनके लिए भी बनता है- क्या केवल कुछ चुनिंदा मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों को चुन-चुनकर गिरफ्तार करने भर से सिस्टम सुधर सकता है? आपके हिसाब से 2014 एक नए युग की शुरुआत थी। लेकिन यह युग भी उस ईच्छाशक्ति को दर्शाने से चूक गया, जो 1947 के समय चूका था।
बहरहाल, देश के 1,016 ब्राइटेस्ट टैलेंट का हमारे सिस्टम में स्वागत है... उन्हें करोड़-करोड़ बधाइयां!!! उम्मीद करते हैं कि 'सत्यमेव जयते' ये दो शब्द कुछ दिन तक तो उनके जेहन में रहेंगे।
#UPSC #UPSC_Result
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