By Jayjeet
यहां आपको कॉन्टेंट मिलेगा कभी कटाक्ष के तौर पर तो कभी बगैर लाग-लपेट के दो टूक। वैसे यहां हरिशंकर परसाई, शरद जोशी जैसे कई नामी व्यंग्यकारों के क्लासिक व्यंग्य भी आप पढ़ सकते हैं।
सोमवार, 24 मई 2021
Satire : विश्व कछुआ दिवस पर जब कुछ कछुए टी पार्टी में मिले
Not Funny : बड़े वकीलों की दिल्लगी...और कुछ नॉटी गॉसिप्स...!!
By Jayjeet
दो दिन पहले सुप्रीम कोर्ट की एक ऑनलाइन सुनवाई के दौरान देश के कुछ वरिष्ठ वकीलों ने हंसी-दिल्लगी के दौरान एक ऐसे विषय की ओर ध्यान आकृष्ट किया है, जो अब गंभीर चर्चा की डिमांड कर रहा है। एक अंग्रेजी अखबार में छपी एक खबर के अनुसार देश के लब्ध प्रतिष्ठ वकीलों के बीच मजाक का विषय यह था कि कौन-सा वकील सबसे ज्यादा पैसा लेता है। इस हंसी-मजाक में शामिल थे अभिषेक मनु सिंघवी, सुप्रीम कोर्ट बॉर एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह, अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता।
वकीलों ने आपसी मजाक में इस बात का खुलासा किया कि देश के कुछ वकील ऐसे हैं जो महज 10 मिनट की पैरवी के लिए ही दस लाख रुपए तक लेते हैं। इस बात का खुलासा भी हुआ कि सालों पहले वकीलों द्वारा ली जाने वाली भारी-भरकम फीस को अनुचित मानते हुए सुप्रीम कोर्ट बॉर एसोसिएशन के तत्कालीन प्रेसिडेंट मुरली भंडारे फीस की ऊपरी सीमा तय करने के लिए प्रस्ताव भी लाए थे जिसे शांतिभूषण ने यह कहते हुए डस्टबीन के हवाले कर दिया था कि सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन ऐसा करने वाला कौन?
वहां ये सब बातें बेहद हल्के-फुल्के अंदाज में कही जा रही थी और इसलिए ऑनलाइन सुनवाई के लिए जजों के आते ही उनकी इस टिप्पणी के साथ खत्म हो गई कि जज बनने से पहले हम भी वकील थे और जानते हैं कि वकील किस तरह की 'नॉटी गॉसिप' करते हैं।
सही है, बड़े-बड़े वकीलों के लिए तो यह नॉटी गॉसिप ही है। और हमारी न्याय प्रणाली में ऐसी छोटी-छोटी नॉटी गासिपें चलती रहती हैं कि किस तरह लॉकडाउन की तरह कोर्ट केसेस में तारीख पे तारीख बढ़ती रहती है, किस तरह फैसले आने में 30 से 40 साल तक लग जाते हैं, किस तरह लाखों की तादाद में हर साल मामलों के अंबार लगते रहते हैं, किस तरह आज भी हमारा पूरा न्यायिक सिस्टम 40-50 दिन के समर वैकेशन पर जाना समृद्ध परंपरा का अभिन्न हिस्सा समझता है, आदि आदि... ये सब छोटी-छोटी नॉटी गॉसिप्स हैं, इनके क्या मायने भला?
पर इन गॉसिप से इतर एक बड़े सवाल पर चर्चा करना जरूरी है। जब इतने बड़े-बड़े वकील इतनी बड़ी-बड़ी फीस लेते हैं तो उन्हें देने वाला भी तो बड़ा ही होता होगा। और कोई उन्हें इतनी भारी-भरकम फीस क्यों देता है? अभी कुछ दिन पहले ही हम सबने वेब सीरीज 'स्कैम 92' देखी है। याद कीजिए, वेब सीरीज का वह दृश्य जिसमें राम जेठमलानी की बाजू में हर्षद मेहता बैठा हुआ है। राम जेठमलानी जी स्वर्ग सिधार चुके हैं। इसलिए संस्कार यही कहते हैं कि हम उनके बारे में अच्छी बातें ही करें। तो अच्छी बात यह थी कि उन्होंने जनहित के कई मामले फ्री में लड़ें... हां, फ्री में भी... एक दावे के अनुसार 90 फीसदी मामले उन्होंने फ्री में लड़े। जो पैसा कमाया, वह केवल हर्षद मेहता स्कैम, हाजी मस्तान स्मगलिंग केस, जेसिका लाल मर्डर केस फेम मनु शर्मा जैसों से कमाया। आज जो लब्ध प्रतिष्ठ वकील हैं, जिनमें से कई बड़ी-बड़ी राजनीतिक पार्टियों से भी जुडे़ हैं, कई मंत्री हैं और कई मंत्री रह चुके हैं, वे भी जनहित के कई मामले फ्री में लड़ते हैं...। वे भी हर्षद मेहताओं, मनु शर्माओं से ही पैसा कमाते हैं या फिर मधु कोड़ाओं जैसे भ्रष्ट नेताओं से। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि भारी-भरकम पैसा देने वाले सभी अपने अपराधों से बच ही जाते होंगे। फिर भी भारी-भरकम फीस दी जा रही है। बड़े-बड़े वकीलों के टैलेंट का इस्तेमाल हो रहा है। यह इस्तेमाल कैसा और कहां होता होगा, हम-आप जैसे सामान्य लोग तो कभी समझ भी नहीं पाएंगे। हम तो बस हिरण हत्याकांड जैसे मामलों की कोर्ट कार्रवाई में कभी-कभार जाते हुए अपने सल्लू भाई को अपने प्रशंसकों के सामने हाथ हिलाते ही देख पाते हैं, कहीं और 'हाथ मिलाते' हुए नहीं...।
खैर, देश को अगर वाकई बदलना है तो क्या इसकी चिंता भी नहीं करनी चाहिए कि वकीलों की फीस कितनी होनी चाहिए? मजाक में नहीं, हकीकत में....पर कौन करेगा, कैसे करेगा, पता नहीं क्योंकि माननीय जज तो कह ही चुके हैं - जज बनने से पहले हम भी वकील ही होते हैं...
तो क्या बेहतर नहीं होगा कि बड़े-बड़े वकील ही इसकी चिंता करें...? क्योंकि जेब वाले कफन बनने तो अभी शुरू हुए नहीं। कफनों को तो मैनुप्यूलेट नहीं किया जा सकता...कम से कम अभी नहीं...!
शुक्रवार, 21 मई 2021
शरद जोशी का व्यंग्य – ‘अथ श्री गणेशाय नम:’ यानी देश के चूहों की कहानी
शरद जोशी
अथ श्री गणेशाय नम:, बात गणेश जी से शुरू की जाए, वह धीरे-धीरे चूहे तक पहुँच जाएगी। या चूहे से आरंभ करें और वह श्री गणेश तक पहुँचे। या पढ़ने-लिखने की चर्चा की जाए। श्री गणेश ज्ञान और बुद्धि के देवता हैं। इस कारण सदैव अल्पमत में रहते होंगे, पर हैं तो देवता। सबसे पहले वे ही पूजे जाते हैं। आख़िर में वे ही पानी में उतारे जाते हैं। पढ़ने-लिखने की चर्चा को छोड़ आप श्री गणेश की कथा पर आ सकते हैं।
विषय क्या है, चूहा या श्री गणेश? भई, इस देश में कुल मिलाकर विषय एक ही होता है – ग़रीबी। सारे विषय उसी से जन्म लेते हैं। कविता कर लो या उपन्यास, बात वही होगी। ग़रीबी हटाने की बात करने वाले बातें कहते रहे, पर यह न सोचा कि ग़रीबी हट गई, तो लेखक लिखेंगे किस विषय पर? उन्हें लगा, ये साहित्य वाले लोग ‘ग़रीबी हटाओ’ के ख़िलाफ़ हैं। तो इस पर उतर आए कि चलो साहित्य हटाओ।
वह नहीं हट सकता। श्री गणेश से चालू हुआ है। वे ही उसके आदि देवता हैं। ‘ऋद्धि-सिद्धि’ आसपास रहती हैं, बीच में लेखन का काम चलता है। चूहा पैरों के पास बैठा रहता है। रचना ख़राब हुई कि गणेश जी महाराज उसे चूहे को दे देते हैं। ले भई, कुतर खा। पर ऐसा प्राय: नहीं होता। ‘निज कवित्त’ के फीका न लगने का नियम गणेश जी पर भी उतना ही लागू होता है। चूहा परेशान रहता है। महाराज, कुछ खाने को दीजिए। गणेश जी सूँड पर हाथ फेर गंभीरता से कहते हैं, लेखक के परिवार के सदस्य हो, खाने-पीने की बात मत किया करो। भूखे रहना सीखो। बड़ा ऊँचा मज़ाक-बोध है श्री गणेश जी का। चूहा सुन मुस्कुराता है। जानता है, गणेश जी डायटिंग पर भरोसा नहीं करते, तबीयत से खाते हैं, लिखते हैं, अब निरंतर बैठे लिखते रहने से शरीर में भारीपन तो आ ही जाता है।
चूहे को साहित्य से क्या करना। उसे चाहिए अनाज के दाने। कुतरे, खुश रहे। सामान्य जन की आवश्यकता उसकी आवश्यकता है। खाने, पेट भरने को हर गणेश-भक्त को चाहिए। भूखे भजन न होई गणेशा। या जो भी हो। साहित्य से पैसा कमाने का घनघोर विरोध वे ही करते हैं, जिनकी लेक्चररशिप पक्की हो गई और वेतन नए बढ़े हुए ग्रेड में मिल रहा है। जो अफ़सर हैं, जिन्हें पेंशन की सुविधा है, वे साहित्य में क्रांति-क्रांति की उछाल भरते रहते हैं।
राष्ट्रीय दृष्टिकोण से सोचिए। पता है आपको, चूहों के कारण देश का कितना अनाज बरबाद होता है। चूहा शत्रु है। देश के गोदामों में घुसा चोर है। हमारे उत्पादन का एक बड़ा प्रतिशत चूहों के पेट में चला जाता है। चूहे से अनाज की रक्षा हमारी राष्ट्रीय समस्या है। कभी विचार किया अापने इस पर? बड़े गणेश-भक्त बनते हैं।
विचार किया। यों ही गणेश-भक्त नहीं बन गए। समस्या पर विचार करना हमारा पुराना मर्ज़ है। हा-हा-हा, ज़रा सुनिए।
आपको पता है, दाने-दाने पर खाने वाले का नाम लिखा रहता है। यह बात सिर्फ़ अनार और पपीते को लेकर ही सही नहीं है, अनाज के छोटे-छोटे दाने को लेकर भी सही है। हर दाने पर नाम लिखा रहता है खाने वाले का। कुछ देर पहले जो पराठा मैंने अचार से लगाकर खाया था, उस पर जगह-जगह शरद जोशी लिखा हुआ था। छोटा-मोटा काम नहीं है, इतने दानों पर नाम लिखना। यह काम कौन कर सकता है? गणेश जी, और कौन? वे ही लिख सकते हैं। और किसी के बस का नहीं है यह काम। परिश्रम, लगन और न्याय की ज़रूरत होती है। साहित्य वालों को यह काम सौंप दो, दाने-दाने पर नाम लिखने का। बस, अपने यार-दोस्तों के नाम लिखेंगे, बाकी को छोड़ देंगे भूखा मरने को। उनके नाम ही नहीं लिखेंगे दानों पर। जैसे दानों पर नाम नहीं, साहित्य का इतिहास लिखना हो, या पिछले दशक के लेखन का आकलन करना हो कि जिससे असहमत थे, उसका नाम भूल गए।
दृश्य यों होता है। गणेश जी बैठे हैं ऊपर। तेज़ी से दानों पर नाम लिखने में लगे हैं। अधिष्ठाता होने के कारण उन्हें पता है, कहाँ क्या उत्पन्न होगा। उनका काम है, दानों पर नाम लिखना ताकि जिसका जो दाना हो, वह उस शख़्स को मिल जाए। काम जारी है। चूहा नीचे बैठा है। बीच-बीच में गुहार लगाता है, हमारा भी ध्यान रखना प्रभु, ऐसा न हो कि चूहों को भूल जाओ। इस पर गणेश जी मन ही मन मुस्कुराते हैं। उनके दाँत दिखाने के और हैं, मुस्कराने के और। फिर कुछ दानों पर नाम लिखना छोड़ देते हैं, भूल जाते हैं। वे दाने जिन पर किसी का नाम नहीं लिखा, सब चूहे के। चूहा गोदामों में घुसता है। जिन दानों पर नाम नहीं होते, उन्हें कुतर कर खाता रहता है। गणेश-महिमा।
एक दिन चूहा कहने लगा, गणेश जी महाराज! दाने-दाने पर मानव का नाम लिखने का कष्ट तो आप कर ही रहे हैं। थोड़ी कृपा और करो। नेक घर का पता और डाल दो नाम के साथ, तो बेचारों को इतनी परेशानी नहीं उठानी पड़ेगी। मारे-मारे फिरते हैं, अपना नाम लिखा दाना तलाशते। भोपाल से बंबई और दिल्ली तलक। घर का पता लिखा होगा, तो दाना घर पहुँच जाएगा, ऐसे जगह-जगह तो नहीं भटकेंगे।
अपने जाने चूहा बड़ी समाजवादी बात कह रहा था, पर घुड़क दिया गणेशजी ने। चुप रहो, ज़्यादा चूं-चूं मत करो।
नाम लिख-लिख श्री गणेश यों ही थके रहते हैं, ऊपर से पता भी लिखने बैठो। चूहे का क्या, लगाई जुबान ताल से और कह दिया। न्याय स्थापित कीजिए, दोनों का ठीक-ठाक पेट भर बँटवारा कीजिए। नाम लिखने की भी ज़रूरत नहीं। गणेश जी कब तक बैठे-बैठे लिखते रहेंगे?
प्रश्न यह है, तब चूहों का क्या होगा? वे जो हर व्यवसाय में अपने प्रतिशत कुतरते रहते हैं, उनका क्या होगा?
वही हुआ ना! बात श्री गणेश से शुरू कीजिए तो धीरे-धीरे चूहे तक पहुँच जाती है। क्या कीजिएगा!
(satire of sharad joshi, शरद जोशी के व्यंग्य)
शरद जोशी का व्यंग्य - चौथा बंदर
शरद जोशी
एक बार कुछ पत्रकार और फोटोग्राफर गांधी जी के आश्रम में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि गांधी जी के तीन बंदर हैं। एक आंख बंद किए है, दूसरा कान बंद किए है, तीसरा मुंह बंद किए है। एक बुराई नहीं देखता, दूसरा बुराई नहीं सुनता और तीसरा बुराई नहीं बोलता। पत्रकारों को स्टोरी मिली, फोटोग्राफरों ने तस्वीरें लीं और आश्रम से चले गए।
उनके जाने के बाद गांधी जी का चौथा बंदर आश्रम में आया। वह पास के गांव में भाषण देने गया था। वह बुराई देखता था, बुराई सुनता था, बुराई बोलता था। उसे जब पता चला कि आश्रम में पत्रकार आए थे, फोटोग्राफर आए थे, तो वह बड़ा दु:खी हुआ और धड़धड़ाता हुआ गांधी जी के पास पहुंचा। ‘सुना बापू, यहां पत्रकार और फोटोग्राफर आए थे। बड़ी तस्वीरें ली गईं। आपने मुझे खबर भी न की। यह तो मेरे साथ बड़ा अन्याय किया है बापू।’ गांधी जी ने चरखा चलाते हुआ कहा, ‘जरा देश को आजाद होने दे बेटे! फिर तेरी ही खबरें छपेंगी, तेरी ही फोटो छपेगी। इन तीनों बंदरों के जीवन में तो यह अवसर एक बार ही आया है। तेरे जीवन में तो यह रोज-रोज आएगा।’गुरुवार, 20 मई 2021
Humor & Satire : जब कहानी की जगह कविता सुनाने लगा बेताल
By Jayjeet
रिपोर्टर बरगद के पेड़ के नीचे फेसबुक चेक करने को रुका ही था कि अचानक उसकी बाइक की पिछली सीट पर अट्टहास करती एक आकृति कूद पड़ी। सामान्य काल होता तो रिपोर्टर चौंककर हॉस्पिटल में होता, लेकिन अब कोई भी घटना चौंकाती नहीं। आंखें थोड़ी फटी जरूर लेकिन मन में ब्रेकिंग न्यूज का सैलाब उमड़ने लगा। तो आंखों में डर की जगह चमक आ गई। चुपचाप से फोन का कैमरा चालू कर शुरू हो गया...
रविवार, 16 मई 2021
Humour : डॉक्टर कितने तरह के होते हैं?
डॉक्टर दो तरह के होते हैं : एक, झोला झाप और दूसरा सूटकेस छाप।
झोला छाप डॉक्टरों की इस समय खूब लानत-मलानत हो रही है। कुछ टीवी चैनलों ने हाल ही में उनका स्टिंग भी किया। जब टीवी चैनलों के पास कोई काम नहीं होता तो वे ऐसे ही स्टिंग करते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टर ऐसे स्टिंग से मुक्त होते हैं। वे तो स्टिंग देते हैं...
झोला छाप डॉक्टरों के पास डिग्रियां नहीं होतीं। इसलिए उनके पास डॉक्टरी का लाइसेंस भी नहीं होता। डॉक्टरी का लाइसेंस न होने पर भी वे लोगों को मूर्ख बनाने का प्रयास करते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टरों के पास बड़ी-बड़ी डिग्रियां होती हैं। ये डिग्रियां उनके लिए मूर्ख बनाने का डिफॉल्ट लाइसेंस होती हैं...। तो इन्हें प्रयास करने की जरूरत नहीं होती।
झोला छाप डॉक्टरों को कुछ पता नहीं होता। इसलिए ये 'मन के गुलाम' होते हैं। जो मन कहे, वही दवाइयां लिखते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टरों को सबकुछ पता होता है। इसीलिए ये 'मनी के गुलाम' होते हैं। इसलिए जो मनी कहती है, ये वही लिखते हैं- टेस्ट से लेकर दवाइयां तक...
झोला छाप डॉक्टर सेहत के लिए खतरनाक होते हैं। सूटकेस छाप डॉक्टर आर्थिक सेहत के लिए घातक होते हैं।
हमें न झोपा छाप डॉक्टर चाहिए। न सूटकेस छाप डॉक्टर।
(जैसा कि जॉली एलएलबी-2 में वकील बने अक्षय कहते हैं - हमें न कादरी जैसे टेररिस्ट चाहिए, न सत्यवीर जैसे करप्ट पुलिस अफसर...)
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तो कौन-से डॉक्टर चाहिए, महाराज? डॉक्टर पुराण बहुत हो गई...
हमें तो वही डॉक्टर चाहिए जो कभी देवलोक से आते थे, डैपुटेशन पर... भगवान के दूत के रूप में...
पर देवलोक ने डैपुटेशन पर डॉक्टर भिजवाने की व्यवस्था तो कब की बंद कर दी है...
अच्छा, इसीलिए तमाम सूटकेस छाप डॉक्टर डैपुटेशन वाले नहीं, डोनेशन वाले हैं...कुछ रिजर्वेशन वाले भी हैं शायद...
(By : Jayjeet)
शनिवार, 15 मई 2021
शरद जोशी का व्यंग्य - शेर की गुफा में न्याय
जंगल में शेर के उत्पात बहुत बढ़ गए थे. जीवन असुरक्षित था और बेहिसाब मौतें हो रही थीं. शेर कहीं भी, किसी पर हमला कर देता था. इससे परेशान हो जंगल के सारे पशु इकट्ठा हो वनराज शेर से मिलने गए. शेर अपनी गुफा से बाहर निकला – कहिए क्या बात है?
उन सबने अपनी परेशानी बताई और शेर के अत्याचारों के विरुद्ध आवाज उठाई. शेर ने अपने भाषण में कहा –
‘प्रशासन की नजर में जो कदम उठाने हमें जरूरी हैं, वे हम उठाएंगे. आप इन लोगों के बहकावे में न आवें जो हमारे खिलाफ हैं. अफवाहों से सावधान रहें, क्योंकि जानवरों की मौत के सही आंकड़े हमारी गुफा में हैं जिन्हें कोई भी जानवर अंदर आकर देख सकता है. फिर भी अगर कोई ऐसा मामला हो तो आप मुझे बता सकते हैं या अदालत में जा सकते हैं.’
चूंकि सारे मामले शेर के खिलाफ थे और शेर से ही उसकी शिकायत करना बेमानी था इसलिए पशुओं ने निश्चय किया कि वे अदालत का दरवाजा खटखटाएंगे.
जानवरों के इस निर्णय की खबर गीदड़ों द्वारा शेर तक पहुंच गई थी. उस रात शेर ने अदालत का शिकार किया. न्याय के आसन को पंजों से घसीट अपनी गुफा में ले आया.
शेर ने अपनी नई घोषणाओं में बताया – जंगल के पशुओं की सुविधा के लिए, गीदड़ मंडली के सुझावों को ध्यान में रखकर हमने अदालत को सचिवालय से जोड़ दिया है
जंगल में इमर्जेंसी घोषित कर दी गई. शेर ने अपनी नई घोषणाओं में बताया – जंगल के पशुओं की सुविधा के लिए, गीदड़ मंडली के सुझावों को ध्यान में रखकर हमने अदालत को सचिवालय से जोड़ दिया है, ताकि न्याय की गति बढ़े और व्यर्थ की ढिलाई समाप्त हो. आज से सारे मुकदमों की सुनवाई और फैसले हमारे गुफा में होंगे.
इमर्जेंसी के दौर में जो पशु न्याय की तलाश में शेर की गुफा में घुसा उसका अंतिम फैसला कितनी शीघ्रता से हुआ इसे सब जानते हैं.
# sharad joshi, # sharad joshi satire
शुक्रवार, 14 मई 2021
गुरुवार, 13 मई 2021
Humor : नीरो की बंशी को लेकर नया खुलासा, बदलनी पड़ेगी अब इतिहास की किताबें!
By Jayjeet
रिपोर्टर तो अक्सर गढ़े मुर्दों की तलाश में रहते ही हैं। एक दिन ऐसे ही एक मुर्दा तलाशते-तलाशते रिपोर्टर के हाथ लग गई एक खास बंसी, जिस पर लिखा था- मेड इन रोम। उससे थोड़ी हाय-हेलो हुई तो पता चला कि यह वही ऐतिहासिक बंसी है जो कभी नीरो ने बजाई थी। अब इतनी कीमती चीज हाथ लगी हो तो रिपोर्टर एक्सक्लूसिव इंटरव्यू का मौका कैसे छोड़ सकता था। पढ़िए उसी इंटरव्यू के मुख्य अंश...
रिपोर्टर : जब रोम जल रहा था, तब आप कहां थीं?
नीरो की बंसी : नीरो जी के हाथों में।
रिपोर्टर : तो मतलब यह बात सही है ना कि जब रोम जल रहा था, तब नीरो बंसी ही बजा रहे थे?
बंसी: हां, लेकिन यह पूरा सच भी नहीं है।
रिपोर्टर: पर इतिहास में भी यही लिखा है कि....
बंसी: आपने इतिहास में जो पढ़ा है, वे केवल आरोप हैं जो उस समय नीरो जी के विरोधियों ने लगाए थे। मीडिया ट्रायल में उन्हें दोषी मान लिया गया और वही इतिहास का हिस्सा हो गया।
रिपोर्टर: लगता है आप नीरो की बड़ी भक्त रही हैं।
बंसी: भक्ति, चमचागीरी तो आपके यहां की महामारियां हैं जी। मैं तो तथ्यों के प्रकाश में यह बात कर रही हूं।
रिपोर्टर: तो तथ्य ही बताइए, पहेलियां बहुत हो गईं।
बंसी: तो सुनिए। जिस समय रोम जल रहा था, उस समय मैं नीरो के पास ही थी। वे वैसे ही बंसी वादन कर रहे थे, जैसा अभी आपके यहां हो रहा है। लेकिन आपके और हमारे यहां जो अंतर है, वह विपक्ष का है। हमारे यहां का विपक्ष एग्रेसिव था, आपके यहां जैसा नहीं कि बस दो-चार चिटि्ठयां लिख दो, ट्विट कर दो, हो गई विपक्षगीरी। तब हमारे यहां विपक्षियों ने रोम की गली-गली गुंजा दी थी - इस्तीफा दो इस्तीफा दो, बंसी वादक नीरो, इस्तीफा दो।
रिपोर्टर : सही तो था। पूरा रोम जल गया तो इस्तीफा तो बनता ही था।
बंसी: इस्तीफा इसलिए नहीं मांगा गया था कि रोम जल गया था। रोम की किसको चिंता थी? चिंता का विषय तो केवल यह था कि नीरो जी बांसुरी क्यों बजा रहे थे?
रिपोर्टर: उफ, मतलब सदियां बीत जाती हैं, लेकिन राजनीति नहीं बदलती। हमारे यहा, आपके यहां सब शेम टू शेम... अच्छा, आगे बताइए, फिर क्या हुआ? इस्तीफा दिया?
बंसी: अब ऐसे छोटे-मोटे मामलों मंे इस्तीफा कैसे दे दें? पर विपक्ष का भी तो मुंह बंद करना था। तो सरकार ने बंसी कांड की जांच के लिए तीन सदस्यों की एक जांच समिति बैठा दी ।
रिपोर्टर: तो जांच समिति ने अपनी जांच में क्या कहा?
बंसी: लंबे समय तक तो मामले की जांच ही नहीं हो पाई।
रिपोर्टर: क्यों?
नीरो: दरअसल जांच समिति के सदस्यों ने अपने घर से ऑफिस और ऑफिस से घर आने-जाने तथा अपनी पत्नियों के लिए बाजार जाने के वास्ते एयरकंडिशनर रथों की मांग कर दी। अब जब तक इनके पास अपना वाहन न हों, वे जांच कर भी कैसे सकते थे।
रिपोर्टर: हां, रथ की मांग तो जायज थी। तो उनके लिए स्पेशल रथों की व्यवस्था कैसे की गई?
बंसी: यही तो पेंच था। रथों की स्वीकृति उस समय साम्राज्य की सीनेट की उच्चाधिकार प्राप्त समिति से जरूरी थी। इस स्वीकृति में डेढ़ साल लग गया। इसके बाद रथों के लिए टेंडर बुलाए गए। टेंडर एक पार्टी को दे भी दिए गए। लेकिन फिर विपक्ष ने नया आरोप लगा दिया कि टेंडर में भारी घोटाला हुआ है। टेंडर नीरो के भतीजे के नाम पर बनाई गई एक फर्जी फर्म को दे दिए गए थे। इसको लेकर विपक्ष के लोगों ने इतना हंगामा किया कि सरकार को अंतत: झुकना पड़ा। टेंडर निरस्त कर दिए गए। विपक्ष यहीं तक नहीं रुका। उसने टेंडर घोटाले की जांच के लिए एक अलग से कमेटी गठित करने को भी मजबूर कर दिया।
रिपोर्टर: पर उस बंसी जांच समिति का क्या हुआ? रथों का क्या हुआ?
बंसी: समिति के सदस्यों को सरकारी रथ नहीं मिले तो नहीं मिले, लेकिन फिर भी उनके महल रूपी बंगलों में अत्याधुनिक रथ देखे गए, ऐसा लोगों का कहना था। पर मैं मान ही नहीं सकती कि उन्होंेने जांच के दौरान कोई भ्रष्टाचार किया होगा। बहुत ही सज्जन लोग थे तीनों के तीनों। इतने सज्जन कि नीरो के आगे हमेशा हाथ जोड़े खड़े रहते। मैं खुद चश्मदीद रही।
रिपोर्टर: इतनी राम कहानी आपने कह दी। पर मुद्दे की बात तो बताइए, जांच हुई भी कि नहीं? रिपोर्ट आई कि नहीं?
बंसी: जैसा कि हर जांच समिति के लिए रिपोर्ट पेश करना नैतिक दायित्व होता है, तो नीरो बंसी जांच समिति ने भी अपना नैतिक दायित्व पूरा किया। सीनेट के पटल पर बाकायदा रिपोर्ट रखी गई। रिपोर्ट में जांच समिति के माननीय सदस्यों ने सर्वसम्मति से लिखा - 'नीरो पर लगाए गए आरोप तथ्य आधारित प्रतीत नहीं होते। हमारी विस्तृत जांच से पता चलता है कि यह बात सत्य नहीं है कि 'जब रोम जल रहा था, तब नीरो बंसी बजा रहे थे।' सत्य इसके बिल्कुल विपरीत है और सत्य यह है कि 'जब नीरो बंसी बजा रहे थे, तब रोम जल रहा था।' इसलिए इसमें गलती नीरो की नहीं, बल्कि रोम की है। नीरो के बंसी बजाने के मौके पर रोम ने स्वयं आगे आकर जलने का जो आपराधिक कृत्य किया, उसके लिए समिति रोम को कड़ी से कड़ी सजा दिए जाने की अनुशंसा करती है और नीरो को तमाम आरोपों से मुक्त करती है।' नीरो पक्ष ने करतल ध्वनि के साथ रिपोर्ट को मंजूर कर लिया और विपक्ष ने पूरे मामले में एक नई जांच समिति की मांग करते हुए सीनेट की कार्रवाई का बायकॉट कर दिया।
रिपोर्टर : ओह, यह तो बिल्कुल नई ऐतिहासिक जानकारी है।
नीरो की बंसी : जी, और अब अपने इतिहासकारों से भी कहिएगा कि वे किताबों में जरूरी बदलाव करें। जबरन हमारे-तुम्हारे नीरो बदनाम हो गए। अब मैं चलती हूं।
# nero # nero ki bansi # who is nero
शनिवार, 8 मई 2021
गुरुवार, 6 मई 2021
Satire & Humor : कफ़न की जेब का अब क़फन के थैलों से होने लगा कॉम्पीटिशन!
By Jayjeet
रिपोर्टर बहुत दिनों से दुविधा में था। उसे एक सवाल खूब काटे जा रहा था। तो वह सीधे पहुंच गया कफ़न के पास। उसे टटोला तो वहां मिल गई जेब। वह जेब ही है, यह कंफर्म होते ही शुरू हो गया सवाल-जवाब का सिलसिला ...
रिपोर्टर : आपको नमस्कार करने का मन तो नहीं है, पर फिर भी स्वीकार कीजिए।
कफ़न की जेब : आप कौन? क्या जेब लेने आए हों? बताइए, किस साइज की?
रिपोर्टर : नहीं जी, मैं तो रिपोर्टर हूं। बीते कुछ दिनों से आपके बारे में काफी कुछ सुनने को मिला। भरोसा नहीं हो रहा था। तो सोचा आप से ही कंफर्म कर लूं कि क्या आप वाकई में हो या यह केवल कुछ शातिर लोगों द्वारा फैलाई अफवाह है?
कफ़न की जेब : गजब के रिपोर्टर हो। इसमें कंफर्म करने जैसी क्या बात है। हम तो हमेशा से रही हैं? कल भी थीं, आज तो हैं ही और उम्मीद है कल भी रहेंगी। कफ़न में जेब नहीं होती, ऐसी दंतकथाएं सुनी होंगी आपने, तभी डाउट कर रहे हैं। (गजब में तारीफ का नहीं, टांट का भाव था...आगे जवाब मिलेगा)
रिपोर्टर : आज जब पूरा देश कोरोना से लड़ रहा है, ऐसे माहौल में भी आप?
कफ़न की जेब (बीच में ही बात काटते हुए) : अरे, यह तो आपदा में अवसर है। जेब होकर भी अगर हम पीछे रह गई तो आने वाली पीढ़ियों को क्या मुंह दिखाएंगे?
रिपोर्टर : मतलब, पांचों उंगलियां घी में, सर कड़ाही में? (रिपोर्टर का जवाब महाटांट से...)
कफ़न की जेब : पर बीते कुछ दिनों से कुछ दिक्कतें भी शुरू हो गई हैं।
रिपोर्टर : कैसी दिक्कतें?
कफ़न की जेब : बीते दिनों मैंने पूरे कफ़न को ही थैले के रूप में देखा है। थैले रूपी कफ़न की डिमांड बढ़ रही है। लोग कहने लगे हैं कि केवल छुटैया जेब से काम ना चलेगा। अब हम कफ़न की जेबों को कफ़न के थैलों से काम्पीटिशन करना होगा। हे भगवान, ऐसे भी दिन देखने को मिलेंगे, सोचा ना था।
रिपोर्टर : कौन हैं ये लोग, कहां से आते हैं ऐसे लोग?
कफ़न की जेब : भैया, पिक्चरें कम देखा करो। इस माहौल में ये डायलॉगबाजी शोभा नहीं देती। अभी तो कफ़न की जेब को मजबूत करने का वक्त है।
रिपोर्टर : आप जैसी घटिया मानसिकता वाला इंसान ना देखा? लोग मर रहे हैं और तुम्हें अपनी पड़ी है।
कफ़न की जेब (थोड़ा गुस्से में) : कफ़न में जेब सिलवाने की आपकी औकात नहीं है, तो आप मुझ पर तो फ्रस्टेट मत होइए। और ये मुझे इंसान कहके मेरी इज्जत की चार वाट मत लगाइए। मैं तो बस इंसान की बाय प्रोडक्ट हूं....
रिपोर्टर : माफी चाहूंगा। अच्छा ये बताइए, किस धर्म या जाति के लोगों के कफ़न में आप ज्यादा इंगेज होती हैं?
कफ़न की जेब : हम इंसानों की तरह धर्म-जाति में नहीं बंटे हैं। हम धर्मों, जाति, समुदायों से परे हैं। बल्कि हमारा अपना ही एक अलग कल्ट है।
रिपोर्टर : फिर भी नेता, सरकारी अफसर, बिल्डर, दलाल, डॉक्टर, माफिया, कालाबाजारी, टैक्सचोर व्यापारी, मिलावटखोर... इनमें से किनसे आपको ज्यादा इज्जत मिलती है?
कफन की जेब : भैया, आपने जिनके भी नाम गिनाए, उन तमाम समुदायों में ऐसे कई लोग हैं, जिनसे हमारे बड़े अच्छे संबंध हैं। कुछ मीडिया वाले भी शामिल हैं। हां, इन्हीं समुदायों में भी ऐसे कई लोग हैं जो हमारी जरा भी इज्जत ना करते। अच्छा भैया, बहुत सवाल हो गए। इस समय थोड़ी ज्यादा व्यस्तता है। फिर कभी बात करेंगे।
रिपोर्टर : अच्छा, एक अंतिम जिज्ञासा। भरी जेब के साथ आपका कस्टमर जब ऊपर जाता है तो वहां क्या होता है। आप तो देखती ही होगी?
कफ़न की जेब (धीरे से) : यह ऑफ द रिकॉर्ड बता रही हूं। छापना मत, नहीं तो मेरा धंधा खत्म हो जाएगा। सुनिए ध्यान से... भरी जेब के साथ कस्टमर बड़े ही ठस्के के साथ यह सोचकर ऊपर जाता है कि स्वर्ग में अपने लिए एक बेड जुगाड़ लेगा। पर स्वर्ग में जाने से पहले ही नरक का गेट आता है। सारी जेब वहीं खाली करवा ली जाती है और कस्टमर के साथ क्या होता है, अपन फिर जानने की कोशिश नहीं करती। अपन को क्या! अपना काम बनता, भाड़ में जाए जनता। चलती हूं.... पर यह बात छापना मत, फ्रेंडली रिक्वेस्ट है भाई...
सोमवार, 3 मई 2021
Satire : बंगाल में राहुल गांधी के जाए बगैर ही कांग्रेस का सूपड़ा साफ, जाते तो न जाने क्या होता!
बंगाल में कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली है। वहां राहुल गांधी के जाए बगैर ही कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया है। जाते तो न जाने क्या होता! इसी पर यह व्यंग्य वीडियो...
रविवार, 2 मई 2021
Satire & humor : बंगाल में क्यों हारी बीजेपी? क्या है इसका राहुल कनेक्शन? अमित शाह ने बताई ऐसी Funny वजह
आज बंगाल में #BJP चुनाव हार गई। ममता की #TMC चुनाव जी गई। बीजेपी आखिर क्यों हारी? इस हार का क्या है राहुल गांधी कनेक्शन? देखिए यह फनी वीडियो
गुरुवार, 29 अप्रैल 2021
Satire : पौधे की अभिलाषा
चाह नहीं बड़ा होकर
फूलों से लद जाऊं
चाह नहीं दरख्त बन
हवा में सरसराऊं
चाह नहीं छतनार बन
अपनी शाखों पर इतराऊं
चाह नहीं नेता के बंगले पर
शोभा का पेड़ कहलाऊं
मुझे काट लेना हे सरकार
बनाने ऑक्सीजन प्लांट
जिसके लिए आज मचा है
जगह जगह हाहाकार...।
मॉरल ऑफ द पोयम : अगर पौधे होकर भी वे किसी सड़क, पुल, इमारत या प्लांट जैसी चीजों के लिए सरकार के काम न आए तो व्यर्थ है उनकी पेड़गीरी।
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अब पढ़िए माखनलाल चतुर्वेदी जी की वह कविता पुष्प की अभिलाषा जो उक्त कविता की प्रेरणा बनी है....
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूँथा जाऊँ,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊँ,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊँ,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक!
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक!
मंगलवार, 27 अप्रैल 2021
सोमवार, 26 अप्रैल 2021
रविवार, 25 अप्रैल 2021
Humor & Satire : बंगाल चुनाव नतीजों से पहले ही एक रिजॉर्ट से एक्सक्लूसिव बातचीत
By Jayjeet
कोविड सेंटर्स में फैली अफरा-तफरी, हॉस्पिटल्स से आ रही करुण कंद्रन के बीच थोड़ा फील गुड करने-करवाने के लिए रिपोर्टर निकल पड़ा एक रिजॉर्ट की ओर। नहीं जी, वहां तफरीह वगैरह के लिए नहीं, बस उससे बात करने के लिए.... पांच राज्यों में चुनाव नतीजे आने से पहले ही किसी रिजॉर्ट का पहला इंटरव्यू। एक्सक्लूसिव, हमेशा की तरह केवल इस रिपोर्टर के पास...
रिपोर्टर : मुंह पर बड़ी मुर्दानगी छाई हुई है जी..
resort : तो क्या मैं नाचूं? माहौल नहीं देख रहो?
रिपोर्टर : अरे महोदय, खुश हो जाइए, कम से कम आपके अच्छे दिन आने वाले हैं।
resort : क्यों? चुनाव खतम हो गए क्या?
रिपोर्टर : नहीं, बस समझो खत्म होने ही वाले हैं। जब चुनाव आयोग जाग जाता है, तब चुनाव खत्म होने का टाइम आ जाता है। अभी-अभी आयोग जागा है। इसीलिए तो मैं आपके पास भागा-भागा आया हूं।
resort : चलो भगवान का लाख-लाख शुक्र है। मैंने तो सारी उम्मीदें ही छोड़ दी थीं। मुझे याद है जब चुनाव शुरू हुए थे, तो उस समय मेरे आंगन के किनारे पर आम का वह छोटा-सा पौधा लगाया गया था - मैंगू। देखो, कितना बड़ा हो गया है। अब तो उसमें फल भी आने वाले हैं।
रिपोर्टर : बस, वही फल खाने के लिए तो आपको गुलजार करने आ रहे हैं हमारे माननीय।
resort : मुंह ना नोच लूं... आ तो जाए जरा निगोड़े। इस माहौल में भी लाज ना आ रही है इनको..
रिपोर्टर : काबा किस मुंह से जाओगे 'ग़ालिब', शर्म तुमको मगर नहीं आती। ऐसा ही हाल है इनका। आप इनका मुंह नोच लो कि नंगा कर दो, कुछ फर्क ना पड़ने वाला इन्हें। भाई, ये चुनाव लड़ते ही क्यों है? महीनों से मेहनत कर रहे हैं। अब फल भी ना खाएं भला...!!
resort :###$$&##**#### (गालिया)
रिपोर्टर (बीच में टोकते हुए) : माफी चाहूंगा। आप इतने सोफिस्टेकैटेड रिजॉर्ट हो। ये गालियां, आई मीन ओछी बातें आपकी जबान पर शोभा नहीं देती।
resort : भैया क्या करें। स्साले इन नेताओं की संगत में मेरा कैरेक्टर भी खराब हो गया है। मुंह में गालियां भर गई हैं। रात को बुरे-बुरे सपने आते हैं। वैसे नेताओं को गालियां देने में आपको क्यों तकलीफ हो रही है?
तभी फोन की घंटी....
resort : (फोन पर ही) : जी, जी, जी.... बिल्कुल, जैसा आप कहें नेताजी...। हो जाएगी, सारी व्यवस्थाएं...
रिपोर्टर : फोन आने लगे...?
resort : हां जी, चलता हूं। दवा-दारू, कबाब-शबाब की व्यवस्था करने...।
रिपोर्टर .... सही है। रिजॉर्ट है तो क्या हुआ। आपमें और हम जनता में क्या फर्क है। पीठ पीछे गालियां, और सामने आते ही - जी जी जी...
रिजॉर्ट तब तक अपनी व्यवस्थाओं में जुट चुका था।
# resort # resort politics
शुक्रवार, 23 अप्रैल 2021
Humor Video : रिजॉर्ट के बाहर क्या कर रहे हैं अमित शाह?
बीते दिनों कोरोना के बढ़ते प्रकोप के बीच बंगाल चुनाव में रैलियों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह (amit shah) सोशल मीडिया पर लोगों के खासे निशाने पर रहे। बीजेपी की चुनावी राजनीति पर देखिए यह छोटा-सा व्यंग्य वीडियो :
गुरुवार, 15 अप्रैल 2021
Satire : चुनाव नतीजों से पहले एक बेचैन EVM के साथ इंटरव्यू
हिंदी सटायर डेस्क। असम और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों में यूज की गई ईवीएम इस समय बंद दरवाजों के पीछे आराम फरमा रही हैं। लेकिन उनमें एक अजीब-सी बेचैनी भी है। हिंदी सटायर ने ऐसी ही एक बेचैन और परेशान ईवीएम से बात करने की कोशिश की। नाम न छापने की शर्त पर वह इंटरव्यू देने के लिए तैयार हो गई। पेश है उस इंटरव्यू के कुछ खास अंश :
हिंदी सटायर : कुछ घंटे बचे हैं। कैसा फील हो रहा है? कुछ नर्वसनेस?
EVM : हां भैया, बहुत बेचैनी है, घबराहट फील हो रही है।
हिंदी सटायर : क्यों?
EVM : क्यों क्या? अगर किसी के चाल-चलन पर लगातार शक किया जाए तो क्या अच्छा लगेगा? अगर आपकी बहन-बेटी को कोई कुलक्षणी कहेगा तो क्या आपको अच्छा लगेगा?
हिंदी सटायर : पर आपको ऐसा क्यों लग रहा है कि लोग आपके कैरेक्टर पर सवाल उठा रहे हैं?
EVM : अरे भाई, अब तो यह हर चुनाव की बात हो गई है। एक पार्टी के लोग हारते नहीं कि दूसरी पार्टी के लोगों पर आरोप लगा देते हैं कि उन्होंने ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की। कभी आरोप लगाते हैं कि चुनाव आयोग के लोग मिलकर हमारे साथ छेड़छाड़ कर रहे हैं। ये क्या है? ये एक तरह से हमारे कैरेक्टर पर ही उंगली उठाना हुआ। मतलब तो यही हुआ ना कि वे छेड़ रहे हैं और हम छिड़ रही है। इसकी आड़ में लोग हमें कुलक्षणी तक बोल रहे हैं!
हिंदी सटायर : तो आप मौका ही क्यों देती है छेड़छाड़ का?
EVM : यह पुरुष प्रधान समाज है। भले ही महिला की गलती हो या न हो, इज्जत तो उसी की उतारी जाती है। इसलिए मेरा कहना है कि कोई भी आरोप लगाने से पहले सच्चाई तो पुख्ता कर लो कि वाकई किसी ईवीएम के साथ छेड़छाड़ हुई भी या नहीं। अगर किसी ने किसी ईवीएम के साथ छेड़छाड़ की भी तो छेड़छाड़ करने वाले को पकड़ो। पूरी ईवीएम बिरादरी पर उंगली उठाना कहां का न्याय है?
हिंदी सटायर : नतीजों के बारे में क्या कहना है?
EVM : भाई, अब बाकी की बातें बाद में करेंगे। अब तुम जाओ, किसी ने देख लिया तो तुम्हारा तो कुछ नहीं बिगड़ेगा। हमें ही ताने दिए जाएंगे कि चालू ईवीएम किस गैर मर्द के साथ नजरें लड़ा रही थीं।
Not Funny & humor : सरकार हमें हमारे भगवान भरोसे छोड़ रही है तो प्लीज शिकायत तो मत कीजिए...!!!
मंगलवार, 13 अप्रैल 2021
Humor & Satire : जहां चुनाव, वहां राजनीति की ऑक्सीजन चढ़ी हुई है...
By Jayjeet
ऑक्सीजन बहुत तेजी में थी, फिर भी रिपोर्टर ने उसे पकड़ ही लिया...
रिपोर्टर : इतनी तेजी में कहां भाग-दौड़ कर रही हों?
ऑक्सीजन : रिपोर्टर होकर कुछ ना पता?
रिपोर्टर : मालूम है। आपकी बड़ी डिमांड है। इसीलिए तो आपके पास आया हूं।
ऑक्सीजन : तो अपनी ब्रेकिंग के चक्कर में मेरा रास्ता ना रोको। कोशिश कर रही हूं कि मैं जितनी ज्यादा से ज्यादा लोगों के काम आ सकूं।
रिपोर्टर : इंसान वही जो इंसान के काम आ सके। अब तो कहना पड़ेगा, ऑक्सीजन वही जो इंसान के काम आ सके...
ऑक्सीजन : नेताओं के पास से आ रहे हो? घटिया जुमले छोड़ो, मैं जुमलेबाजी में नहीं, काम में विश्वास करती हूं।
रिपोर्टर : पर आप क्यों परेशान हो रही हो? लोगों को ऑक्सीजन देना तो सरकार का काम है।
ऑक्सीजन : और सरकार ना करे तो? तो लोगों को ऐसे ही मर जाने दूं? अपने आखिरी कतरे तक मैं लोगों को जिलाती रहूंगी।
रिपोर्टर : पर सरकार की भी कुछ मजबूरी रही होगी। कोई यूं ही बेवफ़ा नहीं होता...
ऑक्सीजन : दो-चार शेर पढ़कर भी कोई यूं ही बड़ा रिपोर्टर ना बन जाता। वैसे सरकार की तरफदारी आप क्यों कर रहे हो? कुछ आपकी भी मजबूरी रही होगी... अब जाऊं मैं..?
रिपोर्टर : बस आखिरी सवाल। चुनाव वाली जगहों में आपकी जरूरत क्यों नहीं पड़ रही?
ऑक्सीजन : तो लो मेरी ओर से ब्रेकिंग न्यूज- क्योंकि वहां अभी तो सबको राजनीति की ऑक्सीजन चढ़ी हुई है। चुनाव बाद भगवान बचाएं...
और ऑक्जीन वहां से तुरंत कट ली...
# Oxygen
रविवार, 11 अप्रैल 2021
Not Funny : 'तपस्वी' एक साल की तपस्या के बाद फिर से 'गृहस्थ जीवन' में लौट आए हैं...!!
By Jayjeet
शुक्रवार, 9 अप्रैल 2021
Satire & humor : रिश्वत लेते पकड़े गए रंगे हाथ ने बयान किया अपना दर्द
By Jayjeet
पिछले कुछ दिनों से कुछ नाकारा लोगों के रिश्वत लेते रंगे हाथ पकड़ में आ जाने की खबरों से रिपोर्टर बड़ा हैरान और परेशान था। सवाल ही इतना बड़ा था। आखिर रिश्वत लेता कोई हाथ पकड़ में आ भी कैसे सकता है? रिपोर्टर ने ठान ही लिया कि आज तो उस रंगे हाथ की खबर लेकर ही मानेगा।
रिपोर्टर : आखिर पकड़ ही लिया मैंने रंगे हाथ पकड़ में आने वाले हाथ को...
रंगा हाथ (हाथ छुड़ाने की असफल कोशिश करते हुए) : मैं वो हाथ नहीं हूं जी। मैं तो होली में रंगा हाथ हूं...
रिपोर्टर : हम रिपोर्टर हैं तो क्या हुआ, इतने भी मूरख नहीं हैं कि हाथ-हाथ में फर्क ना समझ पाए। गब्बर लोग होली खेलकर कब के वापस चुनावों में बिजी हो गए हैं। हमें ना बनाओ अब..
रंगा हाथ : हां, अब आपसे क्या छिपाना। लेकिन आप हाथ धोकर हमारे पीछे क्यों पड़े हो जी?
रिपोर्टर : आपसे खास चर्चा करनी है, इसलिए। बल्कि आपकी खबर लेनी है।
रंगा हाथ : देखिए, मैं छोटा-सा मासूम हाथ। पहले से ही बहुत टेंशन में हूं। आप सवाल पूछेंगे तो और टेंशन में आ जाऊंगा।
रिपोर्टर : आप जैसे नाकारा हाथों को तो टेंशन में आना ही चाहिए। पकड़ में आकर आप न केवल पूरे सिस्टम को शर्मिंदा कर रहे हों, बल्कि रिश्वत लेने को मजबूर भोले-भाले प्राणियों में डर का माहौल भी बना रहे हो। देश में पहले से ही डर कम है क्या?
रंगा हाथ : लेकिन मैं तो केवल हाथ हूं, मुझे क्यों सुना रहे हों?
रिपोर्टर : रिश्वत लेने का तो शाश्वत नियम ही यह है कि इस हाथ लो तो उस हाथ को भी पता नहीं चलना चाहिए। महाभारत काल से यह चला आ रहा है। लाक्षागृह बनाने वाले इंजीनियर के हाथों ने भी तो रिश्वत ली होगी। आज तक सबूत ना मिले। और आप बाकायदा सबूत समेत पकड़ में आ रहे हों। एक-आध बार हो तो चलो, बेनिफिट ऑफ डाउट दे दें। लेकिन बार-बार...
रंगा हाथ : भाई साहब, माना आप परमज्ञानी हों। महाभारत काल की झूठी-सच्ची कहानियों की भी बराबर खबर रखते हो। लेकिन आप हमारी मजबूरी नहीं समझ रहे हैं।
रिपोर्टर : अब ऐसी क्या मजबूरी कि पकड़ में ही आ जाओ?
रंगा हाथ : आप तो पहले से ही समझदार हों। फिर भी हम समझा देते हैं। अगर हम पकड़ में आ रहे हैं तो गलती दो लोगों की है- एक वे जो हमें पकड़ रहे हैं। तो सिस्टम को हमसे से भी ज्यादा लज्जित करने वाले ये लोग हैं, हम नहीं। दूसरा, हम हैं तो बस मोहरें ही ना। हमारी अपनी तो वकत है नहीं। जिम्मेदार तो वह खाली पेट है। पता नहीं स्साले उस पेट में ऐसे क्या-क्या एसिड भरे हैं कि अंदर माल जाते ही तुरंत पचा डालता है। और फिर हमें उंगली करने लगता है। अब हमारी भी तो कोई लिमिट है कि नहीं। ओवरलोड होने से प्रोडक्टिविटी पर फर्क पड़ेगा ही।
रिपोर्टर : मतलब, समस्या कहीं और है और परेशान आप हो रहे हों?
रंगा हाथ : बिल्कुल, आपको यह बात समझ में आ गई, लेकिन उन्हें समझ में नहीं आ रही। मैं पहले भी कई बार बोल चुका हूं कि करप्शन के सिस्टम को हाईटेक कीजिए। जमाना कहां से कहां पहुंच गया और हमें आज भी टेबल के नीचे घुसने को कहते हैं...
रिपोर्टर : हम्म... आर्टिफिशियल इंटेलीजेंट कहते हैं उसे। आपको उसका इस्तेमाल करना चाहिए।
रंगा हाथ : आर्टिफेशियल-वेशियल, जो भी हो, हम तो इतने पढ़े-लिखे हैं नहीं। होते तो पकड़ में आते भला। पर हम जिन इंटेलीजेंट लोगों के हाथ हैं, उनके दिमाग में क्या भूसा भरा है। वे सोचें। आखिर हम कब तक बेइज्जत होते रहेंगे और पूरे सिस्टम को बेइज्जत करते रहेंगे।
रिपोर्टर : हां, आपकी इस बात से पूरी तरह सहमत हूं।
रंगा हाथ : और हां, आपको भी हम गरीब ही मिलते हैं! हमें हरदम जोतने वाले, कोल्हू का बैल बनाने वाले पेट और दिमाग की तो खबर लेंगे नहीं.... है हिम्मत...???
रिपोर्टर (फोन पर एक्टिंग करने के बाद) : अच्छा, एक जरूरी काम याद आ गया। फिर मिलता हूं आपसे... विस्तार से बात करेंगे...।
# caught red handed # satire # vyangya
मंगलवार, 6 अप्रैल 2021
Satire & Humor : आखिर देश की आत्मा को मिला चैन…
By Jayjeet
देश की आत्मा बहुत दिनों से बेचैन थी। इसलिए नहीं कि प्राइवेट हॉस्पिटल्स में लूट मची हुई है और सरकारें आंखें बंद करके बैठी हुई हैं। देश की आत्मा को मालूम है कि जहां भी लूट होती है, सरकारों की आंखें सबसे ज्यादा वहीं खुली होती है। एक्सपीरियंस है। तो सरकारों की तरफ से तो देश की आत्मा हमेशा से ही निश्चिंत रही है।
देश की आत्मा इस बात से भी बेचैन नहीं थी कि इतने बड़े-बड़े मसले आ रहे हैं और विपक्ष कुछ नहीं कर रहा है। देश की आत्मा अच्छे से जानती है कि विपक्ष कुछ कर भी नहीं सकता। जैसा भी है बड़ा ही प्यारा सा, मासूम सा विपक्ष है। देश की आत्मा ने विपक्ष की इस मासूमियत को स्वीकार कर लिया है। कोई गिला-शिकवा नहीं। तो विपक्ष की तरफ से भी निश्चिंत है देश की आत्मा।
तो फिर आखिर देश की आत्मा इतनी बेचैन क्यों थी? इसलिए थी कि देश में कोई डील हो और उसमें कोई लेन-देन ना हो, यह कैसे हो सकता था? वह भी हथियारों वाली डील!! जिस देश के कण-कण में एक भगवान* और दो भ्रष्ट लोग बसते हों, वहां ऐसा कैसे संभव है? क्या देश में ऐसा कोई शख्स हुआ है जिसने अपनी दो टके की मोपेड चलाने के वास्ते लाइसेंस बनाने के लिए व्हाया एजेंट टू आरटीओ बाबू अप-टू आरटीओ अफसर चाय-पानी के पैसे ना पहुंचाए हों। फिर यह तो राफेल है जिसकी औकात कम से कम मोपेड से तो ज्यादा ही होगी।
खैर, देर आयद दुरुस्त आयद। भला हो फ्रांसीसी वेबसाइट का जिसने बताया कि रफाल के सौदे में 8 करोड़ रुपए किसी बिचौलिए को दिए गए। अब थोड़ा सुकून मिला। देश की आत्मा को ही नहीं, देश के 130 करोड़ लोगों की आत्माओं को भी। हालांकि सरकार के मंत्री अब भी बेशर्मी पर उतरे हुए हैं। नकार रहे हैं कि ऐसा कुछ ना हुआ जी ... हम सब कुछ सहन कर सकते हैं, लेकिन ऐसी बेशर्मी कदापि नहीं। देश की 130 करोड़ आत्माएं छोड़ेंगी नहीं, हां ...कोई भक्त-वक्त नहीं। आत्माएं सब समान होती हैं।
(* कृपया कोई बुरा न मानें। 'भगवान' में सभी जातियों, उपजातियों, पंथों, समुदायों, धर्मों और खेलों के भगवान शामिल हैं...)
# rafal # rafal deal # rafal deal corruption