इस बात को लेकर मेरी धारणा और भी सुदृढ़ हो गई है कि अगर हम तीसरी या चौथी आर्थिक शक्ति बन भी गए, तब भी इसका मतलब यह कदापि नहीं होगा कि हम विकसित राष्ट्र भी बन गए हैं। विकसित राष्ट्र का मतलब है विकसित और प्रगतिशील सोच भी रखना। क्या हमारे नेताओं की सोच विकसित है? नहीं। शायद विकासशील भी नहीं है, बल्कि पतनशील है। वह राज्य जहां से महिलाओं को 'लाड़ली बहना' के रूप में सम्मान देने का राजनीतिक विचार प्रमुखता से निकला, वहां का मुख्यमंत्री इस तरह की सोच रख सकता है, इस पर विश्वास तो नहीं होता, मगर दुर्भाग्य से करना पड़ता है।
एक प्रमुख पार्टी के मुख्यमंत्री ने एक दूसरी प्रमुख पार्टी की एक महिला नेत्री का नाम लिए बगैर उनसे तीन सवाल पूछे हैं। चूंकि सवाल पूछने वाला एक जिम्मेदार संवैधानिक पर बैठा है। इसलिए इन सवालों पर एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते भी कुछ सवाल बनते हैं। ये सवाल पूछना हर जिम्मेदार और प्रगतिशील सोच रखने वाले नागरिक का कर्त्तव्य भी है, फिर वह किसी भी राजनीतिक विचाराधारा से ताल्लुक रखता हो। ये राजनीतिक नहीं, सामाजिक सवाल हैं और बेहद गंभीर विमर्श की मांग करते हैं। इन पर उन तमाम लोगों को जरूर मंथन करना चाहिए, जो चाहते हैं कि उनकी अगली पीढ़ियां एक सार्थक विकसित भारत में सांस लें। हमें ध्यान रखना होगा माननीय नेताजी ने कल जो बातें की हैं, उन्हें केवल चुनावी जुमलेबाजी कहकर खारिज नहीं किया जा सकता। ये गंभीर इसलिए हैं, क्योंकि ऐसी राजनीतिक सोच ही कालांतर में पूरे समाज की सोच में तब्दील हो जाती है।
संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का सवाल नंबर 1 था: अरे, तुम्हारी शादी कहां हुई? तुमने तो क्रिश्चियन परिवार में शादी की है।
नागरिक का सवाल: क्या महिला को इस बात पर सफाई देनी होगी, वह भी सार्वजनिक तौर पर, कि उसकी शादी कहां हुई है, किस धर्म में हुई है? (कल से तो किसी महिला से यह भी पूछा जा सकता है कि तुम्हारी शादी क्यों नहीं हुई या तुमने क्यों नहीं की?)
संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का सवाल नंबर 2: अरे, तुम तो शादीशुदा होकर भी मंगलसूत्र क्यों नहीं पहनती?
नागरिक का सवाल: पिछड़ों की राजनीति करते-करते सोच इतनी पिछड़ी कैसे हो सकती है कि आप किसी महिला से ऐसा व्यक्तिगत सवाल पूछ सकते हैं? ऐसे सवाल पटियों पर, चौक चौबारों पर बैठने वाले निठल्ले किस्म के लोग आपस में जरूर करते हैं, या सीमित सोच वाली बुजुर्ग महिलाओं के बीच आम होते हैं। क्या ये सार्वजनिक तौर पर, किसी मंच पर उठाए जा सकते हैं, वह भी किसी संवैधानिक पद पर बैठे हुए व्यक्ति द्वारा?
संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति का सवाल नंबर 3 : जहां शादी हुई है, वहां के परिवार का सरनेम अपने नाम के साथ क्यों नहीं जोड़ा?
नागरिक का सवाल: क्या हम किसी महिला से यह सीधे-सीधे पूछते हैं या पूछने की हिम्मत करते हैं? हममें से कभी किसी ने किसी महिला से ऐसा पूछा है? तो एक मुख्यमंत्री ऐसा कैसे सकता है?
ये सब व्यक्तिगत च्वॉइस की चीजें हैं, जिनमें सामाजिक स्तर पर पारस्परिक सह-सहमति निहित होती है। और यही तो असल लोकतंत्र है। और जब यही खतरे में होगा, तो फिर बाकी कितना भी बचा हो, क्या फर्क पड़ जाएगा!
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