By Jayjeet
रिपोर्टर बहुत दिनों से दुविधा में था। उसे एक सवाल खूब काटे जा रहा था। तो वह सीधे पहुंच गया कफ़न के पास। उसे टटोला तो वहां मिल गई जेब। वह जेब ही है, यह कंफर्म होते ही शुरू हो गया सवाल-जवाब का सिलसिला ...
रिपोर्टर : आपको नमस्कार करने का मन तो नहीं है, पर फिर भी स्वीकार कीजिए।
कफ़न की जेब : आप कौन? क्या जेब लेने आए हों? बताइए, किस साइज की?
रिपोर्टर : नहीं जी, मैं तो रिपोर्टर हूं। बीते कुछ दिनों से आपके बारे में काफी कुछ सुनने को मिला। भरोसा नहीं हो रहा था। तो सोचा आप से ही कंफर्म कर लूं कि क्या आप वाकई में हो या यह केवल कुछ शातिर लोगों द्वारा फैलाई अफवाह है?
कफ़न की जेब : गजब के रिपोर्टर हो। इसमें कंफर्म करने जैसी क्या बात है। हम तो हमेशा से रही हैं? कल भी थीं, आज तो हैं ही और उम्मीद है कल भी रहेंगी। कफ़न में जेब नहीं होती, ऐसी दंतकथाएं सुनी होंगी आपने, तभी डाउट कर रहे हैं। (गजब में तारीफ का नहीं, टांट का भाव था...आगे जवाब मिलेगा)
रिपोर्टर : आज जब पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है, ऐसे माहौल में भी आप?
कफ़न की जेब (बीच में ही बात काटते हुए) : अरे, यह तो आपदा में अवसर है। जेब होकर भी अगर हम पीछे रह गई तो आने वाली पीढ़ियों को क्या मुंह दिखाएंगे?
रिपोर्टर : मतलब, पांचों उंगलियां घी में, सर कड़ाही में? (रिपोर्टर का जवाब महाटांट से...)
कफ़न की जेब : पर बीते कुछ दिनों से कुछ दिक्कतें भी शुरू हो गई हैं।
रिपोर्टर : कैसी दिक्कतें?
कफ़न की जेब : बीते दिनों मैंने पूरे कफ़न को ही थैले के रूप में देखा है। थैले रूपी कफ़न की डिमांड बढ़ रही है। लोग कहने लगे हैं कि केवल छुटैया जेब से काम ना चलेगा। अब हम कफ़न की जेबों को कफ़न के थैलों से काम्पीटिशन करना होगा। हे भगवान, ऐसे भी दिन देखने को मिलेंगे, सोचा ना था।
रिपोर्टर : कौन हैं ये लोग, कहां से आते हैं ऐसे लोग?
कफ़न की जेब : भैया, पिक्चरें कम देखा करो। इस माहौल में ये डायलॉगबाजी शोभा नहीं देती। अभी तो कफ़न की जेब को मजबूत करने का वक्त है।
रिपोर्टर : आप जैसी घटिया मानसिकता वाला इंसान ना देखा? लोग मर रहे हैं और तुम्हें अपनी पड़ी है।
कफ़न की जेब (थोड़ा गुस्से में) : कफ़न में जेब सिलवाने की आपकी औकात नहीं है, तो आप मुझ पर तो फ्रस्टेट मत होइए। और ये मुझे इंसान कहके मेरी इज्जत की चार वाट मत लगाइए। मैं तो बस इंसान की बाय प्रोडक्ट हूं....
रिपोर्टर : माफी चाहूंगा। अच्छा ये बताइए, किस धर्म या जाति के लोगों के कफ़न में आप ज्यादा इंगेज होती हैं?
कफ़न की जेब : हम इंसानों की तरह धर्म-जाति में नहीं बंटे हैं। हम धर्मों, जाति, समुदायों से परे हैं। बल्कि हमारा अपना ही एक अलग कल्ट है।
रिपोर्टर : फिर भी नेता, सरकारी अफसर, बिल्डर, दलाल, डॉक्टर, माफिया, कालाबाजारी, टैक्सचोर व्यापारी, मिलावटखोर... इनमें से किनसे आपको ज्यादा इज्जत मिलती है?
कफन की जेब : भैया, आपने जिनके भी नाम गिनाए, उन तमाम समुदायों में ऐसे कई लोग हैं, जिनसे हमारे बड़े अच्छे संबंध हैं। कुछ मीडिया वाले भी शामिल हैं। हां, इन्हीं समुदायों में भी ऐसे कई लोग हैं जो हमारी जरा भी इज्जत ना करते। अच्छा भैया, बहुत सवाल हो गए। इस समय थोड़ी ज्यादा व्यस्तता है। फिर कभी बात करेंगे।
रिपोर्टर : अच्छा, एक अंतिम जिज्ञासा। भरी जेब के साथ आपका कस्टमर जब ऊपर जाता है तो वहां क्या होता है। आप तो देखती ही होगी?
कफ़न की जेब (धीरे से) : यह ऑफ द रिकॉर्ड बता रही हूं। छापना मत, नहीं तो मेरा धंधा खत्म हो जाएगा। सुनिए ध्यान से... भरी जेब के साथ कस्टमर बड़े ही ठस्के के साथ यह सोचकर ऊपर जाता है कि स्वर्ग में अपने लिए एक बेड जुगाड़ लेगा। पर स्वर्ग में जाने से पहले ही नरक का गेट आता है। सारी जेब वहीं खाली करवा ली जाती है और कस्टमर के साथ क्या होता है, अपन फिर जानने की कोशिश नहीं करती। अपन को क्या! अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। चलती हूं.... पर यह बात छापना मत, फ्रेंडली रिक्वेस्ट है भाई...