यहां आपको कॉन्टेंट मिलेगा कभी कटाक्ष के तौर पर तो कभी बगैर लाग-लपेट के दो टूक। वैसे यहां हरिशंकर परसाई, शरद जोशी जैसे कई नामी व्यंग्यकारों के क्लासिक व्यंग्य भी आप पढ़ सकते हैं।
गुरुवार, 30 जुलाई 2020
Humor : जब राफेल से मिलने पहुंच गए राहुल, जानिए फिर क्या हुई बातचीत
Joke & Humor : राफेल के भारत आने से राहुल गांधी क्यों हुए चिंतित?
बुधवार, 29 जुलाई 2020
Satire : हरिशंकर परसाई का क्लासिक व्यंग्य : प्रेमचंद के फटे जूते
पांवों में केनवस के जूते हैं, जिनके बंद बेतरतीब बंधे हैं। लापरवाही से उपयोग करने पर बंद के सिरों पर की लोहे की पतरी निकल जाती है और छेदों में बंद डालने में परेशानी होती है। तब बंद कैसे भी कस लिए जाते हैं। दाहिने पांव का जूता ठीक है, मगर बाएं जूते में बड़ा छेद हो गया है जिसमें से अंगुली बाहर निकल आई है।
मेरी दृष्टि इस जूते पर अटक गई है। सोचता हूं – फोटो खिंचवाने की अगर यह पोशाक है, तो पहनने की कैसी होगी? नहीं, इस आदमी की अलग-अलग पोशाकें नहीं होंगी – इसमें पोशाकें बदलने का गुण नहीं है। यह जैसा है, वैसा ही फोटो में खिंच जाता है।
मैं चेहरे की तरफ़ देखता हूं। क्या तुम्हें मालूम है, मेरे साहित्यिक पुरखे कि तुम्हारा जूता फट गया है और अंगुली बाहर दिख रही है? क्या तुम्हें इसका ज़रा भी अहसास नहीं है? ज़रा लज्जा, संकोच या झेंप नहीं है? क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धोती को थोड़ा नीचे खींच लेने से अंगुली ढक सकती है? मगर फिर भी तुम्हारे चेहरे पर बड़ी बेपरवाही, बड़ा विश्वास है! फोटोग्राफर ने जब ‘रेडी-प्लीज़’कहा होगा, तब परंपरा के अनुसार तुमने मुस्कान लाने की कोशिश की होगी, दर्द के गहरे कुएं के तल में कहीं पड़ी मुस्कान को धीरे-धीरे खींचकर ऊपर निकाल रहे होंगे कि बीच में ही क्लिक करके फोटोग्राफर ने ‘थैंक यू’ कह दिया होगा। विचित्र है यह अधूरी मुस्कान। यह मुस्कान नहीं, इसमें उपहास है, व्यंग्य है!
यह कैसा आदमी है, जो खुद तो फटे जूते पहने फोटो खिंचा रहा है, पर किसी पर हंस भी रहा है!
फोटो ही खिंचाना था, तो ठीक जूते पहन लेते या न खिंचाते। फोटो न खिंचाने से क्या बिगड़ता था। शायद पत्नी का आग्रह रहा हो और तुम, ‘अच्छा, चल भई’ कहकर बैठ गए होंगे। मगर यह कितनी बड़ी ‘ट्रेजडी’है कि आदमी के पास फोटो खिंचाने को भी जूता न हो। मैं तुम्हारी यह फोटो देखते-देखते, तुम्हारे क्लेश को अपने भीतर महसूस करके जैसे रो पड़ना चाहता हूं, मगर तुम्हारी आंखों का यह तीखा दर्द भरा व्यंग्य मुझे एकदम रोक देता है।
तुम फोटो का महत्व नहीं समझते। समझते होते, तो किसी से फोटो खिंचाने के लिए जूते मांग लेते। लोग तो मांगे के कोट से वर-दिखाई करते हैं। और मांगे की मोटर से बारात निकालते हैं। फोटो खिंचाने के लिए तो बीवी तक मांग ली जाती है, तुमसे जूते ही मांगते नहीं बने! तुम फोटो का महत्व नहीं जानते। लोग तो इत्र चुपड़कर फोटो खिचाते हैं जिससे फोटो में खुशबू आ जाए! गंदे-से-गंदे आदमी की फोटो भी खुशबू देती है!
टोपी आठ आने में मिल जाती है और जूते उस ज़माने में भी पांच रुपये से कम में क्या मिलते होंगे। जूता हमेशा टोपी से कीमती रहा है। अब तो जूते की कीमत और बढ़ गई है और एक जूते पर पचीसों टोपियां न्योछावर होती हैं। तुम भी जूते और टोपी के आनुपातिक मूल्य के मारे हुए थे। यह विडंबना मुझे इतनी तीव्रता से पहले कभी नहीं चुभी, जितनी आज चुभ रही है, जब मैं तुम्हारा फटा जूता देख रहा हूं। तुम महान कथाकार, उपन्यास-सम्राट, युग-प्रवर्तक, जाने क्या-क्या कहलाते थे, मगर फोटो में भी तुम्हारा जूता फटा हुआ है!
मेरा जूता भी कोई अच्छा नहीं है। यों ऊपर से अच्छा दिखता है। अंगुली बाहर नहीं निकलती, पर अंगूठे के नीचे तला फट गया है। अंगूठा ज़मीन से घिसता है और पैनी मिट्टी पर कभी रगड़ खाकर लहूलुहान भी हो जाता है। पूरा तला गिर जाएगा, पूरा पंजा छिल जाएगा, मगर अंगुली बाहर नहीं दिखेगी। तुम्हारी अंगुली दिखती है, पर पांव सुरक्षित है। मेरी अंगुली ढकी है, पर पंजा नीचे घिस रहा है। तुम परदे का महत्त्व ही नहीं जानते, हम परदे पर कुर्बान हो रहे हैं!
तुम फटा जूता बड़े ठाठ से पहने हो! मैं ऐसे नहीं पहन सकता। फोटो तो ज़िंदगी भर इस तरह नहीं खिचाऊं, चाहे कोई जीवनी बिना फोटो के ही छाप दे।
तुम्हारी यह व्यंग्य-मुस्कान मेरे हौसले पस्त कर देती है। क्या मतलब है इसका? कौन सी मुस्कान है यह?
क्या होरी का गोदान हो गया?
क्या पूस की रात में नीलगाय हलकू का खेत चर गई?
क्या सुजान भगत का लड़का मर गया, क्योंकि डॉक्टर क्लब छोड़कर नहीं आ सकते?
नहीं, मुझे लगता है माधो औरत के कफ़न के चंदे की शराब पी गया। वही मुस्कान मालूम होती है।
मैं तुम्हारा जूता फिर देखता हूं। कैसे फट गया यह, मेरी जनता के लेखक?
क्या बहुत चक्कर काटते रहे?
क्या बनिये के तगादे से बचने के लिए मील-दो मील का चक्कर लगाकर घर लौटते रहे?
चक्कर लगाने से जूता फटता नहीं है, घिस जाता है। कुंभनदास का जूता भी फतेहपुर सीकरी जाने-आने में घिस गया था। उसे बड़ा पछतावा हुआ। उसने कहा – ‘आवत जात पन्हैया घिस गई, बिसर गयो हरि नाम।’
और ऐसे बुलाकर देने वालों के लिए कहा था—‘जिनके देखे दुख उपजत है, तिनको करबो परै सलाम!’
चलने से जूता घिसता है, फटता नहीं। तुम्हारा जूता कैसे फट गया?
मुझे लगता है, तुम किसी सख्त चीज़ को ठोकर मारते रहे हो। कोई चीज़ जो परत-पर-परत सदियों से जम गई है, उसे शायद तुमने ठोकर मार-मारकर अपना जूता फाड़ लिया। कोई टीला जो रास्ते पर खड़ा हो गया था, उस पर तुमने अपना जूता आज़माया।
तुम उसे बचाकर, उसके बगल से भी तो निकल सकते थे। टीलों से समझौता भी तो हो जाता है। सभी नदियां पहाड़ थोड़े ही फोड़ती हैं, कोई रास्ता बदलकर, घूमकर भी तो चली जाती है।
तुम समझौता कर नहीं सके। क्या तुम्हारी भी वही कमज़ोरी थी, जो होरी को ले डूबी, वही ‘नेम-धरम’वाली कमज़ोरी? ‘नेम-धरम’ उसकी भी ज़ंजीर थी। मगर तुम जिस तरह मुसकरा रहे हो, उससे लगता है कि शायद ‘नेम-धरम’ तुम्हारा बंधन नहीं था, तुम्हारी मुक्ति थी!
तुम्हारी यह पांव की अंगुली मुझे संकेत करती-सी लगती है, जिसे तुम घृणित समझते हो, उसकी तरफ़ हाथ की नहीं, पांव की अंगुली से इशारा करते हो?
तुम क्या उसकी तरफ़ इशारा कर रहे हो, जिसे ठोकर मारते-मारते तुमने जूता फाड़ लिया?
मैं समझता हूं। तुम्हारी अंगुली का इशारा भी समझता हूं और यह व्यंग्य-मुस्कान भी समझता हूं।
तुम मुझ पर या हम सभी पर हंस रहे हो, उन पर जो अंगुली छिपाए और तलुआ घिसाए चल रहे हैं, उन पर जो टीले को बरकाकर बाजू से निकल रहे हैं। तुम कह रहे हो – मैंने तो ठोकर मार-मारकर जूता फाड़ लिया, अंगुली बाहर निकल आई, पर पांव बच रहा और मैं चलता रहा, मगर तुम अंगुली को ढांकने की चिंता में तलुवे का नाश कर रहे हो। तुम चलोगे कैसे?
मैं समझता हूं। मैं तुम्हारे फटे जूते की बात समझता हूं, अंगुली का इशारा समझता हूं, तुम्हारी व्यंग्य-मुस्कान समझता हूं!
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Satire : हरिशंकर परसाई के 10 राजनीतिक और सामाजिक Quotes
1. मेरे आसपास ‘प्रजातंत्र’ बचाओ के नारे लग रहे हैं। इतने ज्यादा बचाने वाले खड़े हो गए हैं कि अब प्रजातंत्र का बचना मुश्किल दिखता है।
2. मंथन करके लक्ष्मी को निकालने के लिए दानवों को देवों का सहयोग अब नहीं चाहिए। पहले समुद्र- मंथन के वक्त तो उन्हें टेक्निक नहीं आती थी, इसलिए देवताओं का सहयोग लिया। अब वे टेक्निक सीख गए हैं।
3. गणतंत्र ठिठुरते हुए हाथों की तालियों पर टिका है। गणतंत्र को उन्हीं हाथों की ताली मिलती हैं, जिनके पास हाथ छिपाने के लिए गर्म कपड़ा नहीं है।
4. चीन से लड़ने के लिए हमें एक गैर-जिम्मेदारी और बेईमानी की राष्ट्रीय परम्परा की सख्त जरूरत है। चीन अपने पड़ोसी देशों से बेईमानी करता है, तो हमें देश के भीतर ही बेईमानी करने का अभ्यास करना पड़ेगा। तब हम उसका मुकाबला कर सकेंगे।
5. निंदा कुछ लोगों के लिए टॉनिक होती है। हमारी एक पड़ोसन वृद्धा बीमार थी। उठा नहीं जाता था। सहसा किसी ने आकर कहा कि पड़ोसी डॉक्टर साहब की लड़की किसी के साथ भाग गई। बस चाची उठी और दो-चार पड़ोसियों को यह बताने चल पड़ी।
6. अगर पौधे लगाने का शौक है तो उजाड़ू बकरे-बकरियों को कांजीहाउस में डालो। वरना तुम पौधे रोपोगे और ये चरते चले जाएंगे।
7. देश के बुद्धिजीवी शेर हैं,लेकिन वे सियारों की बारात में बैंड बजाते हैं।
8. बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लें तो आधी इज्जत बच जाती है।
9. जो लोग पानी छानकर पीते हैं, वे आदमी का खून बिना छाने पी जाते हैं।
10. कुछ लोग खिजाब लगाते हैं। वे बड़े दयनीय होते हैं। बुढ़ापे से हार मानकर, यौवन का ढोंग रचते हैं।
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मंगलवार, 28 जुलाई 2020
Humor : देवउठनी एकादशी के बाद खत्म हो जाएगी कोरोना की सारी अकड़, एक अदद कोरोनी की तलाश
By Jayjeet
हिंदी सटायर डेस्क, नई दिल्ली। भारत में पिछले छह माह से पूरी ताकत से उधम मचा रहे कोरोना का यह तामझाम देवउठनी एकादशी तक ही रहेगा। उसके बाद उसकी पूरी अकड़ दूर हो जाएगी। कोरोना के पर कुतरने के लिए सरकार ने उस प्लान पर काम करना शुरू कर दिया है जो न केवल भारत, बल्कि दुनियाभर में टेस्टेड रहा है।
कोरोना से लड़ने के लिए तमाम तरह के काढ़े, गिलोय, अश्वगंधा और हाल ही में ईजाद हुए नए तरीके पापड़, इन सबका इस्तेमाल किया जा चुका है। इसके बावजूद कोरोना का रुतबा कम होने का नाम नहीं ले रहा। इसलिए समाज वैज्ञानिकों की सलाह पर सरकार के संस्कृति विभाग ने अब अपने फाइनल प्लान पर काम करना शुरू कर दिया है। इसके तहत हर कार्य में निपुण, सुंदर, सुशील कोरोनी की तलाश शुरू कर दी गई है। जरूरत पड़ने पर भारत और चीन की मेट्रोमोनियल साइट्स का सहारा लिया जाएगा। ऐसी कोरोनी मिलते ही देवों के उठने के साथ कोरोना को सात जन्मों के बंधन में बांध दिया जाएगा।
कैसे नाकारा होता जाएगा कोरोना?
- शादी होते ही हम सभी की तरह कोरोना भी हाथ में सब्जी का थैला लिए सब्जी मंडी में भाव करता मिलेगा। फोन आने पर जी-जी करता पाया जाएगा। इससे उसकी वह धार जाती रहेगी जो अभी है।
- हमको बीमार बनाने वाले कोरोना को जैसे ही किसी सेल, जैसे साड़ी सेल आदि की खबर मिलेगी, खुद की तबीयत खराब हो जाएगी, बीपी बढ़ जाया करेगा।
- साल भर के भीतर जूनियर कोरोना के आने के बाद रही-सही कसर भी पूरी हो जाएगी। आधा समय जूनियर कोरोना की नैपी बदलने में निकल जाएगा और इससे उसकी बची-खुची ताकत भी खत्म हो जाएगी। इस तरह कोरोना पूरी तरह से नाकारा हो जाएगा।
#corona #corona_jokes #देवउठनी_एकादशी #humor #satire
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रविवार, 26 जुलाई 2020
Humor : जब शिवराज सिंह ने कोरोना से कहा - हम नेता तो बच जाएंगे, मुझे आपकी चिंता है
भोपाल। मप्र के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी कोरोनावायरस की चपेट में आ गए हैं। पर जैसा कि सभी जानते हैं कि शिवराज जी एक जमीनी नेता हैं और वे किसी से भी कनेक्ट होने का कोई मौका नहीं छोड़ते। तो इलाज के लिए चिरायु हॉस्पिटल के वीआईपी बेड पर बैठे-बैठे उन्होंने कोरोना से ही बात करनी शुरू कर दी।
शिवराज : हमारी संस्कृति मेहमानों का स्वागत करने की रही है। पहले हमने सिंधियाजी के स्वागत में पलक-पावड़े बिछाए, अब आपका स्वागत करने मैं खुद आया हूं।
कोरोना : आप तो हमें शर्मिंदा कर रहे हैं। आप हम जैसे छोटे वायरसों से बात कर रहे हैं, हमारे लिए तो यही बड़ी बात है।
शिवराज : देखिए, हमारे राज में कोई छोटा, कोई बड़ा नहीं है। आप तो कमलनाथ जी के जमाने से मप्र में हो। देख ही रहे हो कि कैसे हमने छोटे से सिंधिया गुट के लोगों को भी हमारे बराबर जगह दी। जितने हमारे मंत्री, उतने ही सिंधियाजी के मंत्री।
कोरोना : जैसा आपके बारे में सुना, बिल्कुल वैसे ही निकले आप। इसीलिए आपसे मिलने चला गया। लेकिन माफी चाहूंगा, इस चक्कर में आपको संकट में डाल दिया।
शिवराज : संकट की चिंता मत कीजिए। जैसा कि मोदीजी ने कहा, हम तो आपदा को अवसर में बदलने वाले लोग हैं। देखा नहीं, हम कैसे कांग्रेस में फंसे आपदाग्रस्त विधायकों को हमारी पार्टी में लाकर उनके लिए अवसर पैदा कर रहे हैं।
कोरोना : मुझे सोशल मीडिया पर पता चला कि लोग आपकी इस बात की निंदा कर रहे हैं कि आप सरकारी हमीदिया हॉस्पिटल में भर्ती होने के बजाय प्राइवेट हॉस्पिटल चिरायु में भर्ती हो गए।
शिवराज : लोगों का काम है कहना। अगर हम हमीदिया में भर्ती होते तो लोग कहते कि देखो गरीबों के लिए बने हॉस्पिटल में भर्ती होकर एक मुख्यमंत्री ने गरीबों का हक मार दिया। हम हमीदिया में जाते तो वहां का स्टॉफ हमारी तिमारदारी में लग जाता, जिससे वहां भर्ती होने वाले गरीब-गुर्गों का प्रॉपर ट्रीटमेंट नहीं हो पाता। उनकी खातिर ही हमने प्राइवेट हॉस्पिटल को चुना।
कोरोना : आप हम जैसे वायरसों के लिए क्या कुछ संदेश देना चाहेंगे?
शिवराज : देखिए, मैं इस प्रदेश का मुख्यमंत्री हूं और इसलिए मुझे सबकी चिंता होनी चाहिए। आप जिस तरह से नेताओं में घुसपैठ कर रहे हैं, उससे मुझे आप लोगों की चिंता हो रही है। हम नेताओं की जितनी चमड़ी मोटी होती है, उतनी ही मोटी इम्युनिटी भी। हम तो आप लोगों को झेल जाएंगे। पर आप हमें झेल पाओगे, इसको लेकर मुझे डाउट है।
कोरोना : जी बिल्कुल, हमसे ये गलती तो हो रही है। अब मैं आपको राज की एक बात बताता हूं। जब हम चीन से चले थे तो हमें एक गाइडलाइन दी गई थी। इसमें हमसे कहा गया था कि हम भारत में नेताओं से दूर ही रहे। पर गाइडलाइन तो होती ही है ना तोड़ने के लिए। तो हमने भी तोड़ दी...
शिवराज : बिल्कुल, वैसे ही जैसे हमारे यहां के लोग भी तुमसे बचने के लिए बनाई गई गाइडलाइन की धज्जियां उड़ा रहे हैं। अच्छा, जरा मैं आराम कर लूं, फिर फुर्सत में बात करेंगे...
#shivraj_singh #humor #satire #corona
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शनिवार, 25 जुलाई 2020
Special Interview : पौधे की मुंहफट, इंसान को दिखाया आईना
By Jayjeet
हिंदी सटायर डेस्क। कोने में कई पौधे पड़े-पड़े मुस्करा रहे थे। हमने इंटरव्यू के लिए ऐसे ही एक पौधे से रिक्वेस्ट की। पहले तो बिजी होने का बहाना मारा, पर फिर राजी हो गया। पेश है बातचीत के खास अंश :
रिपोर्टर : बड़े मुस्कुरा रहे हों? कोई अच्छी वजह?
पौधा : आप लोगों के अच्छे दिन आए या न आए, हमारे तो आ गए महाराज। मानसून जो आ गया। अब हर जगह हमारी पूछ-परख बढ़ गई है। हमारे नाम पर तो कई कैम्पेन भी शुरू गए हैं। क्या नेता, क्या अफसर, सब हमारा ही नाम जप रहे हैं।
रिपोर्टर : कौन-सी प्रजाति के पौधे हैं आप?
पौधा : अरे यार, ये जाति-वाति का रोग तो हमारे यहां मत फैलाओ। हम किसी भी जाति के हो, धर्म एक है वातावरण को खुशगवार बनाना, न कि तनाव पैदा करना, जैसे धर्म के नाम पर तुम्हारे यहां होता है।
रिपोर्टर : चलिए, प्रजाति छोड़ते हैं। फल तो लगेंगे ना आपमें?
पौधा : फिर इंसानों टाइप की ओछी बात कर दी ना आपने। हम फलों की चिंता भी नहीं करते। आप ही लोग करते हों। देख लो ना, कैसे मप्र, राजस्थान में आपके नेता लोग ‘फल’ की इच्छा में इधर से उधर हो रहे हैं।
रिपोर्टर : अच्छा, इस समय तो आपको लोग खूब हाथों-हाथ ले रहे हैं।
पौधा (एटिट्यूड में) : ये तो है। पर कभी-कभी क्या होता है कि हमारे सामने इतने लोग आ जाते हैं कि जब अगले दिन अखबार में तस्वीर छपती है तो उसमें बस मैं ही नहीं होता। पीछे छिप जाता हूं।
रिपोर्टर : आप अपना भविष्य कैसे देखते हैं?
पौधा : वैसे तो हम वर्तमान में ही खुश रहने वाले सजीव हैं। पर अपने पुरखों के साथ जिस तरह से हादसे हुए, उनसे भविष्य को लेकर जरूर थोड़ा-थोड़ा डर भी लगता है।
रिपोर्टर : क्यों, पुरखों के साथ क्या हुआ?
पौधा : अब आप बनने की कोशिश तो मत कीजिए। आप लोग ही तो हो जिम्मेदार हों। रोप भर देते हों। फोटो-वोटो, सेल्फी-वेल्फी के बाद फिर भगवान भरोसे छोड़ देते हों। पनप भी गए तो आठ-दस साल बाद कभी सड़क के लिए, कभी मेट्रो के लिए तो कभी किसी भवन के लिए हमारी बलि ले लेते हों।
रिपोर्टर : तो हम इंसानों को क्या संदेश देना चाहेंगे?
पौधा : यही कि भैया, हमारी चिंता भले मत करो। अपनी ही कर लो। इंसान तो बड़ा स्वार्थी है। तो अपना स्वार्थ समझकर ही कर लो। हम न रहेंगे, तो आप भी न रहोंगे, समझ लेना।
रिपोर्टर : बस आखिरी सवाल।
पौधा : अब भैया बस करो। उधर नेताजी और उनके छर्रे आ गए हैं। फोटोग्राफर इशारा कर रहा है। मैं चलता हूं। नमस्कार।
सोमवार, 20 जुलाई 2020
Funny Interview : पौधे की पीड़ा...पौधरोपण की तस्वीर में बस हम ही ना होते!
By Jayjeet
कोने में रखी काली थैलियों में पौधे पड़े-पड़े मुस्करा रहे थे। रिपोर्टर भी मुस्कुराया। शिकार मिल गया था। तुरंत इंटरव्यू के लिए एक पौधे से रिक्वेस्ट की। पहले तो बिजी होने का बहाना मारा, फिर राजी हो गया। पेश है बातचीत के खास अंश :
रिपोर्टर : बड़े मुस्कुरा रहे हों? कोई अच्छी वजह?
पौधा : आप लोगों के अच्छे दिन आए या न आए, हमारे तो आ गए महाराज। मानसून जो आ गया। अब हर जगह हमारी पूछ-परख बढ़ गई है। रोज अखबार में तस्वीर छपती है।
रिपोर्टर : अच्छा, इस समय तो आपको लोग खूब हाथों-हाथ ले रहे हैं।
पौधा : हां, बताया तो सही कि खूब अखबार में छप रहे हैं। पर कभी-कभी क्या होता है कि हमारे सामने इतने लोग आ जाते हैं कि जब अगले दिन अखबार में तस्वीर छपती है तो उसमें बस मैं ही नहीं होता।
रिपोर्टर : कौन-सी प्रजाति के हैं आप?
पौधा : ये जाति-वाति का रोग तो हमारे यहां मत फैलाओ। हम किसी भी जाति के हो, धर्म एक है वातावरण को खुशगवार बनाना, न कि तनाव पैदा करना, जैसे धर्म के नाम पर तुम्हारे यहां होता है।
रिपोर्टर : चलिए, प्रजाति-वजाति छोड़ते हैं। फल तो लगेंगे ना आपमें?
पौधा : फिर इंसानों टाइप की ओछी बात कर दी ना आपने। हम फलों की चिंता भी नहीं करते। आप ही लोग करते हों। देख लो ना, कैसे राजस्थान में आपके नेता लोग ‘फल’ की जुगाड़ में इधर से उधर हो रहे हैं।
रिपोर्टर : बस आखिरी सवाल।
पौधा : अब भैया बस करो। उधर नेताजी और उनके छर्रे आ गए हैं। फोटोग्राफर इशारा कर रहा है। मैं चलता हूं। नमस्कार
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बुधवार, 15 जुलाई 2020
Jokes : कांग्रेस के राजस्थान संकट पर कुछ जोक्स और मीम्स
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मंगलवार, 14 जुलाई 2020
Humor : राहुल गांधी ने बीजेपी अध्यक्ष नड्डा को चिट्ठी लिखकर उनसे क्या मांगा?
By Jayjeet
हिंदी सटायर डेस्क। राजस्थान में बढ़ते राजनीतिक संकट के बीच राहुल गांधी ने जेपी नड्डा को एक चिट्ठी लिखकर पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के खिलाफ कांग्रेस की ओर से कुछ विरोध प्रदर्शन आयोजित करने का आग्रह किया है। राहुल ने लिखा - आप लोग तो पुराने अनुभवी हैं, बल्कि यह आपका लोकतांत्रिक दायित्व भी है... (पढ़ें पूरी चिट्ठी नीचे...)
प्रति
श्री जेपी नड्डा जी
अध्यक्ष, बीजेपी और वरिष्ठ कार्यकर्ता, पूर्व विपक्षी पार्टी
विषय : पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ कांग्रेस की ओर से प्रदर्शन करने बाबत।
महोदय,
सेवा में नम्र निवेदन है कि इस समय देश में दो घटनाएं बड़ी तेजी से घटित हुई हैं। एक, पेट्रोल-डीजल के दामों में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हो रही है। वहीं दूसरी ओर राजस्थान में हमारी सरकार के खिलाफ बगावत हो गई है। हमारी प्राथमिकता सरकार बचाना है, लेकिन पेट्रोल-डीजल जैसे महत्वपूर्ण मुद्दे की भी अनदेखी नहीं कर सकते। ऐसे में महोदय से निवेदन है कि पेट्रोल-डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी के खिलाफ हमारे लिए कुछ प्रदर्शन आउटसोर्स करने का कष्ट करें।आप जो भी प्रदर्शन या विरोध करेंगे, उसे हमारा भरपूर नैतिक समर्थन रहेगा। अगर वक्त मिला, राजस्थान के हालात में कुछ सुधार नजर आया और साथ ही कुछ बैलगाड़ियों की व्यवस्था हो गई तो हम कांग्रेसी भी एक दो विरोध मार्च निकालने का प्रयास जरूर करेंगे।
उम्मीद है देश के लोकतंत्र को बचाने की खातिर आप अपने इस प्रमुख लोकतांत्रिक दायित्व से मुंह नहीं मोड़ेंगे।
आपका ही प्रिय
राहुल
क्या रहा बीजेपी का रिएक्शन?
नड्डा ने पत्र की यह बात अमित शाह को बताई है। सूत्रों के अनुसार शाह ने कहा है कि बीजेपी हमेशा लोकतांत्रिक मूल्यों की पक्षधर पार्टी रही है। लोकतंत्र की खातिर हमें संकट की इस घड़ी में कांग्रेस की मदद करनी चाहिए।
#rahul_gandhi #rajasthan_political_crisis #petrol_diesel_price #Nadda #humor #satire
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सोमवार, 13 जुलाई 2020
#CbseResults2020 : स्टूडेंट के 500 में से आए केवल 500 नंबर, सदमे में पूरी फैमिली
By Jayjeet
नई दिल्ली। CBSE की बारहवीं परीक्षा के गुरुवार को घोषित नतीजों के बाद से ही अलकापुरी स्थित एक घर में मातम पसरा हुआ है। यह घर एक निजी कंपनी में मैनेजर आरके शर्मा का है। इनके बच्चे सौरभ ने शर्मा परिवार को कहीं मुंह दिखाने के लायक नहीं छोड़ा है। साइंस स्ट्रीम के छात्र सौरभ के 500 में से केवल 500 नंबर आए हैं। शर्माजी को उम्मीद थी कि सौरभ 500 में से 501 नंबर आकर रिकाॅर्ड रचेगा, लेकिन वह इसमें असफल रहा। स्कूल की प्राचार्य ने भी कहा, “हमारी सारी उम्मीदें चूर-चूर हो गईं।”
हमारे इस संवाददाता ने आरके शर्मा से इस मामले में चर्चा करने की कोशिश की, लेकिन परिवार के अन्य सदस्यों ने बताया कि शर्माजी इस घटना के बाद से ही सदमे में हैं और बात करने की स्थिति में नहीं हैं। सौरभ के चाचा श्यामलाल शर्मा ने कहा, “हमें इस लड़के से बहुत उम्मीद थी, लेकिन इसने पूरे मोहल्ले और पूरे कुटुंब में हमारी नाक कटा दी।” इस बीच सौरभ की चाची ने कहा कि जो हो गया सो हो गया, लेकिन हमें सौरभ को भी संभालना चाहिए। कहीं वह कुछ उलटा-सीधा न कर लें। इसके बाद से श्यामलाल अपने भतीजे पर कड़ी नजर रख रहे हैं।
शर्माजी के पड़ोसी वैभव खन्ना ने बताया, “शर्माजी हमारी कॉलोनी की शान रहे हैं। मैं तो उन्हें शुरू से जानता हूं। उन्होंने केजी-1 से ही सौरभ का विशेष ख्याल रखा। इसके लिए उन्होंने तीन-तीन टीचरों को ट्यूशन पर रखा। मुझे याद है, जब बच्चे के 99 फीसदी अंक आए तो उन्होंने उसे दो दिन तक खाना तक नहीं दिया था। इसी का नतीजा रहा कि इसके बाद उसके हमेशा सौ फीसदी नंबर आए। ऐसे में अगर इस बार उन्होंने 500 में से 501 नंबर लाने की उम्मीद रखी थी तो यह सौरभ की जिम्मेदारी बनती थी कि वह अपने पिता के सपने को पूरा करता।” उन्होंने गहरी सांस भरते हुए कहा, “पता नहीं, ऐसे बच्चे इस देश को कहां ले जाएंगे!”
#CBSE_Results #Satire #CBSE_12ThResults #Humor
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रविवार, 12 जुलाई 2020
Satire : पिस्तौल का दुख, हीरोइन के बजाय दुनिया अब भी चरित्र अभिनेत्री ही मानती है
पिस्तौल : राम राम भैया, यहां क्या करने आए हो?
पिस्तौल : क्यों? हमने ऐसा क्या तीर मार दिया, जो इंटरव्यू करने आ धमके?
पिस्तौल : कौन? हमें ना याद आ रहा।
पिस्तौल : अब क्या है कि इतनी कहानियों में हम भाग ले चुकी हैं कि कई बार भूल जाती हैं कि हमसे किस कहानी के बारे में पूछा जा रहा है।
पिस्तौल : बहुत अच्छा लग रहा है। हम भी इस देश-दुनिया के काम आई,अच्छा क्यों ना लगेगा?
पिस्तौल : तुम तो ऐसे पूछ रहे हो जैसे हम कोई छोकरिया है। तुम यह जानना चाहते हों कि जब वह हमें भगाकर ले जा रहा तो उस समय हम कैसा फील कर रही थी? तुम पत्रकार लोग कभी सुधरगो?
पिस्तौल : भई, हमसे मुंह मत खुलवाओ। बाकी का तो कुछ नहीं होगा, पर अगर पता चल गया कि कोई हमारे साथ जबरदस्ती कर रहा है, मतलब जबरन में हमारा मुंह खुलवाने का प्रयास कर रहा है तो कहीं तुम्हारा एनकाउंटर ना हो जाए।
पिस्तौल : तो तुम्हें क्या लगता है, सब एनकाउंटर गैंगस्टर के ही होते हैं?
पिस्तौल : भई, यह तो स्क्रिप्ट राइटर्स से पूछो। हमारा काम एक्टिंग करना होता है तो हम वही करती है। बस, दुख इसी बात का होता है कि अब भी ये लोग हमें हीरोइन का दर्जा ये नहीं दे पाए हैं। बस, चरित्र अभिनेत्री ही मानकर चलते हैं। अच्छा भैया आप खिसक लो, फिर समझा रही हूं।
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शुक्रवार, 10 जुलाई 2020
रविवार, 5 जुलाई 2020
शिक्षा विभाग का गुरु वशिष्ठ को नोटिस- हासिल करो बी-एड डिग्री अन्यथा .....
By Jayjeet
नई दिल्ली/देवलोक। सरकार ने गुरु वशिष्ठ, गुरु द्रोणाचार्य और ऋषि सांदीपनी को एक नोटिस जारी कर अगले दो साल के भीतर बी-एड (या समकक्ष डिग्री) करने को कहा है। नोटिस में कहा गया है कि बी-एड न करने की दशा में पाठ्यपुस्तकों में से आप तीनों के नाम विलोपित कर दिए जाएंगे।
इस नोटिस की एक काॅपी hindisatire ने हासिल की है। इस नोटिस में कहा गया है कि देश में शिक्षा का अधिकार कानून को लागू हुए 10 साल बीत चुके हैं। इस कानून में क्वालिटी एजुकेशन के वास्ते शिक्षकों के लिए बी-एड (या समकक्ष डिग्री) लेना अनिवार्य कर दिया गया है। नोटिस में लिखा गया, “बहुत ही खेद के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि आपको इतने मौके दिए जाने के बाद भी आप अब तक शिक्षण-प्रशिक्षण में कोई औपचारिक डिग्री हासिल नहीं कर सके। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि आपकी क्वालिटी एजुकेशन में कोई आस्था नहीं है। फिर भी आपकी पूर्व प्रतिष्ठा के मद्देनजर सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून की धारा 4 (बी) के प्रावधान को शिथिल कर आपको एक और मौका देने का फैसला किया है। आप तीनों को अप्रैल 2022 तक डिग्री हासिल करनी होगी। ऐसा न किए जाने पर आपके गुरु के दर्जे को खत्म कर दिया जाएगा। तदनुसार समस्त पाठ्यपुस्तको में से आपको विलोपित कर दिया जाएगा। इसकी जिम्मेदारी आपकी होगी।”
फालोअप स्टोरी 1
नई दिल्ली/देवलोक। शिक्षा विभाग द्वारा अगले दो साल के भीतर बी-एड या समकक्ष डिग्री अनिवार्य रूप से हासिल करने की सूचना मिलते ही ऋषि वशिष्ठ सक्रिय हो गए। उन्होंने तत्काल शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर अपनी बढ़ती उम्र का हवाला देकर बी-एड डिग्री हासिल करने में असमर्थता जताई थी। सूत्रों के अनुसार केंद्र में अनुकूल सरकार होने के कारण वशिष्ठ को बी-एड या समकक्ष डिग्री हासिल करने की अनिवार्यता से मुक्त कर दिया गया है, लेकिन उन्हें इस संबंध में ऐसा प्रमाण-पत्र पेश करने को कहा गया है जिसमें स्वयं राम इस बात की पुष्टि करते हो कि गुरु वशिष्ठ ने उन्हें क्वालिटी एजुकेशन मुहैया करवाया था। इस प्रमाण-पत्र की तीन सत्यापित प्रतियां पेश करने को कहा गया है। प्रमाण-पत्र सत्यापन नियम- 22 की कंडिका 2 (ए) की उपकंडिका 4 (बी) के तदनुसार सत्यापन संबंधित जिले के कलेक्टर द्वारा अथवा कलेक्टर द्वारा प्राधिकृत अधिकारी के द्वारा ही जारी किया जाना चाहिए। इस प्रमाण पत्र के संदर्भ क्रमांक, जारी करने की तिथि व कार्यालय की सील तथा जारी करने वाले अधिकारी के नाम व पद का स्पष्ट उल्लेख होना आवश्यक है।
फालोअप स्टोरी 2 (लाइव रिपोर्ट)
फैजाबाद (उप्र)। शिक्षा विभाग द्वारा बी-एड या समकक्ष डिग्री की अनिवार्यता से मुक्ति के बाद ऋषि वशिष्ठ अपने शिष्य राम द्वारा प्रस्तुत प्रमाण-पत्र के सत्यापन के लिए फैजाबाद कलेक्टोरेट पहुंचे (अयोध्या का जिला मुख्यालय फैजाबाद है।)
ऋषि वशिष्ठ (एक बाबू से) : भैया, ये राम का प्रमाण-पत्र है। इसे सत्यापित करवाना है।
बाबू : क्या लिखा है।
ऋषि वशिष्ठ : यही कि मैंने उन्हें पढ़ाया, इसे सत्यापित करवाना है एडीएम साहेब से।
बाबू (अपने साथी कर्मचारी से) : देखो, कैसे-कैसे लोग आ जाते हैं। (फिर ऋषि वशिष्ठ से) : राम को साथ लाए क्या?
ऋषि वशिष्ठ : अरे वो कैसे आ सकते हैं? उन पर तो पूरे संसार का भार है। उसे छोड़कर यहां आना तो संभव नहीं है।
बाबू : बाबा, एडीएम साहेब ऐसे तो सत्यापित करेंगे नहीं। नियमानुसार फिजिकल प्रजेंटेशन होना जरूरी है।
ऋषि वशिष्ठ : और कोई रास्ता?
बाबू : पीछे बड़े बाबू बैठे हैं, उनसे मिल लो।
ऋषि वशिष्ठ बड़े बाबू के पास पहुंचे। अपनी पूरी कहानी सुनाई।
बड़े बाबू (कुछ सोचते हुए) : चलो, आप बुजुर्ग हैं और आपकी कहानी पर भरोसा भी कर लेते हैं, लेकिन हमें तो नियम से चलना होगा ना। राम का कोई प्रूफ तो चाहिए ना। कोई आईडी प्रूफ है क्या?
ऋषि वशिष्ठ : ये क्या होता है?
बड़े बाबू : यही कोई आधार कार्ड, पैन कार्ड, वोटर आईडी कार्ड। ड्राइविंग लाइसेंस तो होगा ही?
ऋषि वशिष्ठ : इसमें से कुछ नहीं है।
बड़े बाबू : कमाल है! अच्छा, एक काम करो, बाहर बबलू बैठा है, उससे मिल लो, काम हो जाएगा।
ऋषि वशिष्ठ : ये बबलू कौन है? कहां मिलेगा?
बड़े बाबू : कोई भी बता देगा, पूछ लो। अब मेरा टाइम वेस्ट मत करो, जाओ।
फालोअप स्टोरी 3
फैजाबाद का सबसे फेमस दलाल है बबलू। बाबू से लेकर बड़े बाबू और तमाम अफसराें से बड़े मधुर संबंध हैं।
ऋषि वशिष्ठ : बबलू भैया, हमें राम का ड्राइविंग लाइसेंस बनवाना है।
बबलू : कहां है राम?
ऋषि वशिष्ठ : वो नहीं है, तभी तो आपके पास भेजा गया है।
बबलू : वो हाेता तो भी मेरे पास ही आना पड़ता। अब नहीं है तो इसके एक्स्ट्रा लगेंगे।
ऋषि वशिष्ठ : क्या एक्स्ट्रा?
बबलू (गुस्से में): अरे बाबा, पैसा और क्या?
ऋषि वशिष्ठ : क्या? सरकारी काम के भी यहां पैसे लगते हैं?
बबलू (हंसते हुए) : अरे बाबा, क्या दूसरी दुनिया से आए हों? यहां हर चीज के पैसे लगते हैं।
ऋषि वशिष्ठ : ठीक है, पर काम तो हो जाएगा ना!! मेरे पास कोई और दस्तावेज-वस्तावेज नहीं है।
बबलू : पैसा तो है ना, हो जाएगा।
फालोअप स्टोरी 4
नई दिल्ली/देवलोक। गुरु वशिष्ठ द्वारा वांछित दस्तावेज पेश करने के बाद शिक्षा विभाग ने यह मान लिया है कि वे उतने ही समर्थ शिक्षक हैं, जितने कि बीएड या समकक्ष डिग्री धारक होते हैं। इसलिए अब पाठ्यपुस्तकों से उनका नाम विलोपित करने की जरूरत नहीं है। इस संबंध में जल्दी ही अधिसूचना जारी कर दी जाएगी। इस बीच, शिक्षा विभाग ने गुरु द्रोणाचार्य और ऋषि सांदीपनी को रिमाइंडर भेजकर दो सप्ताह के भीतर संबंधित औपचारिकताएं पूरी करने को कहा है।
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Jokes : गुरु पूर्णिमा गुरुजी और वाट्सएपिया शिष्य
गुरुवार, 2 जुलाई 2020
जमीन का जवाब जमीन से : सरकार ने रॉबर्ट वाड्रा को चीन में दिया फ्रीहैंड
चीन जाने की तैयारी करते हुए रॉबर्ट वाड्रा। |
By Jayjeet
हिंदी सटायर/ग्लोबल टाइम्स। मोदी सरकार ने ‘जमीन का जवाब जमीन से’ देने की योजना के तहत रॉबर्ट वाड्रा को चीन में फ्रीहैंड देने का निर्णय लिया है। भारत के इस फैसले से चीन के सत्ता के गलियारों में भारी खलबली मच गई है। प्रमुख चीनी अखबार ग्लोबल टाइम्स के अनुसार इससे भयभीत चीन ने प्रस्ताव दिया है कि अगर भारत वाड्रा को हमारी सीमाओ से दूर रखे वह पूरा अक्साई चीन भारत को लौटाने को तैयार है।
उच्च पदस्थ सूत्रों के अनुसार विदेश मंत्रालय ने अपने एक सीक्रेट कम्युनिकेशन में चीन को धमकाया था कि अगर वह जमीन हड़पने की अपनी हरकतों से बाज नहीं आया तो राबर्ट वाड्रा को चीन भिजवाकर वहां उन्हें फ्रीहैंड दे दिया जाएगा। इस धमकी से भयभीत चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने आनन-फानन में अपने वरिष्ठ लीडर्स और सेना के आला अधिकारियों के साथ उच्च स्तरीय मीटिंग की। इस मीटिंग में सहमति बनी कि अक्साई चीन की कुछ हजार वर्ग किमी जमीन के चक्कर में पूरे चीन को दांव पर नहीं लगाया जा सकता। चीनी सूत्रों के अनुसार चीन ने प्रस्ताव रखा है कि हम भारत को उसके कब्जे वाला पूरा क्षेत्र लौटा देंगे और फिर आइंदा उसकी तरफ तिरछी नजर से भी ना देखेंगे। बस भारत को वाड्रा को चीन की सीमा से एक हजार किमी दूर रखना होगा।
अब चीन को समझ में आएंगे दामादजी के असली मायने :
सरकार के इस निर्णय का वाड्रा ने भी स्वागत किया है। उन्होंने ट्विट करते हुए कहा- “मेरे लिए इससे बड़े गर्व की बात और क्या होगी कि मैं देश के काम आ सकूं। अब चीन को पता चलेगा कि दामादजी का असली मतलब क्या होता है।”
(Disclaimer : यह खबर शुद्ध कपोल-कल्पित है। इसका मकसद केवल स्वस्थ मनोरंजन और राजनीतिक कटाक्ष करना है, किसी की मानहानि करना नहीं।)
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Satire & Humour : जब बाबा रामदेव को नोबेल पुरस्कार मिलते-मिलते रह गया! क्यों और कैसे? एक सच्ची कहानी!
By Jayjeet
हिंदी सटायर डेस्क। पतंजलि द्वारा कोराना की दवा ‘कोरोनिल’ बनाने के दावे के बाद सोशल मीडिया पर कई लोग उन्हें नोबेल पुरस्कार देने की वकालत कर रहे हैं, कुछ मजाक में तो कुछ सच्ची में। हिंदी सटायर को मिली एक्सक्लूसिव जानकारी के अनुसार बाबा रामदेव तो पिछली बार ही इस अवार्ड के लिए प्रबल दावेदार थे। लेकिन उन्हें अवार्ड मिलते-मिलते रह गया। दरअसल, इसका खुलासा तब हुआ, जब हमारा उत्साही रिपोर्टर इस संबंध में बात करने के लिए नोबेल कमेटी के पास पहुंच गया। वहां बैठे एक सूत्र से बात की तो उसने तफ्सील से पूरी जानकारी दी।
रिपोर्टर : बाबाजी ने कोरोना की दवा ‘कोरोनिल’ बना ली है। अब तो चिकित्सा का नोबेल उन्हें मिल ही जाना चाहिए।
नोबेल कमेटी का सूत्र : अरे आपको नहीं मालूम, नोबेल तो उन्हें पिछले साल ही मिल जाता, पर एक लोचा हो लिया।
रिपोर्टर : ऐसा कौन-सा लोचा हो लिया?
सूत्र : अब क्या बताएं। बाबा रामदेव जी ने खुद को चार-चार कैटेगरी में नॉमिनेट करवा लिया था।
रिपोर्टर : अरे, कैसे? और ये चार कौन-सी कैटेगरी हैं?
सूत्र : एक, चिकित्सा के लिए।
रिपोर्टर : हां, इसमें तो बहुत टॉप का काम कर रहे हैं अपने बाबाजह। इसमें तो मिलना ही था। पर दूसरी कैटेगरी में और कहां टांग घुसा ली इन्होंने?
सूत्र : यही तो प्रॉब्लम हो गई। उन्हें मुगालता हो गया कि 5 रुपए से कारोबार को बढ़ाकर 5 हजार करोड़ का कर लिया तो इकोनॉमी के लिए अवार्ड मिलना चाहिए।
रिपोर्टर : अच्छा! इसके अलावा?
सूत्र : आपको याद होगा कि बाबाजी ने एक बार ‘ओम शांति ओम’ शो में भी काम किया था। तो उन्होंने पीस के लिए भी अप्लाई कर दिया। इतना ही नहीं, किसी ने बाबा को कह दिया कि आप तो केमिस्ट्री में भी माहिर हैं- योग एंड पॉलिटिक्स की केमिस्ट्री। बस, बाबाजी ने यहां भी टांग घुसेड़ दी।
रिपोर्टर : तो इससे क्या हो गया?
सूत्र : चार-चार नॉमिनेशन से कमेटी वाले चकरा गए। कुछ लोग उन्हें चारों में अवार्ड देने की बात करने लगे कुछ उनका विरोध। बस, कमेटी में इतना कन्फ्यूजन पैदा हो गया कि बाबाजी को नोबेल अवार्ड आगे के लिए टाल दिया गया।
(Disclaimer : यह केवल काल्पनिक इंटरव्यू है। केवल हास्य-व्यंग्य के लिए लिखा गया है। कृपया समर्थक और विरोधी दोनों टेंशन ना लें… )
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