By A. Jayjeet
आज रिपोर्टर बड़ी जल्दी में था। सोशल मीडिया पर 'बायकॉट चाइनीज पिचकारी' टाइप कैम्पेन शुरू होने से पहले ही वह मेड इन चाइना की कोई सुंदर-सुशील पिचकारी खरीद लेना चाहता था। लेकिन जल्दबाजी में उसका स्कूटर फिसला और पलक झपकते ही उसके शरीर से आत्मा निकलकर पास स्थित एक बरगद पर उल्टी टंग गई।
रिपोर्टर की आत्मा कुछ देर यूं ही लटकी रही। झूला झूलने का नया एक्सपीरियंस उसे थ्रील दे रहा था। अचानक उसे एक आवाज सुनाई दी - चुनाव कब है, कब है चुनाव?
रिपोर्टर की आत्मा बुदबुदाई, अरे, ये आवाज तो कुछ जानी-पहचानी लग रही है। सालों पहले शोले देखी थी। उसमें भी तो ऐसी ही आवाज थी।
रिपोर्टर का अनुमान सही था। वह गब्बर सिंह की आत्मा थी।
गब्बर सिंह नमस्कार, पेड़ पर सीधे होते हुए रिपोर्टर की आत्मा बोली।
लगता है आज किसी समझदार इंसान की आत्मा से बात हो रही है... कौन हो तुम? गब्बर की आत्मा मुस्कुराई।
आप सही कह रहे हैं। मैं रिपोर्टर हूं...।
अरे वाह रिपोर्टर महोदय, आपको तो जरूर पता होगा कि चुनाव कब है? मैं कब से पूछा जा रहा हूं इन हरामजादों की आत्माओं से, कोई बता ही नहीं रहा..
पर आपको चुनावों से क्या लेना-देना? आपको तो हमेशा होली से ही मतलब होता है।
अब क्या है, मैं होली खेल-खेलकर बोर हो गया हूं। अब जी चाह रहा है कि चुनाव चुनाव खेलूं...। सुना है ठाकुर की जमीन पर भी चुनाव हो रहे हैं... उनसे तो पुराना हिसाब चुकता करना है...
गब्बर, आपको ये अधकचरी जानकारी क्या आपका वही साम्भा देता है? उसको बोलो, कुछ काम-धाम करें। दिनभर बैठे-बैठे अपनी सड़ी हुई दुनाली ही साफ करता रहता है…
हम्म… कुछ करता हूं इस स्साले का... तो क्या ठाकुर की जमीन पर चुनाव नहीं हो रहे?
ठाकुर की जमीन पर चुनाव हो रहे हैं, लेकिन यह आपके वे वाले ठाकुर मतलब ठाकुर बलदेव सिंह नहीं है। ये ठाकुर साहब तो ठाकुर रवींद्रनाथ टैगोर जी हैं। इनके बंगाल में चुनाव है। राष्ट्रगान तो आपको मालूम नहीं होगा। तो उनके बारे में और ज्यादा क्या बताऊं...
रिपोर्टर भाई, आपकी तो सेटिंग-वेटिंग होगी। तो चुनाव का एक टिकट दिलवाइए ना? गब्बर की आत्मा ने पान मसाले का पाउच मुंह में उड़ेलते हुए कहा। शायद अब खैनी मसलनी छोड़ दी है...
टिकट ऐसे नहीं मिलता है। माल-पानी है क्या?
माल-पानी की क्या कमी। कालिया की आत्मा इसी काम में लगी रहती है। अनाज का धंधा उसका खूब फल-फूल रहा है।
क्या...? वह अब भी अनाज की बोरियां लूटने के टुच्चे काम में ही लगा है? लेकिन अनाज की बोरियों की छोटी-मोटी लूट से क्या होगा?
हां, वो लूट तो अनाज की बोरियां ही रहा है, पर अब वैसे नहीं लूटता है। उसने आढ़तियों का कॉकस बना रखा है। अनाज के गोडाउनों की पूरी की पूरी चेन है उसकी। तो माल-पानी की कोई कमी नहीं है। बस, टिकट मिल जाए।
लेकिन गब्बर जी (गब्बर के आगे ‘जी’ अपने आप लग गया...), अच्छा-भला पुराना आपराधिक रिकॉर्ड भी चाहिए, टिकट पाने के लिए...
यह सुनते ही गब्बर सिंह की आत्मा ने वैसा ही जोरदार अट्टहास किया, जैसा उसने अपने तीन साथियों को 'छह गोली और आदमी तीन, बहुत नाइंसाफी है ये' जैसा कालजयी डायलॉग बोलकर उड़ाने के बाद किया था। फिर बोली - अरे ओ साम्भा, कितना इनाम रखे थे सरकार हम पर?
पूरे पचास हजार.... पास के ही एक दूसरे पेड़ पर बैठी साम्भा की आत्मा बड़े ही गर्व से बोली।
सुना... पूरे पचास हजार....और ये इनाम इसलिए था कि यहां से पचास पचास कोस दूर गांव में जब बच्चा रात को रोता है तो...
रिपोर्टर बीच में ही टोकते हुए – अब ये फालतू का डायलॉग छोड़िए। पचास हजार में तो आजकल पार्टी की मेंबरशिप भी नहीं मिलती। और ये बच्चा रोता है डायलॉग को भी जरा अपडेट कर लो। अब बच्चा रोता कम है, मां-बाप को रुलाता ज्यादा है। और बाय द वे, अगर रोता भी है तो मां उसे मोबाइल पकड़ा देती है... बच्चा चुप।
तो रिपोर्टर महोदय, आप होशियार हो, कुछ आप ही रास्ता सुझाओ...
आपको अपना थोड़ा मेकओवर करना होगा। अपनी डाकू वाली इमेज को बदल दीजिए।
अरे, यह तो मेरी पहचान है। इसको कैसे बदल सकता हूं? गब्बर की आत्मा चीखी।
पूरी बात तो सुनिए। डाकूगीरी छोड़ने का नहीं बोल रहा, वह तो पॉलिटिक्स का कोर है। केवल इमेज बदलनी है। ये मैली-कुचेली ड्रेस की जगह कलफदार सफेद रंग का कुर्ता-पायजामा या कुर्ता-धोती टाइप ड्रेस पहननी है। अपनी पिस्तौल को कुर्ते के अंदर बंडी में डालकर रखना है, हाथ में नहीं पकड़ना है। हाथ में रखिए बढ़िया वाला आई-फोन। ऐसा ही मेकओवर अपने साथियों का भी कीजिए।
पर रिपोर्टर महोदय, कुर्ता-धोती पहनकर मैं घोड़ा कैसे दौड़ाऊंगा? गब्बर का सहज सवाल।
घोड़ों को भेजिए तेल लेने। अब आप चलेंगे एसयूवी में। नेता बड़ी एसयूवी में ही चलता है। आपके खेमे में 10-20 एसयूवी होनी ही चाहिए। कालिया-साम्भा टाइप के साथी भी इन्हीं एसयूवी में घूमेंगे। और हां, टोल नाकों पर टैक्स नहीं देना है, आपके साथी इस बात का खास ध्यान रखें। जो नेता टोल नाके पर डर गया, समझो घर गया। कालिया से भी कहिए कि अनाज के साथ थोड़ा-बहुत ड्रग्स का धंधा भी करें। जब आपको नेता बनना ही है तो खम ठोंककर पूरा ही बनिए ना...
तो इससे टिकट मिल जाएगा? गब्बर के दिमाग में राजनीति का कीड़ा अब तेजी से कुलबुलाने लगा था।
अपने बायोडाटा में इस बात का उल्लेख करना मत भूलना कि आप 'रामगढ़' से बिलॉन्ग करते हैं। यह आपकी एडिशनल क्वालिफिकेशन है। इससे आपको ये नहीं तो वो, कोई न कोई पार्टी तो टिकट दे ही देगी। रिपोर्टर ने अपना एडिशनल ज्ञान बघारा।
लेकिन अब भी मुझे ज्यादा समझ में नहीं आ रहा। इतना दंद-फंद क्यों करना भाई?
आप ज्यादा दिमाग मत खपाइए। दिमाग खपाने वाले लोग सच्ची राजनीति नहीं करते। मैंने जैसा कहा, वैसा कीजिए। अब आप मुझे गोली मारकर फिर से नीचे पहुंचाइए। बच्चे, पिचकारी का इंतजार कर रहे होंगे। कल होली है ना...!
और रिपोर्टर ने अपना सिर भावी नेता के आगे झुका लिया, गोली खाने को...।
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